Thursday, February 28, 2013

MAHARSHI KAALAAGNI RUDRA PRANEET MAAHAAKAAL BATUK BHAIRAV SADHNA PRAYOG





Jai Sadgurudev,
Yam YamYam Yaksh RoopamDashdishivadnamBhumikampymaanam |
Sam SamSamSanhaarmoortiShubhmukutJatashekharamChandrbimbam ||
Dam DamDamDeerghkaayamVikritnakh Mukh ChaudharvroyamKaraalam
Pam PamPamPaapnaashamPranmatSatatamBhairavamKshetrpaalam ||

Sadgurudev has not only told the various dimensions of Bhairav Upasana but also made many sadhaks competent in them. He used to say that before entering into sadhna field, every sadhak should necessarily do Bhairav Sadhna because it not only gets rid of obstacles in sadhna but also provides the blessings and grace of Lord Bhairav.

Reason for describing Lord Bhairav in alphabetical form is only this that as compared to other god, he is present everywhere in universe. The way words can’t be bound in any bondage, in the same manner Bhairav also cannot tolerate any obstacle and destroy it and provides security to sadhak.
This power of him is described by sadhak in various forms and attained by sadhak after doing sadhna and get rid of pain and troubles of life.
In fact, Bhairav sadhna is sadhna of Lord Shiva only because Bhairav is form of Lord Shiva only, it is his dancing form. Bhairav is also very innocent like Shiva. On one hand, his highly intense form can cause devastation within a second and on other hand, he can provide devotee all the things.
But still, in society people shiver by listening to name of Bhairav, they connect his name with Mantra, Tantra and black magic. To get rid of these misconceptions, Gurudev published book named “Bhairav Sadhna” so that people can know the truth and get the benefits…
One sadhna of so many sadhnas of Bhairav is
Maharishi Kaalagni Rudra Praneet “Mahakaal Batuk Bhairav” sadhna. The speciality of this sadhna is that it is sadhna of Batuk form of intense form of Lord Mahakaal by which sadhak experiences intensity along with politeness and it uproots his scarcities of life, all visible or hidden enemies. This one day sadhna procedure can solve the problems of poverty, hidden enemies, debt and makes possible fulfilment of desire and attainment of grace of Lord Bhairav. Most of the times, we cannot feel the intensity of procedure till the time we do not do it. Do this procedure and tell me the results.
This procedure needs to be done on midnight of Sunday. Sadhak should take bath, wear yellow clothes and sit on aasan facing south direction. Do panchopchar poojan of Sadgurudev and Lord Ganpati and chant their mantra according to your capacity. Thereafter spread one yellow cloth on Baajot in front of you. Make above-mentioned yantra on it using mixture of lampblack and vermillion. Make a heap of black sesame in middle of yantra and ignite a four-wicked lamp on it. Do panchopchar poojan of lamp. In poojan Naivedya of Udad (black gram) Pakode or Bade and curd should be offered. Lilly flowers or red coloured flowers should be offered. Now take Sankalp (resolution) for fulfilment of desire. Thereafter do the Viniyog procedure.
Asya Mahakaal Vatuk Bhairav Mantrasya Kaalagni Rudra Rishih Anushtup Chand Aapduddharak Dev Batukeshwar Devta Hreem Beejam Bhairavi Vallabh Shaktih Dandpaani Keelak Sarvabheesht Praptyarthe Samastaapannivaaranaarthe Jape Viniyogah        
Now perform Nyaas procedure
RISHYAADI NYAS-
Kaalagni Rudra Rishye Namah Shirse
Anushtup Chandse Namah Mukhe
Aapduddharak Dev Batukeshwar Devtaaye Namah Hridaye 
Hreem Beejaay Namah Guhyo
Bhairavi Vallabh Shaktye Namah Paadyo
Sarvabheesht Praptyarthe Samastaapannivaaranaarthe Jape Viniyogaay Namah Sarvaange

KAR NYAS
 HRAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
HREEM TARJANIBHYAAM NAMAH
HROOM MADHYMABHYAAM NAMAH
HRAIM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
HRAUM KANISHTKABHYAAM NAMAH
HRAH KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH

