Tuesday, May 31, 2011

Importanat notice regarding workshop


प्रिय मित्रों,
आप सभीके साथ कुछ बाते  हम शमशान कार्यशाला से सम्बन्ध  में  रखना  चाहते हैं , हमारे जानकारी में यह तथ्य  आया हैं की  इन कार्यशाला ओं के विषय   में कुछ भ्रान्तियां  फैल  रही हैं, कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं की  हम बिना  गुरुदेव त्रिमुर्तिजी से अनुमति मिले  ही यह आयोजन करने जा रहे हैं.

हमने अपने पहले के पोस्ट में यह  पहले ही  बता दिया था, की हम प्रयास रत हैं की इस कार्यशाला को   आयोजित करने के लिए हमें  पूज्य गुरुदेव त्रिमूर्ति जी से अनुमति मिलेगी  तभी होगीतो मित्रों , यदि अनुमति नहीं मिलेगी तो यह आयोजित भी नहीं की जाएगीइसके बारे में कोई दूसरे बिचार हैं ही नहीं.

 क्या हमने पहले आयोजित की  पारद कार्यशालाओं  में  अनुमति  ली थी ? 

 क्यों नहीं  हमने जोधपुर जा कर पूज्य  गुरुदेव श्री कैलाशचन्द्र जी से हम सभी   कार्यशाला  प्रारंभ होने के पहले  उनसे उनके निवास स्थान पर  गए थे , उनसे दिव्य आशीर्वाद रूपी दीक्षा  भी हम सभी ने उनसे प्राप्त की थी, उस कार्यशाला  में भाग लेने वाले अधिकांश  व्यक्तियो ने श्री गुरुदेव जी से  रशेश्वरी  दीक्षा व अन्य दीक्षा  भी  इस सन्दर्भ मैं प्राप्त की थी, यही नहीं हमने कार्यशाला समाप्त होने के   उपरान्त हम सभी पुनः श्री कैलाश गुरुदेव  जी के चरण कमलो मेंअपनी कृतज्ञता व्यक्त करने साथ ही  साथ   की हम हम सभी पर अपना  आशिर्वाद वे सदैव   बनाये रखे की प्रार्थना  करने गए थे , ओर पूज्य पाद श्रीकैलाश गुरुदेव जी ने अपनी असीम कृपा से हमें आशिर्वाद दिया भी.

ओर उस कार्यशाला  के द्वितीय  चरण जब आयोजित हुआ तब भी हम पूज्य पाद श्रीकैलाश गुरुदेवजी के लगातार संपर्क में रहे हैंऔर  उनकी पूरी  जानकारी  ओर आज्ञा से ही हमने दूसरी कार्यशाला   का आयोजन किया , पर इस बात की सत्यता आप सभी कैसे मानेगेप्रथमतः  पूज्य गुरुदेव  श्रीकैलाश चन्द्र श्रीमाली जी   से स्वयं  आप जान सकते हैं . ( में यहाँ क्षमा  चाहूँगा कहने के लिए , की हमारे पास  कोई लिखित प्रमाण नहीं हैं, क्या अब हमें  गुरु वाकया की सत्यता आप मेंसे कुछ को दिखने के लिए  लिखित प्रमाण की  आवश्यकता  होगी , ओर मन लिया जाये कभी यह संभव भी होगया ,तो क्या हर बार हम ये करेंगे ,संभव भी नहीं हैं .,क्योंकि कुछ लोगों को विस्वास नहीं  हैं ,हमें अपने गुरुदेव त्रिमूर्ति जी / सदगुरुदेव जी जी के विस्वास पर भरोषा हैं ही.फिर  जब मंत्र मूलं गुरु वाक्य कहाँ गया हैं तब ये  हम ये कैसे कर सकते हैं .)

दूसरी बात यह हैं की हमारेसाथ भाग लिए हुए सभी गुरुभाई स्वयं इस तथ्य के  प्रमाण हैं .

अभी कामख्या कार्यशाला  के पहले हम सभी लगभग २५/३० व्यक्ति(गुरु भाई ) दिल्ली गुरुधाम में पूज्य पाद श्रीकैलाश  गुरुदेव जी से मिलने गए थे, ओर हम सभीने अपनी ओर से एक पारद शिवलिंग श्री गुरुदेव  को समर्पित किया .ओर उनसे अपने कार्यों के लिए सदैव  हमें आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की , पूज्य पाद  जी ने सभी  व्यक्तियोंके सामने हमसभी को गुरु कार्य करने की ओर इस पथ परचलने की आज्ञा  ओर आशिर्वाद्प्रदान किया  था.

