Relating to Yakshini sadhna, till now we learnt that how and why Aakash
Mandal is needed and how Krodh beej and Krodh Mudra are combined within it.And
what are the various facts relating to Yaksha and Yakshini in Jain Tantra padhati.
Besides this, what is the relation of Lord Manibhadra sadhna with Yakshini sadhna.
Now here we will have a special discussion on Yaksha Mandal Sthapan Prayog
since this prayog is hidden and important prayog of Jain Tantra Padhati.
Through this prayog, sadhak can definitely pave his way to success in Yakshini
Sadhna.
This prayog is also done on Yakshini Sadhna combined i.e. Krodh Beej
Aakash Mandal. Under this Prayog, sadhak has to first of all establish 24
Yaksha, 24 Yakshini and 24 Teerthankar in Yantra. This sthapan is done through
special mantras. This is complete Yaksha Mandal. It is assumed that 24 Yakshas which are mentioned in Jain Tantra
hold an important place in Yaksha Lok. Same thing applies to 24 Yakshini. And
how it is possible without the blessing of 24 Teerthankar? Therefore their sthapan
(establishment) is very much necessary. After that Yaksha Mandal Sthapan Prayog
Mantra is chanted through which established God in yantra gets the place in
Yantra and Yantra attains complete consciousness. After that, sadhak has to
chant Yakshini Siddhi mantra. Through this mantra, Yaksha Mandal set up in
Aakash Mandal gets to know about the desire of sadhak and sadhak in one way
prays through the medium of Mantra for Yakshini Siddhi.
After this Mantra Jap, sadhak do the worship like procedures and in this
manner, prayog is completed or in other words this sequence is completed which
contains making and establishment of Aakash Mandal, after that Manibhadra
Prasann Prayog and in the end Yaksha Mandal Sthapan Prayog is done. This
procedure opens the door of Yakshini Sadhna for sadhak. And this is Kaamy
procedure i.e. when one has to do Yakshini Sadhna then sadhak has to chant 11
rounds of special mantra related to it in front of Aakash Mandal and becomes
capable of doing vashikaran of related Yakshini.
There are many such rare and hidden Vidhaan relating to Yakshini Sadhna
whose application by sadhak can lead him to aim with full capability. Such
Vidhaans are only available through Guru and its knowledge can be attained
through only Guru System. We have always tried that we together can put this
type of knowledge in front of you all. As far as seminar is concerned, there
are certain facts which definitely can’t be disclosed in front of every person.
These facts should be disclosed only to those who have interest, who have aim
then only the dignity of that sadhna, that procedure and that secrecy related
to procedure obtained from Guru System can be maintained. Because if it would
not have been important then today nothing would have remained hidden and if
all these keys or secret procedures would have come in light then they would
being ignored have been degraded to normal procedures and would have lost
significance and their secret meaning. Bringing in light the secrets is as
important as understanding these procedures and root of it lies in suitable
candidate. Those who have intense desire to attain knowledge, they attain the
knowledge at any cost even in unfavorable situations. And such sadhak grasp the
secrets and they write their name in category of successful sadhaks. But the
fact underlying all these is the thirst for knowledge. More the thirst, more
one will try. And this field of knowledge contains the infinite knowledge. So
the one who will move ahead and try to grasp as much as possible, he/she
definitely attains that much. Then blessings of Sadgurudev are always with us.
So if we attain success in sadhna and become the reason for smile on his lips,
then no accomplishment can be greater for any disciple.
===================================== यक्षिणी साधना के परिपेक्ष में अब तक हमने जाना की किस प्रकार आकाश मंडल की आवश्यकता क्या है तथा इसमें क्रोध बीज और क्रोध मुद्रा का किस प्रकार से संयोग होता है. तथा जैन तंत्र पद्धति में यक्ष तथा यक्षिणी के सबंध में किस प्रकार अनेको तथ्य है. इसके अलावा भगवान मणिभद्र की साधना का यक्षिणी साधना से क्या सबंध है. अब हम यहाँ पर विशेष चर्चा करेंगे यक्षमंडल स्थापन प्रयोग की. क्यों की यह प्रयोग जैन तंत्र पद्धति का गुप्त तथा महत्वपूर्ण प्रयोग है. इस प्रयोग के माध्यम से साधक निश्चित रूप से यक्षिणी साधना में सफलता की और अग्रसर हो सकता है.
यह
प्रयोग भी यक्षिणी साधना संयुक्त अर्थात क्रोध बीज युक्त वायु मंडल पर किया जाता
है. इस प्रयोग के अंतर्गत साधक को सर्व प्रथम २४ यक्ष, २४ यक्षिणी तथा २४
तीर्थंकरों का स्थापन यन्त्र में करना रहता है. यह स्थापन विशेष मंत्रो के द्वारा
होता है. यह पूर्ण यक्ष मंडल है. २४ यक्ष जिनके बारे में जैन तन्त्रो में उल्लेख
है वह सभी यक्ष के बारे में यही धारणा है की उन सभी देवो का यक्षलोक में
महत्वपूर्ण स्थान है. यही बात २४ यक्षिणी
के बारे में भी है. तथा २४ तीर्थंकर अर्थात जैन धर्म के आदि महापुरुषों के
आशीष के बिना यह कैसे संभव हो सकता है. अतः उनका स्थापन भी नितांत आवश्यक है ही.
