कुण्डलनी के बारे में अब तक
हमने जाना की कुण्डलिनी का मनुष्य से क्या सबंध है और क्यों है कुण्डलिनी का
अस्तित्व. आगे के लेख में हमने कुण्डलिनी से सबंधित कुछ ऐसे मुख्य तथ्यों पर चर्चा
की जिस पक्ष पर कई कारणों से भ्रान्तिया फैली हुई है. इसी लेख माला को आगे बढ़ाते
हुए हम अब कुण्डलिनी के विभ्भिन्न पक्षों पर विशेष चर्चा करेंगे.
कुण्डलिनी का स्थान मनुष्य
शरीर में गुदाद्वार से ऊपर की और होता है. कुण्डलिनी कोई शुक्ष्म शरीर मात्र में
स्थित होती है यह भी एक मिथ्या धारणा ही है. कुण्डलिनी और चक्र स्थूल शरीर का ही
हिस्सा है. मनुष्य में जो रीड की हड्डी है उसके अंदर से तिन अत्यधिक सूक्ष्म नाडी
जाती है. इन तीनों नाडी का मानव के शरीर की संरचना में बहोत ही बड़ा महत्त्व है. इन
तीनों नाडी को इडा पिंगला और सुषुम्ना कहा जाता है.
ये तीनों ही रीड की हड्डियों
में से बिच में होते हुए आगे की और ऊपर तक बढती है. मनुष्य के शरीर में इडा नाडी बाए
तरफ होती है, मध्य में सुषुम्ना और फिर दायें तरफ पिंगला होती है. इन्ही तिन
नाडियो को कई विभ्भिन नाम से पुकारा गया है. तांत्रिक ग्रंथो में भी इन्ही नाडियो
को कई बार गुप्त संज्ञा दी गई है. जेसे की शशि, आदित्य और अग्नि; सरस्वती, लक्ष्मी
और महाकाली; क्रिया ज्ञान और इच्छा नाडी; सूर्यनाडी चन्द्रनाडी तथा मध्यनाडी.
त्रिक मार्ग में इन्ही तीनों नाडियो को परापरा, अपरा और परा कहा गया है. इडा नाडी
स्त्री भाव और ऋणात्मक उर्जा तथा पिंगला नाडी पुरुषभाव और घनात्मक उर्जा का
उत्तरदायित्व रखती है. जिस व्यक्ति की स्त्री नाडी ज्यादा चेतन है उसका ह्रदय पक्ष
ज्यादा चेतन होता है जो की सभी मात्रुभाव का कारक है दया, करूणा, स्नेह समर्पण आदि
भाव इसी नाडी की चेतना के कारण विक्सित होते है. स्त्री शरीर में यह नाडी ज्यादा
विक्सित होती है. जब की पिंगला नाडी पुरुषप्रकृति के गुणों के विकास के लिए
आधारभूत है जेसे की कठोरता, निडरता, शोर्य, पराक्रम इत्यादि. इन्ही कारणों से
पुरुषों का मस्तिष्क पक्ष ज्यादा चेतन रहता है. इसी लिए ज्यादातर समय मन में उठ
रहे विचारों का आंकलन और इनका निरूपण स्त्री ह्रदय से तथा पुरुष दिमाग से करता है.
इसी लिए पुरुषों की अपेक्षा स्त्री में समर्पण भाव ज्यादा होता है तथा स्त्री की
अपेक्षा पुरुषों में कठोरता ज्यादा होती है. सिद्ध इन दोनों नाडियो को पूर्ण रूप
से साध लेते है, इसी लिए उनमे स्त्री भाव से सबंधित सभी गुण तथा पुरुष भाव से
सबंधित सभी गुण पूर्ण रूप से विकसित होते है. एक तरफ वह करूणा के सागर भी होते है
और अपने इष्ट के प्रति पूर्ण समर्पित होते है तो दूसरी तरफ वही सिद्ध निडरता से
परिपूर्ण होता है और क्रोध की अवस्था में साक्षात् रूद्र भी हो जाता है. इन्ही
नाडियो में विक्रुतता और चेतना का संचार अयोग्य होने के कारण कई बार पुरुष में
मात्र स्त्रीभाव या स्त्री में मात्र पुरुष भाव आ जाता है जिसे पुरातन विज्ञान रोग
मानकर उसकी चिकित्सा के लिए इन नाडियो की चेतना का विकास औषाधि, तंत्र और योग से
करते थे. यही दोनों नाडी का स्वर से भी सबंध है. इडा नाडी का रंग हल्का पीला तथा
पिंगला का रंग रक्त वर्णीय कहा गया है. गोरखनाथ ने शरीर सबंधित मुख्य १२ नाडियो
में इडा पिंगला और सुषुम्ना को प्रथम रख इनकी महत्वपूर्णता का परिचय दिया है.
