दिन ब दिन साधना में मेरी तल्लीनता और बढती चली जा रही थी,साथ ही मंत्र जप में मन की गहनता भी.सदगुरुदेव के निर्देशानुसार मुझे और ज्यादा से ज्यादा एकाग्रतापूर्वक उस मंत्र की साधना करनी थी.वास्तव में ये दो चरणों की साधना थी जिसमे प्रथम चरण में मुझे विज्ञान गणपति के आशीर्वाद को प्राप्त करना था,तत्पश्चात उस मंत्र का प्रयोग करना था जिसके द्वारा दिव्य नाथ सिद्धों का आवाहन किया जाता है. भगवान दत्तात्रेय की कठोर तपस्या के फलस्वरूप उत्पन्न तप:ऊर्जा से युक्त गोदावरी का तट जिसे राक्षस भुवन के नाम से जाना जाता है और उसी तपस्या के द्वारा भगवान दत्त ने यहाँ पर विज्ञान गणपति की स्थापना की थी,ये स्थान जालना से करीब ३३ मील दूर है.सदगुरुदेव ने बताया था की उन्होंने गणपति के विभिन्न रूपों को उनके मूल स्थान पर जाकर सिद्ध किया है और साथ ही अपनी अजस्र तपः शक्ति से उनके मूल रहस्यों को भी उजागर किया है जोकि काल के प्रवाह में कही लुप्त ही हो गए थे. उन्होंने बताया की भगवान गणपति का यह रूप तन्त्रविज्ञान के रहस्यों से साधक को एकाकार कर देता है,मंत्र और उसके सिद्धांत को प्रकट करने के साथ ही साधक को मूलविधि का भी अनुभव करा देता है साथ ही इस स्थान पर यदि पूर्ण क्रिया के साथ यदि सिद्ध नाथों का आवाहन किया जाये तो कही सरलता से वे आपको प्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्रदान कर अपने आशीष से युक्त कर देते हैं. भगवान दत्तात्रेय की तपःस्थली होने के कारण इस स्थान से सिद्ध लोक का अगोचर सम्बन्ध जुड़ा हुआ है.
सदगुरुदेव की आज्ञा से मैं “नवनाथ साधना पद्धति” पर साधनात्मक शोध कर रहा था और मेरा उद्देश्य मात्र उनका साहचर्य और उनके द्वारा उन मन्त्रों को समझना था जिन्हें अगम्य कहा गया है,इसी क्रम में मुझे यहाँ पर नाथ सिद्ध “सिद्ध रेवणनाथ” का आवाहन कर उनसे “पूर्ण तंत्र बाधा और सप्तदोष नाशक-अवधूतेश्वर कालेशचिंतामणि साबरी प्रयोग” को समझना था. आवाहन गुटिका को लक्ष्य कर मैं निरंतर उस मंत्र का उपांशु जप कर रहा था ,जिसके द्वारा आवाहन क्रिया संपन्न होती.सद्गुरुदेव ने बताया था की कालेश चिंतामणि साबरी प्रयोग के गुप्त रहस्य को मात्र “सिद्ध रेवणनाथ” के द्वारा ही समझा जा सकता है और उनके आशीर्वाद से ही इसमें पूर्णता प्राप्ति संभव है.
जब सदगुरुदेव ने मुझे इस साधना के लिए आज्ञा दी थी तब मैंने उनसे पूछा था की “हे सदगुरुदेव जिस साधना को समझने के लिए आपने मुझे ये आवाहन क्रम दिया है,वो मात्र इनसे ही क्यूँ प्राप्त हो सकता है”.
