मणिपुर चक्र:
कुण्डलिनी
क्रम में यह चक्र तीसरा चक्र है. मणिपुर का अर्थ होता है जवाहरात या रत्न का
स्थान. आधुनिक विज्ञानं में इस चक्र को epigastric plexus कहा गया
है. यह
चक्र १० दलों या १० पंखुडियो से निर्मित चक्र है इस लिए इस चक्र को दसदल या दसपत्र
पद्म भी कहा गया है. यह चक्र का स्थान नाभि प्रदेश है इस लिए इस चक्र को नाभि चक्र
या नाभि पद्म से भी कई बार संबोधित किया जाता है. यह चक्र अग्नि तत्व का नियंत्रण
करता है. ६२ प्रकार के अग्नि तत्व का नियमन इसी चक्र के माध्यम से होता है. यही ६२
तत्व इस चक्र से सबंधित ३१ शिव और ३१ शक्ति के नियमन पर आधिरित है.
यह
चक्र का योग और तंत्र दोनों ही मार्ग में बहोत ही बड़ा महत्त्व है. योग मार्ग में
इस चक्र का सबंध कारणशरीर से बताया गया है. पहले के दो चक्र मूलाधार एवं
स्वाधिष्ठान का सबंध क्रमशः स्थूल शरीर तथा शुक्ष्म शरीर से है. इन चक्रों के
जागरण से स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर चेतनावान रहते है इसी क्रम में मणिपुर चक्र
जाग्रति पर व्यक्ति कारण शरीर में स्थित होने लग जाता है. इस चक्र का सबंध व्यक्ति
की स्फूर्ति, तथा शक्ति से है. व्यक्ति के भोजन पाचन आदि सभी कार्य पर इस चक्र का
बहोत बड़ा प्रभाव व्याप्त है.
यह
चक्र अत्यधिक रहस्यमय चक्र माना गया है. हमारे स्थूल शरीर के साथ अन्य सभी शरीर
जुड़े हुवे होते है. यह सभी शरीर का मुख्य जुड़ाव का स्थान नाभि को माना गया है.
इसके अलावा शरीर में व्याप्त पदार्थ की घनता बढ़ाने के लिए या घटाने के लिए भी यह
चक्र कार्य करता है. या फिर पदार्थो से सबंधित अणुओ का विखंडन तथा जुड़ाव भी इसी
चक्र से होता है. जेसे की घन पदार्थ को तरल में परावर्तित करना या तरल पदार्थ को
वायु में परावर्तित करना. क्यों की यह स्थान ऊष्मा का नियमन कर सकता है. तथा गर्मी
के माध्यम से या ऊष्मा के माध्यम से पदार्थ के मूल रूप को दूसरे रूप में परावर्तित
किया जा सकता है. जेसे की पानी को गरम करने पर वह भाप बन कर वायु स्वरुप बन जाती
है. ठीक इसी प्रकार शरीर में उच्च योग तांत्रिक प्रक्रियाओ में यह चक्र अत्यधिक
महत्वपूर्ण कार्यों को सम्प्पन करता है.
इस
चक्र को उत्त्पति स्थान भी कहा गया है. विष्णु आदि भगवान के चित्रों में उनके नाभि
में से कमल निकला हुआ बताया गया है और उस पर ब्रम्हा विराजमान होते है. इस प्रकार
के कई कमल सभी व्यक्ति की नाभी में होते है तथा उनको शरीर से बाहर ला कर किसी भी
देवी देवता को स्थान निश्चित रूप से दिया जा सकता है. वैसे ये प्रक्रियाए
कुण्डलिनी के पूर्ण विकास के बाद आगे की प्रक्रियाए है. श्री परमहंस विशुद्धानंदजी
ने अपने जीवन काल में कई लोगो के सामने अपने नाभी में से कमल निकाल कर उन पर देवी
देवताओ को स्थान दे कर लोगो के मध्य कई बार योग तंत्र की इस प्रक्रिया को स्पष्ट
किया था. इस चक्र अत्यधिक गुढ़ है और कई रहस्यों को अपने अंदर समाहित किये हुए है,
मणिपुरमणि, ऊष्मायोग, शून्यआसान आदि सभी उच्चतम योग तांत्रिक प्रक्रियाए इसी चक्र
के अंतर्गत आती है.