आप सभी के लिए हम यहाँ सामने रखना  चाहते हैं , सदगुरुदेव जी के आदेशानुसार(   सम्राटाभिषेक दीक्षा शिविर  )   ओर उससे भी पहले भी हम सभी,  तीनो पूज्य पाद गुरुदेव जी  से लगतार दीक्षा प्राप्त करते रहे हैं ओर आज भी करते आये हैं .हजारों साधकों के साथ हमने अपने प्राणाधार सदगुरुदेव जीको वचन दिया था  की जैसे सदगुरुदेव जी का आदेश हैं  तीनो गुरुदेवजी कीआज्ञा पालन हमहमेशा करेंगे ओर इन तीन गुरुदेव जी अतिरिक्त कोई भी  दीक्षा देने का अधिकारी नहीं होगा).



कृपया आजतक से सभी पोस्ट देंखें हमने तो हरसंभव  जगह  हमने सदगुरुदेव जी /पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमूर्ति  जी का श्री नाम दिया ही हैं, ओर किसी भी साधना  या यन्त्र माला, ओर किसी भी दीक्षा  के लिए हमेशा जोधपुर गुरुधाम में ही  सम्पर्क करने को कहा हैं.  
कार्यशाला  में तो हम एक साथ बैठ कर जो भी सदगुरुदेव जी से हमने  सीखा हैं उस ज्ञान का विचारविमर्श करना ही हैं  तो हैंकोई स्वयं गुरु बनना   या इस जैसी मिलती कोई बात नहीं हैं , अब हमारेकथन की सत्यता आप जोभी हमारे गुरु भाई इन में भाग लिए  हुए हैं   उनसे प्राप्त करसकते हैं  . किसी भी , कहीं भी , हमने अपने शिष्य धर्मं को नहीं छोड़ा हैंन ही कभी  अपनी मर्यादा को पार किया. सदैव  सदगुरुदेव  जी / पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमुर्तिजी  के श्रे चरणों में नतमस्तक रहे हैं. ओर रहेंगे भी.
 क्या हम यह ज्ञान (चाहे वह पारद  विज्ञानं  हो , या सूर्य विज्ञानं  या  सम्मोहन विज्ञानं या अन्य  हो अपने गुरु भाइयों से गुरु भाई बन कर भी बाते करना  मानो एक अपराध जैसाहोगया हैंक्या .)  क्या  अपने गुरु भैयोंको इसके बारेमें  एक शिष्य/गुरु भाइयों  के रूप में बतलाना भी  क्या एक अपराध जैसा हैं ऐसा कुछ गुरु भाई /बहिनों को लग रहा  हैं .
ब्लॉग पर हमने हमेशा ही लिखा हैंकि इस सन्दर्भ में/ इस दीक्षा ने बारे  में / या मार्ग दर्शन  के लिए  सदैव गुरुदेव त्रिमुर्तिजी से  ही सम्पर्क करे . हमनेआज  अपना पता तक भी नहीं दिया हैं, न केबल ब्लॉग बल्कि आप तंत्र कौमुदी के किसी भी पेज  पर देख ले . कहाँ हमने कोई उल्लघन किया हैं.
हम इस बात को आपके सामने रखना  चाहते हैं की ,यदि गुरुधाम में पारद कार्यशाला  होना प्रारंभ  यदि होजये  तब हम भी इस कार्यशाला का आयोजन रोक देंगे, ठींक यही बात हैं सूर्य सिद्धिन्ता ,और अन्य कार्यशाला   की भी हैं  हम केबल वह विषय ले रहे हैं जिसके बारे में आज कोई क्यों नहीं बात कर रहा हैं  हैं.ओर हम यदि वे विषय लेकर  केबल कार्यशाला आयोजित करते हैं तब  कोई यह अपराध  तो नहीं होगा .और  यदि गुरु धाम  में यह कार्य प्रारंभ होता हैं  तो हमारेलिये यह प्रसन्नता की बात होगी  आज स्वर्ण तंत्र ,alchemy  tantra   तंत्रस्वर्ण सिद्धिजैसी किताबे आज उपलब्ध नहीं हैंतो क्या  ज्ञान को ऐसे हीनष्ट हो जाने दे  आजकोई भी सूर्य विज्ञानपारद विज्ञानं के बारे  में बता ना  नहीं चाहता .

