Wednesday, December 9, 2020

Important Information/ एक आवश्यक, विशिष्ट सूचना










Jai Sadgurudev,

Dear affectionates

Important information for all of you –

As our group Nikhil Para-science Research Unit has been registered as an institution, there are number of works now being done by us.

  1-      Creation of parad shivalings and Shri yantras  with 16 sansakar processed mercury.

2- Solving the problem of any person through specific rituals

 3- Vedic astrology system, Prashn kundali (astrology related to specific question), astrology results and predictions, and related problems, horoscope making

      4 - Complete removal of any kind of tantra hindrance, phantom barrier through tantric   ritual,

      5- Solution of any enemy related problem (or enemies) or tantra obstacle through Mahakali and Bhairav prayog

      6- In addition to this, there are specific Baglamukhi rituals in which you can get complete victory in social, political and court cases ---

other than this there is a list of some special yantras available in a limited number since they belong to the time of our Sadgurudev. You can see the list in hindi below. 

 

For this you can contact--

 

mail id- 214rajni@gmail.com/ 123npru@gmail.com

 

call / whatsapp-8305704084

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जय सद्गुरुदेव

स्नेही स्वजन

आप सब लोगो के लिए एक विशेष जानकारी----

कि अब निखिल परा विज्ञान शोध (इकाई) जो अब संस्थान के रूप मे रजिस्टर्ड हो चुका है |

अब हमारे संस्थान के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कारी किए जा रहे हैं ---

1-  8 से 10 संस्कार युक्त पारद मे, 16 संस्कारो के संपुटन के साथ पारद शिवलिंग व श्री यंत्र का निर्माण कार्य

2-  विशिष्ट अनुष्ठानों के माध्यम से किसी भी व्यक्ति की समस्या का समाधान

3-  वैदिक ज्योतिष तंत्र ज्योतिष व प्रश्न ज्योतिष के माध्यम से फलित व भविष्य वाणी, व उससे संबन्धित समस्या का समाधान, कुंडली निर्माण

4-  तांत्रिक अनुष्ठान के माध्यम से किसी भी तरह की तंत्र बाधा,प्रेत बाधा का पूर्ण निराकरण,

5-  कैसी भी शत्रु बाधा हो या तंत्र बाधा हो का समाधान महाकाली व भैरव अनुष्ठान के माध्यम से,

6-  इसके साथ ही विशिष्ट बगलामुखी अनुष्ठान जिसमे आप पा सकते हैं सामाजिक राजनैतिक, व कोर्ट कचहरी मुकदमो मे पूर्ण विजय |

विशिष्ट यंत्र--

ये सभी यंत्र सद्गुरुदेव के समय के हैं तथा साधना विधि के साथ उपलब्ध हैं एवं सीमित संख्या मे उपलब्ध हैं| इच्छुक साधक शीघ्र संपर्क करें

v  सिद्धाश्रम देव लक्ष्मी यंत्र

v  लक्ष्मी महा यंत्र

v  बटुक भैरव यंत्र

v  विजय यंत्र

v  काल भैरव यंत्र

v  मृतुंजय शिव यंत्र

v  सम्मोहन यंत्र

v  गुरु प्रत्यक्ष सिद्धि यंत्र

v  पूर्व जीवन दर्शन यंत्र

v  ब्रह्मास्त्र यंत्र

v  भोगवरदा यंत्र

v  त्वरिता यंत्र

v  कुबेर यंत्र

v  गुरु प्राण स्थापन यंत्र

v  अहम ब्रह्मासमी यंत्र

v  सिद्धिदात्री यंत्र

v  षट चक्र एवं भविष्य सिद्धि यंत्र

v  नरसिम्हा यंत्र

v  चतुवष्ठी/ चौसठ योगिनी यंत्र

v  अनंग यंत्र

v  दुर्गा महा यंत्र

v  पशुपति नाथ शिव यंत्र

v  अघोर पीड़ा नाशक यंत्र

v  गणपती यंत्र

v  हनुमान यंत्र

इसके साथ सौंदर्य लूटिका प्रभेदा महायन्त्र, दृश्य शक्ति परा नविता यंत्र, साबर औलिया यंत्र, किन्नरोत्तमा साधन यंत्र, शून्य साधना यंत्र, नील तारा यंत्र, रसायन मेखला यंत्र (NPRU) के द्वारा साधना विधि के साथ उपलब्ध|

 