तांत्रिक ग्रंथो में कई बार गुदा द्वार के ऊपर ध्यान करने योग्य प्राथमिक त्रिकोण
के बारे में बताया जाता है वह त्रिकोण का आधार इन्ही तिन नाडी है, इनके छोर एक
दूसरे से थोड़े इस प्रकार हट कर रहते है की कुण्डलिनी योग के मध्य अगर साधक ध्यान
अवस्था में इनको निचे से देखे तो ये तीनों एक एक बिंदु के रूप में दिखाई देते है
जिनको जोड़ देने पर वह प्रथम त्रिकोण बनता है. जेसे की पहले कहा जा चूका है की
सुषुम्ना नाडी इडा तथा पिंगला के मध्य में होती है. यह नाडी के अंदर से कुण्डलिनी
प्रवाह अपना मार्ग बनाती है तथा ऊपर की और बढते हुए नाडी से निर्मित गुच्छ रूप में
जो चक्र बंद है उनको खोलती है.
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Till now we discussed about kundalini that how it is
in relation with human being and why kundalini power has its existence. Further
we discussed on few points related to kundalini about which much confusion does
exist with various reasons. Moving on further, we will discuss on various
aspects of the kundalini power.
The place of the kundalini power is upward of the anus. It is myth that
kundalini is situated in astral body only. Kundalini and chakras are parts of
the main body. In the backbone of the human being three very thin veins are
situated. These three veins have big significance on the structure of the human
being. These three naadi or veins are termed as Ida, Pingla, and Sushumna.
These all three goes upward by situating them self in the middle of the
spinal cord. In the human body Ida is situated on the left side Sushumna in the
middle and Pingala on right side. These three veins are given various names. In
tantra scriptures many times these veins are termed with their secret names
like, shashi, aaditya and agni; saraswati, lakshmi and mahakaali; kriya, gyaan
and ichchha naadi; sun vein, moon vein and middle vein. In the Trik sect, these
three veins are also called as Paraapara, Apara and Para. Ida vein represents feminine nature and
negative energy and Pingala represents masculine nature or characteristics. The
one whose female vein (Ida) is more active; the one will have more activation
of the heartily thinking which is responsible for all the basic soft natures
like kindness, compassion, affection dedication etc gets development because of
this vein. In female, this vein remains more activated. Whereas on other hand
Pingala vein is responsible for the basic masculine characteristics like
hardness, fearlessness, hardiesse, power etc. and thus mind of the male remains
active. Therefore, majority of the time; basically thoughts which are merged in
mind are assessment and formulated with heart by females and with mind by
males. Therefore, dedication power is more in the female in compartision to
male and stiffness is more in male rather than females. A Siddha person attains
complete activation of both these naadi or veins thus leads owning complete
characteristics of the both male and female. On one side, they may be just
ocean of the mercy and completely dedicated to their Ishta but on other hand
they are complete fearless and in anger they just becomes like god Rundra. Many
times deficiency and inappropriate flow of the energy in the veins causes only
feminine nature in the male and sometimes only masculine nature in the females
which used to be treated as disorder in the ancient science and for the
treatment of the same growth in the activation power of these veins were used
to be carried out with the help of medications, tantra and yoga. These both veins are also collaborated with
Swara. Ida is light yellow in color where as Pingala is Red in color.
Gorakhnatha introduced the importance of these veins by putting them in ahead
among main twelve veins of the bodies.
At various places in the tantra scriptures there is mention about base
triangle upwards the anus. The base of that triangle is these three veins only,
the base part of these veins are situated with each other in the so appropriate
distance that when they are watched inner the body in the meditation with
kundalini yoga from the bottom; they look like three dots of the triangle which
when connected may form triangle. As it is said before, Sushumna is situated in middle of Ida and
Pingala. This veins makes way for the kundalini to move upwards and the chakras
situated in the form of the closed veins; it opens the same.
****NPRU****
धन्यवाद, जय सद्दगुरुदेव....मन प्रसन्न हो रहा है.....
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