ANG NYAS
HRAAM HRIDYAAY NAMAH
HREEM SHIRSE SWAHA
HROOM SHIKHAYAI VASHAT
HRAIM KAVACHHAAY HUM
HRAUM NAITRTRYAAY VAUSHAT
HRAH ASTRAAY PHAT

Now take vermillion-mixed rice in hand and recite below mantra 11 times and meditate. Offer the rice in front of lamp.
Neel Jeemoot Sankaasho Jatilo Rakt Lochanah
Danshtra Karaal Vadnah Sarp Yagyopveetvaan |
Danshtraayudhaalankritasch Kapaal Strag Vibhushitah
Hast Nyast Kireeteeko Bhasm Bhushit Vigrahah ||
After it chant 11 rounds of below mantra by Rudraksh, Moonga or black agate rosary.
Om hreengvatukaaykshroumkshroumaapduddhaarnaaykurukuruvatukaayhreengvatukaay swaha ||
After completion of procedure, on next day keep Naivedya, yellow cloth and lamp in any uninhabited place. Sprinkle water on all its 4 sides (making a circle in process), pray and return back. Sadhak should not look back.
This procedure is self-experienced. Do share the experiences after doing it. I have not mentioned the experiences since experience of each person differs from other based on their proportion of elements in body.
“Nikhil Pranaam”
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जय सगुरुदेव,
यं यं यं यक्ष रूपम दशदिशीवदनं भूमिकम्पयमानं |
सं सं सं संहारमूर्ती शुभमुकुट जटाशेखरं चंद्रबिम्बम ||
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुख चौर्ध्वरोयम करालं,
पं पं पं पापनाशम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ||

सदगुरुदेव ने भैरव उपासना के अनेक आयाम न केवल बताए हैं अपितु अनेक साधकों को इसमें निपुण भी किया है उनका कहना था कि प्रत्येक साधक को साधना क्षेत्र में उतरने से पहले भैरव साधना अवश्य कारण चाहिए, क्योंकि इससे ना केवल साधना में आने वाले विघ्न दूर होते हैं बल्कि भगवान भैरव कि कृपा भी प्राप्त होती है.

भगवान भैरव को शब्दमय रूप में वर्णित करने का कारण सिर्फ इतना है कि अन्य देव कि अपेक्षा पूरे ब्रहांड में सर्वत्र विद्दमान हैं, जिस प्रकार शब्द को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं बाँधा जा सकता उसी प्रकार भैरव भी किसी भी विघ्न या बाधा को सहन नहीं कर पाते और उसे विध्वंश कर साधक को पूर्ण अभय प्रदान करते हैं,
उनकी इसी शक्ति को साधक अनेक रूपों वर्णित कर साधनाओं के द्वारा प्राप्त कर अपने जीवन के दुःख और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं,
वस्तुतः भैरव साधना भगवान शिव कि ही साधना है क्योंकि भैरव तो शिव का ही स्वरुप है उनका ही एक नर्तनशील स्वरुप. भैरव भी शिव की ही तरह अत्यन्त भोले हैं, एक तरफ अत्यधिक प्रचंड स्वरूप जो पल भर में प्रलय ला दे और एक तरफ इतने दयालु की आपने भक्त को सब कुछ दे डाले,
इसके बाद भी समाज में भैरव के नाम का इतना भय कि नाम सुनकर ही लोग काँप जाते हैं, उससे तंत्र मन्त्र या जादू टोने से जोड़ने लगते हैं, गुरुदेव ने इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने के लिए "भैरव् साधना" नामक पुस्तक भी प्रकाशित की ताकि लोग इसकी सत्यता को समझें और लाभान्वित हों सकें......
भैरव की उन अनेक साधनाओं में एक साधना है
महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना. इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस १ दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.
   ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ.सदगुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.
अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः  
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.
ऋष्यादिन्यास –
कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे

करन्यास -
 ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
 ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
 ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
 ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमः
 ह्रौं  कनिष्टकाभ्यां नमः
 ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास-  
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्

अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.
नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||
इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||
Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||
 प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे  दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
  ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का नुभव दूसरे  से प्रथक होता है. सदगुरुदेव आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करती हूँ.
निखिल प्रणाम”
 ****रजनी निखिल****

****NPRU****










Wednesday, February 27, 2013

PARAM DURLABH SOUBHAGYA VAASTU KRITYA MAHAYANTRA





StriputraadiBhogsauravyjananDharmaarthkaampradam |
JantnaamynamSukhaspadammidamSheetaambudadyarmayham ||
VaapidevgrahaadipunymakhilamGehatsmutpadyte |
GehPoorvmushantitenVibudhaahshrivisvmarmadyah ||
It is home which provides pleasure , wealth and Kaama to females,sons etc. It is home which secures us from heat, cold and wind. As per rules, constructor of home gets holy fruits of construction. Therefore, architects of God Vsihwakarma have given directions to first of all construct home only.
This sloka is enough to make us understand the importance of home. But in today’s time, is it possible to construct fault-free home? And in this context, It is Vaastu science which we have been familiar with.
Let us see first of all that what type of problems a persons can suffer when they reside in home afflicted with Vaastu defects.
·      Prevalence of impact of Negative energy at home all the time.

·      Continuous deterioration of mutual affection between members of family and creation of tense environment at home.
·   Emergence of continuous obstacles in financial progress of family members