इसके बाद यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग मंत्र का जाप किया जाता है जिसके माध्यम से
यन्त्र में स्थापित देवता को स्थान प्राप्त होता है तथा यन्त्र पूर्ण चैतन्यता को
प्राप्त कर सके. इसके बाद साधक को यक्षिणी सिद्धि मंत्र का जाप करना रहता है. इस
मंत्र जाप से आकाश मंडल में स्थापित यक्षमंडल को साधक की अभिलाषा का ज्ञान हो जाता
है तथा साधक एक रूप से मंत्रो के माध्यम से यक्षिणी सिद्धि की कामनापूर्ति हेतु
प्रार्थना करता है.
इस
मंत्र जाप के बाद साधक पूजन आदि प्रक्रियाओ को करता है तथा इस प्रकार यह प्रयोग
पूर्ण होता है. या यु कहे की यह क्रम पूर्ण होता है. जिसमे आकाशमंडल का निर्माण और
स्थापन, इसके बाद मणिभद्र देव प्रशन्न प्रयोग तथा अंत में यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग
किया जाता है. यह प्रक्रिया साधक के यक्षिणी साधना के द्वार खोल देती है. और यह
काम्य प्रक्रिया है अर्थात जब भी कोई भी यक्षिणी साधना करनी हो तो इस आकाशमंडल के
सामने इससे सबंधित एक विशेष मंत्र का ११ माला उच्चारण कर साधना करने से साधक
सबंधित यक्षिणी का वशीकरण करने में समर्थ हो जाता है.
यक्षिणी
साधना से सबंधित ऐसे कई दुर्लभ तथा गुह्यतम विद्धान है जिनको अपना कर साधक अपने
लक्ष्य की और अपनी पूर्ण क्षमता के साथ गतिशील हो सकता है. ऐसे कई विधान जो सिर्फ
गुरु मुखी है तथा उनका ज्ञान मात्र गुरुमुखी प्रणाली से ही हो सकता है. हमारी सदैव कोशिश रही है की हम मिल कर उस
प्रकार के ज्ञान को सब के सामने ला पाए. और जहां तक बात सेमीनार की है तो कुछ तथ्य
निश्चित रूप से हरएक व्यक्ति के सामने रखने के योग्य नहीं होते है, जिनकी रूचि हो,
जिनका लक्ष्य हो उनके सामने मात्र ही उन तथ्यों को रखा जाए तब साधक की , उस साधना
की, उस प्रक्रिया की तथा उस गुरुमुख से प्राप्त प्रक्रिया से सबंधित रहस्यवाद की
गरिमा बनी रह सकती है, क्यों की अगर यह महत्वपूर्ण नहीं होता तो आज कुछ भी गुप्त
होता ही नहीं, और अगर सब कुंजी या गुढ़ प्रक्रियाए प्रकाश में होती तो वो भी
उपेक्षा ग्रस्त हो कर एक सामान्य सी प्रक्रिया मात्र बन जाती तथा उसकी ना कोई
महत्ता होती न ही किसी भी प्रकार गूढार्थ. रहस्यों को प्रकाश में लाना उतना ही
ज़रुरी है जितना की उनकी प्रक्रियाओ को समजना और इन सब के मूल में होता है योग्य
पात्र. जिनमे लोलुपता है वह ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी भी विपरीत परिस्थिति
यो में भी कैसे भी गतिशील हो कर ज्ञान को अर्जित करता ही है. और ऐसे साधक को
रहस्यों की प्राप्ति हो जाती है तथा वह अपना नाम सफल साधको की श्रेणी में अंकित कर
लेता है. लेकिन इन सब के मूल में भी एक तथ्य है, ज्ञान प्राप्ति के तृष्णा. जिसको
जितनी ज्यादा प्यास होगी वो उतना ही ज्यादा प्रयत्नशील रहता है. और ज्ञान के
क्षेत्र में तो अनंत ज्ञान है अतः जो आगे बढ़ कर जितना प्राप्त करने का प्रयत्न
करेगा उसको उतना ज्ञान अवश्य रूप से मिलता ही है, फिर सदगुरुदेव का आशीष तो हम सब
पर है ही. तो साधनामय बन सफलता को प्राप्त कर हम उनके अधरों पर एक मुस्कान का कारण
ही बन जाये तो एक शिष्य के लिए उससे बड़ी सिद्धि हो भी नहीं सकती.
****RAGHUNATH NIKHIL****
****NPRU****
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