मणिपुर
चक्र के दस दल में अंकित डँ,
ढँ, णँ, तँ, थँ, दँ, धँ, नँ,पँ और फँ जो दस भावो का नियमन करते है वह तृष्णा, घृणा, शर्म, उदासी, भय,
मूर्खता, द्रऋह या कपट की भावना, सुपुष्टि
या अध्यात्म का अस्वीकार, और भ्रान्ति या छल.मणिपूर चक्र के जागरण के साथ मनुष्य
में यह भावो का नियमन होने लगता है और धीरे धीरे उसका इन भावो का पर नियंत्रण होने
लगता है. फिर अपने अंदर इस प्रकार के भाव का संचार कितना करना है यह व्यक्ति के
हाथो में होता है. वह चाहे तो इन भावो से पूर्ण मुक्त हो सकता है.
इस
चक्र का अति महत्वपूर्ण सबंध सूर्यचक्र से है. वस्तुतः हमें सिर्फ सात चक्रों का
ज्ञान है लेकिन सदगुरुदेव ने १०८ चक्र के बारे में कई बार बताया है. सूर्य चक्र,
अग्नि चक्र, ह्रदयचक्र, शीत चक्र आदि ऐसे ही चक्र है जो की सप्त चक्रों से भी
शुक्ष्म है तथा उनका कार्य और भी गुढ़ है. सूर्य चक्र भी ऐसा ही एक चक्र है. यह
चक्र का सीधा सबंध सूर्य से है तथा सूर्य से जो प्राण उर्जा निसृत होती है उस
उर्जा को प्राप्त कर उसका नियमन और शरीर में योग्य रूप से संचार हो यह कार्य सूर्य
चक्र का है. यह सूर्य चक्र मणिपुर चक्र से जड़ा हुआ होता है. तथा मणिपुर के पूर्ण
विकास के बाद ही इस चक्र का जागरण और विकास संभव है.
इस
चक्र के जागरण मात्र से साधक को कई प्रकार के लाभी की प्राप्ति होती है. साधक में
प्राणों का संचार योग्य होने लगता है. साधक को पेट से सबंधित सभी बिमारी से राहत
मिलती है. अग्नि तत्व से सबंधित सारी प्रक्रियाए योग्य होने लगती है तथा इससे
सबंधित सारी समस्याओ से साधक को मुक्ति मिलती है. साधक को श्रवण क्षमता तथा देखने
की क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है तथा इसके पूर्ण विकास पर साधक को योग तथा तंत्र
से सबंधित कई प्रकार की गोपनीय क्रियाओं का ज्ञान होने लगता है.
इस
चक्र के जागरण के लिए साधक जालंधर बंध का अभ्यास करे उसके बाद साधक अपने पेट को
अंदर की और खींचे. यह क्रिया साधक को कुछ देर करनी चाहिए. यह प्रक्रिया १० से २०
मिनिट तक करे.इसके बाद साधक अपने पेट में हवा भरे तथा उसे बहार निकालने की क्रिया धीरे धीरे करे. यह प्रक्रिया १० से २० मिनिट तक करे.
यह
क्रिया थोड़ी देर करने के बाद साधक वापस जालंधर बंध लगा कर मणिपुर चक्र का ध्यान
करते हुए मानसिक रूप से बीज मंत्र ‘रं’ का जाप करे यह प्रक्रिया भी १० से २० मिनिट
करे.
इस
प्रकार करने पर साधक का मणिपुर जागृत होने लगता है.
साधक
को योगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए तथा आध्यात्म के लिए चक्र के मध्य में भगवान शिव
के रूद्र रूप का ध्यान करना चाहिए. जो की बाघ के चर्म पर बैठे हुवे है जिन्होंने
अपने पूरे शरीर पर भभूत लगा राखी है तथा आयु में वह वृद्ध है जिनकी जटायें सफ़ेद
है. ऐसे त्रिनेत्र युक्त रूद्र का ध्यान करना चाहिए. भाव नियंत्रण की इच्छा रखने
वाले साधक भी भगवान रूद्र का ध्यान करे.
तांत्रिक
शक्ति की प्राप्ति के लिए साधक को इस चक्र में देवी लाकिनी का ध्यान करना चाहिए जो
की इस चक्र की मुख्य शक्ति है. देवी का वर्ण श्याम है. उनके तिन मुख है जो की उनके
तीनों काल पर अपनी द्रष्टि की संज्ञा देती है. वह लाल कमल पर बैठी हुई है. जिनके
चार हाथो में, उन्होंने अभयमुद्रा तथा वज्र, तीर तथा अग्नि कुंड को धारण किया है.
भौतिक सफलता के इच्छुक, रोग मुक्ति तथा अग्नि तत्वों के योग्य संचार के लिए साधक
को लाकिनी देवी का ध्यान करना चाहिए.
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Established in ten petals of the
Manipur chakra alphabets Dam(डँ), Dham(ढँ),
Nam(णँ),
tam(तँ),
tham(थँ),
dam (दँ),
dham (धँ),
nam(नँ),
pam(पँ)
and pham(फँ)
do control ten feelings which are craving nature, disgust, shame, sadeness,
fear, foolishness, treachery, nature of spiritual decline or un acceptance, and
deception . When manipur chakra is activated, control of these feelings starts
in humans and slowly one may have hold on these emotions or feelings. After
that, power stays in own hand that how much amount of which emotion should be
flow in the body. If one wishes one may also gets completely freedom from these
emotions.
****NPRU****
जय सदगुरुदेव,
ReplyDeleteहमेशा की तरह विस्तृत रूप में समझाया गया है,और बहुत से विकल्प दिए गए है|
धन्याद,
जय सदगुरुदेव