रस तंत्र के उत्थान
के लिए जितना परिश्रम नाथ योगियों ने किया है,उतना किसी और ने नहीं किया,बल्कि ये
कहा जाये की नाथ योगियों से ही इस विद्या के प्रादुर्भाव को सार्थकता मिली है.इन
नाथ योगियों ने ही अपनी अथक तपस्या से सृष्टि के उन गोपनीय रहस्यों को आत्मसात
किया और उन सूत्रों के सहयोग से विभिन्न क्रियाओं,प्रक्रियाओं
,तत्वों,पदार्थों,वनस्पति का योग पारद के साथ किया और उनके प्रभावों को लिपिबद्ध
किया.उसी के परिणाम स्वरुप हमें इस विज्ञानं से सम्बंधित प्रचुर साहित्य प्राप्त
हुआ है.रस रत्नाकर, रसार्णव आदि बहुत से ग्रन्थ आज भी प्राप्य हैं और बहुत से ऐसे
ग्रन्थ हैं जो की या तो अप्राप्य है या फिर जिनके पास है वो कदापि इन्हें किसी को
दिखाना या देना पसंद नहीं करते हैं.मुझे ज्ञात है की १९९४ में सदगुरुदेव ने ‘पारद कंकण’
नामक ग्रन्थ की रचना की थी और उन्होंने उसे छपवाने के लिए जब प्रेस में कार्यरत
गुरुभाई को बुलाया और कहा की वे इस किताब की ५० प्रतियां छपवाना चाहते हैं और वो
भी कल सुबह तक.ये घटना रात्रि के ११ बजे की है. परन्तु उन गुरु भाई ने विनम्रता
पूर्वक सदगुरुदेव को बताया की सदगुरुदेव इस साइज के पेपर उपलब्ध नहीं हैं और यदि
दुसरे साइज के कागजो को उस नाप में काटा भी गया तो भी रात्रि भर में ये नहीं छप
पायेगी. सदगुरुदेव ने उस किताब को हाथ में लेकर वही फाड दी. अब ना जाने कौन सा
दुर्लभ ज्ञान हमारे समक्ष प्रकाशित होने वाला था,परन्तु हमारा दुर्भाग्य आड़े आ ही
गया.
खैर प्रज्ञानंद जी ने मुझे कभी बताया था
की सदगुरुदेव के वरिष्ठ सन्यासी शिष्यों
ने उनके निर्देशन में ऐसे बहुत से ग्रंथों
की रचना की थी जिसमे तंत्र के विविध गोपनीय रहस्यों का संकलन होता था. पर उन्होंने
उन्हें कई बार प्रकाशित भी नहीं करवाया.परन्तु ऐसी कई डायरियाँ उनके विविध शिष्यों
के पास सुरक्षित रखी हुयी हैं धरोहर के रूप में. उन्ही में से एक ५०० पेज की डायरी
मुझे दिखाई जिस पर हस्तलिखित अक्षरों में “रसेद्र मणि प्रदीप”
लिखा हुआ था,जिसमे पारद के सहयोग से विविध अचरजकारी गुटिकाओं का निर्माण करना
बताया गया था.उसी में एक प्रकरण विविध मन्त्रों और वनस्पतियों के सहयोग से साबर
मन्त्रों के द्वारा खेचरी गुटिका,स्पर्श मणि,महासिद्ध साबर गुटिका आदि ५४ गुटिकाओं
के निर्माण पर था.जिसे उच्च नाथ योगियों के आवाहन कर प्राप्त किया गया था.और
आश्चर्य ये था की ये सब निर्माण कार्य साबर मन्त्रों के सहयोग से होता है, अद्भुत
पद्धतियों का समावेश लिए हुए ये क्रियाएँ थी.सर्वप्रथम जिस गुटिका की निर्माण विधि
इस प्रकरण में अंकित थी वो इसी महासिद्ध
साबर गुटिका की विधि थी......
जिसके प्रयोग से उन महासिद्धों का न सिर्फ आवाहन होता था अपितु विविध मनोकामनाओं
की पूर्ती हेतु जिन भी साबर मन्त्रों को सिद्ध करना होता था,वे सभी सहजता से सिद्ध
हो जाते हैं.