तीनो  गुरुदेव हमारे  लिए एक सामान  पूजनीय हैं यही सदगुरुदेव जीकी आज्ञा थीइसकारण हमने बार बार गुरुदेव त्रिमूर्ति जी शब्दका प्रयोग किया हैं.  हम किसी भी गुरुदेव  से आज्ञा ले कर आये, हमारे लिए तो तीनो ही गुरुदेव आदरणीय हैं ओर सदैव रहेंगे भी.
 अब ओर आगे क्या लिखूं  पूजनीय माताजी जोकि साक्षात् सदगुरुदेव भगवान्  का स्वरुप हैं  उनके श्री चरणों  कमलो में विनम्र प्रार्थना  हैं की हे माँ आप हमें आशीर्वाद दो की हम इसी तरह सदगुरुदेव जी के दिखाए रास्ते  पर  कार्यरत रहे ओर  श्री माँ आपका वरद हस्त सदैव  हमारे  साथ रहे.
अब हम किस किस का  मुख बंद करसकते हैं न ही इतना समय हमारे पास हैं ..अपने सदगुरुदेव जी / पुज्य पाद गुरुदेव त्रिमूर्ति जी के साथ परम पूजनीय  माँ के आशीर्वाद पर , उनके श्री  चरणों की छत्र छ्या तले  हम  तो कार्यशील हैं ही
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priy mitron,
here  we are sharing some information regarding  shamshan sadhana workshop , as we are aware of that there is some misconception spreading among some guru brother /sister like that without seeking permission of  shri Gurudev Trimurti ji we are organizing this shamshan workshop.
 In the previous post we already made it very clear that for this we are trying to get permission , so dear one this workshop only possible when we will get permission from  gurudham if we do not get that, than this workshop will not be organized,  there is no other thought regarding that.
Did we get permission for earlier  workshop organized by us.?
Why not , in the first parad workshop  held at sept-oct 2011, before starting that we all (all the participant ) went to Poojya Gurudev kailash Chandra shrimali ji’s residence. And we all get divine Diksha in this connection, and many of the gurubhai who took part in that workshop taken rasheshwari Diksha from him on that occasion. Not only this even after the last  days of our workshop we gain reached to shri kailash Gurudev ji’s residence. And offer our gratitude and  request him to bless us all and like this always bless  us. and Poojya Gurudev ji did that too very happily.
And the second parad workshop held jan 2011 again we are keep in touch with Gurudev shri kailash Chandra shrimali ji, and with his full knowledge and agya again we started that. But here the question lies how you all can believe on this. ?.in the first place you can get information from Poojya shri kailash Gurudev ji ,( here I am apologies that  mentioning that  we have  not having any written proof. is it that we need any written  form of guru agya just some of you doubted on that . that are we repeating again and again , but we have complete trust of our Gurudev Trimurti ji’s word. And when it is being said that “mantra mulam guru vakya” than how we can do that.)
Secondly all the guru bhai who took part in that is alive example of that ,
Here  just before kamakhya workshop  approx, 25/30 guru brother  gathered in  delhi  gurudham  just to present shri kailash Gurudev ji  a divine parad shivling from all of us side  and ask his blessing for all our work in this connection , and copy of tantra kaumudi to Poojya paad Gurudev ji,  he was very happy and in the th presence of all he  instructed and gave agya to move on this path and his blessing will always be with us.
Here one more  point  we want  to share with you, as per the agya of  Poojya sadgurudevji (in samartabhishek Diksha shivir)and even before that we are  taking divine diksha from  all the three Gurudev ji on many occasion ,. And even  now  too. In amongst the thousand  of sadhak we made promise to our beloved Sadgurudev ji that  we will always  respect and  follow the agya of gurudev Trimurti ji . and he told all of us the no other will be  authorized for giving Diksha  other than Gurudev trimurti ji .)
 Just go through each post , and we have mentioned Sadgurudev ji’s/Poojya Gurudev trimurtiji’s name every possible place, and for any mala, sadhana yantra  / for diksha always clearly mentioned that one should contact  directly to guridham .
 Workshop  is the opportunity where we sit together and share/ discuss the knowledge  what we have got from Sadgurudev ji, here no such a thing a that any one is projecting himself as like guru or other way. you can check the authenticity of our statement  from the person who took part in that workshop, not on a single place, and not on a single time,  we have left our shishy dharama, and never crosses our limit of shsishyata. We always be  always bow down to divine holy feet of Sadgurudev ji. Poojya paad Gurudev trimurtiji so always be.
Think about a minit if knowledge  sharing between our own guru brother on the subject like  parad vigyan, surya vigyan, hypnotism  just as a guru brother , is a crime. It seems that some of guru brother/sister not liking this. We are trying our best so that  this knowledge  still be  available  between our guru brother/sister, what wrong in that, when sharing is just  from guru brother to another guru brother.
In blog we have always been writing that  in realtion to this subject/ for Diksha/ or for direction once should contact  only to Gurudev trimurtiji at jodhpur, even we have not given  address of us(just mention the place)., not only blog but check in any page of tantra kaumudi, we have not done anything wrong.
 For us all the three Gurudev is same and one that’s is the agya of Sadgurudev ji, that’s the reason behind that we always used word Poojya Gurudev trimurtuji,  and if we take permission from any one of them(Poojya Gurudev trimurtiji ) since for us , al the three are same and holy and respectful.
Very important I would like to share Is that, now a days if parad vigyan  shivir organized in  jodhpur by Gurudev trimurtiji   we will stop organizing  parad workshop. Same thing  shamshan sadhana workshop if that thing organized by our gurudev we will stop organizing that,now today book alike swarna tantra, alchemy tantra, swarna siddhi, and pardeshwari  are not available, ifwe are touchingthe subject onwhich no one  wants to say, is it not wrong.
What more we can write, poojyniy mataji, who is just a same form of sadgurudevji, we are praying to her divine lotus feet that o mother bless us that we are continuing do the work on the path  shown by Sadgurudev ji. And mother your blessing will always be with us.
And how many  times we can repeat the same statement, and  very difficult to  satisfy all, and we do not have such a spare time, we have full trust on our sadgurudevji. Poojya paad Gurudev trimurtiji and poojniya mataji’s blessing, and  we are moving ahead on the path under the divine cover of them whose fear to us….


