Sunday, January 29, 2012

बीजात्मक तंत्र- चित्रा तारा आत्मस्थ प्रयोग(BEEJATAMAK TANTRA- CHITRAA TARA AATMSATH PRAYOG)


सम्पूर्ण कालशक्ति प्रतीक है गति की,गति जिसमे अभ्युदय है,विस्तार है और विनाश भी| इसे समझना इतना सहज नहीं है,कारण मात्र इतना है की,बिना किसी सही मार्गदर्शन के ये काल अर्थात अन्धकार हमें खुद में समेत लेता है और तब यदि हमारी ज्ञान इन्द्रियाँ चैतन्य नहीं रही तो अभ्युदय या उद्भव की खोज में सबसे पहले हमारा सामना संहार पक्ष से हो जाता है और ऐसे में हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है.
 अभी थोड़े दिन पहले ही हम सब कई गुरु भाई-बहन पवन पावन कामाख्या धाम की ज्ञान यात्रा पर गए थे, और उस यात्रा में हमने तंत्र के विभिन्न पक्षों को समझा था,ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह मुझे आरिफ जी के साथ (जिन्हें मैं आदर से मास्टर कहती हूँ) महोग्रातारा पीठ पर जाने का मौका मिला था,उन्होंने मुझे बताया था की पूर्ण चैतन्य ५ तारा पीठों में से मात्र यही महा उग्र तारा का पीठ है और सदगुरुदेव के निर्देशन में मुझे यहाँ बहुत वर्षों तक साधना कर माँ के विभिन्न रूपों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है,और प्राप्त हुए हैं कुछ खट्टे मीठे फल भी | माँ की विराटता का विस्तार यहाँ से होता हुआ समग्र सृष्टि को पल्लवित और पुष्पित करता है,महाविद्या का अर्थ होता है अति उच्च ज्ञान जिसे मात्र आत्मानुभूति के द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है ,जिसकी प्राप्ति आत्मा के प्रकाश के द्वारा ही की जाती है,और याद रखने योग्य तथ्य ये है की यदि आपकी आत्मा का प्रकाश जरा सा भी मलिन रहा तो ऐसी अवस्था में भ्रम वश आप भटक भी सकते हैं और आपको उस पराज्ञान की प्राप्ति कदापि नहीं होगी. यदि आपको महाविद्या को समझना है तो आपको उसके वर्ण रहस्य को भी समझना होगा |जहाँ महाकाली कृष्ण रूप में दर्शित हैं वही भगवती तारा उज्जवल हैं और भगवती श्री विद्या रक्त वर्णीय है,अर्थात त्रिगुणात्मक रहस्यों अर्थात तम,रज और सत् को समझने के लिए ही क्रम से भगवती काली,तारा और त्रिपुर सुंदरी को रखा गया है.इस ज्ञान को दर्शन से नहीं समझा जा सकता है अपितु एकमात्र साधना के द्वारा ही इन्हें आत्मसात किया जा सकता है और इनके रहस्यों को जाना जा सकता है.
 भगवती तारा मिश्र मत के अंतर्गत आती हैं और ये सादि विद्या कहलाती है अर्थात वर्ण के अंतर्गत आती हैं भगवती तारा प्रतीक हैं शब्दशक्ति की,अर्थात साधक को यदि वाक् सिद्धि की प्राप्ति करनी हो या आगम तंत्र के मर्म को आत्मसात करना हो तो इनकी साधना से ही उस रहस्य कक्ष में प्रवेश किया जा सकता है.भगवती तारा के हिंदू सिद्धांत में ६ प्रकार उद्धृत है,और ये सभी ६ प्रकार की शब्दशक्ति प्रदान करते हैं.