इस हेतु आप संपर्क कर सकते हैं--

mail id- 214rajni@gmail.com/ 123npru@gmail.com

call/whatsapp-8305704084

Sunday, June 7, 2020

जय सद्गुरुदेव
स्नेही स्वजन !
बहुत समय के पश्चात आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत हूं क्षमा प्रार्थी हूं क्योंकी आपकी अपेक्षा पर मैं शायद खरी नहीं उतर सकी ... अनेक कारण हैं .... किंतु अभी सिर्फ एक कारण कि जिम्मेदारी के कारण समय का अभाव किंतु अभि प्रमुख कारण ये है कि गुरुदेव के कार्य हेतू जो १४ पारद शिवलिंग १६ संस्कार वाले तैयार किये गये थे वे अब मुझपे कर्ज होते जा रहे हैं, मेरी प्रमुख जिम्मेदारी है कि या इन्हे जिस हेतू तैयार किया गया है उन्हे वही स्थापित करूं या किसी योग्य साधक को सौप दू ,
तो जिस  भी साधक को इसकी अपेक्षा  हो वो कृपया एक बार सोचें अवश्य ..... संपर्क के लिये मो नं 8305704084

इसमें  कुछ भी छल या व्यापार कि कोशिश नही है . कृपया /\
निखिल प्रणाम 
आपकी रजनी निखिल 

vishisht paarad shivling






Wednesday, June 20, 2018

संगीत के सात स्वर और सात चक्र

जय सगुरुदेव /\
स्नेही स्वजन !
संगीत के सात स्वर और सात चक्र ---




नोट :- इस  लेख केवल वहीं काम करें  जो कला संगीत में साक्षरता प्राप्त हो अन्यथा किसी अनुभवी कलाकारों के सानिधय में रियाज या प्रेक्टिस में हैं ,अन्यथा इसके विपरीत परिणाम आ सकते हैं-----
संगीत से................ कुंडलिनी जागरण

                 प्राचीन काल से ही मनुष्यों का सबंध संगीत से जुडा रहा हैं । उस दौर में संगीत को मनुष्य ने अपने भाव को व्यक्त करने का एक उत्तम माध्यम बनाया था । प्राचीन काल में यह केवल एक मनोरंजन का स्त्रोत ही नहीं था । हमारे कई ऋषि मुनि संगीत शाश्त्र में निपूर्ण भी थे । और आज भी कई उच्च कोटि के योगीजन संगीत में पूर्ण दखल रखते है । उनको इस का ज्ञान भी है । जो भक्ती भाव में डूवे हुवे थे उन को भी संगित का रंग चढ चुका था । क्या हमने कभी सोचा था की जो हमेशा इष्ट के आनंद में रमे रहते थे । उन्हें यह बाहरी मनोरंजन के माध्यम संगीत की क्या जरुरत हैं ? कैसी कौन सी शक्ति थी की इन को भी मंत्रमुग्ध कर गयी ?
                 संगीत का मतलब आज क्या लिया जाता है ?  ये कहा नहीं जा सकता लेकिन प्राचीन काल में ये एक आध्यात्मिक माध्यम का ही हिस्सा था । संगीत के माध्यम से ही कई लोगो ने पूर्णता प्राप्त की हैं । मीराबाई या फिर नरसिंह जैसे कई उदाहरण  हमारे सामने ही हैं । तो फिर यह भेद क्यों ?
                 वास्तव में हमने संगीत को कभी समझा ही नहीं । भंवरे की गुंजन भी एक प्रकार से संगीत ही हैं । जिसे रोज सुना जाये तो आदमी धीरे धीरे विचार शून्य हो जाता हैं । सामान्य मनुष्यों को संगीत मनोरंजन का माध्यम लगता है । समय काटने का प्रबन्ध लगे लेकिन योगीजन के लिए संगीत बहुत गहरी परिभाषा लिए हुए हैं ।
                 ध्वनि की महत्ता निर्विवाद रूप से मानी जाती हैं  और एक विशेष ध्वनि कोई न कोई विशेष उर्जा प्रसारित करती ही हैं । संगीत के सप्तक या सात स्वर सा रे ग म प् ध नि आदि शब्द कोई सामान्य शब्द समूह नहीं हैं । देने को तो इन ध्वनियों को कुछ भी उच्चारण दे दिया जाता है । लेकिन सा रे ग म प ध नि का गहन अर्थ हैं । जब एक विशेष लय के साथ एक मूल ध्वनि सम्मिलित होती हे तो वह शरीर में किसी एक विशेष चक्र को स्पंदित करती हैं ।
               सभी स्वर अपने आप में तत्वों के प्रतिनिधि करये हैं । और हर सुर एक विशेष तत्व के ऊपर अपना प्रभुत्व रखता हैं । जिसमे सा- पृथ्वी, रे, ग – जल तत्व म, प – अग्नि तत्व ध- वायु और नि- आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता हैं ।
               अब जिस तरह से ये सप्त सुर हैं । उसी तरह शरीर में सप्त सुरिकाए हैं । जहाँ से सुर का या ध्वनि की रचना होती हैं । यह हे सर, नासिका, मुख-कंठ, ह्रदय (फेफड़े), नाभि, पेडू और ऊसन्धि । ध्यान से देखा जाए तो ये सारी जगह शरीर के सप्त चक्रों के अत्यंत ही नजदीक हैं । अब इस तरह संगीत तंत्र में कुण्डलिनी सबंध में सप्त सुर एक एक चक्र को स्पंदित करने में सहयोगी हैं ।

