Saturday, August 20, 2016

ॐ गुरुर्वे सः दिव्ये वः श्रीं गुरौ

मेरे गुरु ही सर्व व्यपक हैं, पूर्ण दिव्यता प्रदान करने वाले हैं, साक्षी प्रदायक हैं. और सिद्धाश्रम पहचाने में सक्षम है.

जय सदुगुरुदेव /\


पारद विज्ञान


स्वर्ण विज्ञान अद्व्तीय और जीवन को जगमगाहट देने वाला विषय माना गया है. अनेक लेखक और गुरुदेव डॉ नारायणदत्त श्री मालीजी के अनुसार जितने भी प्रकार के विज्ञानों और विषयों में यह विषय सर्वश्रेठ हैं. क्यूंकि यदि इस विज्ञान को सही निर्देशन और सही विधि से किया जाये तो सम्पूर्ण जीवन को बदला जा सकता है. पीढियो कि दरिद्रता समाप्त हो सकती है, और शारीरिक दुर्बलता और अशक्त्ता को समाप्त कर पूर्ण यौवन व सुन्दरता प्राप्त की जा सकती है. इस विद्या को दो चरणों में अर्थात् धातुवाद और आयुर्वेद में प्रयोग कर पूर्ण सम्पन्नता और कायाकल्प दोनों प्राप्त किया जा सकता है.

पारद विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है, जो सही अर्थो में गुरु के सानिध्य में और मार्गदर्शन में ही सीखा जा सकता है. हालंकि इस विषय से सम्बंधित अनेकानेक ग्रन्थ बाजार में उपलब्ध है किन्तु पढ़ने मात्र से प्रत्येक विधा सीखी नहीं जा सकती. अभी तक जितने भी ग्रन्थ इस विषय से सम्बंधित प्रकाशित हुए है, वे सभी या तो संस्कृत में प्रकाशित हैं या फिर इतने जटिल हैं कि उन्हें सही प्रकार से समझना असम्भव हैं. इन ग्रंथो को पढ़कर पूरी तरह से ना तो समझा जा सकता और ना ही प्रयोग में लाया जा सकता है.

इस विषय को सदरुरुदेव डॉ नारायणदत्त श्री मालीजी ने अत्यंत सरल शब्दों में समझाया एवं “स्वर्ण तन्त्रंम” नामक पुस्तक के माध्यम से एवं अनेको पत्रिकाओ में स्वर्ण बनने की विधियां और आयुर्वेद मैं पारद का प्रयोग स्वास्थ और सोंदर्य की औषधी बनाने हेतु विधियां प्रकाशित की हैं.
हम और हमारी पीढ़ी सदैव उनके आभारी रहेंगे.

इसी क्रम मै  निखिल अल्केमी के माध्यम से श्री आरिफ निखिलजी ने इस विषय को आप सबके समक्ष (वर्क शॉप के माध्यम से) प्रायोगिक रूप से प्रस्तूत किया और इसी क्रम में उन्होंने अपने समस्त अनुभव और ज्ञान को एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास किया था किन्तु जीवन ने ही साथ नहीं दिया.
अब निखिल परा विज्ञान शौध इकाई (प्रकाशन) इस कार्य को पूर्ण करने कि जिम्मेदारी लेता हैं और उनकी इस अद्व्तीय कृति (पुस्तक स्वर्ण रहस्यम) को प्रकाशित करने का एक प्रयास करता है, जो कि अति शीघ्र आप तक पहुचेगी |

रजनी निखिल






Sunday, May 15, 2016




                                                 
                          
 NPRU 
 PUBLICATION:
            (निखिल परा विज्ञान शोध इकाई)


NPRU के कार्य-

·        त्रैमासिक पत्रिका (तंत्र कौमुदी) एवं पुस्तक का प्रकाशन
·        मन्त्र, तंत्र व यंत्रों पर शोध कार्य
·        संस्कारित पारद विग्रह एवं पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित यंत्र  
·        ज्योतिष/साधना केंद्र



