ऐसा लिखना भी कहाँ तक उचित हैं , यह तो ऐसे ही होगा की प्राण के बिना शरीरकी जरुरत क्या हैं, सच ही तो कहाँ की बिना सदगुरुदेव भगवान् के जीवन की कल्पना तो अब कम से कम हो ही नहीं सकती हैं , जितना चल सकते थे अकेले चल लिया , ये भी उनकी लीला थी की की अकेले मैंभी वह हम पर निगाह रख रहे थे. पर अब तो वे ही उंगली पकडे चल रहे हैं.
गुरु तत्व कि परिभाषा तो संभव शायद होही , पर सदगुरुदेव के लिए तो परिभाषा संभव नहीं हैं, जिस तत्व से सभी का परिचय संभव होता हैं उस तत्व के परिचय के लिए शब्द कहाँ से लाऊं, जो प्रेम तत्व के साकार स्वरुप हैं अब भला उनके प्रेम/स्नेह को समझाने के लिए वे शब्द कहाँ से आये.शास्त्रों में ही नहीं ,हमने अपने सदगुरुदेव जी को साक्षात् ज्ञान मूर्ति के रूप मैं बारम्बार देखा हैं उन्होंने जिस गरिमा , जिस ज्ञान की चेतना से, जिस भाव भूमि पर खड़े हो कर जिन जिन विषयों को अत्यंत सरल तरीके से सामने रखा ओर बदले में समाज का जितना विष पीते गए वह तो शायद भगवान् शंकर के लिए भी कठिन होता , क्योंकि उन्होंने तो सिर्फ एक बार भी विष पान किया , पर सदगुरुदेव तो अपने शिष्यों के पाप कर्मो , गलत चिंतन ओर समाज द्वारा दिए गए विष को तो हर क्षण पीते जा रहे हैं इसलिए उन्हें ब्रह्म ही नहि पर ब्रह्म की संज्ञा यु ही तो नहीं दी हैं .
स्वयं नारायण स्वरुप सद्गुरुदेव की लीला समझाना संभव भी न हीं हैं जिनकी सहचरी स्वयं माया हो उन मायापति की लीला कहाँ तक समझे , कई बार लगता हैं हम समझ गए , पर अगले ही क्षण एक माया का आवरण आया ओर....
क्या कोई तरीका नहीं हैं इस माया आवरण को भेद कर जाने का , क्यों नहीं सदगुरुदेव ने स्वयं ही कहा है की यदि सदगुरुदेव के चित्र की लक्ष्पोचार पूजन करे या सहस्त्र उपचार पूजन या षोडश उपचार पूजन करे ओर यह भी सम्भावना होता मानसिक पूजन कर ले ओर इसमें भी कमी आ रही हो तो उनके श्रीचित्र को अपने माथे से लगा ले आपके पाप राशी भस्म होती जाये गी.
पर सदगुरुदेव जीकी इंतनी महत्ता क्यों हैं क्या लिखूं ओर क्या न लिखूं शब्द कम हैं , उन्हें कहाँ से बांधूं जो सबको बांधे हुआ हैं उनके लिए वह स्नेह की रस्सी कहाँ से लाऊ , आप सभी के सामने एक इस काल की अंत्यंत मनोहारी गुरु तत्व की गरिमा और उच्चता से परिपूर्ण ह्र्दयाकर्षक जीवंत घटना क्रम प्रस्तुत कर रहा हूँ , जो इस विषय पर कुछ तो प्रकाश डालता हैं ..
वाराणसी के महा सिद्ध पूज्य बाबा कीनाराम जी जब गुरु किखोज में बाबा कालू राम जीके पास पहुचे तो अन्यत विकट परीक्षाओ से गुजरने के बाद उन्हें अपना शिष्य स्वीकार किया एक दिन किसी विशिष्ट साधन क्रम में जो कीनाराम कर रहे थे तब बिभिन्न प्रकार्र की जड़ी बूटियां ओर अनेक प्रकार की तांत्रिक सामग्री लातेलाते फिर उन्हें प्राण प्रतिष्ठित करते करते इतना समय हो गया , की अब सभी ज्ञात अज्ञात देव शक्तियों का यदि वे आह्वान करते तो वह विशिष्ट महूर्त जाने वाला था, इन बिभिन्न देव शक्तियों का पूजन किये बिना यह प्रकिर्या संभव भी तो न थी, यह सोच कर बाबा कीनाराम की आखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी. उनके गुरुदेव बाबा कालू राम जी ने जैसे ही यह देखा तो वे सब समझ गए हस्तेहुए बोले की दुखी क्योंहो रहा हैं घबडा क्यों रहा हैं , मैं जो हूँ, मुझ मेंदेख .