सा – मूलाधार ( पृथ्वी तत्व, सुरिका- ऊसन्धि)

रे – स्वाधिष्ठान( जल तत्व , सुरिका – पेडू )

ग – मणिपुर (जल तत्व , सुरिका – नाभि )

म – अनाहत ( अग्नि तत्व, सुरिका – ह्रदय)

प – विशुद्ध ( अग्नि तत्व, सुरिका – कंठ)

ध – आज्ञा ( वायु तत्व, सुरिका – नासिका)

नि – सहस्त्रार ( आकाश तत्व, सुरिका – मस्तक)

                  इन स्वरों का, उपरोक्त स्वरिकाओ से सबंधित चक्र का ध्यान करने से चक्र जागरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं । और उस से कई विशेष अनुभव होने लगते हैं । मगर ये चक्र जागरण होता हैं । भेदन नहीं होता ।
                 इसी लिए विभ्भिन रागों की रचना हुयी हैं । जिसमे ध्वनिओ के संयोग से कोई विशेष राग निर्मित किया जाता हैं  जो की वह विशेष चक्र को भेदन कर सकता हैं ।
                जैसे मालकोष राग के माध्यम से विशुद्ध चक्र को जाग्रत किया जा सकता है । इसी प्रकार कल्याण राग के निरंतर अभ्यास से भी विशुद्ध चक्र को स्पंदन प्राप्त होता है और वो जाग्रत हो जाता है । और एक बार जब ये चक्र जाग्रत हो जाता है तो साधक वायुमंडल में व्याप्त तरंगों को महसूस कर सकता है ।  उन्हें ध्वनियों में परिवर्तित कर सकता है । पर कल्याण राग जैसा राग सांयकाल के समय ही गाना उचित होता है । अर्थात सूर्य अस्त के तुरंत उपरांत । नन्द राग के द्वारा मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है, और वेदों का सही अर्थ व्यक्ति तभी समझ सकता है जब उसका मूलाधार पूरी तरह जाग्रत हो जाता है । इस राग को रात्रि के दुसरे प्रहार में गाना चाहिए । ठाट बिलाबल राग देवगिरी के प्रयोग से अनाहत चक्र की जाग्रति होती है । व्यक्ति अनहद नाद को सुनने में और उसकी शक्तियों की प्राप्ति में सक्षम हो जाता है । इसी प्रकार सभी राग किसी न किसी चक्र को स्पंदित करते ही हैं ।
                     लेकिन क्या, संगीत सिर्फ कुण्डलिनी जागरण के लिए ही हैं ? ये गहन बिचार मानसपटल में अंकुरित होना लाजमी है । पर संगीत केवल कुंडलिनी जागरण के लिये नहीं होता । संगीत की शक्ति से तानसेन ने दीपक राग का प्रयोग कर जहां दीपकों को प्रज्वलित कर दिया था वही बैजू बावरे ने संगीत के एक विशेष राग का प्रयोग कर पत्थर को पिघलाकर उसमे अपना तानपुरा दाल दिया था । और राग बंद कर दिया था । जिससे की वो तानपुरा उस पिघले हुए पत्थर में ही जम गया था । ये सब तो कुछ उदाहरण मात्र हैं । संगीत भी अपने आप में एक पूर्ण तंत्र है । ब्रम्हांड के सभी पदार्थ ५ तत्व से ही निर्मित हैं । संगीत के सप्त सुर इन ५ तत्वों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं । संगीत से किसी विशेष सुर या राग के माध्यम से हम अपना वायु तत्व बढ़ाले और भूमि एवं जल तत्व को कम करदे तो मनुष्य अद्रश्य एवं वायुगमन सिद्धि प्राप्त कर लेता हैं । यदि साधक सही तरीके से संगीत का प्रयोग करे तो बाह्य चीजों पर भी यही प्रयोग करके उसे भी अद्रश्य कर सकता है । या फिर उसके तत्वों के साथ संयोग करके तत्वों को बदल ने पर उसका परिवर्तन भी संभव हैं । या फिर संगीत के माध्यम से हवा में ही सबंधित कोई भी वस्तु के तत्वों को संयोजित कर के उसे कुछ ही क्षणों में प्राप्त किया जा सकता हैं । वास्तव में ही संगीत मात्र मनोरंजन नहीं हैं । हमारे ऋषि मुनि अत्यंत ही उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे मगर हमने उने कभी भी समझने की कोशिश नहीं की हैं । हमने जभी भी उनको देखा तो केवल तिरस्कार की दृष्टि से ही देखा । हम ने कभी उने और उनकी विशेषता को नही पहचाना । जिस की बहूत बडी कीमत हमे आज बर्तमान में चुकानी पढ रही है । आज उनकी आवश्यकता महसुस हो रही है ।
खेर बहरहाल अगर कोई व्यक्ति संगीत प्रेमी है और वह संगीत साधना की ओर अग्रसर होकर अपनी कुंडली पर काम करना चाहता है तो
इस पर सोच सकता है और इसे भी क्रियान्वित  कर सकता है
रजनी निखिल 
निखिल प्रणाम 
निखिल परा विज्ञान शोध इकाई 