 याद रखिये की प्रकृति का प्रत्येक तत्व फिर वो चाहे सजीव हो या निर्जीव,चेतन हो अचेतन, एक विशेष प्रकार के स्पंदन से युक्त है, और इन स्पंदनों का स्त्रोत उस तत्व विशेष में व्याप्त ध्वनि होती हैं |और गूढता इसमें निहित है की यदि मनुष्य किसी ऐसी प्रक्रिया या पद्धति को समझ ले जिससे उस शब्द जो की उस तत्व में निहित है और उस शब्द की ध्वनि को सुन ले तब उस तत्व के अस्तित्व रहस्य को सहज ही समझा जा सकता है क्यूंकि शब्द अक्षय होते हैं जिन्हें कभी भी किसी भी परिस्थिति में नष्ट नहीं किया जा सकता है,ये अनंत काल से ब्रह्माण्ड में गुंजरित हैं,हाँ ये कही महत मंद हैं,कही माध्यम और कही अति तीव्र,और इसकी गति प्रकाश से कही ज्यादा है अतः इन शब्दों का आश्रय लेकर उस तत्व,जीव की उत्पत्ति,विस्तार और विनाश तीनों अवस्था को समझा जा सकता है,अर्थात उसका भूत,वर्तमान और भविष्य तीनों भली भांति ज्ञात किया जा सकता है | महाविद्या साधना अपने आप में अत्यंत गूढता लिए हुए होती हैं, सपर्या विधान, सम्बंधित भैरव और गणपति प्रयोग,बीज सिद्धि के बाद ही मूल साधना करके पूर्ण सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, और महाविद्याओं में भगवती तारा साधना तो जीवन का वरदान और सौभाग्य है | ये दुर्भाग्य नाश, दरिद्रता निवारण के साथ साथ अपार ऐश्वर्य की प्राप्ति तो करवाती ही हैं,साथ ही साथ पूर्ण शब्द शक्ति पर भी आपका अधिकार करवा देती हैं ,तब ऐसे में काल ज्ञान भी अछूता नहीं रह पाता है,परा,पश्यन्ति और वैखरी तीनो ही वाणी की गूढता को समझने की और ये अनिवार्य साधना है |
 तब उन्होंने बताया की यदि इसी तारा पीठ पर चित्रा तारा का एक विशेष क्रम एक विशेष प्रकार से मात्र १० मिनट भी कर लिया जाये तो कान उन ध्वनियों और तंत्रों के श्लोक को श्रवण करने लगते हैं जो भगवती महोग्रातारा और चित्रा तारा से सम्बंधित हैं |मैंने उस क्रिया को संपन्न किया और थोड़े समय में ही मंद मंद ध्वनि का गुंजरन तीव्र होता चला गया और जो गर्भ गृह शांत था अचानक वहाँ ध्वनियों का स्वर तीव्र होता चला गया, थोड़ी देर बाद मैंने आँख खोल कर मास्टर से पूछा की ये जो ध्वनि सुनाई दे रही थी इनमे एक मन्त्र बार बार गुंजरित हो रहा था,भला क्यों|
 हाँ मुझे ज्ञात है,यही प्रश्न जब मैंने सदगुरुदेव से पूछा था तो उन्होंने बताया था की वो मंत्र भगवती चित्रा तारा का है,और सभी प्रकार की तारा साधनाओं में ये मंत्र एक विशेषता लिए हुए है. प्रत्येक महाविद्या के प्रकट और गुप्त रूपों में से एक रूप ऐसा भी होता है जो की वास्तव में उस महाविद्या को साधक से आत्म एकाकार करा देता है, और ये तथ्य सभी महाविद्याओं के लिए प्रयुक्त होते हैं,भगवती तारा चित्रा रूप में प्रत्येक पदार्थ में ध्वनिशक्ति के रूप में विद्यमान रहती हैं,और भगवती चित्रा तारा का मंत्र वास्तव में भगवती तारा के ब्रह्मांडीय रूप से साधक का सायुज्यीकरण करवाता है|अर्थात एक सेतु का निर्माण करता है| जिसके द्वारा साधक और साध्य का योग होता है,तब इष्ट और साधक में कोई भेद नहीं होता है अपितु दोनों एक हो जाते हैं|
 हम सभी अपने अपने साधना कक्ष में महाविद्याओं के या महाशक्तियों के यंत्रों को स्थापित करते हैं और उनसे सम्बंधित साधना प्रारंभ कर देते हैं और कुछ समय बाद कहते हैं की कोई लाभ दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है,और कोई अनुभूति नहीं हो रही है,क्या क्रिया गलत थी ?
 नहीं क्रिया गलत नहीं थी अपितु हमने गुरु से पूर्ण क्रिया की प्राप्ति ही नहीं की,तब ऐसे में सफलता कैसे मिलेगी,याद रखिये यन्त्र उस शक्ति का ज्यामितीय रूप होता है जिसमे वो शक्ति निवास करती है और वो भी निद्रित रूप में और जब तक उस शक्ति की चेतना का साधक की चेतना से योग नहीं होता है,तब तक सिद्धि तो दूर अनुभूतियाँ भी नहीं होती हैं,हाँ कभी कभी काल का प्रवाह इतना प्रभावकारी हो जाता है या प्रारब्ध इतना बलवान होता है की साधक को ये सब क्रिया करने की आवशयकता नहीं होती है.परन्तु अन्य अवस्थाओं में तो पूर्ण क्रिया आवश्यक होती ही है.
