It
is well known fact regarding Lord Shri Krishna that there has never been anyone
on this earth who had unparalleled personality like him. He faced lots of
difficulties in each and every field of life; he kept on fighting and never gave
up. Rather what happened was that all those who came as obstacle in front of
him, with passage of time they all bowed down in his lotus feet when they came
to know about complete personality of Krishna.
From
Tantra Point of view, Shri Krishna is most important since blessings and grace
of Lord Shri Krishna can be obtained by sadhak by doing tantric sadhna of his
diverse forms and thereafter, sadhak secures victory in each and every aspect
of life. There are many forms of Lord Shri Krishna. Sadhna of his diverse forms
is done in various schools of tantra through various padhatis. However, it is
very rare to find information about tantric sadhna of his ‘DEVKI PUTRA FORM’
This
is childhood form of Lord Shri Krishna. Various types of benefits are attained by
doing sadhna of this form of Lord out of which major ones are given below.
Speciality about this sadhna is that it gets rid of all the child-related
problems of parents; it may be related to any aspect.
If
any person’s son or daughter remains continuously ill or suffer from any
disease or the other very frequently, then doing this prayog provides good
health to children.
If
someone’ children is not on right path and have come under influence of
bad/anti-social company then in such circumstances this prayog resolves this
type of children-related anxiety.
In
many instances, children are weak in study due to various reasons, they do not
get desired results even after hard-work; in such case this prayog provides
suitable results.
If
child has weak memory power or suffering from mental imbalance then if sadhak
does this prayog, there is development in memory power of his child and child
becomes mentally stable.
In
situations where child is suffering from irritable behaviour, unsuitable
nature/behaviour, this prayog should be done so that child can be made a great
personality from social point of view. Every parent would like to resolve such
type of problems. It is possible through the Devki Putra form of lord. By doing
Tantra sadhna related to Shri Devki Putra, sadhak starts getting its related
benefits. In this manner, this is highly useful prayog in modern era and it is
easy too which can be done by any person.
This
sadhna can be done at any time in day or night.
Sadhak
should take bath and wear white dress.
After
it, sadhak should sit on white aasan facing north or east direction.
First
of all sadhak should perform Guru Poojan and Ganesh Poojan. After it, sadhak
should establish energised Krishna Yantra/picture in front of him. Sadhak can
also use ‘Parad
Soundarya Kankan’.
Sadhak should first of all do Guru Poojan.
After it, sadhak
should do poojan of established yantra or Soundarya Kankan and then carry out
Nyaas procedure.
KAR NYAAS
KLAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
KLEEM TARJANIBHYAAM NAMAH
KLOOM SARVANANDMAYI MADHYMABHYAAM NAMAH
KLAIM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
KLAUM KANISHTKABHYAAM NAMAH
KLAH KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH
HRIDYAADI NYAAS
KLAAM HRIDYAAY NAMAH
KLEEM SHIRSE SWAHA
KLOOM SHIKHAYAI VASHAT
KLAIM KAVACHHAAY HUM
KLAUM NAITRTRYAAY VAUSHAT
KLAH ASTRAAY PHAT
After Nyaas, sadhak
should chant below mantra. Sadhak should chant 21 rounds of this mantra. Sadhak
should use crystal or white agate rosary for chanting mantra. If it is not
possible, sadhak can use rudraksh rosary.
Mantra
om kleem devakiputraay hoomphat
After completion of
chanting, sadhak should pray to Lord Krishna and seek his blessings. Sadhak
should continue this procedure for 5 days. Rosary can be used by sadhak in
future in sadhnas related to Krishna.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ भगवान श्री कृष्ण के परिपेक्ष्य में पुरे विश्व में यह तथ्य मशहूर है की उन जैसा एक अद्वितीय व्यक्तित्व पृथ्वी पर कभी नहीं हुआ. जीवन के सभी क्षेत्र में उन्होंने विविध कष्टों का सामना किया, सदैव संघर्ष से युक्त हो कर भी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी, वरन हुआ तो यह की उनके सामने जो भी बाधा बन कर आता था, वे सब समय के साथ निश्चय ही उनके चरणों में गिर पड़ते थे जब उनको कृष्ण के पूर्ण व्यक्तित्व का बोध होता था.
तांत्रिक द्रष्टि से भी
श्रीकृष्ण का अधिकतम महत्त्व है ही. क्यों की उनके विविध स्वरुप की तांत्रिक साधना
के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की कृपा कटाक्ष की प्राप्ति कर सकता है साधक और फिर
उसके जीवन में सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है. भगवान श्री कृष्ण के कई कई
स्वरुप है. इन सब अलग अलग स्वरुप की साधना अलग अलग तांत्रिक मतों में विविध
पद्धतियों के माध्यम से की जाती है. लेकिन उनके स्वरुप ‘देवकीपुत्र’ की तांत्रिक
साधना के बारे में जानकारी कुछ कम ही प्राप्त होती है.