Thursday, February 8, 2018

षट्कर्म और तंत्र प्रतीक




जय सदगुरुदेव /\ 

स्नेही स्वजन !

आवाहन....... आवाहन ........आवाहन .......

परिक्ष्याकारिणी श्रीश्चिरं तिष्ठति|

अर्थात “जो कार्य की सत्यता, असत्यता को समझकर जानकर कार्य में प्रवृत्त होता है ऐसे व्यक्ति में लक्ष्मी चिरकाल तक निवास करती है”

अधिकांशतः हम साधना या कोई अनजाने कार्य में आधी-अधूरी जानकारी के साथ प्रवृत्त हो जाते हैं जिससे साधक या व्यक्ति को सिर्फ असफलता का ही सामना करना पड़ता है | इनसे साधन की कुछ गुप्त कुंजिया होती हैं जिनका अनुसरण और प्रयोग करते हुए यदि प्रमाणिक विधान किया जाये तो सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते हैं | हमारी कार्मिक गति के आधार पर भले ही सफलता मिलने में विलम्ब हो सकता है किन्तु परिश्रम करने पर सफलता न मिले ऐंसा हो हि नहीं सकता | साधना में देश काल वातावरण को अपने अनुकूल करने हेतु यंत्र, आसन, माला इत्यादि की आवश्यकता होती ही है इसे कोई भी नकार नहीं सकता | क्योकि यंत्र उपकरण के बिना तंत्र संभव ही नहीं है, पूर्ण विधान सामग्री के साथ कोई भी साधना सम्पन्न की जाये तो सफलता मिलनी है इसके आभाव में साधना में पूर्णता दुस्कर है अन्य साधना की तरह ही तांत्रिक षट्कर्म में यंत्र विशेस की आनिवार्यता है इसे तैयार करने की विशेष पद्धति है, और इनमें उनसे समबन्धित शक्तियों का आवाहन और स्थापन आदि कर्म संपादित  किये जाते हैं, जिससे हम अपेक्षाकृत अधिक सरल तरीके से सफलता प्राप्त कर सकते हैं

तंत्र एक विज्ञानं है और इसमें प्रत्येक यंत्र निर्माण की अलग पद्धति होती है और प्रत्येक देवता के अगम शास्त्र में तीन रूप बताये गए हैं मन्त्र रूप, यंत्र रूप और तंत्र रूप |

इन तीन रूपों के आधार देव शक्तियों से संपर्क स्थापित करना ही साधना कहलाता है और एक के आभाव दुसरे की साधना संभव नहीं है मंत्रो के स्वर में देव शक्तियों के स्वरुप और मन्त्र वर्णों के कम्पन में उन देवता की स्वरशक्ति विद्दमान होती है |

और इसे मनः शक्ति की साधना द्वारा मन्त्र और प्राण शक्ति की साधना द्वारा यंत्र की पूर्ण जाती है सामान्य रूप से तंत्र मंडलों में तीन उपमंडल होते हैं जिनमें से हर मण्डल की अलग विशेसता होती है और ये शक्ति के तीन विभिन्न रूपों का प्रतिनिधत्व भी करते हैं |

इन तीनों मंडलों में से एक मण्डल रक्षा कार्य कार्य को सम्पादित करता है और उर्जा को सतत बांये रखता है | ये शिव तत्व से सम्बंधित होते हैं |