सदगुरुदेव ने मेरी जिज्ञासा का शमन करते हुए कहा की “बहुधा व्यक्ति जीवन में बाधाओं से ग्रस्त होता है,जिसकी वजह से उसकी आर्थिक,सामाजिक,मानसिक,पारिवारिक स्थिति कमजोर होते जाती है और परिणाम स्वरुप व्यक्ति का जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाता है. हम अक्सर ऐसे में स्वयं को बाह्य बाधा से ग्रसित मान लेते हैं,किन्तु ये पूरी तरह सत्य नहीं होता है,और अगर ये सत्य भी हुआ तो हमें ये ज्ञात नहीं हो पाता है की ये बाधा किस प्रकार की है,क्यूंकि जीवन में पतन और अभाव के मूल ७ कारण होते हैं ,जिनसे व्यक्ति ग्रसित होने पर उन्नति पथ से विचलित होकर विनाश के द्वार तक पहुच कर अपना सब कुछ लुटा देता है.ये बाधाएँ बाह्य और आंतरिक दोनों ही प्रकार की होती हैं ,इनका सामूहिक शमन कर पाना किसी एक क्रिया से संभव नहीं होता है,और हमें ये भी तो ज्ञात नहीं होता है की ये किस प्रकार की बाधा है,जब हम इसके उपचार हेतु जानकारी चाहते हैं तो तथाकथित तांत्रिक तंत्रबाधा के नाम से लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और व्यक्ति दुहरी मार से वैसे ही मर जाता है. क्यूंकि आवश्यक नहीं है की जिनसे हम अपनी समस्या का समाधान चाहते हों उन्हें ये ज्ञात भी हो की इस समस्या का मूल क्या है. जिस प्रकार एक चिकित्सक चिकित्सा की सभी विधियों में पारंगत हो ऐसा अनिवार्य नहीं है,वही स्थिति तंत्र में भी होती है अर्थात तंत्र की सभी विधियों का ज्ञान एक ही तांत्रिक को हो,ऐसा अनिवार्य नहीं है. किन्तु नाथ योगियों ने समाज के कल्याण के लिए निरंतर साधनात्मक अन्वेंषण का कार्य किया है और नूतन साधनात्मक पद्धतियों से साधकों को परिचित करवाया है, उसी क्रम में “सिद्ध रेवणनाथ” का नाम आता है जो की तंत्र के प्रकांड विद्वान लंकाधीपति रावण का ही अवतार हैं,और तंत्र मार्ग के पथिक होने के कारण उन्होंने अपने प्रत्येक रूप से तंत्र के विविध रहस्यों को आत्मसात किया है और भगवान शिव के द्वारा अगम्य और कठिनतम साधनों को हस्तगत किया है,उसी क्रम में उन्होंने भगवान शिव के द्वारा इस “पूर्ण तंत्र बाधा और सप्तदोष नाशक-अवधूतेश्वर कालेशचिंतामणि साबरी प्रयोग” के विधान को प्राप्त किया था”
इसलिए इस विधान को उनसे ही समझा जा सकता है.सदगुरुदेव की आज्ञा शिरोधार्य कर मैं जालना आ गया और सदगुरुदेव द्वारा निर्देशित क्रम को गति देने लगा,पहले भगवान विज्ञानेश गणपति की साधना कर सफलता का आशीर्वाद लेना था और फिर नाथ आवाहन क्रम को संपन्न करना था,किस प्रकार ये दोनों क्रिया हुयी और कैसे उन महासिद्ध का साहचर्य प्राप्त हुआ वो तो एक विस्तृत और पृथक विषय है ,उसकी विवेचना करना लेख को विस्तार देना होगा जोकि कम से कम अभी तो उचित नहीं कहा जा सकता है.
साधना की पूर्णता पर जब उनका साक्षात्कार मुझे हुआ तो उन्होंने कृपापूर्वक उस अद्विय्तीय अवधूतेश्वर कालेशचिंतामणि साबरी प्रयोग का मंत्र मुझे देते हुए कहा की तुम इस मंत्र का पूर्ण विधान अपने सद्गुरु “श्री निखिलेश्वरानंद जी” से समझ लेना क्यूंकि प्रत्येक गुरु अपने शिष्यों में जिस प्रकार की तपः ऊर्जा प्रवाहित करता है ,वो ऊर्जा और शक्ति उनके प्राणों के घर्षण से उत्पन्न होती है तथा किसी भी प्रकार की साधना को कैसे पूर्णता देनी है,कैसे उसका प्रयोग करना है,कैसे उससे लाभ प्राप्त किया जा सकता है,ये सब सद्गुरु अपने मंत्रेश्वर स्वरुप द्वारा शिष्य के स्तर को देखकर निर्धारित करते हैं ,साधना को अपने शिष्यों के लिए कितना सरल करना है,और शिष्यों के लिए उसका क्या विधान होगा,ये सभी तथ्य सदगुरुदेव द्वारा निर्धारित किये जाते हैं.
जब मैंने इस मंत्र को सदगुरुदेव के सामने रखा और उनसे इसका पूर्ण विधान जानने की जिज्ञासा रखी तो सदगुरुदेव ने कहा की इस मंत्र के द्वारा जीवन को रसातल में पंहुचाने वाले ७ दोषों का नाश किया जा सकता है .ये सात दोष निम्न प्रकार के हैं.