इस गुटिका के निर्माण
के लिए जिस अष्ट संस्कारित पारद का प्रयोग किया जाता है उसके सभी संस्कार रसांकुश भैरव और
भैरवी के मन्त्रों से होता है परन्तु ये मंत्र जप दीपनी क्रम युक्त होना
चाहिए,तभी इस पारद में वो प्रभाव आएगा जो इस मणि के निर्माण के लिए अपेक्षित
है.तत्पश्चात इसे स्वर्ण ग्रास दिया जाये और इसे मुक्ता पिष्टी के साथ खरल किया जाये,जब पारद के साथ उस पिष्टी का पूर्ण योग हो
जाये तब उसे,काले विष, विशुद्ध ताम्र
भस्म,बैंगनी धतूरे,सिंहिका,मतस्याक्षी,श्वेतार्क और ताम्बूल के स्वरस के साथ १२० घंटों तक खरल किया जाये,और खरल करते समय-
ॐ सारा पारा,भेद उजारा,
देत ज्ञान उजारा ,दूर अँधियारा,शिव की शक्ति उरती आये,भीतर समाये,करे दूर अँधियारा
जो ना करे तो शंकर को त्रिशूल ताडे,शक्ति
को खडग गिरे,छू .
उपरोक्त मंत्र का जप
करते जाये,जब भी रस सूखने लगे तो नया रस डालते जाये ,जब समयावधि पूर्ण हो जाये तो
उस पिष्टी को सुखाकर शराव सम्पुट कर २ पुट दे दे,और स्वांग शीतल होने के बाद उस
पिष्टी के साथ पुनः मनमालिनी मंत्र का जप करते हुए उस पिष्टी का १० वा भाग पारद डालकर खरल करे और मूष
में रख कर गरम करे और धीरे धीरे विल्वरस का चोया देते जाये,लगभग १० गुना रस धीरे
धीरे चोया देते हुए शुष्क कर ले.अब आप इसे पिघलाकर गुटिका का आकार दे दे,इस क्रिया
में पारद अग्निस्थायी हो जाता है और गुटिका हलके रक्तिम वर्ण की बनती है जो पूर्ण
दैदीप्य मान होती है.यदि पारद अग्निसह्य नहीं हुआ तो क्रिया असफल समझो.इस गुटिका
को सामने रख पुनः ३ घंटों तक रसांकुश
मन्त्रों का दीपनी क्रिया के
साथ जप करो और गोरख मन मुद्रा का प्रदर्शन करो.तथा इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रों
से इसे प्रतिष्ठित कर इसमें ६४ रस
सिद्धों का स्थापन कर दो,फिर
षोडशोपचार पूजन कर उस पर आप मनोवांछित प्रयोग कर सकते हैं.इसे कनकधारा मंत्र से
यदि २१ माला मंत्र कर सिद्ध कर लिया जाये और पूजन स्थल पर स्थापित कर दिया जाये तो
ये गुटिका लक्ष्मी को बाँध देती है जिससे व्यक्ति को प्रचुर ऐश्वर्य की प्राप्ति
होती ही है.
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अष्ट संस्कारित पारद को
यदि स्वर्णग्रास देकर कांच की बोतल में गधे के ताजे मूत्र के साथ डालकर जमीन में
गडा दिया जाये तो ६ मास के बाद पारद की स्वतः भस्म बन जाती है और ये भस्म ताम्बे
को स्वर्ण में परिवर्तित करती है.
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For the development of Rass Tantra the hard work and devotion performed by
yogis nobody else could do the same that’s why we can say that this science is
presented in its present full fledge form just because of them. It was the same
yogis who with their strong reverence explored the hidden aspect of nature and
then successfully co-joined those natural powers with different elements,
particles and flora and further joined these things with parad (mercury) and
successfully recorded its results on the paper as well. And due to their
written records we have great grand literature about this science. Rass
Ratnaker, Rasarnav granths belongs to this category and there are many other
granths too which are either not available or the people who has don’t want to
give them to anybody. I still remember in 1994 Sadgurudev compose and compile a
granth named PARAD KANKAN and in order to get it
printed he called a gurubhai who was working in a press but as soon as he said
that to get this granth printed desired pages were not available and also there
is no chance to create that type of pages through the cutting and re-setting of
normal pages. As Sadgurudev heard it he immediately torn that hand written
manuscript and we lost valuable knowledge without knowing its basics due to our
bad luck.