एक मण्डल क्रिया को गति देता है और विस्तारित करता है और अभीष्ट शक्ति के आवाहन में सहायक होता है तथा ये विद्या तत्व का प्रतिनिधित्व करता है एक अन्य मण्डल साधक की मनोवांछित साधना और उससे सम्बंधित देव शक्ति की न सिर्फ कृपा प्राप्त करवाने में सहता देता है अपितु मन्त्र शक्ति के विखंडित अणुओं को संलयित और संगठित होने के लिए उसके अनुरूप वातावरण का निर्माण भी करता है और ये आत्म तत्व का प्रतिनिधित्व करता है |

इस प्रकार इन तीन मंडलों के योग से मूलमंडल का निर्माण होता है अब हम चाहे तो इनकी अलग व्यवस्था कर सकते हैं या क्रमानुसार एक ही जगह एक ही पात्र पर अंकित कर के भी प्रयोग में ला सकते हैं जैसे हमारा ये ‘गुरुसायुज्य तंत्र कर्म सिद्धि मण्डल यंत्र’ , इसमें ९ यंत्र को समावेश होता है |
महामृत्युंजय यंत्र – जो कि किसी भी प्रकार की विपत्ति संकट या किसी भी प्रकार की क्रिया का दुष्परिणाम को निर्मूल कर सुरक्षा देता है |

त्वरिता सिद्धि महायंत्र – तंत्र साधना के क्षेत्र में त्वरिता देवि की कृपा से ही साधना में त्वरित सफलता दिलाती है |

अनिष्ट निवारण यंत्र – जीवन में कभी किसी ने वैमनस्य के कारण आपके ऊपर कोई प्रयोग किया हो , या आप किसी अभिसप्त जगह से गुजरे हों या कोई देवीय प्रकोप हो या कुल देवि देव का दोष हो तो ये यंत्र इनको शांत करने के लिए शांति विधान में सहायक होता है |

षट्कर्म सिद्धि दात्री महायंत्र – षट्कर्म में पूर्ण सिद्धि हेतु ये अति आवश्यक उपकरण है ये यंत्र अब कहीं उपलब्ध नहीं है, सदगुरुदेव की कृपा से इस यंत्र की उपलब्धता हुई है ये यंत्र समस्त प्रकार की षट्कर्म की क्रियाओं को सिद्ध करने में सहायक है |

गुरु सायुज्य महायंत्र – तंत्र, मन्त्र या कोई भी साधना के मूल में गुरु ही तो हैं गुरु तत्वा की प्रधानता से ही कोई भी यंत्र या सिद्धि में सफलता प्राप्त हो सकती है गुरु तत्व सायुज्य यंत्र होने की वजह से षट्कर्म में आने वाली बाधाओं का शमन होता है और गुरु के आशीर्वाद से सिद्धि में सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते है | इस महायंत्र में इसीलिए गुरु सायुज्य यंत्र का समावेश किया गया है |

कालदण्ड प्रतीक – किसी भी तंत्र साधना में बिना प्रतीक के साधना में सफलता की सोचना तो ऐंसा है कि रास्ता जाने बिना मार्ग पर बढ़ जाना | और बिना तंत्र प्रतीक साधना भला कैसे संभव है क्योंकि समय को भेद कर मन्त्र की इथर शक्ति को सतत साधक से सम्पर्कित कर उसके अभीष्ट को साधना ही इसका मुख्य कार्य है | ९० के दशक में सदगुरुदेव ने इन प्रतीकों से परिचय करवा कर इन्हें उपलब्ध भी करवाया था किन्तु आज ये कही भी उपलब्ध नहीं हैं और न ही किसी ने इन्हें सहेजने की कोशिश ही की | किन्तु गुरु कृपा से आज ये उपलब्ध हैं |

वशीकरण यंत्र – ये यंत्र केवल एक प्रकार के वशीकरण के लिए न होकर सदगुरुदे
व ने जितने भी वशीकरण के प्रकार बताये हैं, जैसे समूह वशीकरण, जन वशीकरण, राज्यवशीकरण, उच्च अधिकारी वशीकरण,सम्पूर्ण चराचर जगत वशीकरण | और ये आश्चर्यजनक यंत्र इन सभी क्रियाओं को पूर्ण करने वाला है |

पूर्ण शत्रु परास्त यंत्र—  -- यह यंत्र अपने आप में अनेक विधाओं को समाहित किये हुए है, क्योंकि चाहे मारण प्रयोग हो, उच्चाटन प्रयोग हो या विद्वेषण प्रयोग हो तो इस यंत्र की अनिवार्यता ही है क्योंकि इन प्रयोगों में प्राण उर्जा का अत्यधिक प्रयोग होता है और जिसे सम्हालने के लिए या उसके दुष्परिणाम को रोकने लिए इस यंत्र की अनिवार्यता होती है क्योंकि समस्त बाधाओं को दूर कर ये सफलता को निश्चित कर देता है |