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****NPRU****

Is reading spiritual books really helps?


पहले  धार्मिक  ओर आध्यात्मिक  शब्द का सामान्य सा अंतर समझ ले ,  सामान्यतः  धार्मिक शब्द धर्म  से जुड़ा  हैंओर  धर्म  की वह परिभाषा  जो आज जन सामान्य में चल रही  हैं  उसकी अपेक्षा  शास्त्रों मैं कहा गया  हैं "धारयति स: धर्म "  जो धारण  किया जाये वह धर्म  हैं इस तरह से हमारा धर्म  तो बस शिष्य बनने मैं हैं . पर  जोभी पौराणिक कहानिया  या अन्य सन्दर्भ  हमें किताबों  के रूप में प्राप्त होते हैं हम उन्हें हम  धार्मिकता से जोड़ देते हैं, पर आध्यात्मिकता का अर्थ  तो यह हैं की वह जो अपने आपको खोजने चला हो ,ओर किसी विशिस्ट   साधन  या पद्धिति का अनुसरण कर रहा हो, अन्यथा  वह तो   बिना नाव के सागर पार करने को कोशिश के सामान होगा.

हमारे  पास , सब चीज के लिए तो टाइम हैं पर यदि किसी के लिए टाइम नहीं हैं तो वह हम स्वयं हैं, सारा जीवन हमारा ,अपने आप से बचने का प्रयास ही तो हैं, कभी एक पल बैठ के सोचे की क्या सचमुच कुछ  लाभ हैं इन सब का तब भी  हम... फिर ज्यो ही जीवन की संध्या समय आया  तो हम रामायण महाभारत ओर ऐसे  ही कई ग्रन्थ लेकर  बैठ गए, भले ही हमारा मन लगे या न लगे.
पुस्तके जीवन का मार्ग बताती हैं, पर ये मुख्यतः किसी व्यक्ति  के द्वारा चले गए या सुझेये गए मार्ग या विचार का प्रतिक होती हैं, उनमें प्राण कहा .

