Sunday, August 7, 2011

Mahavidya Rahasyam-Maa Bhuvaneshwari Rahasyam Part -1

हममे से सभी ज्ञान वान बन कर अपना और अपने प्रिय सदगुरुदेव  भगवान् का नाम आकाश  तक ऊँचा   उठाना  चाहते हैं , वह कैसे होगा , केबल मात्र कहने से तो  गुरु कार्य नहीं  हो सकता  उसके लिए तो  आपको साधना  की अग्नि में तपना ही पड़ेगा , और जब आप तप कर सामने आयेंगे  तो भला किसकी सामर्थ्य हैं की आपके सामने आंखसे आंख मिलकर सामने खड़े हो कर  ओपन  चुनौती दे सके /खड़ा  हो जाये  पीठ  पीछे तो  हर  किसी  की  बुराई होती  ही  हैं .
 केबल शब्दों के  जाल से नहीं, अपनी साधना सफलता से आप   श्रेष्ठ  बने , तो  इसको अत्यंत सरलता  से  जो कर सकती हैं वह माँ भुवनेश्वरी  का ही  स्वरुप हैं, दस महाविद्या  में सर्वोपरि  हैं माँ
क्या आप थोडा सा अचरज  में पड़ गए , हम सभी  को  जो  पुराना हैं  वह ही केबल अच्छा हैं और  जो नया हैं सब खराब हैं  या  इसका उल्टा  भी  कुछ लोग मानते हैं पर, नहीं बिस्वास  करना चाहिए बल्कि जो भी श्रेष्ठ  हो उसे परखे  फिर  अपनी प्रज्ञा के अनुसार , अपने जीवन के लक्ष्य  को दृष्टी  गत रखते  हुए आगे बढे यदि आप कामख्या गए हो तो आप देखेंगे  की प्राचीन   तंत्र  आचार्यों  ने   ने  बुद्धिमत्ता का परिचय  देते  हुए विभिन्न  शक्ति  पीठो की स्थापना   इस प्रकार  से किया  था /हैं  कि उग्र देवी एक ओर तो शांत/सौम्य  एक तरफ, इसी क्रम  में क्या आप जानते हैं माँ भुवनेश्वरी का पीठ उस  नीलांचल पर्वत  पर सर्वोच्च  शिखर पर हैं .  ये किस बात  को इंगित करता  हैं . यह माँ की उच्चता को नहीं क्योंकि दिव्य  माँ के सभी  रूप तो उन्ही के हैं , बरन साधक  को यह साधना   कितनी उचाई  तक  पंहुचा सकती हैं ,इस बात की तरफ भी तो माँ इशारा कर रही हैं , सदगुरुदेव  जी ने अनेको बार इस साधना  को पत्रिका में प्रकाशित  कराया  हैं  विभिन्न  प्रकार से  एक दिवसीय से लेकर , सम्पूर्ण अनुष्ठान रूप में  भी .. अगर अब भी हम  इस साधना  को  नहीं समझे  तो .....  
 माँ तो साक्षात्  सरस्वती  का ही स्वरुप हैं , इस स्वरुप में  उनकी गरिमा  को भला कौन   अपने शब्दोंमे  लिख सकता हैं, मैने आपके सामने यह तथ्य रखा  था  दिव्य माँ के नाम को  इस तरह से भी लिखा  जा सकता हैं  भू + बनेश्वरी  = अर्थात  जो इस धरा में स्थित समग्र  वन्य प्रान्त  की माँ ही अधिस्थार्थी हैं  तो इसका मतलब  की कोई यदि आयुर्वेद  को अपने मन प्राण में  उतार ना  चाहता हैं तो उसे  अलग अलग किसी देवता  की अपेक्षा यही दिव्य  माँ  के इस रूप की साधना  करे तो  क्या संभव नहीं हो सकता  हैं  , ध्यान रहे  पारद  विज्ञानं का  आयुर्वेद, जंगल और जड़ी बूटिया , विशेषकर   दिव्य   और सिद्ध से  तो बहुत  गहरा  नाता हैं .
