Tat Srishtitav Tad Ev Pravishtaat
“After creating Universe, Brahma Ji became embedded in it”
“We ourselves are Brahma and we should create ourselves considering
ourselves as being present in entire universe”
Few days before, we read in Maanas Siddhi article regarding the
thoughts arising in our mind during sadhna that how while doing sadhna, we get
inkling about those things and thoughts regarding which we have never thought
and we have not faced any situation due to which such thoughts arise in our
mind…..But such thoughts not only arise in our mind rather wherever possible,
we are influenced by it and in that article only, I expressed one easy but very
useful thought , told to me by my Master that “If we have to save ourselves from
illusion then we should abandon all the benefits and loss arising out of
illusion”.
Today here I am going to put forward that Vidhaan, that
procedure in front of you all which is very hidden and secretive because
controlling one’s own thoughts means controlling your speed in field of Tantra.
Because controlling your mind or thoughts arising in mind only means that now
thoughts will come/go as per our will which is incomparable accomplishment in
itself because “The one who possess knowledge, they know that mind is
neither reliable friend nor faithful servant, we can direct it but never
control it”. But Tantra is one such Vigyan where there is no place for word
like Impossible. As I have already discussed that “Tantra does not run as per the
expectation of foolish people since there is no place of emotions in it…”.
High-order sadhak of Siddh Mandal Virupaaksh once said regarding
Tantra and Sadhnas that “THERE IS ONLY ONE RULE THAT THERE IS NO RULE”.These words have been told by him which
Master explained to me that Siddhi is accomplished by those who are as much
cruel for themselves as they can be for others. But here cruelty does not mean
to physically harm one’s self, it means to stand firmly on the resolutions
taken by one’s self……but friends, if mind allows it then only .Isn’t it…………But how it will be if we imbibe the quote SHIVOHAM! SHIVOHAM!
Meaning I am Shiva. Doing sadhna is also one Karma which is medium to take
us to the state of Karma-lessness. Because unbalancing activities disturbs
life-cycle continuously but they influence only those who considers himself
different from supreme power but what about
those who works according to him in thoughts, speech and karmas….Such person take their decision themselves.
It is something like if there is no punishment then falseness will also not exist.
In the same way if thoughts will not create illusion then there is no question
to go astray…..and the day when these wandering in dark will finish ,same day
there will be no difference between us and those divine powers…..we and they
will become one and same……that day quote “SHIVOHAM! SHIVOHAM!” will be realized
in practice.
In the previous article we understood that we should not react
to thoughts arising in our mind, we should only behave as mute spectator while
concentrating our vision. If one gets success in doing this then understand
that Sadgurudev has provided you the first success relating to control of thoughts since it means not seeing even one
moment of participation in the incidents happening in thoughts. In other words,
he (Sadgurudev) has provided you (Sadhak) capability to introspect yourself…….meaning
now you are learning about concentration……because such situation is created
only when we become thoughtless, we ourselves don’t know that what will we do
or say now? We never think about this but clearly we are stage-manager of this
unseen mentality. This subject may seem little bit difficult but in reality it
is all about “I and my” from which we have to free ourselves.
If there is not aim in front of you then there is no question of
its attainment and the one that can be felt, only those things
exist…….Therefore you have to frame the limit of that world in which these
thoughts occurs and concentrate on any one point or senses so that reality can
be reviewed correctly and reality is that thought will create a doubt within
you up till the time you are on Aasan….its flow will stop once you stop the
sadhna. But our aim is to do sadhna sitting stable on Aasan and with
thoughtless mind.
For controlling your thoughts while doing Sadhna, like Manah Shakti Sadhna, you have to follow one very easy
but hidden Vidhaan in this sadhna too. It has remained hidden because such
quickly-fruitful sadhnas are not available that much easily. You can do this
sadhna on morning of any Monday because it is not a night-time sadhna. You have
to chant 11 rounds of mantra given below. Direction will be north and dress
will be white. If you have accomplished any rosary according to Vidhaan given by
Master or any Aasan in Virupaaksh Aasan Siddhi Sadhna then you should use them
because accomplished sadhna articles increase the result of sadhna multiple
times……but if you have not done anything like this then you can you
Rosary and Aasan used in daily worship.
Before starting basic sadhna, do at least 11 rounds of Guru
Mantra because he is the only one whose blessing can provide success in any
sadhna. Take the blessing of Lord Ganpati so that sadhna can be completed
without hurdle. After sadhna, offer Bhog of any sweet article as per your
capacity to Sadgurudev and offer Jap in his lotus feet.
Mantra:
OM AING HREENG MANAS CHETNA SAADHAY SAADHAY HREENG AING OM
This sadhna is as much as hidden as it is easy. Therefore after
doing it, share its experience with everyone and as I always repeat one thing
told by my Master that after doing any sadhna, chant at least 1 round or repeat
it again in interval of some days so that this mantra become accomplished for
you for eternity.
