There is one quote famous regarding all forms of
Aadi Shakti
Shaktiheenam
Yathasarve Pravadantibraadham
Basis of life is power (Shakti) only. May it be any
creature of universe, any immovable or movable substance, present in dormant or
active state, basis of universal place of that creature or immovable article is
some power only. Without Shakti, everything in universe is negligible and useless.
Shiva and Shakti are both complimentary to each other and without Shakti, Shiva
also becomes a corpse.
Diverse forms of Bhagwati took birth on various
occasions from the time immemorial. They have taken various forms and have
always done the welfare of earth and other loks. That’s why Shri Krishna,
competent in 16 kalas have said relating to Devi that Tvmev Sarv Janni Mool
Prakritirishwari…..Goddess Shakti, you are
mother of all, all have been originated from you and you are the ruler of basic
nature.
All of us know that there are 9 diverse forms of
Durga form of Bhagwati famous in Tantra and field of sadhna. All these forms of
goddess are capable of giving all the things to sadhak. But besides it, sadhnas
related to their companions, various Yoginis have also been in vogue in tantra
world. This is unique form of Shakti which though belongs to Dev category, but
is in form of servant of Aadi Shakti. Some siddhs are of the view that after
doing yogini sadhnas, symptoms of getting success in Durga sadhna and Aadi Devi
powers become visible very quickly. One of the companions of goddess, a very
famous yogini is ‘Jaya’. Worship of this goddess is being done in Tantra from
ancient times. It has been said about goddess that she fulfils all the desires
of sadhak and always tries to provide satisfaction to mind of sadhak. There are
many prayogs related to goddess but one short procedure related to her is being
presented here. It is equally beneficial for both males and females. Through
this procedure, there is development in qualities of courage, strength and
valour in males and their mind get inclined towards creative tendencies. In the
similar manner, there is development of physical beauty, sweetness, expressive
capability and increase in fortune in case of females. Besides this, worship of
goddess is done for materialistic progress. As a result of this prayog, new
doors of progress in work-field and business are opened in sadhak’s life. There
is increase in respect and reputation of householder female sadhaks in family
and society.
Sadhak can start this procedure from any auspicious
day.
Sadhak should do this prayog after 10:00 P.M in
night. Sadhak should take bath, wear red dress, and sit on red aasan facing
north direction. Sadhak should establish picture of Goddess Jaya in front of
him. Sadhak should do Guru Poojan and chant Guru Mantra. After it, sadhak
should do Poojan of picture of goddess Jaya. After Nyas procedure, sadhak
should chant 51 rounds of Jaya Mantra. It has to be done by Shakti rosary or Moonga
Rosary.
KAR
NYAS
HRAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
HREEM
TARJANIBHYAAM NAMAH
HROOM
MADHYMABHYAAM NAMAH
HRAIM
ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
HRAUM
KANISHTKABHYAAM NAMAH
HRAH
KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH
ANG
NYAS
HRAAM
HRIDYAAY NAMAH
HREEM
SHIRSE SWAHA
HROOM
SHIKHAYAI VASHAT
HRAIM
KAVACHHAAY HUM
HRAUM
NAITRTRYAAY VAUSHAT
HRAH
ASTRAAY PHAT
Basic Mantra:
om hreem jaye
hoom phat
After completion of Mantra Jap, sadhak should offer
food or offer clothes/dakshina to small girls on next day. Sadhak should not immerse
rosary. This rosary can be used in future for doing Shakti sadhnas.
Those sadhak who are incapable of chanting 51
rounds on one night, they can chant 5 rounds daily for 9 days. Time should
remain same daily.
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भगवती आदि शक्ति के सभी स्वरुप के सबंध में यह पंक्ति विख्यात है
शक्तिहीनं यथासर्वे प्रवदन्तिनराधम
जीवन के
मूल में शक्ति ही तो है, चाहे वह ब्रह्माण्ड का कोई भी जिव हो कोई भी जड़ या चेतन
हो, कही सुसुप्त तो कही जागृत अवस्था में, उसका जिव का या जड़ का जो ब्रह्मांडीय
स्थान है उसके मूल में कहीं न कहीं कोई न कोई शक्ति ही तो है और बिना शक्ति इस
ब्रह्माण्ड में सर्वस्व नराधम है, निगन्य है, तुच्छ और व्यर्थ है. शिव तथा शक्ति
दोनों ही एक दूसरे के पूरक है और बिना शक्ति के शिव भी तो शव बन जाते है.