माँ  ,दस महाविद्या क्रम में अत्यंत  ही सौम्य स्वरुप में हैं , इस कारण  इनकी साधना  दिन या रात में कभी भी की जा सकती हैं , और किसी भी प्रकार का भय  व्याप्त नहीं होता हैं , विशेषकर महिला साधको के लिए  तो यह और साथ ही साथ  पुरुषों को भी क्यों बंचित किया जाये, उनके  जनम पत्रिका  के हजारों क्या लाखों करोंडो  दोष को  नष्ट करने सक्षम हैं ,गुरु बहिनों  को जिनका विवाह  हो गया उन्हें  सर्व सौभाग्य प्रदान करती हैं  ,जिनकी अभी  विवाह संभव नहीं  हो पाया हो  उनके लिए  योग्यतम साथी का मार्ग भी प्रसस्थ   करती हैं .   
आखिर कब तक  केबल हम यह कहते रहेंगे की हमरे प्राणाधार सदगुरुदेव , परमोच्च हैं ,सदगुरुदेव को किसी  शिष्य के इन प्रशंशा  बाक्यों के जरुरत नहीं हैं उन्हें तो सम्पूर्ण विश्व  हर पल नमन करता  ही हैं, केबल  कुछ  लोगों के अनर्गल प्रलाप से उनकी गरिमा पर कोई प्रभाव पड़ता हैं, पर क्या यह संभव नहीं होगा , हम सभी  गुरु भाई बहिन, अपनी अपनी साधना के माध्यम से  इन  उठती हुए आखों के सामने , सीना ठोंक कर खड़े  हो सके , केबल  शब्द जाल से नहीं बल्कि अपने साधना  बल से,, क्या आप  नहीं सोचते हैं की यह  ज्यादा  उचित  होगा ,..
और प्रत्यक्ष  किं प्रमाणं " के आधार पर हम इस विश्व के सामने  स्वयं खड़े  हो सके  और कहें  की लो में खड़ा  हूँ, में हूँ  जीता जगता  सबूत की यह  सभी  साधना  सत्य  होती हैं  .. हम सभी को अपनी अपनी साधना  को अत्यंत गंभीरता से  करना ही चाहिए , वही  तो हमारे आखोंमे  ह्रदय  में सदगुरुदेव जी की और  उर्जा लायेगा , मेरी बातों  किन्ही को चोट  पहुंचा रही हो तो  फिर  भी यही कहूँगा  की  सदगुरुदेव जी ने कई बार कहा  हैं की  माना  साधना  में ज्यादा  भक्ति प्रकट करने के अवसर नहिमिल पाएंगे परफिर  वह भी कहीं ज्यादा  ठोस आधार  देती हैं  ...
  दिव्य माँ के इस स्वरुप को राज राजेश्वरी  के नाम से भी जाना  जाता   हैं  अब यह नाम ही सब कुछ कह दे रहा हैं , ऐसे  तो सभी दिन माँ के हैं  आप हर दिन किसी भी साधना को कर सकता हैं इस  कोई प्रतिबन्ध नहीं हैं , सदगुरुदेव जी ने इन तथ्यों को ध्यान में रख  कर  ही काल निर्णय   पुस्तक  की रचना की हैं उसके अनुसार  कभी भी महेंद्र काल याअमृत  काल के युवा  और प्रौढ़  में साधना प्रारंभ कर सकते हैं  पर  फिर भी कुछ  दिन ऐसे हैं जिस समय  पर साधना  करने से सफलता  का प्रतिशत कई  गुना बढ़ जाता हैं आखिर यह तथ्य भी  तो उन्होंने ही हमसब के सामने रखा हैं.  , और माँ  केलिए एक दिवस निर्धारित  हैं जिसे  सिद्ध रात्रि कहा गया  हैं ,
 परक्या यह समय इतना महत्वपूर्ण हैं , मानलेकभी यह  समय  ही न मिले तो  और वह विशिस्ट  दिवस न मिले तो क्या हाथ पर हाँथ पर रख कर  बैठे रहे , सदगुरुदेव जी से एक बार यह प्रश्न  किया गया था, उन्हों अत्यंत  की प्रसन्नता के साथ  उत्तर  दिया  वह हम सभी के  ध्यानमे रखने योग्य  हैं  जहाँ  पर साधना  दिवस मिल रहे  हो  वहां तो पालन करे  और जब यह संभव नहीं हो तो जिस समय भी  साधना प्रारंभ  करने की इच्छा अत्याधिक बलवती हो जाये उस समय  साधना प्रारंभ कर देना चाहिए . क्या अब भी कोई बहाना  होगा हमारे पास  साधना  नहीं करने का ...
सदगुरुदेव  भगवान से यही प्रार्थना  करता हूँ की हम सभी सच्चे अर्थो में उनके आत्मंश बन सके और अपना शिष्यत्व  सार्थक कर सके...