BOOKS   PUBLISHED BY US:-

1.     APSARA YAKSHINI RAHSYA KHAND

रस  युक्तता ,प्रसन्नता ,उत्साह ,उमंग ,स्नेह का समावेश  एक पूर्ण संतुलित जीवन का अनिवार्य  अंग  हैं ,पर आज के  आधुनिक जीवन मे ये शब्द अर्थहीन से  हो गए  हैं  ,नीरस  जीवन और सूखे  हुये पेड़ मे कोई अंतर नही
सौंदर्य साधना जिन्हें  अप्सरा और यक्षिणी साधना  भी कहा जाता  हैं .उनको सिद्ध करना   तो जीवन का  गौरव  हैं, जीवन की श्रेष्ठता  हैं, जीवन का एक अर्थ  हैं ,अध्यात्म  और  साधना मार्ग मे उन्नति के द्वार   खोलना हैं ,अपने भाग्य का मानो स्वयम निर्माण  कर ,जीवन मे  वो सब कुछ  प्राप्त कर लेना , जो की जीवन का हेतु  हैं ,लक्ष्य   हैं . जीवन के  चार आवश्यक पुरुषार्थो मे  से मर्यादित  काम और अर्थ की पूर्णता तो सिर्फ अप्सरा और यक्षिणी साधना के माध्यम से ही संभव   हैं
यद्दपि आज  एक सामान्य व्यक्ति के मानस मे इन साधनाओ को हेय दृष्टी से , काम भाव प्रवर्धन की दृष्टी से देखता  हैं ,और आशंका ग्रस्त होता हैं  की कहीं ये उसको अपने वश मे कर लेगी और .उसका जीवन को निस्तेज  बना कर ,नष्ट करके ही छोड़ेगी .पर यह सब निराधार  हैं सदगुरुदेव  जी ने अनेको बार  यह समझाया  की जिस  तरह जगदम्बा साधना  हैं ,महाविद्या  साधना  हैं ये भी ठीक उसी  तरह की ,एक उच्चस्तरीय साधना  हैं अगर साधक इन साधना के प्रति एक स्वस्थ चिंतन और भाव रख  कर साधना  करता  हैं .

Delightment, happiness, enthusiasm, affection are an essential inclusions & part of a full balanced life but in today's modern life, these words have become meaningless. There is no difference between an unhappy & a monotonous life & a dry tree.
“Saundarya Sadhana” which is also known as “Apsara / Yakshini Sadhana” is a matter of proud to accomplish by any disciple in his / her life. This Sadhana gives meaning & excellence to any disciple’s life & opens the path of success in Spiritual & Sadhana world. This is just like a disciple accomplishes all the aim & motto of life by framing his / her own luck. Out of 4 main Life Pursuits (Purusharth – in Hindi) told for life fulfillment – 2 of them “Kaam” – (Desires, Pleasures) & “Arth” (Prosperity, Economic Values) can be fulfilled by the means of Apsara / Yakshini Sadhana.
Although, in today’s context a person looks this sadhana in bad terms & co relates this Sadhana for desire fulfillment. They always remains doubtful that this Sadhana can cause harm to him / her & anyone can control or destroy their lives But, all these doubts are pointless & Sadgurudev has also explained many times that like there are Jagdamba Sadhana, Mahavidhya Sadhana similarly Apsara / Yakshini Sadhana is also a very high level Sadhana (practice) if a disciple performs it with pure concern and feel. 