अधिदैविक दोष- कभी कभी साधक के कुल देवी देवता किसी कारण नाराज हो जाते हैं अर्थात यदि उनका उचित सम्मान न किया जाये या उनके पूजन क्रम में आलस्य व प्रमादवश शिथिलता कर दी जाये तो ऐसे में कुलदेवता का सुरक्षा चक्र मंद हो जाता है या भंग हो जाता है तब अभी तक उसे जो सुरक्षा व गति प्राप्त हो रही थी वो समाप्त हो जाती है,फलस्वरूप साधक दुर्भाग्य की जकड में आ जाता है.
इष्ट दोष- प्रत्येक मनुष्य किसी विशेष देवशक्ति का अंश लिए हुए होता है तथा इसी तथ्य पर उसके इष्ट का निर्धारण भी होता है किन्तु बहुधा साधक को उसके इष्ट की जानकारी नहीं होती है,और इसका ज्ञान मात्र सद्गुरु को ही होता है किन्तु जब साधक उसे जानने की कोई जिज्ञासा ही नहीं रखता है तब ऐसे में वो भ्रमवश या लालचवश किसी भी देवी देवता को अपना इष्ट बना लेता है ,और ऐसे में आवश्यक नहीं है की वो चयनित देवशक्ति उसकी मित्र ही हो,कभी कभी पूर्वजन्म के संस्कारो के फलस्वरूप शत्रु देव शक्ति भी हो सकती है क्यूंकि प्रत्येक साधक को कौन सी देवशक्ति का साहचर्य मिलेगा या किसका गुण उसके प्राणगत रूप से मेल खाता है,इसका ज्ञान साधक को हो पाना कठिन ही होता है,तब साधक अतिरंजित घटनाओं को सुनकर या अधिक पाने के लालच में कसी भी शक्ति की आराधना करने लगता है,और उसके मूल इष्ट उपेक्षित रह जाते हैं,तथा साधक उनकी कृपा से वंचित रह जाता है. ऐसे में तब उसे लाभ के बजाय हानि होने लगती है और उसे ये अज्ञात कारण समझ में ही नहीं आता है.
कर्मदोष – प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में तीन प्रकार के कर्मों का परिणाम पाता है. प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण. मान लीजिए आपने इस जीवन में लगातार पुण्यकर्म किये हैं किन्तु जीवन से अभाव है की जाने का नाम ही नहीं ले रहा तब ये समझ में नहीं आता है की आखिरकार हमसे ऐसी कौन सी त्रुटी हुयी है जो जीवन में ना तो प्रसन्नता है,ना ही कोई उन्नति के चिन्ह ही. अब इसका ज्ञान उसे गुरु ही दे सकता है या फिर इसे उसकी कुंडली द्वारा भी जाना जा सकता है, ये ज्ञात किया जा सकता है की आखिरकार हम किन कर्मों का परिणाम झेल रहे हैं,क्या वे हमारे पूर्वजन्मों का परिणाम है या फिर संचित या वर्तमान के क्रियमाण कर्मों का.
आधारदोष- कभी कभी हमारी अवनति का कारण हमारा मोह,प्रेम या कर्त्तव्य भी हो जाता है,इसका अर्थ ये है की हमारे सम्बन्ध में कोई ऐसा होता है जो की हमारा अत्यधिक स्नेही है, और वो व्यक्ति जीवन में दुःख,अभाव या दुर्भाग्य से ग्रस्त होता है और हम उसकी उन्नति के लिए पूर्ण ह्रदय से प्रार्थना करते हैं,उसके कष्टों को दूर करने का प्रयत्न भी करते हैं, किन्तु हमें ये ज्ञात नहीं होता है की कही न कही हमारे द्वारा किये जा रहे हस्तक्षेप का परिणाम हमारे दुर्भाग्य के रूप में हमारे सामने आ सकता है,अतः मोह जनित इस दोष से जो परिणाम प्राप्त होते हैं वो इतने कष्टकारी और भयावह होते हैं की हमारे साथ साथ इस चक्की में हमारा परिवार भी पिसता जाता है, और पूरे परिवार का विकास रुक जाता है तथा एक उदासी,बैचेनी का साम्राज्य परिवार में फैल जाता है. हमारे पूर्वजों के द्वारा किये गए बुरे कार्यों का परिणाम भी इसी श्रेणी में आता है ,जो की उनके प्रतिनिधि के रूप में हमें भोगना होता है,अर्थात पितृ दोष को भी हम इसी दोष के अंतर्गत रखते हैं.