 भगवती तारा की चेतना को स्वयं की चेतना से कैसे योग ककिया जा सकता है मात्र उसी गुप्त तथ्य को मैं यहाँ पर रख रही हूँ. याद रखिये इष्ट की चेतनाशक्ति को सरलता से साधक की चेतना के साथ योग करवाने में चेतना मंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,अब चेतना मंत्र परन्तु कैसा? तो इसका उत्तर है वो चेतना मंत्र जो गुरु के प्राणों से उद्धृत हो और उनकी चेतना से साधक को चैतन्य करता हो. हमें गुरु प्राणश्चेतना मंत्र के रूप में ऐसा मंत्र प्राप्त है, जब भी आपको भगवती तारा की साधना करनी हो उसके पहले मात्र आपको इतना ही करना है की यदि मूल साधना २१ दिनों की है तो आप उसे २८ दिन की मान लीजिए और प्रारंभ के ७ दिनों में गुरु द्वारा उपदेशित साधनात्मक नियमों का पालन करते हुए यन्त्र को सामने रख कर प्रारंभ के सभी क्रम (जो की सभी अन्य साधनाओं में किये जाते हैं जैसे,गुरु पूजन,गणपति पूजन,धुप-दीप,नैवेद्य आदि ) संपन्न करने के बाद भगवती तारा के यन्त्र के सामने ५१ बार गुरु प्राणश्चेतना मंत्रका जप करे और जप काल में दाहिने हाथ में यन्त्र को मुट्ठी बांध कर ह्रदय से स्पर्श कराये रखे,इसके बाद भगवती चित्रा तारा मन्त्र जो की भगवती तारा आत्म एकाकार मन्त्रभी है का जप ३१ माला पारद माला से किया जाये,इस मंत्र के मध्य आपके बाये हाथ में भगवती तारा का यन्त्र होना चाहिए और आप उस हाथ की बंधी हुयी मुट्ठी को अपने ह्रदय के पास रखेंगे.
 भगवती चित्रा तारा मंत्र-
 ऐं ह्रीं श्रीं
 “AING HREENG SHREEM”
 जप के बाद पुनः दाहिने हाथ की मुट्ठी में यन्त्र रख कर ह्रदय के पास रखे और ५१ बार गुरु प्राणश्चेतना मंत्रका जप करे,ये क्रम ७ दिनों तक करना है और इसके बाद आप मूल साधना करके देखिये,प्रभाव आपके सामने होगा|
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The power of whole time dimension which we refer as Kaal Shakti symbolizes birth, development and destruction. To understand it is not an easy job because without any true master if we try to dissect it and during its analyzing if our senses remain unconscious then it’s power in their negative form destroy us….not destruction rather than I should call it annihilation.
Some days back with my Master ( Arif ji) some of our guru bhai bahen went to a devotional knowledgeable journey to Kamakhya Dham and undoubtedly we came to know some unique aspects of tantra over there and during this one morning I got chance to visit Mahougrah Maa Tara’s Peeth with my Master which I considered wonderful unexpected time of my life because during this small span of time he told me that out of 5 Maa Tara’s Peeth this is the only one which is called as Mahougrah Maa Tara’s Peeth and he also shared that with the pious permission of revered Sadgurudev I carried and continued my sadhna for such a long time over here and experienced some sweet and salty experiences. Next he told me that from here only Maa Tara’s dimension and vastness of begins and it’s again from here she covered and nourishes the whole universe as well. He asked me,” Do you know what we mean by Mahavidhya?” let me clear this concept for you,” by this we mean highly true knowledge which can be only realized by our inner soul and the most important thing which one should keep in mind is that these Mahavidhyaas can be felt by the light of our soul and if this light is not pure than definitely we’ll lost our divine path and divine knowledge as well. If you want to know about Mahavidhya then you need to know it’s secret of words as well…..in this aspect where Maha Kaali is depicted as Krishna roopi, Maa  Bhagwati Tara as Ujjwal and Bhagwati Shri Vidhyaa is in Raktim form.”  He looked at me……clouds of confusion were trailing on my face, he smiled and we sat on temple’s stairs…..he modify his peacefully modify his dictation and explained,” universal mystery which contains 3 aspects i.e. Tamas, Rajas and Satav and to understand it’s order 3 aeons of universe are settled in systematically Bhagwati Kaali, Tara and Tripur Sundari’s order. Philosophy is failed in this territory so it’s only by sadhnaa that one should understand its essence.