भगवान श्री कृष्ण का यह बाल
स्वरुप है. भगवान के इस स्वरुप की साधना उपासना के माध्यम से कई प्रकार के लाभ की
प्राप्ति होती है जिनमे निम्न मुख्य है. इस साधना का सब से महत्वपूर्ण तथ्य यह है
की जो भी माता पिता को अपनी संतान से सबंधित समस्या रहती हो, वह चाहे किसी भी रूप
में हो.
कोई व्यक्ति का पुत्र या पुत्री
हमेशा बीमार रहते हो तथा थोड़े थोड़े समय में कुछ न कुछ बिमारी आ जाती हो, तो इस
प्रयोग को करने पर संतान को आरोग्य की प्राप्ति होती है.
संतान योग्य
मार्ग पर न हो तथा उसकी संगत असामाजिक हो गई हो ऐसे हालत में इस प्रयोग का आशरा
लेने पर संतान से सबंधित चिंता का निराकरण होता है.
कई बार संतान विविध कारणों से पढ़ाई आदि में भी
कमज़ोर होते है,परिश्रम करने के पश्चात भी उनको निर्धारित परिणाम की प्राप्ति नहीं
होती;ऐसे हालत में यह प्रयोग करने पर योग्य परिणाम की प्राप्ति होती है.
स्मरणशक्ति का कमज़ोर होना या दिमाग में असहज
असंतुलन आदि हो तो साधक को यह प्रयोग करने पर उसकी संतान की स्मरणशक्ति का विकास
होता है तथा मानस संतुलित बनता है.
संतान में ज्यादा चिडचिडापन,
अयोग्य व्यवहार या स्वभाव आदि असहज होने, एसी स्थिति में संतान के लिए यह प्रयोग
करना चाहिए जिससे की संतान को सामाजिक रूप से भी एक उच्चतम व्यक्तित्व बनाया जा
सके. इस प्रकार के विविध समस्याए है जिनका निराकारण कोई भी माता-पिता करना चाहेगा
ही. भगवान के देवकी पुत्र स्वरुप के माध्यम से यह संभव हो पाता है. श्री
देवकीपुत्र की तांत्रिक साधना करने पर साधक को इससे सबंधित लाभ की प्राप्ति होती
है. इस प्रकार आज के युग में यह एक नितांत उपयोगी प्रयोग है और प्रयोग सहज भी है जिससे
कोई भी व्यक्ति इसे सम्प्पन कर सकता है.
यह साधना साधक किसी भी शुभ दिन
से शुरू कर सकता है.
यह साधना दिन या रात्रि के कोई
भी समय में की जा सकती है.
साधक स्नान आदि से निवृत हो कर
सफ़ेद वस्त्रों को धारण करना चाहिए
इसके बाद साधक को उत्तर या
पूर्व दिशा की तरफ मुख कर सफ़ेद आसान पर बैठ जाना चाहिए
साधक सर्व प्रथम गुरुपूजन तथा
गणेशपूजन को सम्प्पन करे. इसके बाद साधक अपने सामने प्राण प्रतिष्ठित कृष्णयंत्र
या चित्र स्थापित करे या साधक ‘ पारद सौंदर्य कंकण’ का प्रयोग भी
कर सकता है.
साधक सर्व प्रथम गुरुपूजन करे,
इसके बाद साधक स्थापित यंत्र या
सौंदर्य कंकण का भी पूजन सम्प्पन कर न्यास करे.
करन्यास
क्लां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
क्लीं तर्जनीभ्यां नमः
क्लूं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
क्लैं अनामिकाभ्यां नमः
क्लौं कनिष्टकाभ्यां नमः
क्लः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
क्लां हृदयाय नमः
क्लीं शिरसे स्वाहा
क्लूं शिखायै वषट्
क्लैं कवचाय हूं
क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट्
क्लः अस्त्राय फट्
न्यास होने पर साधक निम्न
मन्त्र का जाप करे. साधक को इस मन्त्र का २१ माला जाप करना चाहिए. मन्त्र जाप के
लिए साधक स्फटिक माला का या सफ़ेद हकीक माला का प्रयोग कर सकता है. अगर यह भी संभव न हो तो साधक रुद्राक्ष माला से
जाप कर सकता है.
मन्त्र - ॐ क्लीं देवकीपुत्राय हूं फट्
(om kleem devakiputraay hoom
phat)
जाप पूर्ण होने पर साधक भगवान
कृष्ण को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करे. इस प्रकार साधक को यह क्रम ५ दिन तक
रखना चाहिए. माला को साधक भविष्य में कृष्ण से सबंधित साधनाओ में प्रयोग कर सकता
है.
****NPRU****
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