शान्तं पद्मासनस्थं शशिधरमुकुटम पंचवक्त्रं,
शूलं वज्रं च खंगम परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तम ||
नागं पाशं च घण्टां प्रलयहुतवहं साङ्कुशं वामभागे,
नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ||
“पद्माशन
में शांत स्थिर महादेव अपने मस्तक पे चन्द्रमा तीन नेत्रों से युक्त दाहिने हाथ
में त्रिशूल वज्र खंग परशु तथा अभय मुद्रा धारण किये हुए, बांये हाथों नाग
पाशरज्जु घंटा प्रलायग्नी और अंकुश धारण किये हुए अनेक दिव्य अलंकारों से विभूषित
स्फटिक मणि के सद्रश चमकते हुए भगवन भूत भावन शिव शंकर को बारम्बार मै नमन करती
हूँ |
शिव
अत्यंत तेजोमय, श्रेष्ठ कर्मों को संपन्न करने वाले समस्त द्रव्यों के स्वामी एवं
विद्याधर हैं, अज्ञेय और अगम्य हैं एवं सभी के लिए सर्वदा कल्याणकारी हैं, सदाशिव, जो भोलेनाथ नटराज हैं तो शक्तियुक्त और
रसेश्वर भी है |
स्रष्टि
की उत्पत्ति से लेकर संहार तक केवल शिव हैं चाहे सगुन रूप में मूर्तिमान रूप में
उपासना की जाये या निर्गुण रूप में शिवलिंग की पूजा की जाए | वे केवल जलधारा,
दुग्धारा और बिल्वपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देव हैं इसलिए भोलेनाथ हैं |
चूँकि
महादेव ही सभी विद्याओं के स्वामी हैं, फिर चाहे वो मंत्र हो तंत्र हो वेद हों,
रस-विज्ञानं हों या षट्कर्म हो पूजा कर्म हो भक्ति हो या हठयोग की तंत्र साधना हो
|
किसी
भी कर्म या साधना, तपस्या महादेव के बगैर अधूरी होती है, चूँकि आदि महादेव आदि
गुरु हैं, समयानुसार शिव ने शक्ति सयुक होकर अनेक विद्याओं को प्रदर्शित किया जो
बाद में वेद उपनिषद ग्रंथों के रूप में प्रकट हुए | इसी क्रम में रस विज्ञान,
सूर्यविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, आयुर्वेद आदि की रचना होती चली गयी जो समाजोपयोगी
थी |
स्नेही
भाइयो ! कई लोग हैं कई साधक हैं जो अनेक वर्षों से साधना कर रहें है किन्तु सफलता
२-5 % भी नहीं है |कई ऐंसे लोग हैं जिन्होंने बहुत अच्छी एजुकेशन कर रखी है किन्तु
नौकरी ही नहीं है कई ऐसे भी जिन्होंने व्यापार में बहुत पैसा लगा दिया किन्तु लाभ
0% या नहीं के बराबर | कुछ लोग १ या २ % से कहीं पीछे रह जाते हैं | कुछ लोग
सुन्दर सुशील हैं एजुकेटेड है अच्छी जॉब है किन्तु जीवन साथी अर्थात विवाह में
बाधा आ रही है |
कुछ
अपनी जॉब में अपना १००% देने के बाद भी कभी बोस खुश नहीं तो कभी कलीग खुश नहीं |
कुछ अपनी पत्नी को खुश रखें तो माँ बाप नाखुश और मा बाप को खुश रखें तो पत्नी
नाराज | कहीं अत्यधिक निर्धनता है या सिर्फ काम चल रहा है | अत्यधिक मेहनत के बाद
भी कमाई में बरकत नहीं | कहीं धन तो सुकून नहीं कोर्ट केश हैं कहीं तो झगड़े हैं |
कहने का तात्पर्य कि कहीं न कहीं कुछ तो कमी है जिसकी तलाश या जिसे दूर करने के
लिए कभी ये ज्योतिष बाबा फ़क़ीर या तांत्रिक मान्त्रिक की शरणागत होते हैं |
किन्तु
कभी सोचा है, कि स्वयं ही कुछ ऐसा किया जाए कि अपनी समस्या का निवारण स्वयं कर सके
|
षट्कर्म
ऐसी विद्या को कहा जाता है जिसमें समस्त कार्यों को सम्पादित किया जा सकता है, जिसके
अनेको स्वरुप हैं जिसे आदिवासी तंत्र में भी किया जाता है साबर तंत्र में भी किया