Bhagwati Tara falls in the category of Mishr Matt and called Saadi Vidhya means it belongs to “ S “ word and it symbolizes Word power means She is enable to give her saadhak Vaak sidhi and also if one wants to understand Aagam Tantra then he will need to disclose the mysterious of Her sadhnaa as well. In Hinduism Bhagwati Tara is mystified in 6 forms and all these are able to give Vaak sidhi to their sadhak.
Always remember that every creature either it is living or non-living has vibrations in its core which comes from the main resources which is called Sound presents in the bottom core of that object and the surprising fact is that if a person comes to know the procedure through which he can overcome or understand this core sound then the mystery behind the origin of that object can be easily find out as words are immortal nothing can destroy them but their sound gets variation from place to place as some where they are mute, somewhere their density is slow and at some other places they contains ear piercing sound as their velocity is more than light. So by the help of word or now we can call it sound we can easily get to know the origin, extension and destruction of that word or in simple words past, present and future of it. Mahavidhya sadhnaa is full of mystery as to have complete sidhi we need to know it’s Sapraya Vidhaan, related Bhairav and Ganpati proyog and its Beej sidhi. Out of all mahavidhyaas Bhagwati Tara sadhnaa is considered as the blessing of life. It not only destroys poverty and ill fate but provides luxuries life and Vaak sidhi as well and in this case Kaal Vigyan doesn’t remain untouched… Para, Pashyanti and Vakhiri all three are must to understand the surreptitious of words.
Further he explained that if on this Bhagwati Tara’s Peeth a special procedure related to Chitra Tara can be carried out only for 10 minutes then all the mantra and shloks belongs to Mahougrah Tara simultaneously gets started echoed in one’s ears. He let me carried out that procedure and slowly-slowly peace and tranquility of Garbh-greh converted into echoed sound. After some time I opened my eyes and asked to my master,” Master, during this I repeatedly hear a mantra, which echoed again and again in my ears…..?”
“Yes, I know and it was the same question which I asked from Sadgurudev and He told me that this mantra was Bhagwati Chitra Tara’s mantra and this mantra is very much important in all the sadhnaas of Maa Tara. Out of all the forms of all Mahavidhyaas there is a common form with which a saadhak can be one. Bhagwati Tara in its Chitra form remain present in the form of sound in everything and this is the only mantra which establish sadhak’s contact with universal power means by this devotee and deity become one.
We all acquire Mahavidhyaas yantra and get them establish in our sadhna kaksh and starting sadhnaa related with them and after some time jump to the decision that all is going in vain as we are realizing nothing as divine through it……isn’t it so?
No the procedure was not wrong beside incomplete….as yantra is abode place for deity that is too in sleeping mode….so how sadhak can feel divinity when there is no connection between him and the power. At sometime effect of time is so fast and forceful that there remains no need to carry out such procedures but generally process is must to perform.
Always remember to get your consciousness one with your Deity’ consciousness…..mantra related to it plays very important role….now the question is what type of mantra can do this? So we all have Guru Praneshchetna mantra and you only need to do that if you are doing Bhagwati Tara’s sadhnaa for 21 days then convert it into 28 days and during first 7 days by following all the rules and regulations related to every sadhnaa and performing starting issues (as I explained earlier guru poojan, Ganpati poojan, dhoop, deep, navaidhy) put yantra in front of you and do Praneshchetna mantra for 51 times. During this time keep yantra in your right fist close to your heart. After that with parad rosary do Bhagwati Chitra Tara’s mantra for this is also “Bhagwati Tara’s Ekakaar mantra” 31 times by keeping yantra in your left fist again close to your heart.
Bhagwati Chitra Tara mantra-     
ऐं ह्रीं श्रीं
 “AING HREENG SHREEM”
After jaap keep yantra in your right hand close to your heart and do Praneshchetna mantra again for 51 times and follow this process for 7 days and after that when you do your basic sadhnaa astonishing results will be in front of you.
   


                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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