Saturday, May 21, 2011

why we fear to talk about on tantra



बिना तंत्र के तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती हैं , ये सारा ब्रम्हांड ही तंत्र  मय हैं फिर अपनी  ही विरासत से भागना क्यों .  डरना क्यों आप सभी  जानते हैं की तंत्र का  तात्पर्य    एक व्यस्थित प्रणाली  से हैं , क्या "प्रजा तंत्र" या "लोक तत्र"  शब्द से डर लगता हैं ,
तंत्र तो जीवन का सौन्दर्य  हैं तंत्र  तो आधार हैं जीवन को निरापद बनाए का , तंत्र तो जीवन को रसमय बनाकर  जीवन की दिनप्रतिदिन की विभीषिकाओं  से बचाने का एक सुदृढ़  आधार हैं, हम अपने आधार से ही डरेंगे तो खड़े भी कहा पर होंगे .जीवन को पुराने ढर्रे पर ही रखना  हैं तो सब ठीक  हैंपर यदि पौरुषता  रखना  हैं  जीवन को उसकी गरिमा प्रदान  करना हैं  तो  इसे स्वीकार करना ही पड़ेगा. 
पर तंत्र  तो ......अब की क्या कहे  लोग ओर उनकी मानसिकता को ,,,
अगर हाँ अपने आप से ही डरेंगे तो फिर पा भी  क्या पाएंगे ...
तंत्र तो आपको अपने आप से परिचय का मौका देता हैं , परख ने का ओर देखने का भी  तोकब तक उसे ऐसा ही देखेंगे   

 एक चाकू से लोग किसी का जीवन समाप्त करदेते हैं  उसी धातु के चाकू से दूसरा  व्यक्ति  अनेक वर्षों की मेहनत से एक योग्य चिकित्सक बनकर  किसी का जीवन बचाने का प्रयास कर रहा होता हैं . अब दोनों ही तो एक ही धातु का उपकरण लिये है दोने ही तो शरीर का विच्छेदन कर रहे हैं , परभाव  , लक्ष्य  तो अलग हैं  ठीक  ऐसी ही बात   तंत्र के ऊपर भी लागु  होतीहैं , यहतो इसके इस्तेमाल करने वाले पर  निर्भर करता  हैं  वह इसे  किस  ओर उपयोग करता हैं..
आप जानतेहैं खतरा तो  जीवन को बिजली से भी बहुत है पर क्या इस कारणसे  आप इसका इस्तेमाल करना तो नहीं छोड़ देते , आप सावधानी रखते हैं  इसकी उर्जा  , ओर इसकी  क्षमता तो  अपने  जीवन को परिस्कृत  करने में  लगाते   हैं . 
तंत्र के कुछ संप्रदाय का नाम लेकर बिना उसकी मानसिकता  ओर उच्च दर्शन जाने , भावभूमि को स्पर्श  को करे बिना  उन प्रक्रिया  को बदनाम करना  या अन्य प्रक्रिया    सभी को बदनाम करना  कहाँ तक उचित  हैं  फिर जिसने कथ्यक  नृत्य  का अभ्यास न किया हो वह इसके निरर्थक बताने का क्या  अधिकारी हैं आप ही सोचिये ...
आप जानते हैं स्वामी विवेकानंद  जीके सामने विदेशी विश्व विद्यालय  के प्रोफेसरों ने भी स्वीकार किया था की इस व्यक्ति की प्रज्ञा के सामने वे नत मस्तक हैं, आप उन्ही  विवेकानंद जी को  अपने शिष्यों को  बीज मंत्र प्रदान करने  की अनेक घटनाये पा  सकते हैं ,उस समय की दुर्गा पूजा व अन्य पूजा पद्धितियों को वे भी  तंत्र शास्त्र  के विधान के अनुसार करवाते  थे . 
सदगुरुदेव जी कहते  हैं की  डर डर के इस पथ पर चलना  तो  कायरता हैं ओर जवानी इस ढंग से तो नहीं बितायी जा सकती हैं , चले इस राह पर पहले इतना तो करे पहले अपने मन में ही दीप जलाले , जब खुद ही संशय ग्रस्त हैं तो दूसरेको विस्वास कैसे दिला पाए गे . हम अपने घर में डर डर के मंत्र जप  करते हैं मनो पता नहीं कोन सा  गलत काम कररहे हैं .