Nikhil Pranaam….
=====================================
तत् सृष्टित्व तद् इव नु प्रविश्तात्
“ ब्रह्मांड की रचना करने के पश्चात ब्रहमा जी इसी में समा गए “
हम ही ब्रह्म है और हमें स्वयं को
समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त समझते हुए स्वयं के निर्माण का कार्य करना है “
कुछ
दिन पूर्व मानस सिद्धि लेख में हमने साधना करते समय हमारे मानस में उठने वाले
विचारों के विषय में पढा था कि कैसे साधना करते समय हमें उन चीजों अथवा विचारों का
आभास होने लगता है जिनके विषय में हमने ना तो कभी चिंतन किया होता है और ना ही कभी
ऐसी स्थिति से हमारा सामना हुआ होता है जिससे ऐसे विचार हमारे मन में उभरे.....पर
ऐसे विचार ना केवल हमारे दिल दिमाग में उभरते है बल्कि यथा संभव हम उनसे प्रभावित
भी होते हैं और उसी लेख में ही इस समस्या के समाधान हेतु अपने मास्टर द्वारा
समझाया एक सरल पर बेहद उपयोगी विचार भी मैंने आपके समक्ष ज़ाहिर किया था कि
“ यदि भ्रम से बचना है तो भ्रम से होने वाले फायदों और
नुक्सान को तिलांजली दे दो “ .
आज
यहाँ मैं उस विधान को, उस प्रक्रिया को आपके समक्ष रखने जा रही हूँ जो बेहद गोपनीय
और रहस्यमय है क्योंकि अपने विचारों को अपने बस में कर लेने का अर्थ है तंत्र के
क्षेत्र में अपनी गति को अपने हाथ में ले लेना क्योंकि मन को या मन में उठने वाले
विचारों पर नियंत्रण का अर्थ ही यही है की अब विचार हमारी गति से चलेंगे जो अपने
आप में एक अतुलनीय उपलब्धि है क्योंकि “ जो
ज्ञानी होते है वो जानते हैं की मन ना तो भरोसेमंद मित्र है और ना ही आज्ञाकारी
सेवक, हम इसे निर्देशित तो कर सकते हैं पर नियंत्रित कदापि नहीं “ पर तंत्र एक ऐसा विज्ञान
हैं जिसमें असंभव जैसे शब्द के लिए कोई स्थान नहीं पर जैसे की मैं पहले ही आपसे इस
कथन पर चर्चा कर चुकी हूँ की “ तंत्र मूर्खों
की अपेक्षाओं पर नहीं चलता क्योंकि इसमें भावना का कोई स्थान नहीं है.....”
सिद्ध मंडल के उच्चकोटि के साधक विरूपाक्ष जी ने
एक बार तंत्र और साधनाओं के विषय में समझाते हुए कहा था “ THERE IS ONLY ONE RULE
THAT THERE IS NO RULE” यह शब्द उन्ही के कहे हुए हैं जिन्हें मास्टर ने
समझाते हुए बताया था की सिद्धि उसी का वरण करती है जो खुद के लिए उतना ही निर्दयी है
जितना वो किसी और के लिए हो सकता है पर यहाँ निर्दयी होने का अर्थ खुद के साथ मार
काट करने से कदापि नहीं है, इसका अर्थ है अपने किये हुए संकल्प पर दृढ़ता से टिके
रहना.....पर बंधु मन ऐसा होने दे तब ना....पर
कैसा हो यदि हम शिवोहं ! शिवोहं !
यानी मैं शिव हूँ.....वही मैं हूँ कथन को आत्मसात
कर लें. साधना करना भी कर्म है जो हमें अकर्म तक की स्थिति तक ले जाने का एक
माध्यम है क्योंकि असंतुलन पैदा करने वाली क्रियाएँ जीवन चक्र को निरंतर कर देती
है पर इसका प्रभाव उसी पर होता है जो खुद को अद्वैत से अलग मानता है पर उसका क्या
जिसके मन, वचन और कर्म उसी के अनुसार चलते हैं.....ऐसा मनुष्य अपना निर्णय स्वयं करता है बिलकुल वैसे जैसे दंड ना हो तो झूठ भी
नहीं होगा ठीक उसी तरह यदि विचार भ्रम पैदा नहीं करेंगे तो भटकने का सवाल ही नहीं
उठता......और जिस दिन यह भटकना खत्म हो जाएगी उस दिन हम में और दैवी शक्तियों में
कोई भेद नहीं होगा....वो हम और हम वो हो जायेंगी... उस दिन शिवोहं ! शिवोहं ! का
कथन भी सार्थक हो जाएगा.