भगवान् शिव जो स्वरुप इनके साथ रहता  वह हैं त्रयम्बक स्वरुप,  और यह महाविद्या  भी सिद्ध विद्या  ही कहलाती हैं .
  आजके लिए बस इतना ही 
क्रमशः 
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We all are really want  from deep in heart  to raise our Sadgurudev glory to  highest in  the sky and also have a meaning in our  life . how that can be possible? , only saying that your/we  are ready  for guru  kary that will not serve any purpose. for that you have to under go and pass through the fire of sadhana. Only that  purification gives you  something than when you stand  in front of whole world ,who will have to courage  to  face you and  if ,in absence of you  ,any one will  criticize you , in that nothing  new ,this is the practice many  follows.
 Not only from  vocal  power And words   but from your sadhana you  can achieve    height in  material and spiritual world , is makes sense. And that which  very easily   give you that is  divine mother bhuvneshri’s sadhana. Divy ma, in this form is the supreme among all other ten mahavidya form.
  many of us believe that what  that happened in past is only great and no such thing is now   and some people have  very opposite view  to this, but both  view is partially correct , actually  one should accept what ever is  good  whether it came from  past or present. now we must  accept  it after carefully weighting allthe  aspect. And proceed carefully on the path  very carefully  in this connection  .if you  have ever chance to visit mahayoni peeth kamakhya , you will find the great wisdom of ancient tantra aarchry that they  install all the soumy devi one side and  so urga devi other side of main temple  and very wisely  , and in this kram they  installed ma Bhuvneshwari peeth on the  top most point on the neelanchal mountain . what that indicate ? this shows the  greatness of mother Bhuvneshwari.. no no ..  since all the form of  same and one divine mother. But this indicate  through  this  sadhana ,sadhak can reach the top of every aspect of life in all the aspect , considering  divine mother this aspect, sadgurudev bhagvaan many times published so many sadhana related to  mother this form, from  ranging  one days  to complete anusthan . and still we not understand that whose fault is ……..
Divine mother Bhuvneshwari is  also the form of mother saraswati , and in that  form who can write about her glory /power / radiance , and  in earlier posts I mentioned that divine mother name can also  be written bhu(earth) + vaneshwari(ruler of  all the forest)..  means one who is the rulers of all the forest  of  the  earth ,so that clearly show that  if any one want know ayurved and want  fully  understand that , than instead of any other dev devta , if he choose  to go for  this form of  divine  mother than what cannot be possible  for him/her. remember that parad  vigyan (mercurial science ) has  a very close relationship  with  various types of herbs divya and  siddh one  and that are available in  forest or mountains(generally).
 Among the ten mahavidya mother Bhuvneshwari  is  invery soumy  swarup (form) so her sadhana can be done  in day or night any time, there no furious/ horror some experience  happens in that time. Specially sadhikaa , and why set aside  sadhak also ,  this mahasadhana can remove from the roots not only  some hundreds but millions of negativity lies   of their  horoscope., those guru sister who are married one, this provide  fortunate related to all aspect  and whose who are still unmarried  , provide a way to have a  able and suitable  life partner. 
 After  how long we all  are just saying  that  our beloved Sadgurudev is supreme one among all yogies , think  about a minute  Sadgurudev ji  does not need  all this for him ,    to whom  whole universe is continuously  naman, and why he want   such praising from his own aatamansh. and if  some  misguided fellow  say some thing about him , it doesnot matter,  in your view this would not be much better that if we stood  in front of them with our sadhana power , not only through only words, this  would be much better..
 And  on the base of “prtyksha kim pramanam “  we all can stand up in front of whole world , can say yes we are  here , and what more proof  you want  we can prove practically    that sadhana still  true . and such sadhak still  here….we all have to  do our sadhana very seriously and regularly, only that will  induce Sadgurudev divine energy in  our body soul and  fire in our eyes. If any one hurt  by this statement , but still I will say     Sadgurudev  ji many times  told all of us  that its true there are less chance  in sadhana to  show your  bhakti, but what is achieved through   sadhana   that will give you much stronger and solid base.
 Divine  mother also  known as raaj rajeshwari , now this name already show that what it  means. As every day isof mother, any body can start  his sadhan  from any day there is no restriction on that , sadgurudev  bhagvaan  keeping in mind wrote a book named kaal nirnay  theses facts  and if one choose mahendra kaal  or amrit kaal’s yuva and proudh period  that would be much better. But still there are some period ,when  doing sadhana, the percent of getting success will be much  higher, and this facts also Sadgurudev put infront of us. And  for mother bhuvneshri ..siddh ratri .
But theses time  are so important ?, suppose if any circumstances  we will not get the time and the particular  vishit day not available , than what to do ,just sitting  uselessly.  Once this question had been asked  to Sadgurudev bhagvaan , he relied very happily and  his reply need to remember and should be kept in our heart  that  where sadhana  special days are available  than do follow that , and when that  not be possible  than  whenever you feel much desire to start  a sadhana , start sadhana  on that time. Is there still any cause not to  do sadhana….
(praying  to Sadgurudev bhagvaan at least  we can understand  the value  of sadhana and became true aamytmansh of him so that our shishyta can   have true meaning .)

Bhgvaan shiv’s swarup or form associated divine mother this form is trayambak and  this mahavidaya  is in siddh vidya category .
This is enough  for today .
****NPRU****

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