Thursday, August 4, 2011

Mahavidya Rahsyam-Maa Matangi Rahsyam part-3


जीवन की सर्वोच्चता हैं की हम साधनामय  बने , सदगुरुदेव जी के दिव्य श्री चरणों के आश्रय में  क्रमशः आगे बढ़ते जाये और उनके ब्रम्ह स्वरुप में लीन हो या वह हमारे  ब्रम्ह स्वरुप से हमारा  परिचय  कराये, वेसे भी शिष्य ओर सदगुरुदेव में केबल यदि  कोई भेद हैं तो वह मात्रा गत  ही तो हैं  क्योंकि जब उन्होंने कह दिया   की तुम मेरे अपने ही हो मेरे आत्मंश तो क्या अब भी  कुछ शेष रह जाताहैं.. 

तंत्र साधना   के सर्वोच्च शिखर में एक बेहद  ही  उच्च शिखर हैं वह हैं शाक्त  साधना  का  क्योंकि इसमें साधक  न तो  अपने  इष्ट  के सामने रोता हैं न आसूं बहाता बैठा रहता  हैं  न ही  केबल प्रार्थना करता रहता हैं और न ही स्तवन , न ही केबल पूजा का आश्रय  लिए बैठा रहता हैं , क्योंकि वह तो अपने इष्ट से एकाकार   हो जाने की साधना  हैं प्रकृति और  पुरुष  के मिलन  की साधना  हैं.
  इसी क्रम में तो  यह दस महाविद्या साधना आती हैंजो साधक  को उसके इष्ट तक  पंहुचा देती  हैं .
माँ मातंगी के हाथ  में  जप माला  हैं   जो साधक  को  जीवन में हमेशा साधना मय  होने  की  और इशारा करती हैं , ओर इस तथ्य की और  हमारा   ध्यान दिलाती हैं की हम जिन देवी देवता  को अपना इष्ट  मानते  हैं वे भी हमेशा साधना  म य रहते हैं, साधक इस बात को हृदयंगम करे की  साधना  तो  जीवन मे उतनी ही जरुरी हैं जितना भोजन  पानी .

 माँ  के हाँथ में   रक्त लिप्त खडग हैं जो इस बात का परिचायक हैंकि वे सदैव  जीवन की कमियों को , शत्रुओं को नष्ट  करने में हमेशा  ही तत्पर रहती हैं , यहाँ पर यह ध्यान रखना  चाहिए बाह्य्गत शत्रुओ की अपेक्षा  अंतर मन के शत्रु (काम ,क्रोध , लोभ,लालच ,अहंकार ) तो अमरण शील हैं, इन पर सदैव   निगाह रखना   ही पड़ता ही हैं .    

काम भावना का भी जीवन में एक स्थान हैं , उसी तरह  क्रोध का भी क्योंकि बिना क्रोध के जीवन तो पशु सा हो जायेगा ,पर इन सब पर नियत्रण  कैसे  हो  , इसीके प्रतीक में माँ ने अंकुश  भी धारण  कर रखा हैं ,

ललाट  पर चन्द्र ,शीतलता का प्रतीक हैं , जिसका मन शीतल होगा वही तो  जीवनमे  ठोस कार्य कर पायेगा , यहाँ यह बात  ध्यान रखे  की बड़े बड़े संकल्प , केबल क्रोध  की अवस्था में ही संभव  हो पाते हैं जब व्यक्ति अपमान , या परिस्थति  के कारण विवश  हो जाये तब वह अपने क्रोध को एक दिशा दे कर सम्पूर्ण मन को एकाग्र कर  के   ही संकल्प ले सकता हैं , आराम से हस्ते मुकुराते हुए संकल्प लिया नहीं जाता  हैं ( यहाँ पर में साधना के दौरान  लिए गए संकल्प प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा हूँ). पर उस संकल्प  को वास्तविकता  में केबल ओर केबल वही उतार  सकता हैं  जिसका दिमाग ठंडा  हो,आयुर्वेद की दृष्टी से दिमाग को तो ठंडा रहना ही चाहिए .
   वही उन के हाँथ में ढाल भी सुशोभित भी  हैं ,जब  जीवन संग्राम  में आप उतर रहे हो  तो सिर्फ  आघात पर  ही नहीं  परिस्थितियों से बचाव के तरीके भी आने चाहिये कहाँ  पर आघात करना हैं कहाँ पर शांत रहना हैं यह भी तो ज्ञान होना चाहिए  ,हर योद्धा बचाव के अस्त्र भी साथ ले  कर चलता  हैं, जब तक वह अवस्था नहीं आ पाई  हो अंधाधुध   अपने आपको  परिस्थितियों  के हाल पर  छोड़ देना ,केबल मुर्खता या बेबकूफी ही कही  जाएगी न ...
कुछ स्वरूपों में दिव्य माँ के हाँथ में वीणा  भी सुशोभित हैं  जो उनके संगीत के अधिष्ठात्री होने के  साथ साथ  जीवन में संगीत  तत्व  की महत्ता   भी समझाने  की क्रिया हैं क्योंकि एक वीणा तभी अच्छे से संगीत की रचना कर सकती  हैं जब उसके  सभी तार  न ज्यादा  खींचे हो  न ही ढीले  हो , यही  तो माँ वीणा के माध्यम से साधक को समझा रही हैं की  जीवन के किसी भी पक्ष  की उपेक्षा नहीं करो , सभी में  जो सामंजस्य कर  सकता हैं उसके जीवन के संगीत से सभी  मुग्ध  हो पाएंगे न ..
अब  दिव्य माँ के स्वरुप के बारे में कितना  लिखा  जा सकता हैं उनकी साधना  कर शेष उनके और सदगुरुदेव के श्री  मुख से स्वयं  ही न  जान लीजिये ,क्योंकि हरि अनंत हरी कथा अनंता .....

