The importance of pitrus have already been discussed
that how from one bija which is the main base from that process of the creation
keeps on running and how the blessing of that main bija holder stays and
affects. This way about gautra even it could be said that from the bija of
those main sages we are created or there is a contribution of them in our
creation that’s why they are called as our main dawn ancestor and with
blessings of them our wishes could be fulfilled.
Poojan
of gautra’s sage is belived to be very essential part of vaidik karmakanda
body. The reason behind it was that we worship our ancient
sages and can remove our deficiencies for haapy life under their bliss and can
fulfill our wishes and desires. Here it is require understanding that those
great souls are still same dynamic as they used to be. They keep on showering
their bliss and mercy but we have trapped our self so much so that we do not
gives any concern for our tradition and with that being out of it we have made
our lives full of troubles.
For the main aadipurusha of gautra processes and
mantras could be found in tantra. But for every gautra individual mantra
description here is not possible. The process given below could be done by
anyone and can have bliss of gautra great souls.
This
sadhana could be started from any day; best time for sadhana is early morning
bramha muhurta.
Direction
should be north or east. Sfatik rosary should be brought to use. Cloths and
aasana should be white in colour.
By
memorizing main gautra purusha do the poojan of him mentally. Light dhoop and ghee lamp. After that chant
25 rosary of following mantra.
Om
amukam gautr purushay sarvaarth saafalyam pranamyaami
Here
one should take name of gautra at the place of amukam in mantra. Those who are
not aware about their gotra can use the word ‘Aadi Purushaay’
This
process should be done for 8 days. This results in bliss of pitru and gautra
and fulfilment of wishes or desires of mind.
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जीवन मे पितरों की महत्ता के बारे मे उल्लेख कर दिया गया है की किस
प्रकार एक बीज जो की मूल होता हे उससे लगातार सृजन की क्रिया आगे बढती जाती है और
वह मूल बीज धारक की कृपा किस प्रकार सदैव बनी रहती है. इसी क्रम मे गौत्र के विषय
मे भी यही कहा जाता सकता है की मुख्य ऋषियो के बीज से हमारा निर्माण हुआ है या
उनका योगदान हमारे सर्जन मे रहा है इसी लिए वे हमारे मुख्य आदि पूर्वज भी कहे जाते
है. इस स्थिति मे उन महापुरुषों की विशेष कृपा को प्राप्त किया जा सकता है और उनके
आशीर्वाद से हमारी मनोकामनाओ की पूर्ति भी संभव है.
व्यक्ति के गौत्र आदि पुरुष के पूजन को हमारे वैदिक शास्त्रों मे
कर्मकांड का आवश्यक अंग माना है इसके पीछे यही चिंतन था की हम उन सिद्ध पुरुषों की
उपासना करे और उनके आशीर्वादतले अपने जीवन के अभावो को दूर कर सके और अपनी
मनोकामनाओ की पूर्ति कर सके. यहाँ पर एक बात को समझना आवश्यक है की वे महान आत्माए
आज भी उतनी ही गतिशील है जितनी वे पहले हुआ करती थि. वे निरंतर कृपा को अनुकम्पा
को प्रवाहित करते रहते है लेकिन हम अपने आप मे इतने उलझ चुके है की अब हम अपनी
परंपराओ पर ध्यान तो नही देते हे लेकिन साथ ही साथ उससे विमुख होकर खुद अपने ही
जीवन को व्यर्थ मे समस्याओ से ग्रस्त रख रहे है
गौत्र के आदिपुरुषों के लिए भी तन्त्र मे विभ्भिन मंत्र और
प्रक्रियाए प्राप्त होती है. लेकिन हर एक गौत्र के लिए अलग अलग प्रक्रियाए देना
संभव नहीं है. यहाँ पर जो प्रयोग दिया जा रहा है वह प्रयोग कोई भी व्यक्ति सम्प्पन
कर सकता है और गौत्र महात्माओ की कृपा प्राप्त कर सकता है.
इस साधना को किसीभी वार से शुरू किया जा सकता है, साधना के लिए
ब्रम्ह मुहूर्त का समय उत्तम है
दिशा उत्तर या पूर्व रहे, माला स्फटिक की हो. वस्त्र आसन सफ़ेद रहे
अपने गौत्र के आदि पुरुष को याद कर उसका मानसिक पूजन करे. धुप व्
शुद्ध घी के दीपक को प्रज्वल्लित करे. उसके बाद निम्न मंत्र की २५ माला का जाप
करे.
ॐ अमुकं गौत्र पुरुषाय
सर्वार्थ साफल्यम प्रणम्यामि
इसमें अमुक की जगह गौत्र का नाम लेना चाहिए. जिन्हें अपने गौत्र के
बारे मे पता न हो वो वहा पर आदिपुरुषाय शब्द का उपायोग करे.
इस प्रयोग को ८ दिन करना चाहिए. जिससे पितृ एवं गौत्र प्रसन्न होते
है और मनोवांछित इच्छाओ की पूर्ति करते है.
****NPRU****
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