2.     ITAR YONI AND KARN PISHACHINI  VARG SADHNA

इतर योनी का नाम आते ही आज व्यक्ति के मन मे रहस्य और भय मिश्रित संवेदना  का संचार स्वत  ही कर देता हैं,इतनी कथायें  कुछ सच पर तो कुछ मनगढंत इस विषय पर जन सामान्य मे व्यापत हैं या व्यक्ति के मन मे बाल्य काल से ही प्रवेश करा दी जाती हैं की व्यक्ति उनसे कोशिश करके भी भय मुक्त नही हो पाता हैं पर सदैव से उसे इस विषय पर रूचि और उत्सुकता रहती हैं ही.
और वास्तविकता सदैव से  तथाकथित फैलाए गए भ्रामक प्रचार के विपरीत होती हैं,सदगुरुदेव ने साधक/शिष्य वर्ग के सामने, इस वर्ग का उस स्वरुप का परिचय कराया, जिनके माध्यम से व्यक्ति यदि इनकी मित्रता या इनका सहयोग उसे मिल जाये  तो साधक के जीवन मे अनेको सुखद आयाम और इन वर्ग के सहयोग से व्यक्ति भौतिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी अनुकूलता और उच्च सफलता भी प्राप्त करने मे समर्थ हो सकता हैं.

इन साधनाओ को  सिद्ध करना तो जीवन का  गौरव हैं, जीवन की श्रेष्ठता हैं, जीवन का एक अर्थ हैं,अध्यात्म और साधना मार्ग मे उन्नति के द्वार खोलना हैं,अपने भाग्य का मानो स्वयम निर्माण  कर,इनके माध्यम से परालौकिक जगत से सीधा साक्षात्कार,अनेक गोपनीय अद्भुत और अलौकिक रहस्यों से स्वयम का साक्षात हैं.
यद्दपि आज  एक सामान्य व्यक्ति के मानस मे इन साधनाओ को एक क्षुद्र साधना मानने का मानस या इनके साधक को एक  हेय दृष्टी से देखता हैं,और हमेशा आशंका ग्रस्त होता हैं  की ये वर्ग उसके लिए सिर्फ नुकसानदायक हैं एवं कहीं ये उसको अपने  वश मे कर उसके जीवन को छिन्न भिन्न और इन साधनाओ को करने पर कुछ उसके साथ उल्टा सीधा हो सकता हैं. पर इन अवधारणाओ के विपरीत कुछ जीवट युक्त साधको ने सदगुरुदेव के सतत निर्देशन मे इन साधनाए को सफलता पूर्वक सम्पन्न किया हैं.और यह सत्य सामने रखा की यह भी साधनाए उच्च कोटि की हैं इनका कोई वार्म मार्गी स्वरुप का उसे पालन करने की कभी भी कोई आवश्यकता नही हैं बल्कि नैतिक,सामाजिक नियमों का पालन करते हुये एक सौम्य,सुसंकृत साधक,इन  साधनाओ को सम्पन्न कर सकता हैं
पर इन साधनाओ के  सूत्र  और गोपनीय मंत्रात्मक ,तंत्रात्मक विधान  कहीं उल्लेखित नही  हैं इस कारण साधको को इन साधना मे सफलता नही  मिल पाती  हैं.

 NPRU  और तंत्र कौमुदी की ओर से  प्रस्तुत ग्रन्थ इसी कमी को पूरा करने का एक ठोस प्रयास  हैं 

.
Whenever a person comes across the name “ITAR YONI”,a strange feeling mixed with fear and secrecy comes to his / her mind.There are so many stories related to this subject out of which only few are true.but there are so many fictional stories of this topic which is being told by our elders in our childhood due to which we are afraid but instead of all his,we are quite anxious to know the hidden truth behind these stories.

The Truh is always different from what it has been told sine so many years. Sadgurudev introduced the true and decent aspect of this subject to his Disciples / Students and also guided that if a person gets support,help & proper guidance from these then a disciple can achieve what he wants not in the materialistic world but can also achieve a position in the Spiritual community.

To get success by good means & faith in these ITAR YONI Sadhnas is a very proud feeling for any person.He feels accomplished,supreme and it opens the door of Success & Luck by the hard work of any disciple.A disciple can witness the power,energy & divine experiences of  the Paranomal world and will be amazed to learn the hidden secrets of this world.