·     Half-hearted mind to do sadhna and continous practice of leaving sadhna in between.
·      Occurance of untimely death in family.
·      Non-compliance of family members towards moral and social rules.
·    Obstacles in Marriage of capable members of family. 
·      Tension in mutual relation between husband and wife.
·      Continuous persistance of diseases.
·      Continuous inclination towards deplorable acts like suicide.
·      Joy-less atttitude towards life.
·      Continuous state of mental depression.
·      not getting desired results even after doing sadhna.
Seen in this manner, root of every problem lies somewhere is Vaastu defect only. And not only this, one important fact is that as a result of it, planetary obstacles are created automatically. Reason is clear that our residing place is also a place for all the nine planets. It is similar to residing of nine planets inside our body. Therefore, planetary obstacle become one of the cause.
Living in a defective house results into imbalance of state of five great elements, which are base of entire universe. When there will be imbalance in them, then how can auspiciousness arise? How you will be able to do sadhna.?
For doing sadhna, desired environment is a neccesity, how one can do sadhna without it?  And let us assume that even if you have gained sadhna energy after doing sadhna with firm determination, then it will get destroyed by the negative energy of that environment and you will get inferior results.
It is well-thought out and scientific thought that environment has a lot of impact on will-power of person.
You can know from some basic facts stated above that whether your house is afflicted with Vastu defects or not.....
And when we talk about horoscope, then like horoscope of a person, horoscope of his dwelling place can also be made. It can be known from horoscope about the defects. It is well-known fact that fourth house is indicator of immovable property and residing place of person. Residing of planets like Rahu, Saturn and Mars or their related yogs indicates taht person can face problem in this regard. If not this, many inauspicious states can arise as per current circumstances.
And this state can’t be called auspicious at all.
One person spends all his savings of life and makes a house for himself and so many times, with his entry at home , such combination of constellation is created which results into one problem after the other. Person runs from one astrologer to other but he is unable to get satisfactory response. If he gets it too, then expenditure he has to incur is unimaginable.
Now some easy remedies have come like use of Feng Shui , Though everyone has the right to use science as per his own choice by which he gets favorableness. This science has proved to be much more useful in those countries from which it has originated. Reasons for it are environment of that country and other geographical reasons like.......Himalayas lies north of us so the importance which north direction has for us , will it remain the same for China or other countires  which lie on other side of Himalayas ??  
So what should be the solution ??
Renovation procedures advocated by some of the Vastu Shashtri have been disapproved by Sadgurudev Ji as these procedures are not appropriate after construction of building. Moreover, the money incured in such methods is so much that a normal middle class family could not think of spending it. It is also not possible for those residing in flats since they cannot carry out renovation on their own discretion.
Then one easy and normal way which has been told by Sadgurudev ji is establishment of“ Asht Samskarit Parad Shivling”which will be useful for you upon doing necessary Tantric and other procedures.But it is not possible for every person to have Shivling since it is very costly.
So shall the person sit idle feeling dejected??
It is  not like this. Looking into these complexities, Sadgurudev told a very special procedure “ Vaastu Saubhagya Kritya Sadhna” in 1991 Shivraatri . Making of yantra for this sadhna is cumbersome but in order to full show its effect , it is necessary to offer oblation of particular herbs and mixture of other valuable articles . Along with it, chanting of mantra also needs to be done. Lokking at all these factors, each yantra requires an expenditure of 22-25 thousand.
Just recently me, Arif Bhai Ji and Raghu Bhai ji were mutually discussing that we should make available one such yantra to brothers and sisters which is just not a piece of copper rather when they take the yantra in the hand, they can feel the energy themselves and witness its impact on their materialistic and spiritual lives. And we all decided that we should make available amazing Vaastu Saubhagya Kritya Yantra to brothers and sisters and we will bear all the necessary expenditure. If establishment of Lakshmi is necessary, then good-luck is also one form of Lakshmi and till the time, auspiciousness is not created, all other states of life lose their meaning. When we are talking about good-luck then it would be meaningful only when it is for all the family rather than for any person. Otherwise due to cumbersome law of karmas, luck of any person is bound to be affected by ill-fortune of his relatives and family members. Family is a unit and it is necessary for all its parts and elements to be lucky then only life has a meaning and they will reap the fruits of sadhna.
Therefore it is decided that this yantra needs to be made, but it is necessary that while making the yantra, Sankalp should be taken by particular person for entire family and entire mantric and tantric procedures and very special oblation procedures accompanying them should be done completely.
We will do all creation process and accompanying procedures like energization etc. but those who will have this yantra, they have to do the prayog on this yantra on 21 April 2013. This procedure needs to be done in morning and will only take maximum time of 3 hours. It is a one-day procedure. You all are very much aware of significance of 21 April. Nothing is more important and amazing for disciple than this day. This time it is “Kaamda Ekadashi Divas” on 21st April. Its name Samast Manokaamna Poorti Divas (day for fulfillment of all the wishes) is sufficient to make you understand the meaning.  That too, it falls on Shukl Paksha where light of moon goes on increasing day by day. In this manner, this characteristic of Shukl paksha has been added to this day. At this time in April sun (indicator of soul, all the progress, most significant among nine planets and capable of controlling all the planets) will be in their exalted zodiac sign. Mars, indicator of building and land, will be in his own zodiac sign which is very auspicious.
If these moments are utilized and three hour procedure is done then sadhna gets completed for whole family. And this Saubhagya Vaastu Kritya Yantra becomes completely fruitful.
This procedure can be done only on this day.
And when we are making available this yantra free of cost to you then there are some rules too.
·      First of all you should send mail to nikhilalchemy2@yahoo.comand mention “For Saubhagya Vastu Kritya Yantra” clearly in subject..
·      You should also write your complete name and address along with pin code in that e-mail.
·      Time limit for it has been fixed as 1st April 2013. Any request after this date for getting this yantra will not be accepted at any cost.
·      This yantra is completely free of cost. For it, nothing will be charged from you. It is gift from NPRU family to all you dear ones.
·     this yantra will be sent by us through registered post. Necessary expenses will be borne by us. If someone wants to get this yantra through courier, he/she would have to pay courier charges (It is but natural)
·     So much of expenses is incurred in making/energizing and doing mantric, oblation and tantric procedures on it that it will not be sent again at any cost.


Friends, it is all due to your tremendous affection and cooperation that we can make such things possible.
And in last it is our polite request that if any excessively-intelligent person has doubt about this yantra then please do not contact us for this yantra. It would be more appropriate if he gets it from some other place of his liking.