 जिनमें प्राण नहीं  वह  कितना लाभदायक होगा  कहा नहीं जा सकता.साधारणतः किसी के विचार पढ़ कर उससे प्रभावित होना तो बहुत ही आस्सन हैं फिर  उसके अनुसार चलने मैं  क्या पता हम वह सब पा  पाए जो हम चाहते थेकहाँ नहीं जा सकतामार्ग , विचार और किताब तो सदगुरुदेव की पढना  चाहिएजो सीधे ही आपके प्राण से जुड़े हो, जो आपके लिए क्या अच्छा , क्या बुरा  हैं किसी भी लेखक से ज्यादा बेहतर जानते हैं .हम किताब पढ़ करपता  नहीं कितनी गलत धारणा   भी बनाते जाते हैं एक लेखक का कहना  था की  किसी के घर का कचडा , अपने घर में उसे डालने नहीं देते  तब किसी के विचारो रूपी  का कचड़ा अपने मन  मैं क्यों आने देते हो,पढने से पहले देखे की क्योंकि ये महाव्त्पूर्ण नहीं हैं की आप  कितना पढ़ते हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण हैं की आप  क्या पढ़ते हैं, ओर उस से भी कहीं ज्यादा  ये की आप उस पर अमल भी करते हैं अन्यतः ये तो मात्र बुद्धि विलास ही हो जायेगा,

यदि वह  पढ़ना ,व्यक्ति को  उस मार्ग पर चलने में सहयोग करे  तब तो दिशा ठीक हैं पर यदि यह मन में अहंकार उत्पन कर की  मैंने इतना  पढ़ लिया तो यह तो एक और बंधन होगया हैं,बिना तात्पर्य समझे  मात्र लिखना या पढना  या छपवाना मात्र ऐसा ही हैं. इस तरह की विद्या ,विद्या नहीं कही जा सकती हैं. सदगुरुदेव जी कहते  हैं की वह जो कंठ में ओर  ही जीवन में पूरी रूप से उतर आई हो वह  ही विद्या  हैं.
बस्तुतः  यदि इन धार्मिक पुस्तकों  को इस दृष्टी कोण  के साथ पढ़ा जाये की, ये एक मात्र इशारे उस परम तत्व  की ओर कर रही हैं , जिसे केबल  पढ़ कर  नहीं जाना सकता हैं  ओर हमें तो साधक  बनाना ही पड़ेगा, तब तो इसका पढना  ठीक हुआ, पर  यदि पढ़कर मन में आया की हम अब बहुत कुछ हैं ओर लगे समझाने दूसरों को  तो वह कितना  सार्थक होगा कहा नहिजा सकता,
सदगुरुदेव भगवान् कहते हैं की पढ़े नहीं गुने भी, मतलब जीवन मै  वह ज्ञान आपके उतरे भी . 
क्या मात्र  किताब पढ़ने से ही कोई लाभ होता हैं कुछ उदहारण से  तथ्य समझने की कोशिश करते हैं.

१.जीवन में यदि स्वयं  ही  प्रयास रत रहे तो तोव्यक्ति के  प्रथम तीन चक्र  जाग्रत होते हैं ये हैं मूलाधार ,स्वाधिस्थान , ओर मणिपुर  चक्र  पर इनके साथ ये भी जानना  जरुरी हैं की  यदि की शारीरिक  रूप से ,या मानसिक रूप से या विचारगत रूप से भी व्यक्ति यदि वीर्य च्युत  होता हैं तो तत्काल  ही व्यक्ति के उपरोक्त  तीनो चक्र निस्तेज हो जाते हैं . इस कारण ब्रम्हचर्य  धारण (वास्तव में किसे ब्रम्हचर्य  कहते हैं वह तो सदगुरुदेव सद्रश्य  योगी  ही समझा सकते हैं ) . पर  अब गृहस्त  साधक क्या करे तो इसका उपाय भी सदगुरुदेव जी ने बताया हैं की , गीता तो सबने पढ़ी  हैं ही , पर पढ़ना  ओर उसका  अर्थ  जानना  बेहद अलग  बात हैंक्या कोई यह जानता  हैं की गीता के आठवे  अध्याय  में वर्णित  विधि  के माध्यम  से व्यक्ति , का वीर्य च्युत  होने से ना केबल बचता हैं बल्कि यदि किसी कारण वश उसका विर्यच्युत होने से यदि उसके चक्र निस्तेज हुए भी हो तो भी वे तेजयुक्त हो जाते हैं और भविष्य में वो गृहस्थ जीवन जीता हुआ भी अपने ब्रह्मचर्य को बचाए रखता है ,निरंतर उस क्रिया के अभ्यास से विर्योत्थान ही होता है और साधक  वीर्य पतन से(चाहे वो कैसा भी हो)सुरक्षित रहता है. वह इन तीनो  चक्रों की शक्ति से सराबोर होकर  इस साधना पथ में आगे बढ़ता ही हैं .

