Krishnam vande
jagatgurum
Whenever we
think of Lord Krishna, one such image emerges in front of our eyes which brings
smile on our face. From historical point of view or shastra point of view or in
other view, personality of Krishna was amazing in itself and full of divinity.
There is nothing which his journey from ordinary to extra-ordinary does not
teach us and it provides us the knowledge about beauty of life. If even siddhs
call him as Jagat Guru (Guru of entire world) then what more can be said about
him. What was that quality in Shyam or Murli Manohar that whenever one thinks
of him, person is filled with sweetness. There was something beyond beauty and
attraction in his personality that whosoever came in contact with him, May it
is his friend or enemy, they were not able to get out of his charming spell.
And when we talk about one such quality which binds person with attraction, one
such quality that whosoever comes in contact with that person is filled with
sweetness, something attaining which all sorrows disappear and at the time of
separation it feels like death. If all this is given name of one quality, then
is it not Sammohan? Definitely Krishna was person full of attraction and even
much more than it, he was full of Sammohan. Today even after hundreds of years
whenever we talk of Sammohan or attraction, his name is always taken.
If we split this
word then it means full of Mohan. Mohan is one such quality which compels any
other person to become favourable, filling our self with so much of divinity
that when some other person comes in contact with that divinity, he is also
filled with divinity and what is left is just sweetness where there is no
anxiety or sorrow. But is it possible to have such Sammohan? If such Sammohan
can be attained then what is left. May it be materialistic life or spiritual
life, getting completeness in both becomes so much easy. On one hand, person
can gain prosperity and happiness in his daily life, his work field, business,
and household life and enjoy his life and on the other hand he can activate his
inner power at mental level and develop his spiritual consciousness to maximum.
But how can it be possible?
There is nothing
called impossible in field of Tantra. Parad tantra has been called last Tantra
in itself where exceptional prayogs are carried out with the help of Parad and
Tantra. In this context, there are many abstruse procedures in this field which
are related to attraction and Sammohan. One such prayog is Krishna Sammohan
Prayog by which person can create so much of Sammohan inside him which is
capable of providing various types of favours on both materialistic and
spiritual plane. This is because of the fact that while on one hand parad,
present in each particle as life fluid in universe fills person with complete
Sammohan and on the other hand this activity is accelerated by Tantra procedure
with the help of Devi powers.
Sadhak should
start this sadhna from any Sunday. It should be done at sunrise or after 9 in
the night.
Sadhak should
take bath, wear red dress and sit on red aasan. Sadhak should face north
direction.
Sadhak should
establish Parad Saundarya Kankan in front of him. If it is not possible for
sadhak then sadhak should establish any picture of Lord Krishna or Sammohan
Yantra but after establishing Saundarya Kankan sadhak can get highest benefit
and attain complete success. After doing Guru Poojan and Ganesh poojan, do
normal poojan of Lord Krishna picture or gutika.
After this,
sadhak should chant Guru Mantra and then chant 11 rounds of below mantra.
Sadhak should use Rakt or Moonga rosary for chanting. If sadhak has Sammohan
rosary then he can also use it for this sadhna.
kleem krishnaay sammohan kuru kuru namah
Sadhak should do
this procedure for 3 days. After 3 days, sadhak should safely keep the rosary.
This sadhna can be used for Sammohan sadhna in future. Establish Saundarya
Kankan in worship room.
कृष्णंवन्देजगत्गुरुं
कृष्ण का नाम मानस में आते ही आँखों के समक्ष एक एसी मूर्ति
साकार हो जाती है की अपने आप अधरों पर एक मुस्कान तैर जाए. ऐतेहासिक द्रष्टि से या
शाश्त्रोक्त नज़रिए से, चाहे किसी भी रूप में देखा जाए, कृष्ण का व्यक्तित्व अपने
आप में एक अनूठा तथा दिव्यता से परिपूर्ण व्यक्तित्व रहा है. एक सामान्य से
असामान्य तक की उनकी जीवन यात्रा हमें क्या क्या नहीं सिखाती समाजाती और देती है
वह ज्ञान की आखिर जीवन का सौंदर्य क्या है. अगर सिद्धो के द्वारा भी कृष्ण को जगत
गुरु कहा गया है तो उसके आगे तो क्या कहा जा सकता है. श्याम और मुरली मनोहर में
क्या ऐसा गुण था की आज भी किसी को जब उनके बारे में ध्यान आता है तो व्यक्ति अपने
आप में ही मधुरता युक्त हो जाता है. सौंदर्य
और आकर्षण से भी ऊपर उस व्यक्तित्व में ऐसा कुछ ज़रूर था की जो भी उनके समपर्क में
आता था चाहे वह उनके मित्र हो या शत्रु, सब उनके मोह पाश से मुक्त नहीं हो पाते
थे. और जब जब भी एक इसे गुण की बात कही भी आती है जो व्यक्ति को आकर्षण से बद्ध कर
दे, एक ऐसा गुण की जो भी उस व्यक्ति के संपर्क में आये वह मधुरता से भर जाए, कुछ
ऐसा की उससे मिलते ही सरे दुःख दर्द दूर हो जाए और वियोग के समय जेसे प्राण ही
निकल जाए, अगर इन सब को एक गुण का नाम दिया जाए तो क्या वह सम्मोहन नहीं है?
