आप सभी का मैं आभार मानता हूँ की आप लोगो में प्राचीनतम विधाओं को जानने और अपनाने की ललक है. मैंने पिछले मेल में स्वर्ण रहश्यम के बारे में बात की थी. मेरा उद्देश्य किसी प्रकार का प्रचार करना नही है.
यह हम सभी गुरु भाइयों की जिम्मेदारी है की यदि हमारे पास कोई ज्ञान है तो हम उसे हम अपने पास न रख कर उसे और भी भाइयों को दे. याद रखिये की कभी भी सदगुरुदेव ने कुछ छुपाया नही बल्कि जिसने जो कुछ भी माँगा उसे सहर्ष ही उन्होंने दे दिया .क्योंकि ठहरा हुआ पानी भी बदबू देने लगता है. फिर हम सब तो जिवंत ग्रन्थ बन्ने की राह पर अग्रसर हैं.
पारद विज्ञानं की दुर्गति का एक सबसे बड़ा कारण लोगो की संचयी प्रकृति का होना है. गुरुदेव ने बहुत सारे शिष्यों को इस विघ्याँ का ज्ञान दिया था. पर न जाने क्यों उन्होंने इस विघ्याँ को आगे नही बढाया.
रस विघ्याँ दिव्या ओउर परिश्रम से भरा हुआ है.इसे सिर्फ़ पढ़ कर नही समझा जा सकता बल्कि इसे आत्मसात करने के लिए लगातार और अथक परिश्रम की जरुरत है,तभी आप इसमे सफल हो सकते हैं.किताबें सिर्फ़ पथ दिखा सकती हैं.
७०० पृष्ठों में लिखित स्वर्ण रहस्यम में २१ अध्याय हैं:-
:-****** introduction
१.रस सिध्धि प्रदाता स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
२.रासेश्वरी साधना एवं उसका प्रयोग
3.कच्छप सुमेरु श्री यन्त्र(स्वर्ण निर्माण का गुप्त रहस्य)
४.रस शोधन (41 विधियां )
५.रस से रसेन्द्र तक (एक आत्मीय यात्रा)
६.पाश्चात्य व भारतीय रस पद्धति
७.रस व स्वर्ण साम्यवाद
८.रस शास्त्र की दिव्य साधनाये
यह हम सभी गुरु भाइयों की जिम्मेदारी है की यदि हमारे पास कोई ज्ञान है तो हम उसे हम अपने पास न रख कर उसे और भी भाइयों को दे. याद रखिये की कभी भी सदगुरुदेव ने कुछ छुपाया नही बल्कि जिसने जो कुछ भी माँगा उसे सहर्ष ही उन्होंने दे दिया .क्योंकि ठहरा हुआ पानी भी बदबू देने लगता है. फिर हम सब तो जिवंत ग्रन्थ बन्ने की राह पर अग्रसर हैं.
पारद विज्ञानं की दुर्गति का एक सबसे बड़ा कारण लोगो की संचयी प्रकृति का होना है. गुरुदेव ने बहुत सारे शिष्यों को इस विघ्याँ का ज्ञान दिया था. पर न जाने क्यों उन्होंने इस विघ्याँ को आगे नही बढाया.
रस विघ्याँ दिव्या ओउर परिश्रम से भरा हुआ है.इसे सिर्फ़ पढ़ कर नही समझा जा सकता बल्कि इसे आत्मसात करने के लिए लगातार और अथक परिश्रम की जरुरत है,तभी आप इसमे सफल हो सकते हैं.किताबें सिर्फ़ पथ दिखा सकती हैं.
७०० पृष्ठों में लिखित स्वर्ण रहस्यम में २१ अध्याय हैं:-
:-****** introduction
१.रस सिध्धि प्रदाता स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
२.रासेश्वरी साधना एवं उसका प्रयोग
3.कच्छप सुमेरु श्री यन्त्र(स्वर्ण निर्माण का गुप्त रहस्य)
४.रस शोधन (41 विधियां )
५.रस से रसेन्द्र तक (एक आत्मीय यात्रा)
६.पाश्चात्य व भारतीय रस पद्धति
७.रस व स्वर्ण साम्यवाद
८.रस शास्त्र की दिव्य साधनाये
९ धातु परिवर्तन सम्भव है
8. अष्ट संस्कार (क्योंकि पारद जीवित- जाग्रत है)
११ सिद्ध सूत ( नाथ योगियों की दिव्य विधियां )
१२.अग्नि स्थायित्व एक अनिवार्य कर्म
१३.९ से १८ तक संस्कार(जारण से वेधन योग)
१४.सिध्ध रस निर्माण
१५.पारद परस गुटिका (निर्माण एवं साधना)
१६.दिव्या वनस्पतियाँ जो उपलब्ध हैं( परिचय रंगीन चित्रों के साथ )
१७..स्वर्ण निर्माण के ५१ प्रयोग
१८.काल ज्ञान और रस विज्ञानं
8. अष्ट संस्कार (क्योंकि पारद जीवित- जाग्रत है)
११ सिद्ध सूत ( नाथ योगियों की दिव्य विधियां )
१२.अग्नि स्थायित्व एक अनिवार्य कर्म
१३.९ से १८ तक संस्कार(जारण से वेधन योग)
१४.सिध्ध रस निर्माण
१५.पारद परस गुटिका (निर्माण एवं साधना)
१६.दिव्या वनस्पतियाँ जो उपलब्ध हैं( परिचय रंगीन चित्रों के साथ )
१७..स्वर्ण निर्माण के ५१ प्रयोग
१८.काल ज्ञान और रस विज्ञानं
१९.सिध्ध रस एवं कायाकल्प
२०.मृत्युंजयी गुटिका,अघोर धंदा गुटिका,भूचरी गुटिका,खेचरी गुटिका, आदि
२०.मृत्युंजयी गुटिका,अघोर धंदा गुटिका,भूचरी गुटिका,खेचरी गुटिका, आदि
२१.क्या पारस बन सकता है
और भी बहुत कुछ है उन साधकों के लिए जो बदलना चाहते हैं अपना भाग्य अपने परिश्रम से.
आप जो भी जानकारी रस विज्ञान के बारे में चाहेंगे अवश्य देने का प्रयास करूँगा.
प्रार्थना कीजियेगा की सदगुरुदेव मेरे इस प्रयत्न को सार्थक करे।
और भी बहुत कुछ है उन साधकों के लिए जो बदलना चाहते हैं अपना भाग्य अपने परिश्रम से.
आप जो भी जानकारी रस विज्ञान के बारे में चाहेंगे अवश्य देने का प्रयास करूँगा.
प्रार्थना कीजियेगा की सदगुरुदेव मेरे इस प्रयत्न को सार्थक करे।
**** आरिफ****
2 comments:
Bhai kya yah kitab uplabdha hai yadi hai to kaise prapt hogi
Bhai kya yah kitab uplabdha hai yadi hai to kaise prapt hogi
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