आज के लिए बस इतना  ही......

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    Reaching The height  of life will be possible  only when  we offer our life to Sadgurudev ji’s divine lotus feet, and taking  his guidance  and  blessing  progressed on this path  and become one  with his bramhaand swarup or he introduce us in our own bramhaand form.  In true sense there is no  difference between  shishy and Sadgurudev , if any  difference have that is  only quality  wise. Since when he told that we are his aatmansh (part of his soul) than what  will be left to write…
There is one very great aspect of tantra sadhana , i.e. SHAKT sadhana, in that sadhak never cry in front of his isht  neither only  do his pooja ,and so  no stavan path  only  and also  no oonly prayer, since this sect is provide a way where sadhak and his isht become  one. And how prakriti and  purush unite again.
 And das mahavidya  sadhana is one which leads to its sadhak  to  that point.
 Mother matangi has jap rosary in her hand  that simply  shows that  sadhak should always be sadhanamay , and also indicating any devi or devta who is our  isht also sadhanamay,  so this fact /reality  must be accepted in heart that like  food and water sadhana also a essential part in human life.
Mother  has  blood covered sward that indicate  she always be ready to destroy  the short coming and enemy of life, here one fact  that sadhak must also remember that  compare to outer  enemy  , inner enemy like  kaam (  roughly  meaning sexual desire) ,anger  greed, ego   are immortal one , one must keep vigil always very carefully on them.
Kaam bhavna also has  specific place and importance in  life like that anger  has also, other wise without anger our life become  just like  animal .but how can be have control on them, to show that fact mother has ankush in her hand .
Moon is on her fore head ,  is sign that shows  that any one who want  do some solid work must have coolness  in his mind. Here one  important  thing is  that  too remember that  only in time of anger and bitterness felt  because of  circumstances  in life ,one take  a strong  sankalp/pratigya , that cannot be possible that  when   you are  just  laughing and smiling  and took a  pratigya. But to  fulfill that  one must a cool mind.(here sankalp  Is not that  which is taken in sadhana  times) and as per ayurved point of  view one should  have cool mind.
 When you are appearing in war  of  life  ,that time you  also have remember that  how to protect yourself and  where to attack and where to have  protect yourself , since without reaching a certain high level in sadhana  where all your  protection is  totally  done by  divine  one, one should  not blindly through  himself  In midst of   danger. every worrier also taken with him some instrument of  protection. That is showing by dhal  taken  by   mother.
 There are  some  forms in which mother has taken veena in her hand . which indicate that she is the ruler of  sangeet field, but also  showing that  veena can only  produces  better music  when all its string are  not too tight and not too loose  so a proper balance is need , so sadhak also has to  show proper balance in his life only than the music coming out of  his life , can provide  shelter to  other heart
Now what more can be  written out  divine mother … there is  no end since hari anant so hari katha ananta ( means  Bhagvaan vishnu is infinite so story  related  to him also infinite ) remaining things why not you know yourself through sadhana of  mother and Sadgurudev Bhagvaan…
This  is enough for today

 ****NPRU****

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