 सदगुरुदेव जी कहते हैं - की गलत काम करो तो डरो , जब सही कामकर रहे तो डरना की क्या आवश्यकता हैं .
विवेकानद  जी कहते थे बलवान होना ही पुण्य हैं कमजोरी ही पाप हैं , इसलिए बलयुक्त बनो . 
और तंत्र व्यक्ति को  बलयुक्त होना ही सिखलाता  हैं .कायरता नहीं .इसमें शर्म कैसी .
श्री राम कृष्ण परमहंस  जी ने भैरवी माँ के निर्देशन में    त्तन्त्र के अनेको पक्षों की साधना  की थी यहाँ तक की भैरवी साधना  भी ,
क्या माँ  महाकाली की साधना  स्वामी विवेकानन्द जी  ने तंत्र मार्ग से न की होगी .
परमहंस स्वामी निगमानंद जीने  वामा क्षेपा  जी ने निर्देशन में शमशान पद्धति से माँ तारा की साधना  की थी.
यहाँ तक की सूर्य विज्ञानं के   आधुनिक  काल में महान अद्ध्येता  परमहंस स्वामी विशुद्धानंद  जी भी शमशान साधना  के लिए जाते थे.  
 यहाँ मेरे यह बताने का मंतव्य यह हैं की जिनके श्री  चरणों की धूल   पूरा विश्व  लगाने को खड़ा हैं  उन्होंने भी तो साधना  मार्ग में इसी तंत्र का आश्रय  किसी न किसी काल में लिया हैं , तब आप बताये वह प्रक्रिया गलत कैसे होसकती हैं कुछ अभी भी सोच रहे हैं की ....  वे इन महा पुरुषो  से ज्यादा प्रज्ञा रखते हैं तब ओर क्या कहूँ...   
हमारे आचार्योंने  विभिन्न प्रकार के अस्त्रों का प्रयोग बताया  परक्यों हमने जानने की कोशिश  हिकभी नहीं की , आज के योग्मैनिनका की औप्योग होसकता , क्या जल वृस्तिके लिए वरुनास्त्र , का काम नहीं आ सकता हैं . इस तरह के अनेको अस्त्र हैं .  किक्या कोई दिव्यास्त्र ऐसा भी हैं जो समस्त पर नियंत्रण कर सके, सभी कह देंगे  ब्रम्हास्त्र  पर नहीं ,यह तो विध्वंश का अंतिम अस्त्र हैं .... इस पर  तो नियंत्रण  तो पाशु पतायेस्त्र  के माध्यम से होता हैं ,पर आप  कहेंगे की आप ने तो सुना नहींक्या  आप जानते हैं की भगवान श्री कृष्ण  ने सबसे पहले किस अस्त्र की साधन के  लिए भगवान् शिव की आराधना अर्जुन से करायी थी . ...  पाशु पतायेस्त्र  ..
 क्यों नहीं की इनका आस्तित्व आज भी हैं क्यों नहीं .आज भी ऐसे मनीषी मिल सकतेहैं जो  इन प्रक्रिया    की कार्य रूप मैं जानकारी रखते हैं. पर हमने तो तंत्र को तो टोने टुटके  काला जादू त क ही सिमित कर लिया या माना हैं , तभी तो हम सामने खड़े  हो कर यह नहीं बोल पाते  की साधन करते हैं. ...तब किस पोरुश्ता से कहेगे की हम इन दिव्यास्त्र  की  साधना  करना चाहते हैं ..कहाँ  हैं प्रकृति को जितने या सहचरी बनाने  का भाव .

 हमने इस प्रक्रिया के साथ . इन ज्ञान को भी तिलांजलि दे दी, नतीजा आज सामने हैं, क्षमा आजके परिपेक्ष मैं कायरता का आभूषण बन गयी हैं , जबकि  हम जानते हैं की यह तो बीर पुरुष का आभूषण  हैं , हमने दूसरी चीज से पहली  ले आये की हम यदि क्षमा  करेगे   तो मतलब हम वीर हो गए.