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स्त्रीपुत्रादि  भोगसौरव्यजनन धर्म्मार्थकामप्रदम |
जन्तनामयनम  सुखास्पदममिदं  शीताम्बुदाद्यर्मायहम ||
वापिदेवगृहादिपुण्यमखिलं  गेहात्स्मुत्पद्य्ते |
गेह  पूर्वमुशन्तितेन  विबुधाःश्रीविस्वर्म्मादयः ||
स्त्री, पुत्र आदि के भोग,सुख,धर्म,अर्थ,काम आदि देने वाला प्राणियों का सुखस्थल,सर्दी,गर्मी,वायु से  रक्षा करने वाला गृह ही,नियमानुसार गृह निर्माणकर्ता  को  देवस्थान और बाबड़ी आदि निर्माण का भी पुण्य प्राप्त होता हैं.अतः विश्वकर्मा आदि देव शिल्पियों ने सर्वप्रथम गृह निर्माण का ही निर्देश  दिया  हैं.
यह श्लोक ही अपने आप में गृह की महत्वता को समझाने लिए पर्याप्त हैं पर आज के समय में एक पूर्ण रूप से दोष मुक्त गृह का निर्माण क्या हो सकता हैं? ,और इस परिपेक्ष में जिस विज्ञानं से हम परिचित हुए हैं वह हैं वास्तु विज्ञान .
पहले  हम देखते हैं की  की वास्तु दोषः युक्त निवास  में रहने वाले व्यक्तियों पर  किन किन दोष का  आरोपण संभव हैं .
·      हर समय घर में ऋणात्मक ऊर्जा का कहीं जयादा असर व्यापत होना.
·      परिवार के सदस्यों में आपसी स्नेह का  लगातार कम होते जाना और तनाब युक्त वातावरण का हमेशा बने  रहना.
·      पारिवार के सदस्यों की आर्थिक उन्नति में लगातार वाधा आना.
·      साधना करने के लिए आधा अधूरा मन और साधना  को बीच में ही छोड़ देने की प्रवृत्ति का  लगतार  होना.
·      परिवार  में असमय मृत्यु  हो जाना.
·      परिवार  के सदस्यों का नैतिक और सममजिक नियम का पालन नहीं करना.
·      परिवार में योग्य सदस्यों के  विवाह में वाधा.
·      पति पत्नी के आपसी व्यक्तिगत सबंधो में तनाव.
·      लगातार बीमारियों का बने रहना.
·      आत्महत्या जैसी  हीन प्रवृतियों की और लगातार  झुकाव.
·      जीवन के प्रति उत्साह हीन,उमंगरहित दृष्टी कोण. 
·      मानसिक अवसाद का लगातार बने रहना.      
·      साधना करने पर भी यथोचित मनोकुल परिणाम  का न मिलना.  
इस तरह से  देखा जाए  तो सभी समस्याओं  के मूल में कहीं न कहीं यह वास्तु दोष होता ही हैं.और यही ही नहीं,एक ओर महत्वपूर्ण तथ्य हैं की इस कारण स्वत ही ग्रह वाधाएं भी निर्माणित होने लगती हैं कारण स्पस्ट हैं कि हमारे आवास स्थान में भी समस्त नवग्रहों का आवास भी तो माना जाता हैं ,यह बिलकुल वैसा ही हैं जैसा की हमारे शरीर में नवग्रह का वास होना.अतः ग्रह वाधा भी एक कारण बन जाता हैं.
दोष पूर्ण घर में रहने  पर स्वत ही पञ्च महाभुतो की स्थिति में असंतुलन  होने लगता हैं और जो सारे सृष्टी का आधार हैं जब उनमे ही असंतुलन होगा तो आप ही सोचें की  फिर कहाँ से सौभाग्य आएगा? आप कैसे  साधना कर  पायेंगे.?
साधना करने के लिए तो एक मनोकुल वातावरण होना भी तो आवश्यक हैं,बिना उसके साधना करना कैसे  संभव होगा?,और मान लीजिये दृढ निश्चय से संपन्न कर ली भी यी तो भीउनको जो साधनात्मक  उर्जा प्राप्त हुयी भी हैं तो उस  वातावरण की ऋणात्मक ऊर्जा से नष्ट  हो जाएगी और  बहुत कम ही आपको परिणाम मिलेगा.