स्वर्ण सिद्धि यंत्र – इस महा यंत्र की उपयोगिता स्वर्ण निर्माण में प्रयासरत लोगो को ज्यादा मालूम है और इसे पाना उनके लिए देव दुर्लभ स्वप्न के सामान ही है अतः इस यंत्र का महत्व अपने आप में अति विशिष्ट है |

इस प्रकार विशेष क्रमों से इस मण्डल में उपमंडल की स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा, अभिषेक, चैतन्यीकरण, दिप्तीकरण, विभिन्न सामग्री से और काल में की जाती है |

षट्कर्म में इन यंत्रों का विशिष्ट महत्वा है बिना इसकी सहायता के इन कर्मों को संपन्न 
नहीं कर सकते | इस मण्डल की प्राप्ति के बाद साधना काल में मूल यंत्र माला और विधान लगता है यदि वो षट्कर्म का कोई अलग विधान हो तब वरन बाकि की गोपनीयता तो इसके संयोग से ही संपन्न जो जाती है बाकी बचाती हैं मुद्राएँ ध्यान दिनचर्या आदि तो वो आपको कार्यशाला के दौरान ही बता सकते हैं ये अप्रत्यक्ष नहीं समझाया जा सकता और इसके लिए आपको कार्यशालाओं में सम्मलित होना चाहिए क्योंकि तंत्र विज्ञानं प्रायोगिक विज्ञानं है न कि थ्योरिकल,
समय कम है आपके ऊपर निर्भर है कि आप इसका लाभ लेना चाहते हैं या नहीं ---

निखिल प्रणाम

रजनी निखल 

Friday, February 2, 2018

शिव और षट्कर्म



शान्तं पद्मासनस्थं शशिधरमुकुटम पंचवक्त्रं,
शूलं वज्रं च खंगम परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तम ||
नागं पाशं च घण्टां प्रलयहुतवहं साङ्कुशं वामभागे,
नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ||

“पद्माशन में शांत स्थिर महादेव अपने मस्तक पे चन्द्रमा तीन नेत्रों से युक्त दाहिने हाथ में त्रिशूल वज्र खंग परशु तथा अभय मुद्रा धारण किये हुए, बांये हाथों नाग पाशरज्जु घंटा प्रलायग्नी और अंकुश धारण किये हुए अनेक दिव्य अलंकारों से विभूषित स्फटिक मणि के सद्रश चमकते हुए भगवन भूत भावन शिव शंकर को बारम्बार मै नमन करती हूँ |

शिव अत्यंत तेजोमय, श्रेष्ठ कर्मों को संपन्न करने वाले समस्त द्रव्यों के स्वामी एवं विद्याधर हैं, अज्ञेय और अगम्य हैं एवं सभी के लिए सर्वदा कल्याणकारी हैं,  सदाशिव, जो भोलेनाथ नटराज हैं तो शक्तियुक्त और रसेश्वर भी है |

स्रष्टि की उत्पत्ति से लेकर संहार तक केवल शिव हैं चाहे सगुन रूप में मूर्तिमान रूप में उपासना की जाये या निर्गुण रूप में शिवलिंग की पूजा की जाए | वे केवल जलधारा, दुग्धारा और बिल्वपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देव हैं इसलिए भोलेनाथ हैं |

चूँकि महादेव ही सभी विद्याओं के स्वामी हैं, फिर चाहे वो मंत्र हो तंत्र हो वेद हों, रस-विज्ञानं हों या षट्कर्म हो पूजा कर्म हो भक्ति हो या हठयोग की तंत्र साधना हो |
किसी भी कर्म या साधना, तपस्या महादेव के बगैर अधूरी होती है, चूँकि आदि महादेव आदि गुरु हैं, समयानुसार शिव ने शक्ति सयुक होकर अनेक विद्याओं को प्रदर्शित किया जो बाद में वेद उपनिषद ग्रंथों के रूप में प्रकट हुए | इसी क्रम में रस विज्ञान, सूर्यविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, आयुर्वेद आदि की रचना होती चली गयी जो समाजोपयोगी थी |