कुछ के घरो में इतना वातावरण बना दिया गया हैं की चाह कर  भी मर्यादा वश  या किसी  कारण वश हम बोल नहीं पाते हैं , ये आश्चर्य  जनक तथ्य हैं की हम ज़माने भर के गलत काम करे  कोई दिक्कत न ही होती हैं (न हमें , न हमारे परिवार जनो  को )पर  जब साधना  का नाम आये तो हम बगले झाँकने लगते हैं . उन सभी तथाकथित  काम करने में हमारी विद्या बुद्धि के मानो कपाट खुल जाते हैं पर जब साधना   कीबात आये तो  क्या  करें भाई ,कैसे करें भाई, घर का माहौल  ही  नहीं हैं , कोई सपोर्ट   ही नहीं  करता हैं , या अंत में क्या करे भाई समय ही नहीं मिलता हैं   
अच्छे संस्कार से युक्त, सभी माता पिता,  आपने बच्चे को करना चाहते हैं पर  ये संस्कार क्या हैं शायद बहुत कम ही जानते होंगे . दुसरे हमारी मानसिकता  भी ऐसी बन गयी हैं की , हम में से अधिकतर अपने दोस्तों (अति निकटस्थ ) को तो शायद बता भी दे ,की  हम साधना  करते हैं पर अपने कार्य क्षेत्र के दोस्तों य सहयोगियो  के सामने तो कतई बात ही नहीं  उठाते हैं , कही कोई  कुछ बोल देगा तो .पता न ही  हमारे बारे में क्या सोचने लगेगा ,
कोई तो आपको बोल देगे , कही  तंत्र मंतर तो नहीं करते हो , हम एक दम सुकुड से जाते हैं , पर जरा  सोचिये  की जिन सदगुरुदेव जी ने अपना सारा  जीवन इन आग के शोलो के बीच में जला दिया ओर उन्हें पल भर के लिए भी आराम नहीं  किया , ओर हम क्या  कर रहे हैं. की अहम् इस विषय की बात करने में ही इतना घबडाते हैं . क्या  यह उचित  हैं . आखिर कहीं तो शुरुआत करनी ही होगीजब हमारे अपने परिवार के लोगोंका ही चिंतन हम न बदल  पाए तोकोई दूसरा  कोई क्या  बदलेगा .
यह सत्य हैं की एक दम से तोकोई मानेगा नहीं , पर आप तो उनके मध्य खड़े हैं ही , आप कह सकते हैं की मुझे देख लो मैं कोई गलत काम कररह हूँ , धीरे धीरे आपके आत्म  विस्वास   को देखकर कुछ के तो मन में तो  दीप जलेंगे ही, हाँ समय कुछ कम या ज्यादा लग सकता हैं . 
अब गुरु बहिनों का की कहूँजब हम लोगों की ये दशा हैं तो उनके लिए में बोल ही नहीं सकता हूँ, बस उनके उ त्साह वर्धन के लिए इतना ही बोलूँगा  पत्रिका के कई वर्ष पहले एक श्रंखला  चली थी  नाम था :"शब्द गहे तो हंस हमारा " स्वामी अनुग्रहनंद जीकी जीवनी  क्रमानुसार आई थी, जिन्होंने भी वह श्रंखला पड़ी होगी वह जानते हैं की उसमें स्वमी जी जब  रोग ग्रसित होकर  राव साहब के घर परथे , राव सब की लड़की  ने  उन्हें अपना परिचय कैसे दिया था, किस तरह वह अपना   परिचय ओर सदगुरुदेव जी से दीक्षा  प्राप्ति की बात छुपा कर साधना  करते करते इस स्तर पर थी  की वह स्वामी जी का मार्ग  निर्देशन  करने में समर्थ     थी  , तो जिन्होंने आपको इस अवस्था मैं रखा हैं वह आपकी परेशान्नी , परिस्थिया , मनो भाव से परिचित हैं हीउन्हें तो बस मनो भाव ओर स्नेह युक्त ता  चाहिए . सदगुरुदेव तो बस स्नेह के ही वशीभूत  हो हे आये हैं , होते  रहेंगे ही, आखिर क्यों न ऐसा होगा , वे हैं ही अपने प्रिय से से प्रिय , फिर चाहे उन्हें कैसी भी रूप में देखिये.