२दुर्गा  सप्तसती तो एक महां  तांत्रिक ग्रन्थ हैं  अनेको  आचार्योंने अनेकों प्रकार  से टीका कर विभिन्न  अर्थ हमारे सामने  रखे हैं, पर इस तथ्य  से क्या आप परिचित   हैं की  चतुर्थ अध्याय के अनेक श्लोक  मनोहारी  तो हैं पर यदि  भूल से भी साधक ने  इन मंत्रो  के माध्यम से आहुति दी तो वह अपने लिए मृत्यु  सद्रस्य  कष्टों  का स्वयं ही निमंत्रण दे रहा हैं .


३.  गुरुगीता जैसा ग्रन्थ तो दुर्लभ हैं, अनेको विद्वानों ने उसके  अर्थ अपने  अपने तरीके से ,अपने अपने अनुभवों के माध्यम से किया  हैं, पूज्यपाद सदगुरुदेव देव जीने अत्यंत सरल शब्दोंमें इसकी  व्याख्या की हैं . क्या अब भी कुछ शेष रह जाता हैं . पर अब भी एक एक करके श्लोक ले कर यहाँ वहां लिखने से कोई अर्थ हैं,
जब सदगुरुदेव प्रणित किताब हमारे पास हैं ही .तब इसका क्या ओचित्य  हैं? ,
क्या आपने  कोई स्वयं इसका अनुभव कुछ अंश मात्र भी  किया हैं?, 
क्या इन श्लोको के उच्चरण  ने आपके जीवन मैं क्या मुलभुत परिवर्तन  करदिया हैं ? ,
क्या इसमें  आपने कोई नया अर्थ खोज निकला हैं ?
क्या इसमें आपका योग दान रहा हैं ?
अगर सभी प्रश्न  के उत्तर मैं आप मौन हैं ,
 तब एक एक करके इन श्लोको को  यहाँ वहां पोस्ट करने को क्या कहा जायेगा  यह तो मात्र अपना नाम किसी भी तरह गुरु भाइयों के सामने रखने की कोशिश हैं ओर क्या..,
आप अपने गुरु भाइयों के मध्य अपने अनुभव से उनके साथ क्या बाट रहे हैं?,क्या उन्हें प्रेरणा देरहे हैं ?,
बस लिखने के लिए ,लिखा जा रहा  हैं तब  क्या कहे.........
कोई  भी किताब खरीद कर इन श्लोको को पढ़ सकता हैं .
सद्गुरुदेव  जी की किताबका मूल्य  इसलिए हैं की प्रथम तो वे हमारे  प्राणाधार गुरुदेव  हैं , द्वितीय  उन्जैसी सरल , आत्मा तक उतर जाने वाली  भाषा  शैली अभी किसी के लिए संभव अगले हज़ार वर्ष भी नहीं हैं, अगर कोई नक़ल भी कर ले  तब भी उसके जैसी भाषा मैं अपने प्राण डालकर शिष्यों  के लिख पाना नहीं होसकता हैं.  
किताबे तो केबल इशारा कर सकती हैं पर सदगुरुदेव  जैसे महायोगी अपने जीवन ओर  साधनाओ  से उसका निचोड़ हमारे अन्दर उतार देते हैं  
इसमें कोई दो बात नहीं  की ,आज सबके लिए सर्वसुलभ होने के बाद भी सदगुरुदेव  के कार्यों का पता अभी अनेको को नहीं हैं,पहले तो हम उस ज्ञान को स्वयं  तो उतारे, ना कि चले उपदेश देने  , यहाँ पर तात्पर्य  यह हैं की हम सच्चे अर्थो में उनके ज्ञान के प्रतिनिधि  बने यदि वह   हमारे पिता हैं सखा हैं , भाई  हैं माता पिता हैं तो क्यों नहीं हमारेमें भी वह गुण दृष्टी गोचर  होंगे ,
शिष्य जीवन का परम सौभाग्य तो तब होता हैं की  जब वह अपनी देह में सदगुरुदेव  प्रणित  ज्ञान हिनहि  बल्कि अबसे उसके माध्यम से सदगुरुदेव जी. गुरुदेव  त्रिमूर्ति जी  के ज्ञान  उतर आया हो.