यह एक  सुविचारित और वैज्ञानिक दृष्टी से युक्त कथन  हैं की वातावरण व्यक्ति के मनोबल से कहीं जयादा प्रभाव करता हैं.
ऊपर लिखे  कुछ मूलभुत तथ्यों  से आप जान सकते हैं की घर वास्तु दृष्टी से  दोषयुक्त हैं या नहीं ..
और जहाँ तक जन्म कुंडली की बातआती हैं तो वहां भी  किसी व्यक्ति की तरह, उस आवास स्थान की भी कुंडली बनायीं जा सकती हैं.उस  पर से भी कितना दोष हैं यह पता लगाया जा सकता हैं, एक सामान्य सी बात हैं की चतुर्थ भाव व्यक्ति की अचल संपत्ति  या उसके आवास का भी परिचायक  होता हैं  हैं ,वहां पर राहू ,शनि,मंगल  जैसे  ग्रहों का  स्थित होना या उनकी दृष्टी पढ़ना या उनका योग  होना भी इस बात का परिचायक हैं की इस ओर  से व्यक्ति को वाधाये होगी ही . यह नहीं तो गोचर के काल में भी अनेको अशुभता वाली स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं .
और यह अवस्था शुभ तो नहीं कहीं  जा सकती हैं .
एक व्यक्ति जीवन भर की पूंजी संचित करके अपने लिए एक आवास का निर्माण करवाता हैं और कई कई बार तो उनके घर प्रवेश या  कुछ ऐसे नक्षत्रो का योग भी हो जाता हैं जिस कारण उनके लिए  एक से एक बढ़कर समस्याए उत्पन्न होती रहती हैं  वह एक ज्योतिष से दुसरे ज्योतिष के  पास  भागता रहता  हैं पर संतोष जनक हल भी कहाँ उसे मिलता हैं .अगर मिले भी तो इतना व्यय करना पड़ता हैं की.
अब इसका एक सरल सा उपाय सामने आय हैं की फेंगसुई जैसे  विधाओ का प्रयोग ,यूँ तो  हर किसी को अपने  हिसाब से  उसे  जिसमे  अनुकूलता मिले उस विज्ञानं का  प्रयोग करना ही चाहिये, यह विज्ञानं बहुत ज्यादा उपयोगी उन देशो में  हुआ हैं, जहाँ से यह आया हैं कारण उन देश की जलवायु और अन्य भौगोलिक कारण ..जैसे  हमारे लिए  हिमालय उत्तर में हैं तो हमारे लिए  उत्तर दिशा का  जो महत्त्व हैं वह क्या चीन देश  या उन देशों में  भी होगा जो  हिमालय के दूसरी और  हैं.??
पर निराकरण के लिए किया क्या जाए?? 
एक तरफ  तो वास्तु शास्त्रियों द्वारा जो तोड़ फोड़ की विधा  अपनाई जाती हैं  उसका तो सदगुरुदेव जी भी अपनी असहमति दे चुके हैं की यह भवन  बनबाने  के बाद उचित नहीं हैं.और वैसे  भी  इन उपायों में  जो धन राशि लगती हैं  वह इतनी अधिक होती हैं की एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार उस व्यवय को वहन करने की सोच भी नहीं सकता हैं .वहीँ फ्लेट में  रहने वालों के लिए  तो यह भी संभव नही हैं की वह तोड़फोड़ अपनी मर्जी से कर सकें.
तब एक सामान्य सा सरल  सा उपाय सा आमने आता हैं  जिसके  बारे में  सदगुरुदेव जी ने भी बताया  हैं वह हैं एक  “अष्ट संस्कारित  पारद  शिवलिंग” का  स्थापन जो की आवश्यक समस्त तांत्रिकऔर  अन्य उपयोगी क्रियाओं द्वारा आपके लिए उपयोगी हो सकें पर इस पारद  शिवलिंग  पर इतनी अधिक लागत  आ जाती हैं की यह भी संभव नहीं हैं कि हर व्यक्ति इसे  प्राप्त  भी कर सकें .