स्नेही भाइयो ! कई लोग हैं कई साधक हैं जो अनेक वर्षों से साधना कर रहें है किन्तु सफलता २-5 % भी नहीं है |कई ऐंसे लोग हैं जिन्होंने बहुत अच्छी एजुकेशन कर रखी है किन्तु नौकरी ही नहीं है कई ऐसे भी जिन्होंने व्यापार में बहुत पैसा लगा दिया किन्तु लाभ 0% या नहीं के बराबर | कुछ लोग १ या २ % से कहीं पीछे रह जाते हैं | कुछ लोग सुन्दर सुशील हैं एजुकेटेड है अच्छी जॉब है किन्तु जीवन साथी अर्थात विवाह में बाधा आ रही है |

कुछ अपनी जॉब में अपना १००% देने के बाद भी कभी बोस खुश नहीं तो कभी कलीग खुश नहीं | कुछ अपनी पत्नी को खुश रखें तो माँ बाप नाखुश और मा बाप को खुश रखें तो पत्नी नाराज | कहीं अत्यधिक निर्धनता है या सिर्फ काम चल रहा है | अत्यधिक मेहनत के बाद भी कमाई में बरकत नहीं | कहीं धन तो सुकून नहीं कोर्ट केश हैं कहीं तो झगड़े हैं | कहने का तात्पर्य कि कहीं न कहीं कुछ तो कमी है जिसकी तलाश या जिसे दूर करने के लिए कभी ये ज्योतिष बाबा फ़क़ीर या तांत्रिक मान्त्रिक की शरणागत होते हैं |

किन्तु कभी सोचा है, कि स्वयं ही कुछ ऐसा किया जाए कि अपनी समस्या का निवारण स्वयं कर सके |

षट्कर्म ऐसी विद्या को कहा जाता है जिसमें समस्त कार्यों को सम्पादित किया जा सकता है, जिसके अनेको स्वरुप हैं जिसे आदिवासी तंत्र में भी किया जाता है साबर तंत्र में भी किया जाता है अघोर तंत्र में भी किया जाता है और यदि समझा जाये तो प्रत्येक व्यक्ति इस क्रिया को किसी न किसी रूप में करता अवस्य है फर्क सिर्फ इतना है कि यदि इसे सिस्टेमेटिक तरीके से किया जाये तो यही क्रिया उच्च कोटि की साधना बन जाती है और तब ये स्वयमसिद्धा न होकर समाजोपयोगी हो जाती है | हमारी तंत्र कौमुदी षट्कर्म किताब इसी दर्शन को प्रदर्शित करती है |

मै आपको अपने जीवन की एक घटना बताती हूँ आपने पक्षी तंत्र सुना होगा और जिसने अरुण कुमार शर्मा जी की पुस्तकें पढ़ी होगी तो उन्होंने उलूक तंत्र भी पढ़ा होगा अब भिन्नता बताती हूँ ये एक अघोर क्रिया है जिसमें उल्लू पक्षी को सिद्ध किया जाता है जिसमे वो अपने शारीर के प्रत्येंक अंग की उपयोगिता बताता और आखिर में साधक के किन्ही तीन प्रश्नों का उत्तर देता है तीसरे उत्तर के साथ ही साधक को तलवार से उसकी गर्दन काटनी होती अन्यथा वो उसकी आँखें नोंचकर उसे मार देता है |

लेकिन इसी के एक रूप की साधना या टोटका मैंने आदिवासियों में देख है मंडला क्षेत्र टोनो टोटकों के लिए अत्यंत प्रसिद्द है मंडला से अमरकंटक की ओर जाने पर बीच में ही एक गाँव है जहाँ पर एक ओझा रहते हैं, नाम नहीं बता सकती क्योंकि वचनबद्द हूँ | मेरे बहुत प्रार्थना करने पर और ज़िद करने पर उन्होंने मुझे तीन प्रयोग बताये थे पक्षियों की भाषा समझना, हत्थाजोडी पहचानना और कार्यानुसार सिद्ध करना और उलुक साधन|

उन्होंने 14दसी के दिन पता नहीं कहाँ से कैसे एक उल्लू पकड़ कर ले आये और अमावस्या के दिन मुझे कमरे में उनकी बड़ी बेटी जो स्वयम भी ओझा ही थी के साथ बिठा दिया, और स्पष्ट निर्देश कि जब तक हमारा पूजा क्रम चले न तो मुह से आवाज निकले और ना ही जगह से हिलना है | उस झोपडीनुमा कमरे में एक कोने में एक मिटटी के चबूतरे पर एक लाल कपडा बिछा कर एक कटोरी में शराब, एक मिटटी के दिए जैसे बर्तन में मुर्गे की कलेजी के बारीक टुकड़े, लाइ, जो चावल को भूनकर बनाते हैं और काजू सिन्दूर आदि चींजे रखी थीं |