जैसे ही कीनाराम जी ने देखा तो पाया की उनके गुरुदेव की देह अत्यंत विशाल हो गयी सभी ज्ञात ओर अज्ञात देव शक्तिया अपनी सम्पूर्णता के साथ विराज मान थी, यही नहीं बल्कि सारे तंत्र पीठ सिद्ध स्थल भी उन्ही मैं निहित थे . सभी लोक भी दृष्टी गोचर हो रहे थे .
बाबा कालूराम जी की गुरु गंभीर आवाज दशों दिशाओं में गुंजरित हो उठी "वत्स तू एक मेरा पूजन इस भाव से कर सारे संसार के ही नहीं बल्कि सभी ब्रम्हांड के सभी ज्ञात ओर अज्ञात देवशक्तियों की पूजन उसी में सम्पूर्णता से परिपूर्ण हो जायेगा "
"जो आज्ञा गुरुदेव " कहते हुए बाब कीनारामइस महा विस्मय कारी दृश्य को देखते हुए अपने सदगुरुदेव के श्री चरणों में गिर गए ओर इस पूजन को संपन कर साधना भी परिपूर्ण की, आज भी उनके नाम पर बना "क्रीम कुंड" उस महा साधक के अपूर्व गुरु भक्ति का परिचायक हैं .
श्री नाथादि गुरु त्रयं गणपति पीठ त्रयं भैरवं
सिद्धोध बटुक त्रयं पदयुगं दुति क्रमं मंडलम |
वीरान द्वय अष्ट चतुषक षष्टि नवकं वीरावली पंचकं
श्री मन्मालिनी मंत्रराज सहितं वन्दे गुरोमंडलम ||
सदगुरुदेव में ही नव नाथ में से अदि नाथ गोरख नाथ ओर मत्सेयेंद्र नाथ समाहित हैं . सदगुरुदेव में ही कामख्या पीठ, पूर्ण गिरी पीठ ओर जालंधर पीठ भी पूर्णतया से स्थित हैं , अशितांग भैरव सहित अष्ट भैरव, सभी महा सिद्ध , तंत्र साधना में सर्वोपरि विरंची क्रम भी स्थित हैं बटुक त्रय , सभी मंडल जैसे अग्नि मंडल सुरुआ मंडल भी उन्ही में प्रकश ओर्विमर्ष के युगल पद हैं, वीर चौषठ योगिनिया , नव मुद्राए पञ्च वीर सभियो मातृका ये ओर मालिनी यन्त्र भी उन्ही में स्थित हैं , ओर ऐसा महानता युक्त सद्गुरुदेव्कोऐन बारम्बार प्रणाम कर ता हूँ , एक समय एक उच्चस्तरीय साधक से पुच्छा की अब तो उनको प् लिया पर अब भी इतना तनाव ओर परेशानी क्यों.
उन्होंने कहा की अभी तो बस आपने स्वीकार ही किया हैं धीरे वे मन ओर आत्मा में आ जायेंगे तब ये सब दूर हो जायेगा,
पर वे आते क्यों नहीं.. किसने रोका हैं उन्हें.
आपके मन ह्रदय और मन में पहले से ही भीड़ लगी रही हैं.
इसका तो मतलब जब तक ये भीड़ जाएगी नहीं ,तब तक वे आएंगे नहीं तब पता नहीं क्यों कितना समय लगेगा .
ये परेशानी चिंता कुछ उनकी कृपा का प्रसाद ही तो हों.
वह कैसे
अरे बिना तपे कभी स्वर्ण निखरता हैं. वही प्रकिर्या तो चल रही हैं.
पता नहीं में सहन कर पाऊंगा या नहीं कितन बही बाकि हैं .
यह तो उनकी इच्छा अपर निर्भर हैं.
कोई रास्ता हैं
क्यों नहीं
उन्हें ह्रदय में स्थान दो,
फिर सब धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा पहले उनके पूजन से ही शरुआत तो करो....