जाता है अघोर तंत्र में भी किया जाता है और यदि समझा जाये तो प्रत्येक व्यक्ति इस
क्रिया को किसी न किसी रूप में करता अवस्य है फर्क सिर्फ इतना है कि यदि इसे
सिस्टेमेटिक तरीके से किया जाये तो यही क्रिया उच्च कोटि की साधना बन जाती है और
तब ये स्वयमसिद्धा न होकर समाजोपयोगी हो जाती है | हमारी तंत्र कौमुदी षट्कर्म
किताब इसी दर्शन को प्रदर्शित करती है |
मै
आपको अपने जीवन की एक घटना बताती हूँ आपने पक्षी तंत्र सुना होगा और जिसने अरुण कुमार
शर्मा जी की पुस्तकें पढ़ी होगी तो उन्होंने उलूक तंत्र भी पढ़ा होगा अब भिन्नता
बताती हूँ ये एक अघोर क्रिया है जिसमें उल्लू पक्षी को सिद्ध किया जाता है जिसमे
वो अपने शारीर के प्रत्येंक अंग की उपयोगिता बताता और आखिर में साधक के किन्ही तीन
प्रश्नों का उत्तर देता है तीसरे उत्तर के साथ ही साधक को तलवार से उसकी गर्दन
काटनी होती अन्यथा वो उसकी आँखें नोंचकर उसे मार देता है |
लेकिन
इसी के एक रूप की साधना या टोटका मैंने आदिवासियों में देख है मंडला क्षेत्र टोनो
टोटकों के लिए अत्यंत प्रसिद्द है मंडला से अमरकंटक की ओर जाने पर बीच में ही एक
गाँव है जहाँ पर एक ओझा रहते हैं, नाम नहीं बता सकती क्योंकि वचनबद्द हूँ | मेरे
बहुत प्रार्थना करने पर और ज़िद करने पर उन्होंने मुझे तीन प्रयोग बताये थे
पक्षियों की भाषा समझना, हत्थाजोडी पहचानना और कार्यानुसार सिद्ध करना और उलुक
साधन|
उन्होंने
14दसी के दिन पता नहीं कहाँ से कैसे एक उल्लू पकड़ कर ले आये और अमावस्या के दिन
मुझे कमरे में उनकी बड़ी बेटी जो स्वयम भी ओझा ही थी के साथ बिठा दिया, और स्पष्ट
निर्देश कि जब तक हमारा पूजा क्रम चले न तो मुह से आवाज निकले और ना ही जगह से
हिलना है | उस झोपडीनुमा कमरे में एक कोने में एक मिटटी के चबूतरे पर एक लाल कपडा
बिछा कर एक कटोरी में शराब, एक मिटटी के दिए जैसे बर्तन में मुर्गे की कलेजी के
बारीक टुकड़े, लाइ, जो चावल को भूनकर बनाते हैं और काजू सिन्दूर आदि चींजे रखी थीं
|
उसके
बाद ओझा ने सिर्फ एक लंगोटी पहनी और आकर घास के बने हुए आसन पर बैठ कर कुछ
बुदबुदाने लगा , अब उसने थोड़ी सी मिटटी लेकर चारों तरफ फेंका और आवाज की जैसे किसी
को बुला रहा हो और सच में 4 से 5 मी. में उल्लू जाने कहाँ से उड़कर वहां आया और ठीक
ओझा के सामने बैठ गया और उसे टुकुर टुकुर देखने लगा अब उन्होंने उसे वो सब खाने का
निर्देश दिया तो उसने खाया फिर तब तक ओझा कुछ मन्त्र कर रहा था फिर उसे शराब भी
पिलाई और फिर मन्त्र करता रहा जैसे जैसे मन्त्रों गति की बढ़ रही थी उल्लू की
बैचेनी भी बढ़ रही थी तकरीबन एक से डेढ़ घंटे के बाद अचानक उल्लू चीखा उसके चीखते ही
मेरी भी चीख निकलने को हुई किन्तु उसकी बेटी ने मेरा मुह दबा दिया और इशारा किया
कि चुप बैठना, अब उल्लू के मुह से कुछ मानवीय भाषा में शब्द निकल रहे थे और वो
लकड़ी उन्हें नोट कर रही थी
मेरी
समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था क्योंकि मेरे दिमाग में अरुण कुमार शर्मा जी की उलूक
तंत्र की घटना अंकित थी मै इसीलिए डरी हुई थी | हालाँकि वातावरण थोडा भयावह और रहस्यमयी
था किन्तु ये मेरे लिए कुछ था ही नहीं क्योकि अब तक मै कामख्या में गुरूजी के साथ