हाँ यहाँ पर एक बात कहाँ चाहूँगा की  धीरे धीरे ही हर कार्य की शुरुआत होतीहैं, आप भी जैसा देश काल के हिसाब से उचित हो वहीँ देख कर ही  सोचना  ओर  वैसे से ही कार्य करना. एकदम से  बिना सोचे बुझे कोई भी कार्य यहाँ तक की वह अच्छा  भी हो परशानी खड़ी कर सकता  हैं ,
हम सदगुरुदेव जी की  cd  घर पर चला  सकते हैं, उनका साहित्य  घर पर अन्य सदस्यों   के पढने केलिए रख सकतेहैं पढने के लिए रख सकते हैं उसमें सब कुछ धनात्मक हैं धीरे धीरे  एक किरण ओर सामने आएगी .......   
आज के लिए बस इतना ही

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                                  Why we  fear about talking to tantra
Without tantra , there can be no life .the whole universe is of tantra may .  than why to run away from our own heritage . why to fear ?  as you will aware  that tantra means in general language  the complete and well define process., are we afraid of  th e word like praja tantra  or lok tantra .
Tantra is the beauty of like, tantra is the foundation  of life so that life can be much happier. and tantra also a science though that we can set aside various difficult situation imposing upon us though reason may be any .if we afraid  of our own foundation than  where can we stand. If want to lead the life as the same as of til date than no need to say anything..
But if we want to have pourushta than we have to accept that
But people says tantra is….
What people can say about tantra and what we say sat about  thses people and their mentality..
If you afraid of your self than  what you can achieved ..
 Tantra gives you an opportunity to test and check your ability, and gives you your own true identity.
 Through a knife one can murder any one and  other  person after a many years of hard study  through the same metal knife  can heal the wounded person, what is the difference , both use the same mental knife, and both use that on a body,…… but there is a difference , and that is …..upon the  mentality , bhav bhymi, aim , direction. And the same story related tantra,  is  upon your thought /thinking how you can use that .. it’s not the mistake of tantra.
 As you knew that electricity is very dangerous  it can take your life, but even on knowing that you use that in your home, why, is just because you knew that if proper care has been  taken than its energy and ability make your life much easier.
On accusing some of the sect of tantra without understanding the darshan, bhav bhumi their essence of ritual ,criticizing    is a baseless act and on the bases of that saying  all the tantra filed  is not good that  , and not a justifiable thing, this is like  without knowing anything in  classical dance you start criticizing that, is this a proper approach.
 Do you know that  to swami Vivekanand  ji  professors of foreign university  accepted that even total intelligence .intellectual  knowledge is stand nowhere  in front of him. The same swamiji had given various been mantra jap to his disciples, and on the festival of durga pooja he organized pooja as per following all the tantra way  needed for that . 

Poojya paad sadgurudev ji  used to say that  due to  fear if any body not moving on the direction , is  coward , and the youthfull time  cannot be  spend like that . in the beginning  this can be done ,as at first small earthen lamp of courage will be light up in our heart first. When we are in doubt  than how can we be able to create/raise faith in other person heart.  We do the mantra jap in our home with so much cautious and fear , like  we are doing some bad or evil karm .
Sadgurudev ji used to say that  if  you are doing anything wrong than fear , when doing  right things  than there will be no need to fear.
 Swami vevekanand ji says that  to be stronger is a  punya and weakness is sin. That why become stronger.
 And tantra teaches a person to become courageous not cowardliness .
Even shree ram krishan paramhans had  undergo tantra sadhana under the strict supervision of ma bhairivai and even he also  compl;eted bhairavi sadhana. Do you think that swami Vivekanand ji has not completed ma Mahakali sadhana as per tantra sadhana direaction?
Paramhans swami nigmanand ji had completed the ma tara sadhana as per the guidance of vama khepa  in shamshan.through tan a way .
Even swami vishuddhanand ji many times used to visit shamshan for his sadhana.