शाप दोष- हमारे कर्मों के द्वारा किसी अन्य का ह्रदय दुखने से,उसका अहित होने से भी स्वयं के जीवन का योग दुर्भाग्य से हो जाता है. ब्रह्माण्ड भावों की तीव्रता से अछूता नहीं है,और इसी कारण हमारे भाव साकार रूप में हमारे सामने आ जाते हैं, इसक सिद्धांत ये है की हमारे मन में चल रहे भाव का योग जैसे ही उस भाव विशेष के स्वामी काल क्षणों से होता है तो वे भाव भाव ना रहकर साकार रूप में हमारे जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं. इसी कारण किसी के द्वारा पूर्ण शांत ह्रदय से दिया गया आशीष और किसी के पीड़ित ह्रदय से निकली आह फलीभूत होती है,और याद रखिये की ब्रह्माण्ड नकारात्मक को कही तीव्रता से स्वीकार भी करता है और उसके परिणाम को उससे कही अधिक तीव्रता से प्रदान भी करता है,क्यूंकि ऐसे में मात्र ऊर्जा का विखंडन करना ही होता है जो की सहज है अपेक्षाकृत सकारात्मक भावों से प्रेरित ऊर्जा के संलयन के.अर्थात आशीर्वाद फलीभूत होने में समय ले सकते है किन्तु श्राप समय नहीं लेता है. इस दोष के अंतर्गत वास्तुदोष भी आता है अर्थात जिस भूमि पर आप रह रहे हैं,परिस्थितियों, श्राप,काल या घटनाओं के कारण उसमे विकृति आ जाती है और वो भूमि,भवन निरंतर नकारात्मक ऊर्जा छोड़ते हैं,जिससे दुर्भाग्य का साम्राज्य व्यक्ति विशेष के जीवन में समाहित हो जाता है.
नवग्रह दोष- व्यक्ति के जन्मसमय में ग्रहों की आधार स्थिति कैसी थी, नक्षत्रों का उस पर क्या प्रभाव पड़ रहा था,किस ग्रह के भुक्तफल को भोगते हुए उसका जन्म हुआ है, उन्नति प्रदायक ग्रहों के कमजोर होने से तथा शत्रु ग्रहों के बलवान होने से, ग्रहों की महादशा,अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा,सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशाओं के स्वामी का उस दशा विशेष में जातक के ऊपर क्या परिणाम होगा,उसे कितनी हानि या लाभ होगा आदि तथ्य इसी प्रकार निर्धारित होते है. अतः इसका ज्ञान भी कुंडली द्वारा किया जा सकता है.
तंत्रबाधा दोष – आपकी निरंतर उन्नति,परिवार में व्याप्त प्रसन्नता व आनंद को देखकर या किसी शत्रुता के कारण कई ऐसे निकृष्ट कर्म विरोधियों द्वारा आपके विरुद्ध संपन्न कर दिए जाते हैं, जिससे सौभाग्य परिवार और स्वयं से कोसों दूर हो जाता है, तंत्र की ये क्रिया करने में कोई विशेषज्ञता की आवशयकता नहीं होती है,या तो तीव्र तंत्र बल से या फिर तंत्र सामग्रियों का निकृष्ट काल और शक्तियों से योग कराकर पिशाच शक्तियों के द्वारा किसी का भी जीवन तहस नहस किया जा सकता है, क्यूंकि भवन निर्माण में कुशलता और अनुभव की प्रधानता होती है, जहाँ अंधाधुंध विनाश की बात है वहाँ बिना किसी कुशलता के मात्र आप आंख मूँद कर भी पत्त्थर फेकोगे तो कही न कही तो नुक्सान होता ही है.
उपरोक्त सात में से कोई भी एक कारण आपके और आपके परिवार तथा स्वजनों के दुर्भाग्य का कारण हो सकता है,आर्थिक रूप से टूटते जाना,पति या पत्नी का विपरीत हो जाना,संतान का गलत मार्ग पर बढ़ना, भ्रमित मानसिकता से गलत निर्णयों का उत्पन्न होना, गर्भपात या गर्भ का ना टिकना, अकाल दुर्घटना, शारीरक व्याधियों तथा रोगों का जन्म,साधना में असफलता, बदनामी, चिडचिडाहट,गलत राह पर अग्रसर होना, मुकदमों में फसे रहना,राज्य द्वारा निरंतर बाधा उत्पन्न करना,अवसाद ग्रस्त होना,निरंतर अवनति तथा दारिद्रय युक्त जीवन जीना आदि उपरोक्त दोषों का ही परिणाम है .
