In previous articles, we
understood about the significance of elements in sadhna, what is the need of
Aakash element, why its copy-image Mandal is necessary. Besides this, why
sadhak should have Veer Bhaav and what is the meaning of Krodh Mudra in Veer
Bhaav.
As Saundarya sadhna are
important in Aagam scriptures, in the same manner Apsara and Yakshini sadhna
has got its own base in other Tantra Maarg too. It may be Yamari Tantra related
to Buddhism or Jain Tantra Shastra.Saundarya sadhna are mentioned in each one
of them .Saundarya sadhna holds that much important place in every Tantra.
Jain Tantra Padhati is a
rare, secretive and hidden padhati in itself. And when we are talking about
Yaksha Lok then mentioning name of Jain Tantra is not only necessary but
compulsory. Jain society have played a very important role in establishing
contact with Yaksha Lok and putting forward related facts in front of everybody.Mahavir
Swami was 24th teerthankar and for all the Teerthankar before him
also, it is accepted that for every Teerthankar, one Yaksha and one Yakshini
has waited from time to time. Besides this, instances have been found in
ancient Jain Scriptures that Jain saints had contact with Yaksha, Yakshini and
Yaksha Lok. Those who have tried to know about Jain saints and Tantra Sadhaks,
they would definitely know this fact that Jain saints and Tantriks had a close
relation with hidden palace of Yaksha on earth. Few years before, one Jain
saint tried to bring in light one such palace in Rajasthan. To add to that, he
entered the palace in front of everyone and took out unknown metals and idols
of precious gems and placed it for exhibiting to the people for 2-3 days. When
he went more inside then Yaksha requested him to stop because from there, many
of their Nirgad Dwaar were made through which one can directly enter Yaksha Lok.
Probably, this may seem fantasy to people but this incident was witnessed by
hundreds of people and there are such instances which are not ancient. We are
discussing this here so that we can know after all, what is that fact whereby
it is easily possible for those Yogis.
In Jain Tantric Upasana
Padhati, primarily sadhna of some god and goddess is done like Padmavati,
Parshwanath, Ghantakarn, Manibhadra etc. If we try to understand Jain History
then we will know that all these God and Goddess are said to have contacts with
Yaksha Lok. So when sadhna of these God and Goddess is done then it becomes
very easy to establish contact with Yaksha Lok. It is because they attain the
blessings of important God and Goddess of Yaksha Lok. Here one special fact
worth-mentioning is that Manibhadra Tantric sadhna has been done in many ways
in Jain Padhati and this sadhna has always remained center of attraction among
Jain Tantra sadhaks because sadhna of Lord Manibhadra provides results very
quickly. Besides this, there is one more hidden fact that sadhak of Lord
Manibhadra attains the money instantaneously. Secret behind it is that Yaksha
and Yakshini provides cooperation in invisible form to sadhaks doing Manibhadra
sadhna. And such things happen because Lord Manibhadra has been considered as commander
of army of Yaksha and according to opinion of Jain Tantra, in such manner
Manibhadra holds an important place in Yaksha Lok. Therefore, if prayog
relating to lord Manibhadra is done before Yakshini sadhna then definitely
chances of success become brighter. Though there are many prayogs related to
Lord Manibhadra but in hidden form, some prayogs are present which are related
to Yakshini Sadhna and through which sadhak gets cooperation in Yakshini
sadhna. Manibhadra Prasann prayog is one such prayog through which
sadhak can not only attain success in Yakshini sadhna but also attain complete
success in all Kaamy prayog related to Lord Manibhadra .This prayog can be
accomplished merely in one night. But is doing only this Vidhaan enough for
success in Yakshini Sadhna in Jain Tantra? “Yaksha Mandal Sthapan Prayog” is one such
prayog whereby person can attain complete success in Yakshini Sadhna through
Jain Tantra. We will discuss about this Prayog in next article.
पिछले लेखो में हमने जाना किस प्रकार साधना में तत्वों का महत्त्व है. किस प्रकार से आकाशतत्व की अनिवार्यता है उसकी प्रतिकृति स्वरुप मंडल क्यों अनिवार्य है, इसके अलावा साधक में वीरभाव क्यों होना ज़रुरी है और वीरभाव में क्रोध मुद्रा का अर्थ क्या होता है.
जिस तरह आगम शाश्त्रो में
सौंदर्य साधनाओ का महत्त्व है उसी प्रकार से दूसरे तंत्र मार्ग में भी अप्सरा तथा
यक्षिणी साधनाओ का भी उतना ही आधार है. चाहे वह बौद्ध धर्मं से सबंधित यमारी तंत्र
हो या जैन तंत्र शाश्त्र. सभी में सौंदर्य साधनाओ का उल्लेख है तथा सौंदर्य साधनाओ
का उतना ही महत्वपूर्ण स्थान सभी जगह निर्धारित है.
जैन तंत्र पद्धति अपने आप में
दुर्लभ रहस्यमय तथा गुढ़ पद्धति है. और जहां पर हम बात यक्ष लोक के सबंध में कर रहे
हो तो जैन तंत्र का नाम उल्लेखित करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य कहा जा सकता है.