तो अब क्या व्यक्ति सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठा ही रहे??
ऐसा नहीं हैं सदगुरुदेव  जी ने इन  विषमताओ को देखकर १९९१ की नवरात्रि में  एक अति विशिष्ट प्रयोग  जिसे  “वास्तु सौभाग्य कृत्या साधना”  के बारे में  बताया  और इस साधना के यन्त्र का निर्माण तो कठिन हैं ही पर इसके पूर्ण रूप से फलीभुत होने के लिए जो भी आवश्यक जड़ी बूटियों के साथ अन्य बहुमूल्य पदार्थो सम्मिश्रण का हवन भी तो करना पड़ता हैं,इसके  साथ आवश्यक मंत्र जप करना पड़ता हैं.इस सभी को देखा जाए तो  उस पर एक यन्त्र की लागत में  22  से  25  हज़ार का का खर्च बैठता हैं .
अभी हाल  ही में आरिफ  भाई जी और मेरे साथ रघु भाई जी भी इसी  बात पर, आपसी विचार विमर्श कर रहे थे, कि कैसे कोई एक ऐसा यन्त्र अपने भाई बहिनों को उपलब्ध कराया जाए , जो सिर्फ उस  यन्त्र उपलब्ध कराने के नाम पर कोई ताम्बे का टुकड़ा नहीं बल्कि जब वह उसे  अपने हाथ में लें  तो उसकी उर्जा स्वयम भी अनुभव कर सकें, अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में असर स्वयम भी अनुभूत कर सकें.तब तो अर्थ हैं.और हम सभी ने निश्चय किया की क्यों न इस अद्भुत वास्तु सौभाग्य कृत्या यन्त्र को आपने  भाई बहिनों के लिए उपलब्ध कराया जाए,और इस हेतु जितना भी व्यव हो  वह हम ही वहन करें  क्योंकि लक्ष्मी का स्थापन होना अगर जरुरी हैं तो सौभाग्य  भी तो लक्ष्मी का ही एक  रूप हैं  और जब तक सौभाग्य  ही न  बने,   तब क्या  अर्थ  रखता हैं जीवन की अन्य अवस्था   का???  पर  जब सौभाग्य की बात हो रही हो, तब किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि उसके सारे परिवार के लिए  ही कोई ऐसा विधान हो तब न अर्थ हैं अन्यथा जटिल कार्मिक नियमो के कारण  किसी एक का भाग्य भी किसी अन्य उसके निकट पारिवार जनो के खराब भाग्य के कारण भी तो प्रभावित होगा ही.क्योंकि पारिवार तो एक इकाई हैं  तो उसके सारे भागों का ,सारे अंगो का  सौभाग्य युक्त  होना भी आवश्यक हैं,तभी तो जीवन का एक अर्थ हैं और फिर साधना असर उन्हें मिलेगा .
अतः यह जब निश्चित हो गया  की इस यन्त्र का निर्माण करना हैं,पर इस यन्त्र के निर्माण में यह आवश्यक हैं की  व्यक्ति विशेष के नाम से उसके पारिवार के लिए संकल्पित करके इसकी समस्त  तांत्रिक और मान्त्रिक क्रियाओं के साथ अति विशिष्ट हवानात्मक जो भी प्रक्रिया हैं वह भी पूर्णता के साथ  समपन्न की जाए .