अब ऐसे में हमें समझ में ही नहीं आता है की आखिर हम उपाय क्या करे,हमें जो जैसा बता देता है हम वैसा ही करते हैं और नतीजा ढाक के तीन पात वाला होता है. क्योंकि जब तक हमें समस्या का मूल कारण ही नहीं पाता होगा तब तक उसका उचित समाधान नहीं किया जा सकता है, क्यूंकि पेटदर्द की औषधि से गले का दर्द तो ठीक नहीं किया जा सकता है.
किन्तु अवधूतेश्वर कालेशचिंतामणि साबरी प्रयोग के द्वारा उपरोक्त सातो स्थितियों पर पूर्ण नियंत्रण पाया जा सकता है ,वस्तुतः ये मंत्र उन बीज मन्त्रों के द्वारा निर्मित हुआ है जिनसे सभी प्रकार के दोषों का नाश होता है,शिवरात्रि से होली तक इस प्रयोग को करने पर तीव्रता से लाभ प्राप्त किया जा सकता है अन्य दिवसों में ये साधना २१ दिन की होती है, रात्री के १०.३० से १२.४५ तक नित्य इसका जप किया जाता है ,इस साधना में कोई विनियोग या ध्यान नहीं किया जाता है,दक्षिण दिशा की और मुख करके काला आसन पर बैठ कर,काले वस्त्रों को धारण कर सामने बाजोट पर काला वस्त्र बिछाकर उसपर पारद शिवलिंग या कोई भी चैतन्य शिवलिंग की स्थापना स्टील पात्र में की जाये और सर्वप्रथम सदगुरुदेव,भगवान गणपति, भगवान भैरव और भगवान अघोर का पूजन कर उनसे इस साधना में सफलता की प्रार्थना तथा आज्ञा ली जाये, शिवलिंग के बाएं तरफ तेल का दीपक स्थान होगा तथा दाहिने तरफ ताम्रपात्र में जल का कलश स्थापित होगा.उस ताम्रपात्र में जो जल भरा जायेगा वो सभी सदस्यों के द्वारा स्पर्श किया हुआ होना चाहिए,अर्थात सभी परिवार के सदस्य उसमे पूर्ण स्वच्छ होकर थोडा थोडा जल डालेंगे तथा पूर्ण बाधा नाश की प्रार्थना करेंगे.
इसके बाद साधक शिवलिंग का पूर्ण पूजन करे,अर्थात अक्षत,पुष्प,धुप दीप,भस्म,तिल के लड्डुओं के नैवेद्य द्वारा पूजन करे ,तथा काले हकीक,रुद्राक्ष माला द्वारा ७ माला निम्न मंत्र का जप करे,प्रत्येक माला की समाप्ति पर काले तिल,कालीमिर्च,सरसों और लौंग अर्पित कर दे.
ॐ पिशाचि पर्णशबरि सर्वोपद्रवनाशनि स्वाहा ||
OM PISHAACHI PARNASHBARI SARVOPDRAVNASHNI SWAHA ||
इस मंत्र के बाद पूर्ण स्थिर चित्त होकर माला को धारण कर पुनः उपरोक्त सामग्री को निम्न मंत्र के साथ धीरे धीरे बिना किसी माला के जप करते शिवलिंग पर चढाते रहे,लगभग ४५ मिनट तक ये क्रिया करनी है .