जैन समाज का एक बहोत ही बड़ा योगदान है यक्ष लोक से संपर्क सूत्र स्थापित करने तथा
उससे सबंधित तथ्यों को सब के सामने रखने का. महावीर स्वामी को २४ वे तीर्थंकर कहा
जाता है तथा उनसे पहले के सभी तीर्थंकर के लिए भी यह बात स्वीकार की जाती है की
सभी तीर्थंकरों के लिए एक यक्ष तथा एक यक्षिणी ने समय समय पर इंतज़ार किया है. इसके
अलावा पुरातन जैन ग्रंथो में कई कई जगह ऐसे उदहारण प्राप्त होते है जिनमे जैन
मुनियों का संपर्क यक्ष यक्षिणी तथा यक्ष लोक से रहा है. जैन मुनियों तथा तंत्र
साधको के बारे में जिन्होंने भी जानने की कोशिश की होगी उन्हें यह तथ्य निश्चित
रूप से ज्ञात होगा की यक्षों के पृथ्वी लोक पर जो गुप्त भवन है उनसे जैन मुनियों
तान्त्रिको का बहोत ही निकटवर्ती सबंध रहा है. कुछ सालो पूर्व ही राजस्थान में ऐसे
ही एक गुप्त भवन को एक जैन मुनि ने प्रकाश में लाने का प्रयास किया था साथ ही साथ
उन्होंने सब के सामने उस भवन में प्रवेश कर के वहाँ से अज्ञात धातुओ की तथा कीमती
रत्नों की मुर्तिया बहार निकाल कर लोगो के सामने दर्शन हेतु २-३ दिन रखी थी, जब वो
भवन में कुछ और आगे गए थे तब उनको यक्षों ने नम्र विनंती कर रोक लिया था क्यों की
वहाँ से उनके निर्गदद्वार बने हुवे थे जिसके माध्यम से यक्ष लोक में सीधा प्रवेश
प्राप्त किया जा सकता है. सायद यह बात
लोगो को कल्पना लग सकती है लेकिन इस घटना के साक्षी सेकडो लोग रहे है तथा ऐसे कई
उदहारण है जो की पुरातन नहीं है. यहाँ पे हम यह चर्चा इस लिए कर रहे है की यह
ज्ञात हो पाए की आखिर वह कोनसा तथ्य जिसके माध्यम से उन योगियो के लिए यह सहज संभव
हो जाता है.
जैन तांत्रिक उपासना पद्धति में
कुछ देवी तथा देवताओ की साधना मुख्य रूप से होती है. पद्मावती, पार्श्वनाथ,
घंटाकर्ण, मणिभद्र इत्यादि. अगर जैन इतिहास को योग्य रूप से जाना जाए तो यह ज्ञात
होता है की इन सभी देवी देवताओ का सबंध यक्ष लोक से बताया जाता है. तो जब इन देवी
तथा देवताओं की साधना उपासना की जाती है तब इनके लिए यक्ष लोक से सबंध स्थापित
करना उनके लिए सहज हो जाता है. क्यों की यक्षलोक के मुख्य देवी तथा देवताओ के
आशीर्वाद की प्राप्ति वह कर लेते है. यहाँ पर एक विशेष तथा उल्लेखनीय तथा यह है की
मणिभद्र तांत्रिक साधना कई प्रकार से जैन पद्धति में होती रही है तथा जैन तंत्र
साधको के मध्य उनकी साधना उपासना हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रही है क्यों की
भगवान मणिभद्र की साधना तीव्र रूप से फल प्रदान करती है. इसके साथ ही साथ गोपनीय
तथ्य यह भी है की भगवान मणिभद्र के साधक को अनायास ही धन की प्राप्ति होती रहती
है. इसके पीछे का रहस्य यह है की मणिभद्र साधना करने वाले साधक को यक्ष तथा
यक्षिणी अद्रश्य रूप से सहयोग प्रदान करती रहती है. और ऐसा इस लिए होता है क्यों
की यक्षों की सेना के सेनापति भगवान मणिभद्र को माना गया है और जैन तंत्र की धारणा
अनुसार मणिभद्र देव का इस प्रकार एक अति महत्वपूर्ण स्थान यक्ष लोक में है. इस लिए
यक्षिणी साधना से पहले अगर मणिभद्र देव से सबंधित कोई प्रयोग कर लिया जाए तो
निश्चित रूप से सफलता की संभावना बढ़ जाती है. यूँ भगवान मणिभद्र से सबंधित कई प्रयोग
है लेकिन गुप्त रूप से ऐसे प्रयोग भी प्रचलन में रहे है जो प्रयोग यक्षिणी साधना
से सबंधित है तथा जिसके माध्यम से साधक को यक्षिणी साधना में सहयोग मिलता है. ऐसा
ही प्रयोग मणिभद्र प्रसन्न प्रयोग है जिसके माध्यम से साधक न ही सिर्फ यक्षिणी
साधना में सफलता प्राप्त कर सकता है साथ ही साथ मणिभद्र देव से सबंधित सभी काम्य
प्रयोग में भी पूर्ण सफलता प्राप्त करता है. यह प्रयोग मात्र एक ही रात्रि में
सिद्ध हो सकता है. लेकिन क्या जैन तंत्र में यक्षिणी साधना में सफलता के लिए सिर्फ
इतना ही विधान है? ‘यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग’ एक ऐसा प्रयोग है जिसके माध्यम से
व्यक्ति जैन तंत्र के माध्यम से यक्षिणी साधना में पूर्ण सफलता की प्राप्ति कर
सकता है. क्या है यह प्रयोग इस पर चर्चा करेंगे अगले लेख में.
****RAGHUNATH NIKHIL****
****NPRU****
जय सदगुरुदेव
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