इस चक्र की मुख्य शक्ति देवी लाकिनी है. चक्र से
सबंधित मुख्य देवता है रूद्र. भगवान रूद्र के स्थापित होने के कारण व्यक्ति में
योग तथा सर्व तंत्र शक्ति का व्याप्त होना तो निश्चित ही है. उच्चकोटि की योग
तांत्रिक प्रक्रियाओ का सबंध इस चक्र से होने के कारण यह स्वाभाविक भी है.
इस
चक्र का बीज मंत्र ‘रँ’
है. चक्र के सभी दस दल में क्रमशः डँ, ढँ, णँ, तँ, थँ, दँ, धँ, नँ,पँ और फँ अक्षर अंकित है. यह
सभी बीज दस भावो का नियमन करते है.
---
Manipur chakra:
This is third chakra in
the kundalini sequence. Meaning of Manipur is place of jewels or place of
precious stone. In modern science this chakra is termed as ‘Epigastic plexus’.
This chakra is made of ten petals thus it is also termed as DasaDal or Das
Patra Padma. Place of this chakra is navel region and this is why this chakra
is often also termed as Naabhi Chakra or Naabhi Padma. This chakra controls
fire element. Maintain the flow of sixty two types of fire elements is done by
this chakra. These 62 elements are based on the flow of 31 shiva and 31 shakti
related to this chakra.
This chakra holds big
importance in both yoga and tantra field. In yoga field, this chakra is said to
have relation with Kaaran body. Chakras before this, muladhara and swadhisthana
have their relation with Sthool (main) and Shukshm (astral) body respectively.
With activation of these chakras sthool and shukshm bodies receives consciousness and in this
sequence when Manipur chakra is activated person starts getting hold on kaaran
body. This chakra is related with energy and elation. Big impact of this chakra
is on the food and digestion functions.
This chakra is believed
as very mysterious. Other bodies do stay connected with our main body. Base cconnection
of all these bodies are believed to be navel. Apart from this, to increase or
decrease the density of the bodily substances is done by this chakra or atom
fragmentation or compilation of the substance is also done by this chakra like
to convert solid in liquid or liquid in gaseous because this place controls
heat in the body and with the medium of the heat one substance may be changed
to another. For example while boiling water that would convert into gaseous
substance. Same like this, in higher state yog tantric processes this chakra
does various importance tasks.
This chakra is also called as emergence place. In
the pictures of vishu and other god goddess one may see lotus coming from the
navel and bramha sitting on the same. Such many lotuses are situated in the
navel of all people and such lotuses could be taken out of the body and any
gods or goddess could be established on the same. Though, such processes are
further processes when kundalini is developed completely. In his life time,
ParamHansh Vishuddhanandji, had cleared this yog tantric process many times in
front of people by taking out lotus from the navel of himself and by
establishing gods and goddesses on the same. This chakra is really mysterious
and center of many deep secrets. Manipur mani, ushmayoga, Sunya aasana etc all
these higher level yog tantric processes comes under this chakra.
Main goddess of this chakra is goddess Laakini.
Main god in relation to this chakra is Rudra. As God Rudra is established in
this chakra one may for sure receives powers of yoga and tantra. This is
natural as this chakra has its relation with various highest yoga tantra
practices.
Beej mantra of this chakra is ‘ram’ (‘रँ’).
In the ten petals of this chakra ten alphabets established respectively are
Dam(डँ), Dham(ढँ), Nam(णँ), tam(तँ), tham(थँ), dam (दँ), dham (धँ), nam(नँ), pam(पँ) and pham(फँ). These all ten beejas controls ten feelings.
****NPRU****
Jay Sadgurudev.
ReplyDelete