 Here I am giving the example only for that theses are the person, whole world is worshiping them and ready to take their  charan dhool. They in one or other time use this tantra sadhana, and you accept that the tantra is bad or something wrong,…
There are many div weapons mentioned in our holy books , people thinks a that  there will be no base of that, but still many of the savant available in this world who knew how to use that, what is the use of theses weapons. Why not…… in time of water shortage ,one can use  varunastra ….not be helpful. Are you aware of that which is the astra that can control all the astra, may  be your answer is brahmansatra, …..no  …no this is the most destructive weapon,. But for controlling all ….. pashypateyeshatr  is use, you never herd that,. this you already know that Bhagvaan shri krishn first advice  to arjun to go to do the sadhana of bhagvaan shiv so that pashupatayestra can be gained .. what was the reason..(now you know)
But we sitting   here not taking any interest, and not having that pousushta  even talk about tantra and thought that some one will come and provide the divastra, to us.. is this possible..
We forget tantra  and out come is the  many difficulty arises day by day and whatever we the circumstance this gyan also left in our hand, and pardon is the  aabhushan of a veer this has been the saying, and what we do we made a way that if we pardon to some one means we are brave…(another way of hiding our inability)
 There are many families , at which such an atmosphere is created that  due to respect or due to  politeness of the person , sadhak cannot express his desire  that he wanted to do sadhana, there is very strange fact that if we do any wrong work/bad work/ not permitted by so called society  work, we have feel no fear (not only to us , even our family member ) but when talk of sadhana, we are just seeing other direction.  When we do that type of work all our sense play  to full extent , we do not know where the needed intelligence comes, but when the talk about sadhana we just says , what we tell you brother , no supporting atmosphere in the home, nobody support me.  And in the last  ,brother I do not have spare time for sadhana.
Every mother and father wants that his child be full of well behaved cultured things , but they really know that what the real means of culture what is sanskar , here I am not defining  so called society values I am saying about eternal truths . and other sense we are having such   mentality  that this may be possible that  in our closet friend  we can say that we are doing sadhana, but to  our friends at office or  little bit distance apart we never revealed the truth , we are in impression that what will be his /her reaction on knowing that .
 Some one will generally tell yes do you practicing tantar mantar just like black magic.  And we find its hard to reply. think about a minute Sadgurudev ji ‘s to his whole life fought to these elements/facts/persons and he took not a sec  relaxation on fighting for these why ?, just because of us, for him there is no need to.
 And what we are doing  , we felt shame to talk to other on these subjects, is this right?. Is there a time . or place where we have to make a start. When we are not able to change our family person thought/thinking upto a level than whether other people will listen to us on   theses.
This is facts that in the beginning  no body will pay attention to you,  but when you are standing in midst of them un shaking , and can say that see I am here , doing nothing wrong , so on seeing your self confidence , surely there will be change in  some one mind/metal attitude, yes process may take little or more time.
 What i can talk about our guru sister , when even we are facing these type of problem  in our home. Than for them it is much much  difficult .so what I can say to them,  for encouraging them I would say, in some years ago one series based on the life of swami anugrahanand ji run in the patrika with a caption “sabad gahe to hans hamara “  in that one incident like that where swami ji fell seriously ill and taking rest in rao sahib home. One day his daughter (rao sahib) came to his room, gave introduction of her to him, and she told that years ago when Sadgurudev ji organized a shivir there she took Diksha , and start sadhana , but because of her family member  she never have a photograph of sadgurudevji , only the coconut provided by him to her at the time of Diksha is a representation of sadgurudevji , and she was so advanced that on certain matter he directed to swami ji. So guru sister he who have place  in the situation  ,he already knew your feeling thought/ your trouble some things much better than any body else. Sadgurudev ji only want your condition less love and this is the only forces through that Sadgurudev ji always be in our heart , and will be too.
He is your friend ,father, brother, in any form which you like most.
 One thing I would like to share that, always take decision keeping well in mind according to your condition specially worldly first, since doing hurry in any work may spoil that or create any problem which hard to correct.
Off course we can play cd of sadgurudevji ‘s pravchan at home, we can share his literature to our family member asked them to read , everything is positive  in that .slowly and slowly new down will arise….
That is enough for today…
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