ॐ ह्लौं ग्लौं क्लीं ग्लीं ॐ फट ||
OM HLOUM GLOUM KLEEM GLEEM OM PHAT ||
इसके बाद फिर से पहले वाला मंत्र ७ माला जप करते हुए सामग्री चढाएं. नित्य यही क्रम करना है,प्रतिदिन सामग्री को अलग कर पास में एक मिटटी का पात्र रख उसमे डाल दे, जप काल में शरीर का तापमान बढ़ जाता है,सर दर्द करता है,साधना के प्रति उपेक्षा का भाव आता है,कंपकपी तथा पसीना तीव्रता से निकलता है,भय लग सकता है.ऐसा लगता है जैसे कोई और साथ में वहाँ पर है.यदि हम शिवरात्रि से ये प्रयोग करते हैं तो मात्र ७ दिन का ही ये प्रयोग है, जो भी सामग्री ७ दिनों में इकट्ठी हुयी हो उसे उसी काले कपडे में बाँध कर जप माला तथा नैवेद्य के सभी लड्डुओं समेत होली की रात्रि में होलिकाग्नी में दक्षिण की और मुह कर डाल दे, साथ ही कुछ दक्षिणा अर्पित कर दे. यदि आप अन्य दिवसों में साधना कर रहे हैं तो २१ वे दिन किसी वीरान जगह पर अग्नि प्रज्वलित कर दक्षिण मुख हो कर ये सामग्री डाल दे. जैसे ही हम सामग्री को अग्नि में अर्पित करते हैं तो चीत्कार और कोलाहल सा सुनाई देने लगता है,घर आकर स्नान करतथा कलश में जो जल है वो पूरे घर और सभी सदस्यों पर छिड़क दे,तथा अगलेदिन ३ कन्याओं तथा एक बालक को भोजन कराकर दक्षिणा देकर तृप्त कर दें. इस प्रकार ये अद्विय्तीय प्रयोग पूर्ण होता है. सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त ये प्रयोग मेरा खुद का अनुभूत है और इससे तीव्र प्रयोग मैंने अभी तक नहीं देखा है. इसका लाभ मैंने उठाया है,अतः आप सभी भी इस प्रयोग से लाभ ले सकते हैं.
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****NPRU****
Days ondays i was getting more involved in my sadhna.. My concentration graph was justincreasing day by day and along with that the depthness of mantra chanting too.As per sadgurudev’s instruction i had to this mantra sadhna with moreconcentration. Actually this is a two stage sadhna where in i have to get blessingsof VigyanGanpati, thereafter i have to use such mantras via which nathsiddhaasare called up. Ensuing of the hard meditation of God Dattatrey, the placesituated at the bank of Godaveririver known as RakshasBhuvan and due thatmeditation only the god Dattaestableshed the VigyanGanpati at this place. Thisis just 33 miles far away from Janla.
Sadgurudevtold that he had siddh the Ganpati’s various forms at their original root placesand with his unappreciated meditational power he explored those secrets whichgot dissappeared due to time lapsation. He then told that this form of LordGanpati reveals the screts of Tantravigyaninfront of sadhak. Along with themantra and thier principles it expressess and gavessadhak such experiences inwhich he came to knowthe main processofdoing this sadhna. Well along withthis procedure if u call the nathsiddh then so easily u can get their selfguidence from them. And this is how they fulfilur utter wish also. Due to thefact of God Dattatreysiddh place many secrets are attached about the originsof Siddha Lok also.
Withthe order of Sadgurudevi was in researching “NavnathSadhnaPaddhti” and myaim was to attain their association and via them understanding the secrets ofthose mantras which are termed as inaccessable. In the same sequence i have to doAvahan of the Nathsiddh “SiddhRevannath” and had to understand the wholeprocess named “PurnaTantraBaadha and SaptdoshNashak – AvadhuteshvarKaleshchintamaniSabariprayog”. Then concentrating on AvahanGutikathereby continously chanted upanshu mantra ofit via which the Avahan process get completes.Sadgurudev told that the process of KaleshchintamaniSabariprayog secrets can understood only by SiddhRevannaathand only by hisblessings the success can be achieved.
When Sadgurudev permitted me to do this sadhna then I asked him “Oh my lord, why only this sequence which works for attaining success in this sadhna.”
While resolving my curiosity, Sadgurudev said – “several times person is affected with obstacles, due to which he faces difficulties in financial, societal, mental, familiar condition becomes weak and in resultant a person’s life gets spoil completely. At certain situation we always blame the external badha for it. But the fact is sheer half-truth. And in case if this is true still we can’t identify what’s the problem’s original form is because in detrition and degradation mainly 7 reasons are identified due to which a person gets diverted from his success path to failure path because of anxiety and everything comes on stake.
Theseobstacles are external and internal types. Well removing them totally is notpossible just by one sadhna. And even we really not aware what exactly theproblem types is. And when we desire the information regarding its solutionthen we get just tricked by any one on name of tantrabadha etc. and this ishow he gets stucked from both the side. And on top of it, its not necessarythat whatever u r asking for help is the same help u get from other person imean not necessarily he is the right one for it. Exactly same goes in Tantra.means all the process of tantra isknown by any single tantrik is justimpossible or rare. But nath siddhas had done continous work on the new sadhnaprocedures and contributed in society. In same squence the “SiddhRevannaath”comes which is the form of tantra great scholarLankadhipatiRavan. And beingthe follower of Tantra field he explored new secrets and imbibed too. By Lordshiva he penned down the various difficult sadhna procedures. In same sequence earned“PurnaTantraBaadha and SaptdoshNashak – AvadhuteshvarKaleshchintamaniSabariprayog”.