यह भाग अर्थात यन्त्र का पूर्णता के  साथ समष्ट क्रियाओं युक्त निर्माण  और प्राण प्रतिष्ठा आदि कार्य तो हम कर लेंगे पर  जिसके पास यह यन्त्र  होगा  उसे  21  अप्रैल 2013  को ही यह  इस  यन्त्र पर  प्रयोग भी करना हैं और यह प्रयोग प्रातः काल ही होगा .इसमें  मात्र  तीन घंटे  का  आधिकतम समय लगेगा.यह सिर्फ एक दिवसीय प्रयोग हैं. २१  अप्रैल की महत्वता हम सभी जानते   हैं ही .इस जैसा दुर्लभ  और अति महत्वपूर्ण समय,  एक शिष्य के लिए  फिर कहाँ . इस बार  २१  अप्रैल को “कामदा  एकादशी दिवस” हैं,  इसका नाम ही आपको इसका अर्थ  समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि समस्त मनोकामना पूर्ति दिवस . वह भी शुक्ल पक्ष  अर्थात जिसमे चन्द्र कलाओं में लगातार बढ़ोत्तरी  होती हैं, इस तरह से  शुक्ल पक्ष का यह गुण भी  इस  दिवस पर संगुफित  हो गया .अप्रेल मॉस में इस  समय, सूर्य  जो आत्मा  का प्रतीक हैं, जो  जीवन में आगे बढ़ने का प्रतीक है जो  नवग्रहों के प्राण भी कहे जा सकते हैं, जो नव ग्रहों को नियंत्रित भी करने में समर्थ हैं वह अपनी  उच्च  राशि में होंगे.और भवन, भूमि के प्रतीक मंगल ग्रह का भी अपनी ही राशि में  होना अत्यंत  हो सौभाग्यदायक हैं .
अगर इन क्षणों का प्रयोग करके मात्र  तीन घटें का यह एक दिवसीय प्रयोग संपन्न कर लिया जाए तो  आपके परिवार के लिए  यह साधना पूरी होती हैं  और यह सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र पूर्ण फलदायी  हो जाता  हैं .
इस दिन के अलावा कोई और दिवस  इस प्रयोग के  लिए नहीं हैं .
और जब हम यह यन्त्र निशुक्ल उपलब्ध करवा  रहे हैं तो  कुछ नियम भी हैं .
·      पहला  तो यह की इस हेतु आपको इ मेल  nikhilalchemy2@yahoo.com  पर आप भेज दें और subject /विषय  में  स्पष्ट लिखे की “  सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र हेतु “.
·      आप अपना पूरा नाम  और पता  पिन कोड के साथ उसी  इ मेल में भेज दें .
·      हमने इस हेतु जो अंतिम समय सीमा रखी हैं  वह हैं 1 अप्रैल 2013.इस  दिन के बाद  आने  वाली किसी भी  प्रकार की  कोई भी request इस  यन्त्र के लिए किसी भी हाल में  स्वीकार्य नहीं होगी .
·      यह यन्त्र पूर्णतया  निशुल्क हैं इसके लिए आपसे  भी किसी भी प्रकार  का कोई भी  शुल्क नहीं लिया जा रहा  हैं यह NPRU परिवार की ओर से आप सभी स्नेहियों को  उपहार  स्वरुप  हैं.
·      हमारे द्वारा  इसे  रजिस्टर्ड  डॉक से भेजा  जायेगा ,यह सारा  खर्च  भी हम वहन  करेंगे .और अगर किसी को कोरियर से यह यंत्र अपने पते पर  मगवाना चाहता हैं तो उस हेतु आपको कोरियर चार्ज लगेगा .(यह स्वाभाविक सी  बात हैं )  
·      इस यन्त्र के निर्माण/प्राण प्रतिष्ठा /और हवानात्मक,मान्त्रिक तांत्रिक प्रक्रियाओं में इतना अधिक व्यव आता हैं की इसे किसी  भी हालत में दुबारा नहीं भेजा  जायेगा.
मित्रो, आपका  स्नेह और सहयोग हमारे इस  परिवार के प्रति इतना अधिक हैं ,उस स्नेह की उष्मा के कारण, हम भी यह संभव कर पाते हैं .
और अंत में इतना सविनय निवेदन हैं ही. किसी अति बुद्धिमान को इस यन्त्र के बारे में  कोई संदेह  हो तो वह कृपया इसे न मगवाये .वह अन्यत्र अपने हिसाब से योग्य जगह से प्राप्त कर लें तो उनके लिए  लिए भी कहीं ज्यादा उचित रहेगा .
****NPRU****