बिनु जाने होय  ना प्रीति ., तो किसी भी बात या तथ्य  को जानने के लिए यह तो प्रारंभिक आवश्यक हैं ही ,  की  उससे सम्बंधित कुछ   भाव भूमि किताबो के माध्यम से अर्जित करेध्यान   रहे की ये प्रारम्भिक बात   ही  हैं  सब कुछ नहीं.
 आज के योग मैं  किताबे कितनी भी उच्च कोटि की होपर  जीवित जाग्रत  गुरु की जगह न कभी ले पायी  थी न ले सकेंगी ही .
 जीवन की विडम्बना  यह हैं की बात तो सभी    कहते हैं पर परगुरु की कसोटी पर कितने खरे उतर पायेंगे ,कुछ   कहा नहीं जा सकत हैं. हम सभी अपने स्वार्थ सिद्धि से इतने चिपके हैं कि सदगुरुदेव/  गुरुदेव  त्रिमूर्ति जी के बताये गयी बाते ओरआदर्शों  को उतारने  के लिए  कहा अवकाश हैं.
 जीवित गुरु के साथ साथ चलाना   तो  बेहद कठिन हैं, क्योंकि गुरुदेव तो आशीर्वाद में मृत्यु  ही देते हैं  ही देते हैं अपना प्रथम आशीर्वाद , हमारेसारे  अनर्गल विचार  तथाकथित ज्ञान ,ज्ञान गंभीरता , झूठे मुखोटे सब ही  उतार  देते हैं, परये प्रक्रिया इतने सरल नहीं हैं, उसे पाना  तो विरले के  भाग्य मैं ही.
किताबे पढ़ कर  व्यक्ति एक  लुभावने से मानसिक लोक में रह सकता हैं , क्योंकि किताबे बोलती नहीं हैं,जीवन के एक पक्ष की  और इंगित करती हैं सदगुरुदेव/ गुरुदेव त्रिमूर्ति जी  तो जीवन  के सर्वांगींण उन्नति की ओर प्रयास रत  हमें रखते हैं .
पर किताबो की उपयोगिता को नकार भी तो नहीं  जा सकता हैं , आने वाले काल ओर पीढ़ी के लिए  लिए इन्हें सुरक्षित रखन भी तो हमारा धर्म  हैं , कम से कम किताबो मैं ही ये उच्च  ज्ञान  संग्रित  तो हैंफिर कभी कोई गुरु अवतरित होकर्ट इनका प्रमाणिक रूप से आपके सामने रख सकता हैं , या आप को इसकी दुर्लभ कुंजी सौप सकता  हैं.
केबल  पढ़ पढ़ करके  तो वहां  नहीं पहुंचा जा सकता  हैं अगर मार्ग दर्शक के रूप माने तबतो ठीक हैं ..क्यों जो हंस की तरह  दूध में से पानी निकल कर अलग कर सकता  हैं वही व्यक्ति ही तो  शिष्य कहला   सकता हैं .
 आज के लिए बस इतना ही   
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Lets understand first  what is the difference between dharmik and spiritual  , in very simple  one is  dharmik word is coming out of word dharm. What does it stands for , here we are not going any other meaning but shastra’s  says that “dharyati sah dharm” means what is  wear means as a responsibility as a duty so on .. that is called dharm ,like this our dharm is just to become shishy  only. And whatever the mythological or puranik age story we have got  we simply relates to dhram. But he real meaning of spiritual is that one who  start this journey in search of himself, and following any specific path, since without the path or sadhana, that not to be called  spiritual, since just like crossing  sea without boat.
We have time for everything but  not having time for one , that is himself. all our life is what just to hiding himself  taking the help of name of any work. Just sit a minite to think that really all theses are  useful thing. But answer you knew already and when the end point approaches we sit taking  holy book like Ramayana and Mahabharata . even we have any inters tot not.
 Books are generally the thought or the way travelled in life by  one  but lacking the prana . you have just read in tantra kaumudi the difference shruti and smirti , and we have to became shrut not smariytu, the  complete article in this connection you can refer  tantra kaumudi prev issues.
 The book without a prana can be helpful? , can not be said so ,its easy and natural that just get impressed by listening or reading the thought  of others. But can be get what be want through that ,  could not be said so easily. One had to read his Gurudev books, and read the path on which his Gurudev traveled that could be helpful, since from Gurudev  the heart of shishyas are well connected but  from ordinary writer  , no such a thing exits, Sadgurudev better knew about us. But reading other book , where can have any connection with the Author. One writer says that when you not allowed any waste material to be thrown inside of home, how can you permit other person thought  inside you.. Creates much problem. This is not very important that what you read , but much importance that what you get from that and applied in your personal life. other just a play for mind.
 If reading that books helps a person to move on this path every thing is right, but that induces  ego in you that now you are something. Creates one more chain around you.
Without understand their meaning , reading and writing and publishing just like that .sadgurudevji  used to say that  what is saved in kanth and in life I s a vidya.
If reading  religious book in this way  that they are indicating the param tatav and by reading only that cannot be understand and for that we have to be sadhak than every thing is alright, but if this thought came that now we are something and start preaching other than what will be said to this,,,
Sadgurudevji used to say that  not only reading that but thinking on that and applied in your life  that makes the sense.
 Is only reading may help, to understand this here some of the examples
