Thursday, February 8, 2018

षट्कर्म और तंत्र प्रतीक




जय सदगुरुदेव /\ 

स्नेही स्वजन !

आवाहन....... आवाहन ........आवाहन .......

परिक्ष्याकारिणी श्रीश्चिरं तिष्ठति|

अर्थात “जो कार्य की सत्यता, असत्यता को समझकर जानकर कार्य में प्रवृत्त होता है ऐसे व्यक्ति में लक्ष्मी चिरकाल तक निवास करती है”

अधिकांशतः हम साधना या कोई अनजाने कार्य में आधी-अधूरी जानकारी के साथ प्रवृत्त हो जाते हैं जिससे साधक या व्यक्ति को सिर्फ असफलता का ही सामना करना पड़ता है | इनसे साधन की कुछ गुप्त कुंजिया होती हैं जिनका अनुसरण और प्रयोग करते हुए यदि प्रमाणिक विधान किया जाये तो सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते हैं | हमारी कार्मिक गति के आधार पर भले ही सफलता मिलने में विलम्ब हो सकता है किन्तु परिश्रम करने पर सफलता न मिले ऐंसा हो हि नहीं सकता | साधना में देश काल वातावरण को अपने अनुकूल करने हेतु यंत्र, आसन, माला इत्यादि की आवश्यकता होती ही है इसे कोई भी नकार नहीं सकता | क्योकि यंत्र उपकरण के बिना तंत्र संभव ही नहीं है, पूर्ण विधान सामग्री के साथ कोई भी साधना सम्पन्न की जाये तो सफलता मिलनी है इसके आभाव में साधना में पूर्णता दुस्कर है अन्य साधना की तरह ही तांत्रिक षट्कर्म में यंत्र विशेस की आनिवार्यता है इसे तैयार करने की विशेष पद्धति है, और इनमें उनसे समबन्धित शक्तियों का आवाहन और स्थापन आदि कर्म संपादित  किये जाते हैं, जिससे हम अपेक्षाकृत अधिक सरल तरीके से सफलता प्राप्त कर सकते हैं

तंत्र एक विज्ञानं है और इसमें प्रत्येक यंत्र निर्माण की अलग पद्धति होती है और प्रत्येक देवता के अगम शास्त्र में तीन रूप बताये गए हैं मन्त्र रूप, यंत्र रूप और तंत्र रूप |

इन तीन रूपों के आधार देव शक्तियों से संपर्क स्थापित करना ही साधना कहलाता है और एक के आभाव दुसरे की साधना संभव नहीं है मंत्रो के स्वर में देव शक्तियों के स्वरुप और मन्त्र वर्णों के कम्पन में उन देवता की स्वरशक्ति विद्दमान होती है |

और इसे मनः शक्ति की साधना द्वारा मन्त्र और प्राण शक्ति की साधना द्वारा यंत्र की पूर्ण जाती है सामान्य रूप से तंत्र मंडलों में तीन उपमंडल होते हैं जिनमें से हर मण्डल की अलग विशेसता होती है और ये शक्ति के तीन विभिन्न रूपों का प्रतिनिधत्व भी करते हैं |

इन तीनों मंडलों में से एक मण्डल रक्षा कार्य कार्य को सम्पादित करता है और उर्जा को सतत बांये रखता है | ये शिव तत्व से सम्बंधित होते हैं |

एक मण्डल क्रिया को गति देता है और विस्तारित करता है और अभीष्ट शक्ति के आवाहन में सहायक होता है तथा ये विद्या तत्व का प्रतिनिधित्व करता है एक अन्य मण्डल साधक की मनोवांछित साधना और उससे सम्बंधित देव शक्ति की न सिर्फ कृपा प्राप्त करवाने में सहता देता है अपितु मन्त्र शक्ति के विखंडित अणुओं को संलयित और संगठित होने के लिए उसके अनुरूप वातावरण का निर्माण भी करता है और ये आत्म तत्व का प्रतिनिधित्व करता है |

इस प्रकार इन तीन मंडलों के योग से मूलमंडल का निर्माण होता है अब हम चाहे तो इनकी अलग व्यवस्था कर सकते हैं या क्रमानुसार एक ही जगह एक ही पात्र पर अंकित कर के भी प्रयोग में ला सकते हैं जैसे हमारा ये ‘गुरुसायुज्य तंत्र कर्म सिद्धि मण्डल यंत्र’ , इसमें ९ यंत्र को समावेश होता है |
महामृत्युंजय यंत्र – जो कि किसी भी प्रकार की विपत्ति संकट या किसी भी प्रकार की क्रिया का दुष्परिणाम को निर्मूल कर सुरक्षा देता है |

त्वरिता सिद्धि महायंत्र – तंत्र साधना के क्षेत्र में त्वरिता देवि की कृपा से ही साधना में त्वरित सफलता दिलाती है |