Thereforethis can be understood by them only. After taking Sadgurudev’s permission itherby came to jalna and pull on the sadhna as per instruction.First i have to take blessings of Lord VigyanGanpati and then Avahan process of Naath, somehow i completed both the stagesproperly and i got association of that Mahasiddh. Well here i can express what typeof knowledge i got from that mahasiddh..any other time..
Aftercompletion when he appeared infront of me then while giving me the mantra ofthatAvadhuteshvarKaleshchintamanisabriprayogand understand this from urSadguru “NikhileshvarnandJi” because each guru flows a different type ofmeditational energy in his disciple as thats is achieved from the continousrubbing of guru’s pran. And how to attain the success in sadhna, what are thepoints to be undertaken, how to complete it and get benifit from it whole thisis depends upon the sadguru’sMantreshvar form which decides how capable hisdeisciple is. Only he can make the difficult sadhna in to easiest for for hisshishya. Well all this facts can only be told by sadgurudev.
Wheni put my curiosity via this mantra and whole procedure infront of sadgurudev,he said by this mantra the seven types of faults can be vanish off. The 7 faults are –
AdhidevikDosh – Sometimes sadhak’sKuldevi and Devta (own diety) gets angry with himmeans if they are not worshipped accordingly. if they are not taken care withproper procedures due to carelessness or laziness then in that case thesuraksha chakra of diety gets slowdown else get break also. so he doesnt getthe blessings of them and resultant he bogged up with unfortune.
IshtaDosh – every person is a part of specific God power and on the same fact hisIsht is also decided.but many times sadhakdoesnt know about this fact. this isonly known to sadguru only. But when sadhak doesn’t express any curiosity toknowing it then in that case in sake of illusion or greed he just startworshipping any god and make him his isht. And in such circumstances its notneccessary that chosen god is friendly with his diety. Sometimes due o pastlife effects the enemy can be any Devshakti also because every sadhakgets which association of devshakti or which qualitymatched up with the prangat form which is really unknown to sadhak. And even hecant find out on his own. Then in such situation he gets attracted towards theexaggerated incidence and in greed of earning more and just starts praying anygod and original one gets ignore somehow in such condition. sosadhak becomesdetached with his own diety blessings. then insuch case he gets sheer lossess instead of benifits. And all this is just outof his understanding as his base is unclear.
Karmadosh– Every person gets malefics of three types of Karma – Praarabdh(pastlife done), Sanchit(accumulated) and Kriyaamaan(present). Let assume in this life youhave done continous good work but the lackings of life are just iresistable notgetting less in any case. Then in such condition we just get enable tounderstand as what type of fault we have done that such problems we r facing inthis life as single happiness doesn’t comes to us niether a sign of progress isdisplayed. Now this knowledge can be given only by guru or it can be figure outvia his Kundalini also. Even this can be know as to which malefics we r facing.Are they related to our pastlives effects, accumultaed or presents karmas.
AadharDosh – Sometimes our demotion reason is our moh, love and duty. Means there issome one who is so attached to us or close to us. As that loved one is so muchbogged up with hurdles and unfortune in his life and we just pray for himbyheart and even try to removes it. But in such condition we didn’t realisethat this is otherway around inviting our misfortune also. And the faultsrelated to moh is so horrible that not only we but also our family gets incircle of this unfortune. And progress of whole family becomes on stake. Adifferent types of depression, anxiety and imperialism covered up. Even the badwork done by our ancestors also influences us which we bear as hisrepresentative. I mean Pitradosh is also considered in this.
ShaapDosh – By our karmas we hurt anybody, or do wrong with him directly leads us toour bad luck. The cosmos is not untouched with bhavs and so that our bhavscomes infront of us in real form. The principle behind this is when our mind isfilled with such bhavs and when it coincides with the lord of those bhavsturned into real form in our life. then they dont stay as bhav but becomes thereal feeling. Thats the reason any one who desires with silence or the one whois so hurt and desire gets definitely fulfil. Plz be adhere that cosmos getsattracted toward negativity more and accepts soon. And returns back its resultin more broader form. Because in this only power has be distributed in orderwith positivity. It simply means that fruits of boons can be late but cursewill be applicable instantly. It includes Vaastudosh also mean the place whereu r residing, the situations, the cures, the time and the incidences becomeshorrible and that building or place flows with negativity always. And inresults the imperialism of misfortune just flowscontinously on sadhak.