1, if anyone try to awaken his kundalini chakra so he may success to awaken first three chakra  namely muladhar , swadhisthan, and manipur  chakra. But d o you know that  I f that sadhak  physically discharges his veerya tatv even mentally  even in dream too, than  all of sudden all the three chakra get  lost power, that why complete bramhchary is necessary(what is real meaning of bramhchary is can be understand only by sadgurudevji or mahayogies like him) so now what is the solution for house holder means married person, , is there anyway for him. Sadgurudevji provide a way he said that every body read geeta , but how many knew the importance of that granth , people generally consider it a book of duty  karam etc,  but may be you amazed that in eight chapter in a shloka a method is , by which not only a sadhak can control his veery and his bramhchary also get saved.
2, durga saptsati is a great tantraik granth, many great one has written many teekas on that as per their experience, do you know that fact that in fourth chapter certain shloka are like that if they are used for aahuti than the sadhak himself  found  jumping in between the many problem including severe one.
 3, guru geeta like granth is very valuable one, many scholar  describes different meaning through their different  experience , sadgurudevji has described a very easiest meaning of that , still something left for to describe? Than writing the each shloka of here and there makes any senses..?
When  we have Sadgurudev ji’s book on that  what is the  reason ofthat?
Do you have any experience on that ? if yes than  share with all .
What major changes of theses shloka made in your life?
Are you able to find any different meaning  of any shloka by your own experience?
 What is your contribution , what’s new in that you find?
 If you kept silence  on each question  than posting each shloka here and there  what should that be called?.. this become  just to raise your name in amongst the guru   brothers, and what..
 What you are sharing with your own guru brother with your own experience, what  insight you are providing through that you our guru brother,
 All of theses are writing just for the sake of writing than what more  left to say. ?  any one can purchase the book and read that ,  maybe reason lies that  through this way  you are making easily available that book to sadhaka, so kind information a book published from some Saints organization is just of two rupees prices containing all the shloka, from last so many years.
Why Sadgurudev  books is costlier first   one I s that this is the book of our beloved Sadgurudev ji, secondly the style of writing  and describing each shloka is very unique and unparallel , and suppose any one can copy that style abut where he can get the  pran in that which a is a amrit for each shishya.
 Books readjust help full in indicating, but mahayogies like Sadgurudev provide us essemce of that , in our soul.
There is no not that even Sadgurudev was very easily available abut still majority of the people still unaware of his  contribution, its our duty that first  we need to  digest that knowledge , and than start preaching. Mans its firs duty to became a true representative of him. If he is our mother and father, and brother and friend than why not his  personality and  gyan reflects in eyes.
 Any shishy can become so fortunate when not only Sadgurudev divine knowledge  about Gurudev trimurtijis knowledge are also  come to our heart.
Without knowing  love  not possible. Than it is necessary that in the beginning some book are  essential. Some insight we can get from that  but theses all are in the beginning remeneber that.
May be any book  contains great knowledge but never ever replaces  a true guru.
 But most disappointing think Is that every body claiming that but how many can stand in the test impose up onus. We all are so much attached to our  wish and selfishness that who has the time to go for  fulfilling Sadgurudev jis and Gurudev trimurtijis dream.
 Walking with a  jivit guru  is very very difficult, since in the beginning guru bless  with death to disciple and this deat his  of his bad evil thought and bad karams and so on. But this is not so easy very few can pass thses tests.
 Redaing a good books keeps yoin your   dream ,  since bokks arenot speaking they just indicate some  aspect of life, but Sadgurudev jiand Gurudev trimurtiji  always worried about all  of us  regarding aspect oflife .
 At the same time cannot not set aside
the importance of thses books , and to save them is our duty. At least in the books theses divine knowledge save. May in  future some one will understand that and gives us a new insight.
 Only by reading you cannot  reach your goal, if consider than as a your  helper than its ok, one who take  out water from milk  like a hans is a -shishy.
 That’s enough for today.


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