Although, in today’s context a person looks this topic / sadhana not in good terms &always remains doubtful that this can cause harm to him / her & anyone can control their lives by using this Sadhana.But,despite of all the misunderstandings, many hard working disciples have succeeded in this Sadhana under the proper guidance of Sadgurudev. They proved all the misconceptions wrong & presented the true aspect of this Sadhana that any well cultured, decent & learned person by following the right path, direction, guidance with society moral values & social rules can succeed & perform well in this Sadhana.

But,yes the literature of correct rules,tantra & mantra are not written / available anywhere & beacuse of that many disciples face problem in these type of Sadhnans & does not get desired results.

 The magazine “Tantra Kaumudi” presented by NPRU is a small but firm step to fill this gap for all the Disciples who wants to know & learn about these Sadhanas. 


३. तांत्रिक षट्कर्म एवं रस विज्ञान गूढ़ रहस्य खंड -

तांत्रिक षट्कर्म, यह तंत्र क्षेत्र की एक ऐसी विधा है जिसमे सम्मोहन, आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, सतम्भन, शान्ति कर्म आदि कर्म सम्मिलित है, जो जीवन को उच्चता देने में अति सहयोगी है पर यह भी सत्य है की इसका सदुपयोग और दुरुप्योग दोनों हुआ है और दुरूपयोग के कारण जन सम्मान्य के मन में इस विद्या के प्रति एक आक्रोश सा है, एक भय मिश्रित भावना है ओर हे दृष्टि से देखने की भावना भी| कुछ अर्थों में समाज का इस ओर ऐसा देखा जाना उचित भी था क्यूंकि इन क्रियाओं के नाम पर जिस प्रकार के वातावरण की रचना व्यक्ति के सामने होती है ओर जिस तरह असामाजिक ओर निंदनीय कार्य करने वाले और कुत्सिक मानसिकता वाले व्यक्तियों ने इस विद्या का प्रयोग अपनी कुत्सिक मानसिकता को पूरा करने के इया किया| परिणाम स्वरुप लोगो में एक प्रकार का भय संचार हो गया| इस कारण मनो यह विद्या एक मैली विद्या में बदल सी गयी है|
सदगुरुदेव को अगर साक्षात् तंत्रेश्वर कहा जाये तो गलत नहीं है क्यूंकि तंत्र का उद्गम तो श्री सदगुरुदेव के श्री चरण कमलों से ही होता है ओर उनके बिना इस साधना क्षेत्र में कोई गति नहीं है| बात बात पर गाली देने वाले, तरह तरह के नशे में चूर व्यक्ति मारण, मोहन, वशीकार बिना सोचे विचारे कर देने को अपने अपना अधिकार समझते हैं पर जब इसकी कीमत चुकाना पड़े तब?
सदगुरुदेव जी ने एक ऐसे साधक की है, जो अपने दैनिक जीवन की आवश्यकता को पूरी करे साथ ही साथ शिष्ट और शालीन भी हो और जब एक साधक की अवश्यक्ता तब साधक हो जाए| सदगुरुदेव ने जो इन षटकर्मों का एक नया ही स्वरुप हम सभी के समक्ष रखा है अपने आप में अद्वितीय है| इस पुस्तक में दिए गए षट्कर्म प्रयोग गुरु साधना युक्त है तो एक ओर जहाँ उस प्रयोग का लाभ होगा वहीँ गुरु साधना का भी लाभ मिलेगा| ओर जब ऐसे अद्भुत विधान के लिया थोडा सा कष्ट उठाना पड़े तो वह भी स्वीकार्य है| यह पुस्तक अनेकों गुप्त सूत्रों से युक्त ओर साधना सफलता मेआअप्के लिए अनिवार्य ही मन जाए क्यूंकि गोपनीय गुरु परंपरा से प्राप्त सूत्रों को एक स्थान पर इस तरह से एकत्रित करना बेहद श्रमसाध्य कार्य है| साधकों को सदगुरुदेव आशीर्वाद से दुर्लभ सूत्र प्राप्त हों जो की अपने आप में विलक्षण हों और उसे मनोवांछित सफलता दिलाने में सहयोगी भी हों| वही रस शास्त्र तो जीवन की सर्वोच्चता है, आज रस शास्त्री कहाँ है? और जो है भी वह गोपनीयता के सिद्धांत का पालन करने वाले हैं, तब इस शास्त्र के एय रहस्यों को समझना और पाना भी सौभाग्य से कम नहीं है |       