पिछले
लेख में हमने इस बात को समझा था की साधना करते समय मन में उठने वाले विचारों पर
हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए, अपनी दृष्टि को एकाग्र रखते हुए उन्हें
केवल एक मूक दर्शक की तरह देखना चाहिए क्योकि यदि ऐसा करने में आपको सफलता मिलती
है तो समझ लेना विचारों को वश में करने की साधना के संदर्भ में
सदगुरुदेव ने आपको पहली सफलता प्रदान कर दी क्योकि
विचारों में घटित होने वाली घटनाओं में अपनी सहभागिता को एक क्षण के लिए भी ना
देखना अर्थात उन्होंने ( सदगुरुदेव ने ) आपको (साधक को) उसके स्वयं को अवलोकन करने
दिया....मतलब अब तुम एकाग्रता के बारे में सीख रहे हो..... क्योंकि ऐसी स्थिति तब
ही उत्पन्न होती है जब हम विचार विहीन होते हैं, हमें खुद को नहीं मालुम होता कि
अब हम क्या करेंगे या कहेंगे? हम इसके बारे में सोचते भी नहीं लेकिन स्पष्टत: इस
अनदेखी विचारधारा के सूत्रधार होते तो हम स्वयं ही है. विषय थोडा सा कठिन प्रतीत
होता है पर असल में है नहीं सब “ मैं और मेरे “ का खेल है जिससे हमें मुक्त होना
है.
यदि सामने कोई
लक्ष्य ना हो तो उसे पाने का सरोकार भी नहीं होता और जिसकी अनुभूति होता है
अस्तित्व भी उसी का ही होता है...इसीलिए आपको उस विश्व को जिसमें यह विचार घटित
होते हैं उसकी सीमा बाँध देनी है और खुद को किसी भी एक बिंदु या इंद्री पर
केंद्रित कर देना होता है ताकि वास्तविकता की सही समीक्षा हो सके और वास्तविकता यह
है कि विचार तब तक ही आपको भ्रमित करेंगे जब तक आप अपने आसन पर हो....साधना रोक
देने पर इनका प्रवाह भी रुक जाएगा. पर हमारा उदेश्य विचार मुक्त होते हुए आसन पर
स्थिर रहते हुए साधना करना है.
साधना
करते समय अपने विचारों पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु आपको मन: शक्ति साधना की तरह
इस साधना में भी एक अति सरल किन्तु गोपनीय विधान का अनुसरण करना है. गोपनीय इसलिए
क्योंकि इतनी शीघ्र फलदायक साधनाएं इतनी सहजता से उपलब्ध नहीं होती. इस साधना को
आप किसी भी सोमवार की सुबह को कर सकते हो क्योकि यह रात कालीन साधना नहीं है. दिए
गए मंत्र का आपको ११ माला मंत्र जाप करना है. साधना करते समय आपकी दिशा उत्तर होगी
और वस्त्र सफेद. यदि मास्टर द्वारा बताए विधान के अनुसार आपने कोई माला और विरूपाक्ष
आसन सिद्धि साधना में आपने कोई आसन सिद्ध किया हो तो आप उनका ही उपयोग करें क्योकि
सिद्ध सामग्री साधना के फल को कई गुणा बढा देती है......पर यदि आपने ऐसा कुछ नहीं किया है तो आप अपने दैनिक विधान
में उपयोग की जाने वाली माला और आसन का उपयोग कर सकते हैं.
मूल साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु मंत्र की कम
से कम ११ माला मात्र जाप जरूर करें क्योकि केवल वो ही हैं जिनके आशीर्वाद से किसी
भी साधना में सफलता प्राप्त की जा सकती है और साधना निर्विघ्न सम्पन्न हो इसके लिए
भगवान गणपति का आशीर्वाद लें. साधना के पश्चात सामर्थ्य अनुसार सदगुरुदेव को किसी
भी मीठे पदार्थ से भोग लगायें और अपना जप उनके श्री चरणों में समर्पित कर दें.
मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं मनस चेतना साधय साधय ह्रीं ऐं ॐ
OM AING HREENG
MANAS CHETNA SAADHAY SAADHAY HREENG AING OM
यह साधना
दिखने में जितनी सरल है उतनी ही गोपनीय भी है इसलिए इसे करने के पश्चात अपने अनुभव
जरूर सब के साथ बांटे और जैसे की मैं मेरे मास्टर की एक बात हमेशा दोहराती हूँ की
किसी भी साधना को करने के पश्चात उसे प्रतिदिन कम से कम एक माला या कुछ दिनों के
अंतराल से फिर से कर लेना चाहिए जिससे की वो मंत्र हमेशा- हमेशा के लिए आपको सिद्ध
हो जाए.
निखिल प्रणाम
****ROZY NIKHIL****
****NPRU****
Jay Gurudev
ReplyDeleteSadhna kitne din karni hai?