While leaving it behind I remembered once Pragyanand ji told me that under
the supervision of Sadgurudev many of his pupils had written precious
literature on the secrets and mysterious of tantra though they did not get them
printed yet keep them carefully in the form of diaries. Out of those he showed
me one diary having 500 pages with the title RASENDRA
MANI PRADEEP, in which there were countless procedures were written
through which amazing gutikas can be made with the help of parad. Out of these
practices one was based on the fact that how with the trio combination of
different mantras, flora and sabar mantras Khechri gutikas, Sparsh Mani,
Mahasidhi Sabar gutika and 54 another gutikas like this can be made. The first
procedure recorded in that was about the making process of this Mahasidhi Sabar
gutika……with the help of not only Mahasidhs can be enchanted and called but
also fulfilled every desire and also was helpful to sidh the tough sabar
sadhnas.
For the making of this gutika Ashht Sanskarit Parad is used that too
should be sanskarit with the mantra of RASANKUSH
BHAIRAV and BHAIRAVI but these mantra should be systematically organized as per
JAPP DEEPNI system so that parad can get desired effect which is must for the creation of this
Mani. Than one should offer Swarn grass and get it mixed with MUKTA PISHHTI. When it make proper good mixture then again this mixture
should be blended with Black Venom ( kala vish), Pure Tamrr Bhasam, Purple tutia ( dhatura),Sinhika,
Mastyakshi,Shwetarak and Tambool
for 120 hours and at the time of mixing them one should enchant the
mantra-
OM SARA PARAA,BHED UTARA,DET GYAN
UJAARA,DOOR ANDHIYARA,SHIV KI SHAKTI URTI AAYE,BHEETAR SAMAAY,KARE DOOR
ANDHIYAARAA JO NA KARE TO SHANKAR KO
TRISHOOL TAADE,SHAKTI KO KHADAG GIRE,CHHOO
When it seems that mixture is getting dried then again put some more
mixture in it and when 120 hours get passed then get that Pishti dried and make
it shrav sambut by Putting it fire for decided time period. After that when
this whole mixture cools down then again with that Pishti blend 1/10 part of
parad by keep on enchanting Mammalini Mantra then slowly-slowly make it hot and
offer VILVRAS’s liquid to it. By
offering near about 1/10 liquid make it complete dry. Now firstly melt it and
then convert in the form of gutika. In this whole process parad make itself
fire proof due to that gutika took light blood color which is fully authentic.
But if parad remain fails to get the quality of fire proof then it is decided
that whole procedure is failed. By putting this gutika in front of you
continuously for 3 hours enchant RASANKUSH
mantra with DEEPNI KRIYA while doing this one should display Gorakh Mann Mudra. Now with the help of pran pratishthit mantras get
it pratishthit and then sthapan (make presented) 64 RASS SIDHS in it. And then by making SHHODASH UPCHAR on it you can do desired practical. If this gutika
can be get sidh by moving the beads of rosary for 21 times of KANAK DHARA mantra then this gutika can settle down Maa Laxmi in
your desired place forever and ever which will bless your life with comforts
and luxuries.
By offering Swarn grass to Ashht Sanskarit parad and then put it in
glass bottle with the fresh urine of donkey and further then putting this
bottle under the earth for 6 months then this parad converts itself in BHASAM
which has the capacity to change copper into gold.
ye sab chije aap jo likhte hai wo aaj kal milti kaha hai
ReplyDeleteप्रिय भाई जी सामग्री तो सभी मिलती है,आवशयकता है मात्र सही और प्रामाणिक सामग्री की पहचान की,अलग अलग क्षत्रों और राज्यों में इनके मान में भेद हो सकता है.
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