एक दो साधना शमशान में कर चुकी थी तो ये वातावरण मेरे लिए नया नहीं था |
जब
एक घंटे तक वह बोलता रहा और ओझा पूछता रहा फिर पूछते हुए ही उसने एक लोहे की पतली
चेन का फंदा बना कर उल्लू की गर्दन में फेंका और वो बंध सा गया अब ओझा के इशारे पर
उल्लू धीरे धीरे चलता हुआ उसके हाथ पर बैठ गया और उसे ताकने जैसे उसने उसे कोई कसम
दी हो
| अब वो उस ओझा की ओर ताक रहा था जिसे वो आदेश दे ओर पूरा करे अर्थात अब वो उसके
पूरी तरह से वश में था |
मुझे
और उसकी बेटी को उसने इशारा किया बाहर जाने का, मै अभी तक सकते में थी हालांकि ये क्रिया
इतनी भयावह नहीं थी जब हम बाहर आये तो उनकी बेटी और उन्होंने बताया कि ये पक्षी को
वश में करके मनचाहा कार्य सिद्ध करवा सकते है | जो कल तुमने उसकी भाषा में सुना वो
अपने शरीर के प्रत्येक अंग का विवरण दे रहा था और उससे क्या कार्य सिद्ध होते हैं
ये बता रहा था फिर उन्होंने उससे मेरे बारे में भी पूछा कि इसको मै कोई क्रिया
करवाऊ या नहीं ये इमानदार है या नहीं | तो उसने क्या कहा ये तो नहीं बताया किन्तु
मुस्कराहट के साथ उठ गए फिर उन्होंने चार पांच दिनों में मुझे वो दो साधना सिखायी |
जिसके लिए मै उनकी सदैव ऋणी रहूंगी |
स्नेही
भाइयो ! इन साधनाओ से अवगत कराना ही हमारा उद्देश्य है जरा सोचिये कि एक छोटे से
प्रयोग से उल्लू जैसा पक्षी आपके वश में हो सकता है तो क्या इन्सान क्या देवता, और जब बात देवताओं की आई
तो साधना की भी है जब वशीकरण उस स्तर पर जा सकता है तो कोई साधना फिर चाहे वो
अप्सरा यक्षिणी हो भूत प्रेत हो पिशाच हों जिन्न परी हों, हम इन साधनाओ से अपने
जीवन की प्रत्येक कमी को पूर्ण कर आगे बढ़ सकते है |
इसलिए
क्या हम अपने कार्य, कार्य की पूर्ती हेतु वशीकरण जैसे विद्या का उपयोग नहीं कर
सकते जिससे किसी का नुकसान भी न हो और हमारा कार्य भी सफल हो जाये इसी तरह के
अनेकानेक प्रयोग जिसे हम अपने व्यापार, जॉब और दैनिक जीवन की समस्याओं के निवारण
के लिए उपयोग में ला सकते हैं ये षटकर्म का पहला कर्म है, इनमें बाकि के पञ्च कर्म
शांति कर्म, स्तम्भन, उच्चाटन,विद्वेषण, मारण हैं किन्तु पांच कर्म से ही जीवन
सुगम और सरल आनंदमय हो सकता है तो छटे की आवश्यकता है ही नहीं, जब तक कि आपके जीवन
पे संकट ना आ जाये |
महाशिव
रात्रि में महादेव के पूजा के साथ इनमें वशीकरण और शांतिकर्म के लिए सर्वाधिक उपयुक्त
समय है और यही वहा है कि 5-6-7 फरवरी के सेमीनार को 13-14-और 15 फरवरी पे पोस्टफोन किया गया
सदगुरुदेव की और माई की आज्ञानुसार इसे सेमीनार न करके तीन दिन की साधना वर्कशाप करने
का सोचा है |
इसमें
१३ ता. षट्कर्म का पूर्ण विवेचन, साधना सम्बन्धी सूक्ष्म तथ्य और जानकारी |
ता.14
पारदेश्वर महादेव का महाभिषेक चार प्रहर में सदगुरुदेव प्रदत्त तत्वमसि क्रिया के
साथ, और साधना |
ता.
15 रस विज्ञान की प्रारंभिक जानकारी और अष्ट संस्कार से सम्बंधित जानकारी |
अब
ये आप सब के सोचने का विषय है कि इससे आप कितना लाभ उठा पाते है अपना रजिस्ट्रेशन
कृपया 6 फरवरी तक करवा लें क्योंकि ये
अंतिम ता. निश्चित की गयी है |
आपकी
अपनी
रजनी
निखिल
निखिल
प्रणाम
***NPRU***
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