                                                                                     CONTACT US ON :-
                                                                                               0755-2778170,
                                                                                                 8827071034.
                                                                       E-mail:   214rajni@gmail.com,                                                                                                              
                                                                                 123npru@gmail.com
                              House no.-18, Riviera Towne, T.T. Nagar Bhopal, M.P.





Friday, January 1, 2016

स्वर्ण प्रदायक पारी साधना


  



न भारतीयों नवत्सरोऽयं, तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात
यतो धरित्री निखिलैव माता, तत: कुटुम्बायितमेव विश्वं ||
                            
यद्यपि ये नववर्ष भारतीय नहीं है , तथापि सबके लिए कल्याणकारी हो क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है अतः
“माता भूमि: पुत्रोऽहं प्रथिव्या:”
अत एव प्रथ्वी के पुत्र होने कारण समग्र विश्व ही कुटुंब स्वरुप है
पाश्चातनववर्षस्यहार्दिका: शुभाशया: समेषां कृते ||

HAPPY NEW YEAR J

स्नेही स्वजन,
जय सदगुरुदेव, आप सभी के विशेष आग्रह पर—
“हालाँकि ये मेरा सब्जेक्ट नहीं है किन्तु साधनाओं के मार्ग पर जब कोई साधक चलता है तो सभी तरह की साधनाओं पर न केवल विचार करता है अपितु उन पर प्रायोगिक रूप से कार्य भी करता है, मेरे साथ भी ऐंसा ही कुछ है हरेक क्षेत्र को जानने की जिज्ञासा और समझने का स्वभाव रहा है और सद्गुरुदेव ने मुझे अति स्नेह और पूर्ण व्यावहारिकता के साथ न केवल समझाया अपितु येनकेन प्रकारेण सिद्ध भी करवाया जो मै चाहती थी वो भी और जो नहीं चाहती थी वो भी अतः”  उसी क्रम में...............

इस नववर्ष के उपलक्ष्य में निखिल-एल्केमी ग्रुप के सौजन्य से और मेरी और से छोटा सा उपहार---


स्वर्ण-प्रदाय परि साधना-

ये साधना में मूल रूप से मुस्लिम साबर साधना के अन्तरगत आती है अतः इसमें सावधानियां भी अति आवश्यक हैं सदगुरुदेव प्रदत्त इस साधना के सम्बन्ध में कहा जाता है की अनेक गृहस्थ और सन्यासी शिष्यों को समपन्न कराया गया, प्रत्येक बार पूर्ण रूपेण सफलता प्राप्त हुई है, इस साधना के सिद्ध होने पर परि- सौन्दर्य से परिपूर्ण यौवन की आभा से युक्त आपके पास प्रेमिका रूप में साथ रहती है प्रेम और आनंद्युक जीवन तो देती ही है साथ ही नित्य पांच तोला स्वर्ण और  जीवन भर धन-धान्य सुख सामग्री आदि से परिपूर्ण कर देती है \ यद्यपि ये साधना कठिन भी है किन्तु यदि पूर्ण विधि विधान और पूर्ण नियमों का पालन करते हुए समपन्न की जाये तो सफलता निश्चित हो जाती है | 