भगवती के
विविध स्वरुप काल क्रम में विविध अवसरों पर अवतरित हुवे. संसार के कल्याण हेतु तथा
जीवो की सुरक्षा हेतु उन्होंने विविध स्वरुप धारण कर पृथ्वीलोक तथा अन्य लोक का
हमेशा उद्धार किया है. इसी लिए तो सोलह कला प्रधान श्री कृष्ण ने भी देवी
के सबंध में कहा है की त्वमेव सर्व जननी मूल प्रकृतिरिश्वरी....देवी शक्ति आप ही सर्व मूल की जननी है
सब का उद्भव आपसे ही हुआ है तथा मूल प्रकृति अधिष्ठात्री स्वयं आप ही है.
भगवती के
दुर्गा रूप में विविध ९ स्वरुप तो तंत्र और साधना के क्षेत्र में प्रख्यात है ही.
यह विविध देवी स्वरुप साधक को कई कई प्रकार से सर्वस्व प्रदान करने का सामर्थ्य
रखती है. लेकिन साथ ही साथ इनकी सहचारिणी विविध योनिगियों से सबंधित साधनाओ का
प्रचलन भी तंत्र जगत में रहा है. शक्ति का यह एक अलग ही स्वरुप है जो की देव वर्ग
से ही है लेकिन आदि शक्ति की सेविका के स्वरुप में है. कई सिद्धो का मत है की
योगिनी साधनाओ को करने से दुर्गा साधना या आदि देवी शक्तियों की साधनामे सफलता के
लक्षण और भी तीव्र रूप से प्राप्त होने लगते है. एसी ही देवी की सहचारिणी
योगिनियों में एक बहोत ही प्रचलित देवी का नाम है ‘जया’. यह देवी की साधना उपासना
तंत्र में वृहद रूप से आदि काल से होती आई है. देवी के सबंध में प्रचलित है की
साधक की वह सभी मनोकामना आदि की पूर्ति करती है तथा साधक के मन को हमेशा तुष्टि
प्रदान करते रहने के लिए प्रयत्नशील रहती है.
देवी के कई प्रयोग है लेकिन उनका एक लघु विधान यहाँ पर प्रस्तुत किया जा
रहा है. यह स्त्री तथा पुरुष दोनों साधको के लिए सामान रूप से फलदायी है.
पुरुषों में यह प्रयोग के माध्यम से शौर्य, पराक्रम, वीरता जैसे गुणों का विकास
होता है तथा मानस रचनात्मक प्रवृति की और गतिशील होता है उसी प्रकार स्त्रियों में
भी मधुरता, वाणी एवं शारीरक सौंदर्य आदि का विकास होता है तथा जीवन में सौभाग्य की
वृद्धि होती है. साथ ही साथ देवी की उपासना भौतिक उन्नति के लिए की जाती है. इस
प्रयोग से फल स्वरुप साधक के जीवन में कार्यक्षेत्र या व्यापर में उन्नति के द्वार
खुलने लगते है. गृहिणी साधिकाओ का घर समाज में मान सन्मान की वृद्धि होती है.
यह प्रयोग
साधक किसी भी शुभ दिन में शुरू कर सकता है.
साधक को
रात्री काल में १० बजे के बाद यह प्रयोग करना चाहिए. स्नान आदि से निवृत हो कर
साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए. साधक को लाल वस्त्र धारण करने
चाहिए तथा लाल आसान पर बैठना चाहिए. साधक को अपने सामने देवी जाया के
साधक
गुरुपूजन करे तथा गुरुमन्त्र का जाप करे. इसके बाद साधक भगवती जया के चित्र का
पूजन भी करे. तथा न्यास प्रक्रिया कर साधक को जया मन्त्र की ५१ माला मन्त्र का जाप
करना चाहिए. यह जाप साधक शक्ति माला से या मूंगा माला से करे.
करन्यास
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यास
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्
मूल
मन्त्र :
ॐ ह्रीं जये
हूं फट्
(om hreem jaye
hoom phat)
जप पूर्ण
हो जाने पर साधक दूसरे दिन किसी कुमारी को भोजन कराये या वस्त्र / दक्षिणा आदि
भेंट कर संतुष्ट करे. माला का विसर्जन साधक को नहीं करना है भविष्य में शक्ति
साधनाओ के लिए यह माला उपयोग में ली जा सकती है.
जो साधक
५१ माला एक ही रात्रि में सम्प्पन करने के लिए असमर्थ हो उनको यह जाप ९ दिन तक
प्रतिदिन पांच माला करनी चाहिए. रोज समय एक ही रहे.
****NPRU****
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