आप मेंसे सभी के पास सदगुरुदेव लिखित " तांत्रोक्त गुरु साधना" किताब तो होगी हैं, इस अद्भुत किताब में अनेक प्रकार से गुरु साधनाए दी गयी हैं, आप अपने जीवन में उतार कर लाभंबित हो सकते हैं,
एक बात यहाँ पर आपके सामने रखना देना चाहता हूँ की एक गुरु साधना तो ऐसी हैं जो "मानसिक गुरु साधना " हैं जी बिना किसी यंत्र माला की हैं ओर केबल और केबल श्री सद गुरुदेव जी ने इसके फल प्राप्ति में लिखा हैं की इसके करने मात्र से साधक सिद्धाश्रम तक जा सकता हैं, क्या आपने पढ़ा हैं ये सब, यदि नहीं तो इसे अपने जीवन का एक आवश्यक अंग बनाये , वसे भी अधिकांश गुरु साधनाए इस किताब में जो दी हैं उसके लिए मात्र गुरु यन्त्र ओर माला की ही आवश्यकता होतीहैं वह तो आप के आपस होंगी हैं.
1. किसी भी साधना के पहले ओर बाद में सदगुरुदेव पूजन तो अनिवार्य हैं ही .
2. यो तो तीनो संध्या काल में सदगुरुदेव पूजन होना चाहिए ( अभी सुविधा ओर देश काल की परिस्थियों के अनुसार )
3. अपने गुरु की उपस्थति में दुसरे किसी के गुरु का पूजन ठीक नहीं कहा गया हैं .
4. पूजन भोजन जप और यहाँ तक कहाँ गया हैं की रमण में भी गुरुआज्ञा प्राप्त करके ही कर ना चाहिए .
5. गुरुदेव के आसन ग्रहण करने के बाद ही आसन ग्रहण करना चाहिए .
6. गुरुदेव को देखते ही दंडवत प्रणाम करना चाहिए
7. श्री गुरुदेव के आसन, बिस्तर, छाया को कभी नहीं लाघना चाहिए .
8. श्री गुरुदेव के पास कभी भी खाली हाँथ न जाना चाहिए. कुछ न कुछ तो अर्पण के लिए होना ही चाहिए .
9. सदगुरुदेव जीके शरीर में ही अपने इष्ट देव का ध्यान करना चाहिए .
10. ओर हर समय उनकी करुणा आप पर ही हो रही हैं ऐसा ध्यान रखना चाहिए .
11. सदगुरुदेव जी के श्री चरण का फोटो तो आपके पास होना ही चाहिए , क्योंकि शिष्य के लिए तो श्री चरण ही आधार हैं .
12. जितनी भी भावना आपके मन में उनके चित्र के प्रति ऐसी होगी की यह तो जीवंत हैं सच मानिये उतना ही आपको फल प्राप्त होगा ही,
ओर आगे मैंक्या लिखूं आप सभी वर्षों से सदगुरुदेव के श्री चरणों में अनुरक्त हैं ही आप से येसब बाते कहाँ छुपी होगीं ..
आप सभी के जीवन में सदगुरुदेव ओर साधना का स्थान हमेशां सबसे सर्वोपरि रहे इस प्रार्थना के साथ .. आजके लिए बस इतना ही ...
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Writing this word that what is the usefulness of sadgurudev poojan is not correct, this Is like having body with our aatam or pran. Its very true that without Sadgurudev ji now we can not think our lifeany more , in the past what and how we had travel is the past , but even in this time too he has a his divine eye always upon us. Now he is leading us on the path divine with holding our hand in his hand.
This may possible that we can define the word guru but to define Sadgurudev this is beyond our capability. Through that we can define all the things of this world but how we can define that word?. He who is the incarnation of love/sneh how we can define his love. we knew not from shshtra but from direct experience that our Sadgurudev ji is truly the forms of all the divine gyan exist in this whole universe. he describe all that aspect of divine gyan with so simplicity and following all the garima and chetna that is unparallel . and in response to that he continuously drink the poison offered by the so called modern down to earth society. That may be difficult for Bhagvaan Shankar to drink that , since Bhagvaan shaker had consumed poison once but Sadgurudevji continuously drinking the poison of shishiy bad karams , wrong thought ,wrong doing , their doubt that’s why Sadgurudev has been called not only the bramha but param brahma .
Sadgurudev ji is a direct form of Nayarayan and maya will always be with him than how long we can understand his lila , some times we think that we understand him, but very the next moment ……
Is there any way to cross theses maya coil , why not sadgurudev himself provide the way, he told us if you do the lakshopachar poojan of Sadgurudev (through 1 lakhs item i.e. very difficult in modern circumstance) or shshstropchar poojan ( means though one thousand item )or shodasoupchar poojan (through 16 items) if this not possible than only mental poojan is enough , and if this also be not possible than once touch Sadgurudev photo to your forehead only this can start vanishes your sins.