अनिष्ट निवारण यंत्र – जीवन में कभी किसी ने वैमनस्य के कारण आपके ऊपर कोई प्रयोग किया हो , या आप किसी अभिसप्त जगह से गुजरे हों या कोई देवीय प्रकोप हो या कुल देवि देव का दोष हो तो ये यंत्र इनको शांत करने के लिए शांति विधान में सहायक होता है |

षट्कर्म सिद्धि दात्री महायंत्र – षट्कर्म में पूर्ण सिद्धि हेतु ये अति आवश्यक उपकरण है ये यंत्र अब कहीं उपलब्ध नहीं है, सदगुरुदेव की कृपा से इस यंत्र की उपलब्धता हुई है ये यंत्र समस्त प्रकार की षट्कर्म की क्रियाओं को सिद्ध करने में सहायक है |

गुरु सायुज्य महायंत्र – तंत्र, मन्त्र या कोई भी साधना के मूल में गुरु ही तो हैं गुरु तत्वा की प्रधानता से ही कोई भी यंत्र या सिद्धि में सफलता प्राप्त हो सकती है गुरु तत्व सायुज्य यंत्र होने की वजह से षट्कर्म में आने वाली बाधाओं का शमन होता है और गुरु के आशीर्वाद से सिद्धि में सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते है | इस महायंत्र में इसीलिए गुरु सायुज्य यंत्र का समावेश किया गया है |

कालदण्ड प्रतीक – किसी भी तंत्र साधना में बिना प्रतीक के साधना में सफलता की सोचना तो ऐंसा है कि रास्ता जाने बिना मार्ग पर बढ़ जाना | और बिना तंत्र प्रतीक साधना भला कैसे संभव है क्योंकि समय को भेद कर मन्त्र की इथर शक्ति को सतत साधक से सम्पर्कित कर उसके अभीष्ट को साधना ही इसका मुख्य कार्य है | ९० के दशक में सदगुरुदेव ने इन प्रतीकों से परिचय करवा कर इन्हें उपलब्ध भी करवाया था किन्तु आज ये कही भी उपलब्ध नहीं हैं और न ही किसी ने इन्हें सहेजने की कोशिश ही की | किन्तु गुरु कृपा से आज ये उपलब्ध हैं |

वशीकरण यंत्र – ये यंत्र केवल एक प्रकार के वशीकरण के लिए न होकर सदगुरुदे
व ने जितने भी वशीकरण के प्रकार बताये हैं, जैसे समूह वशीकरण, जन वशीकरण, राज्यवशीकरण, उच्च अधिकारी वशीकरण,सम्पूर्ण चराचर जगत वशीकरण | और ये आश्चर्यजनक यंत्र इन सभी क्रियाओं को पूर्ण करने वाला है |

पूर्ण शत्रु परास्त यंत्र—  -- यह यंत्र अपने आप में अनेक विधाओं को समाहित किये हुए है, क्योंकि चाहे मारण प्रयोग हो, उच्चाटन प्रयोग हो या विद्वेषण प्रयोग हो तो इस यंत्र की अनिवार्यता ही है क्योंकि इन प्रयोगों में प्राण उर्जा का अत्यधिक प्रयोग होता है और जिसे सम्हालने के लिए या उसके दुष्परिणाम को रोकने लिए इस यंत्र की अनिवार्यता होती है क्योंकि समस्त बाधाओं को दूर कर ये सफलता को निश्चित कर देता है |

स्वर्ण सिद्धि यंत्र – इस महा यंत्र की उपयोगिता स्वर्ण निर्माण में प्रयासरत लोगो को ज्यादा मालूम है और इसे पाना उनके लिए देव दुर्लभ स्वप्न के सामान ही है अतः इस यंत्र का महत्व अपने आप में अति विशिष्ट है |

इस प्रकार विशेष क्रमों से इस मण्डल में उपमंडल की स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा, अभिषेक, चैतन्यीकरण, दिप्तीकरण, विभिन्न सामग्री से और काल में की जाती है |

षट्कर्म में इन यंत्रों का विशिष्ट महत्वा है बिना इसकी सहायता के इन कर्मों को संपन्न 
नहीं कर सकते | इस मण्डल की प्राप्ति के बाद साधना काल में मूल यंत्र माला और विधान लगता है यदि वो षट्कर्म का कोई अलग विधान हो तब वरन बाकि की गोपनीयता तो इसके संयोग से ही संपन्न जो जाती है बाकी बचाती हैं मुद्राएँ ध्यान दिनचर्या आदि तो वो आपको कार्यशाला के दौरान ही बता सकते हैं ये अप्रत्यक्ष नहीं समझाया जा सकता और इसके लिए आपको कार्यशालाओं में सम्मलित होना चाहिए क्योंकि तंत्र विज्ञानं प्रायोगिक विज्ञानं है न कि थ्योरिकल,
समय कम है आपके ऊपर निर्भर है कि आप इसका लाभ लेना चाहते हैं या नहीं ---

निखिल प्रणाम

रजनी निखल 

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