निश्चय ही कृष्ण आकर्षण और उससे भी बहोत आगे सम्मोहन से युक्त व्यक्तित्व थे आज भी
सेकडो वर्षों के बाद भी जिनका नाम जहाँ पर भी सम्मोहन या आकर्षण की बात होती है,
वहाँ आ ही जाता है.
अगर इस शब्द का संधि विच्छेद किया जाये तो इसका अर्थ होता
है मोहन से परिपूर्ण. मोहन वह गुण जो की किसी भी व्यक्ति को बाध्य कर दे अनुकूल
बनने के लिए, अपने आप को उस स्तर तक दिव्यता से भर देना की जहां दूसरे व्यक्ति भी उस
दिव्यता के संपर्क में आते ही खुद दिव्यता से युक्त हो जाये. और पीछे रह जाये तो
बस एक मधुरता जहां पर कोई चिंता या विषाद ही न हो. लेकिन क्या ऐसा सम्मोहन प्राप्त
करना संभव है? और अगर ऐसा सम्मोहन प्राप्त हो जाए तो क्या फिर शेष ही क्या रह गया.
चाहे वह भौतिक जीवन हो या अध्यात्मिक जीवन हो. निश्चय ही दोनों पक्षों में पूर्णता
प्राप्त करना कितना सहज हो सकता है. एक तरफ व्यक्ति अपने रोजिंदा जीवन में अपने
कार्य क्षेत्र, व्यापर, गृहस्थी में पूर्ण वैभव और सुखमय हो कर जीवन का आनंद ले
सकता है वहीँ दूसरी तरफ अपनी आतंरिक शक्तियों का विविध मनः स्तर पर जागृत करता हुआ
आध्यात्मिक चेतना का भी पूर्ण विकास कर सकता है. लेकिन यह सब कैसे हो सकता है?
तंत्र के क्षेत्र में असंभव जेसा तो कुछ है ही नहीं. पारद
तंत्र तो अपने आप में अंतिम तंत्र कहा गया है जहां पर एक से एक विलक्षण प्रयोग
पारद और तंत्र के माध्यम से सम्प्पन किये जाते है. इसी क्रम में सम्मोहन और आकर्षण
से सबंधित भी कई गुढ़ प्रक्रियाएं इस क्षेत्र में निहित है ही. ऐसा ही एक प्रयोग है
कृष्ण सम्मोहन प्रयोग. जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर एक ऐसा सम्मोहन उत्पन्न
कर सकता है जो की उसे भौतिक तथा अध्यात्मिक दोनों धरातल पर कई कई प्रकार की
अनुकूलताएं प्रदान करने में सर्व समर्थ है. क्यों की जहां एक और पारद इस
ब्रह्माण्ड में जिव द्रव्य के रूप में कण कण में उपस्थित हो कर पूर्ण सम्मोहन
आकर्षण को मनुष्य के कण कण में भी सम्मोहन भर देता है वहीँ दूसरी तरफ इस कार्य को
दैवीय शक्तियों के माध्यम से पूर्ण वेगवान बनाती है तंत्र प्रक्रिया.
यह साधना साधक किसी भी रविवार की रात्री में शुरू करे. समय
सूर्योदय का हो या फिर रात्री में ९ बजे के बाद का.
साधक स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्रों को धारण करे.
तथा लाल आसान पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ रहे.
साधक अपने सामने पारद
सौंदर्य कंकण स्थापित करे अगर साधक के लिए यह संभव न हो तो साधक अपने
सामने भगवान कृष्ण का कोई चित्र या सम्मोहन यंत्र स्थापित कर ले लेकिन सौंदर्य
कंकण स्थापित करने पर साधक महत्तम लाभ प्राप्ति तथा पूर्ण सफलता को अर्जित कर सकता
है. गुरुपूजन, गणेशपूजन सम्प्पन कर साधक भगवान कृष्ण के चित्र या गुटिका का भी
सामान्य पूजन सम्प्पन करे.
इसके बाद साधक गुरुमंत्र का जाप कर निम्न मंत्र की ११ माला
जाप करे. यह जाप साधक को रक्त माला या मूंगा माला से करनी चाहिए. अगर साधक के पास
कोई सम्मोहन माला है तो उसका प्रयोग भी इस साधना हेतु किया जा सकता है.
क्लीं कृष्णाय सम्मोहन कुरु कुरु नमः
(kleem krishnaay
sammohan kuru kuru namah)
साधक यह क्रम ३ दिन तक करे. ३ दिन हो जाने पर साधक माला को
सुरक्षित रखले. यह माला आगे भी सम्मोहन साधनाओ के लिए उपयोग की जा सकती है. सौंदर्य
कंकण को पूजा स्थल में स्थापित कर दे.
****NPRU****
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