साधना सामग्री:--   इसमें जिन साधना सामग्री की आवश्यकता होती है उनमें ये मंडल यंत्र अति आवश्यक है, साथ ही लाल गुलाब के पुष्प, चमेली का इत्र और चमेली का ही तेल, आठ गोमती चक्र, आठ सुपारी, आठ इलाइची, आठ लौंग, आठ पतासे, और थोड़े से काले तिल सफ़ेद वस्त्र सफ़ेद आसन सफ़ेद हकिक माला | 

विधि—ये प्रयोग चालीस दिनों का है और इसमें प्रत्येक दिन एक समय ही भोजन करना है जिसमें खीर को प्रधानता देनी है दूसरी मुख्य बात ये है कि इस साधना को किसी एकांत कमरे में ही करना है जहाँ किसी का आना जाना न हो, और ४० दिनों तक उस कमरे में आपके आलावा कोई भी वहां न जाए |

इस साधना को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से व्रत रखें और शाम को केवल खीर खाएं फिर, स्नानादि से निवृत्त होकर रात को पूरे कमरे में गुलाब की पंखुडियां बिखेर दें और अपने कान में भी इत्र फोहा लगायें और सामने बाजोट पर सफेद कपडा बिछाकर उस पर यंत्र मंडल स्थापित करे और उसके चारों और गुलाब की पंखुड़ियों से ही एक घेरा बनाएँ और यंत्र के चारों और क्रमशः पहले गोमती चक्र, आठों सुपारी, इलाइची, लौंग, पतासे रखें और थोड़े से काले तिल सामने ढेरी बनाकर रखें अब सफ़ेद आसन पर उत्तर दिशा की और मुंह कर बैठे और सफ़ेद हक़ीक माला से नित्य १०१ माला निम्न मन्त्र का जप करें, जप समाप्ति के बाद वहीँ सो जाएँ |

प्रति दिन यही क्रम करना है इस तरह ४० दिनों का उपवास और रात को भोजन में खीर का प्रयोग अति आवश्यक है यदि हो सके तो प्रतिदिन सिर्फ खीर का ही प्रयोग करें तो अति उत्तम अन्यथा भोजन के साथ खीर ले सकते हैं |

किसी भी साधना की सफलता का मूल आधार उसके नियम बद्धता है इसमें पूर्ण रूप से ब्रहमचर्य और बाकी नियम को भी तटस्थता से पालन करेंगे तो ही सफलता का प्रतिशत बढेगा |

मन्त्र—
“अर्हीना अरीना सरीना सफरीना अकविपा सदा सदुनी कामिनी पदभावी वश्यं कुरु कुरु नमः”

“ ARHEENA  AREENA  SAREENA SAFREENA AKVIPA SADA SADUNI KAMINI PADBHAAVI VASHYAM KURU-KURU NAMAH”

जीवन को पूर्ण आनंददायक और पूर्ण बनाने हेतु ये साधना अवश्य संपन्न करें, क्योंकि ये परी प्रेमिका रूप में जीवन भर आपका साथ देती है और धनधान्य सुख संपत्ति से पूर्ण कर देती है |

कोई भी साधना बिना गुरु आशीष के संपन्न हो ही नहीं सकती अतः प्रत्येक साधक या व्यक्ति को अपने गुरु के आशीर्वाद और अनुमति से ही साधना के इस क्षेत्र में गतिशील होना चाहिए | चूँकि ये प्रत्यक्षीकरण की साधना है अतः पूर्ण धैर्य और निडरता अति आवश्यक है प्रत्येक नियम का दृणता से पालन एक अनिवार्य शर्त, जो स्वयं ही करनी पड़ती है | आपकी श्रद्धा, आपके प्रयास, आपकी नियम संयमता आदि, आपको आपके लक्ष्य तक अवश्य पहुंचाएगा |
 शेष गुरुदेव कृपा-----



***NPRU***

  RAJNI NIKHIL