Why Sadgurudev ji has so much importance , what I can write and what I can left , word are minimum , he who tie all the universe , where can I get the rope of mine sneh to tie him .here I am preventing one most valuable , heart touching true story for you… that definitely will show some of the light on this topic,
When great siddha of Varanasi city of india baba kinaram ji traveled in the search of his guru and found baba kaluram ji as his Sadgurudev, baba kaluram ji had taken various tough test before accepting his as his disciples, one day when kinaram ji collecting various herbs and tantric material that may be used one very special sadhana that is going to happened on that night, and getting and collecting all those material took so much time ,that it was not possible for kina ram ji to pran pratishthit all the material and start the poojan , since in that tantric poojan/sadhana so many dev shaktiyan (divine forces)had been aavanvit , but where was the time left, on seeing that kina ram ‘s tears flowing out , when baba kaluram ji seen that he understood that with smile he says “why to fear I am here , just see who I am “, when kina ram ji saw his Sadgurudev , he found that his Sadgurudev body became very big and all the known and even unknown dev shakktiya( divine forces) are in that body ,not only this al the great shakti peeth of universe also present in his Sadgurudev body and even many lokas are also there.
Than his sadgurudev divine voice sounded from all the direction “ my son only do mine poojan so that all the poojan of divine forces exists in the whole universe satisfied only from that , you need not to go for individually each?
“ jo agya Sadgurudev” saying this baba kina ram ji and falls on his Sadgurudev divine lotus feet , and though that poojan he achieved so height status in sadhana field, and even today “kreem kund” at Varanasi show the power of that great sadhak and representing the sign what a Sadgurudev word has effect.
Shri natahdi guru trayam peeth trayam bhairavam
Siddhoudh batuk trayam padyugam duti kramam mandamlam |
Viran dwau asht chatushak shathi navakam veravalipanchakam
Shri manmalini mantra raaj sahitam vande guromadalam ||
Shri aadinath , shri gorakh nath and shri matsendra nath of nav nath are in the Sadgurudev divine body and three great peetha of tantra kamakhya peeth ,purngiri and jalandhar peeth are also there .and asht bhairav, all the great siddha , the heighest kram i.e. viranchi kram and batuk tray , angni madal , surya mandal like all the mandal and all veer , choushat yoginies, nav mudraye , all the matraka and malini yantra also exists in him. So such a great Sadgurudev we offer our pranam to your holy feet .
Once I have asked a question to a higher leval sadhak that now I have got Sadgurudev ji but such a problem and tension still exists .
He replied you accept him only , til that he will be in your heart and soul this will happens.
Why he not come, who stops him
Your man and heart already have so many person so no place still left.
That’s means till this vanish he will not come so a lot of time will need for that.
Of all theses tension , trouble Is his blessing. Making a way clearer .
Blessing how you can say
Oh dear with out heating in the fire , gold can never attain his own true shine.
How long i can wear i do not know , how much still left?
That depend upon him only
Is there any way
Yes give him a way in your heart
Than slowly slowly everything will be normal , start with Sadgurudev poojan.
Here I want to share one thing that surely all you have sadgurudevji written great book “ tantraokt guru sadhana” and one sadhana in that that not required any yantra and mala that is “mansik guru poojan” and Sadgurudev written that in the effect of that only doing this mansik poojan one can attain siddhashram. had you read that if not why not make a part of it in your daily life , and even all the sadhanye mentioned in that great book required only guru yantra and mala, that already you al have.
1. Sadgurudev poojan is a must for any sadhana in the beginning and at the end.
2. In the three sandhaya period(happening each days) required adgurudev poojan (follow it according to your working and daily schedule)
3. When your Gurudev present please do not do the poojan of others guru’s.
4. Not only poojan , and eating time but in very person physical moment between husband and wife , that too start with first taking the permission of Gurudev,( looking little bit strange)
5. When Sadgurudev take his asan only than shishy can sit on his own asan .
6. Never go to your Gurudev with empty handed. even a leaf will be sufficient if you do not have any thing to offer to him.
7. Always imagine your isht deity in the body of your sadgurudev .
8. Always feels that his blessing falls continuously upon you.
9. One must have photograph of divine lotus feet of sadgurudev, for shishy theses lotus feet is everything.
10. As you have feel about these Sadgurudev photograph in the same power you will get result .
What more I can write you all are already have strong sneh to him from so many years. Than all theses facts you knew already.
Sadgurudev ji and sadhana will have ever highest position in your life, I am praying this for you all. This is enough for today …
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
Kindly visit our web site containing not only articles about tantra and Alchemy but on parad gutika and coming work shop info , previous workshop details and most important about Poojya sadgurudevji
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