NavgrahDosh – At the time of birth what is the planetary position, stars and whateffects on stars, in which dasha he took birth,position of progressive planets,enemy planets, all types of dashas their malefics and benefics effects onsadhak, how much benefits or losses he will face is entirely depend upon theseabove facts. Well this is identified by the Kundali.
TantraBaadha Dosh – Your continous progress, family happiness and due to any enemitymany accomplshes the bad thing on you.which results in bad fortune of you andyour family. Well no special learnings are required for doing this bad things. Withsheer combination of tantrik things, powers this can be done easily. because inconstruction of building the experts are required but in doing blinddestruction no expertise is required as when you will throw stones somewherearound it will hit only.
Aboveany 7 or any of it can be the reason of your misfortune of you or you r familyrelatives. breaking of financial condition, seperation of husband wife,stepping of children on wrong path, illusionary metality decisions,miscarriages, conception problem, physical diseases, failures in sadhna,mispublicity, irritation, following wrong path, problems in court cases,national problems, depression, continous demotion, poverty etc are results ofthese 7 faults only.
Nowin this situation we really dont understand what to be done. Whosover guide uswe just do it and result is always unfavourable. Because if we dont know theroute cause of our problems we cant find right solution on it. exactly like thestomache medicine cant cure the neck pain.
But by AvadhuteshvarKaleshchintamaniSabariprayogabove all 7 faultscan be cure and get in control fully. Defacto this mantra is originated fromthe beej mantra which vanishes all faults. From Shivratri to Holi in this spanif this sadhna is performed the best results can be achieved. And in other daysonly 21 days are to be undertaken.Atnight around 10.30 pm to 12.45 pm daily chanting s done. In this sadhna no prerules are applicable. facing towards south direction placing on black asana, wearingblack clothes, establish the Paradshivling or any activated shivling on smalltable. This should be done in steel plate. First of all sadgurudev worship,then lord Ganpati,lord Bhairav and lordAghor , request them to bow u success in this sadhna and permission too. Thenon left side of Shivlingenlight the oil lamp and on right water filled in coppervessel should be kept. Well that vessel must be touched with all the members offamily. Means every one should take bath the put some water into that vesseland pray for complete cure.
Thereaftersadhak should do complete worshipp of Shivling with Akshat (rice), flowers,dhup, lamp, sesame laddu, black hakik rosary, rudraksh rosary. Chant it for 7-7 times and then offer back sesame, black pepper, mustard and cloves.
OM PISHAACHI PARNASHBARI SARVOPDRAVNASHNI SWAHA ||
Thenafter this mantra with full concentration wear that rosary and by that samagriagain chant this mantra without any rosary and offer it. Do it for 45 minutes.
OM HLOUM GLOUM KLEEM GLEEM OM PHAT ||
Then after again chant the previous mantra 7 rosary and offer those samagri. Do this daily and collect the samgri in any mud pot. While chanting the body temperature increases, headache, bad feeling regarding sadhna, shakiness, sweating continuously happens. Even little bit fear or u feel like someone is along wid u. If we start it from Shivratri then only for seven days we have to do this sadhna. Whatever collected in those seven days should be tied in any black cloth along with jap mala, sweets sesame laddu should be offered in Holika Agni facing south direction and devote some dakshina also. Ifyou want to do it on any other days then for 21 days and on last day fire onany lone place and devote it in facing towards south. The moment we offer it infire the loud noises comes out. After coming back to home just take shower and thensprinkle that water in copper vessel on each member of the house. Then on nextday offer food to 3 girls and 1 boy and give them some dakshina also. THis ishow this Divine prayog given by Sadgurudev is self experienced. And above thissharp prayog no other prayogi have seen till now in my life. I have takenbenifits of it and you also can take.
****NPRU****
3 comments:
ati mahatvapoorna aur durlabh prayog.AMEZING,WONDERFUL.
MUKESH SAXENA
Bhai agar 21 days kar rahin hain to koun se din se suru karna hai aur 21th day ko kya raat main hi use viran jagah par agni aine fenkna hain
Bhai ek vishes bat kya nitya hi kalas main jaal bharna hia aur pehle wale din ka jaal kya karine
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