उसके बाद ओझा ने सिर्फ एक लंगोटी पहनी और आकर घास के बने हुए आसन पर बैठ कर कुछ बुदबुदाने लगा , अब उसने थोड़ी सी मिटटी लेकर चारों तरफ फेंका और आवाज की जैसे किसी को बुला रहा हो और सच में 4 से 5 मी. में उल्लू जाने कहाँ से उड़कर वहां आया और ठीक ओझा के सामने बैठ गया और उसे टुकुर टुकुर देखने लगा अब उन्होंने उसे वो सब खाने का निर्देश दिया तो उसने खाया फिर तब तक ओझा कुछ मन्त्र कर रहा था फिर उसे शराब भी पिलाई और फिर मन्त्र करता रहा जैसे जैसे मन्त्रों गति की बढ़ रही थी उल्लू की बैचेनी भी बढ़ रही थी तकरीबन एक से डेढ़ घंटे के बाद अचानक उल्लू चीखा उसके चीखते ही मेरी भी चीख निकलने को हुई किन्तु उसकी बेटी ने मेरा मुह दबा दिया और इशारा किया कि चुप बैठना, अब उल्लू के मुह से कुछ मानवीय भाषा में शब्द निकल रहे थे और वो लकड़ी उन्हें नोट कर रही थी  
मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था क्योंकि मेरे दिमाग में अरुण कुमार शर्मा जी की उलूक तंत्र की घटना अंकित थी मै इसीलिए डरी हुई थी | हालाँकि वातावरण थोडा भयावह और रहस्यमयी था किन्तु ये मेरे लिए कुछ था ही नहीं क्योकि अब तक मै कामख्या में गुरूजी के साथ एक दो साधना शमशान में कर चुकी थी तो ये वातावरण मेरे लिए नया नहीं था |

जब एक घंटे तक वह बोलता रहा और ओझा पूछता रहा फिर पूछते हुए ही उसने एक लोहे की पतली चेन का फंदा बना कर उल्लू की गर्दन में फेंका और वो बंध सा गया अब ओझा के इशारे पर उल्लू धीरे धीरे चलता हुआ उसके हाथ पर बैठ गया और उसे ताकने जैसे उसने उसे कोई कसम दी हो | अब वो उस ओझा की ओर ताक रहा था जिसे वो आदेश दे ओर पूरा करे अर्थात अब वो उसके पूरी तरह से वश में था |

मुझे और उसकी बेटी को उसने इशारा किया बाहर जाने का, मै अभी तक सकते में थी हालांकि ये क्रिया इतनी भयावह नहीं थी जब हम बाहर आये तो उनकी बेटी और उन्होंने बताया कि ये पक्षी को वश में करके मनचाहा कार्य सिद्ध करवा सकते है | जो कल तुमने उसकी भाषा में सुना वो अपने शरीर के प्रत्येक अंग का विवरण दे रहा था और उससे क्या कार्य सिद्ध होते हैं ये बता रहा था फिर उन्होंने उससे मेरे बारे में भी पूछा कि इसको मै कोई क्रिया करवाऊ या नहीं ये इमानदार है या नहीं | तो उसने क्या कहा ये तो नहीं बताया किन्तु मुस्कराहट के साथ उठ गए फिर उन्होंने चार पांच दिनों में मुझे वो दो साधना सिखायी | जिसके लिए मै उनकी सदैव ऋणी रहूंगी |
स्नेही भाइयो ! इन साधनाओ से अवगत कराना ही हमारा उद्देश्य है जरा सोचिये कि एक छोटे से प्रयोग से उल्लू जैसा पक्षी आपके वश में हो सकता है तो क्या इन्सान क्या देवता, और जब बात देवताओं की आई तो साधना की भी है जब वशीकरण उस स्तर पर जा सकता है तो कोई साधना फिर चाहे वो अप्सरा यक्षिणी हो भूत प्रेत हो पिशाच हों जिन्न परी हों, हम इन साधनाओ से अपने जीवन की प्रत्येक कमी को पूर्ण कर आगे बढ़ सकते है |

इसलिए क्या हम अपने कार्य, कार्य की पूर्ती हेतु वशीकरण जैसे विद्या का उपयोग नहीं कर सकते जिससे किसी का नुकसान भी न हो और हमारा कार्य भी सफल हो जाये इसी तरह के अनेकानेक प्रयोग जिसे हम अपने व्यापार, जॉब और दैनिक जीवन की समस्याओं के निवारण के लिए उपयोग में ला सकते हैं ये षटकर्म का पहला कर्म है, इनमें बाकि के पञ्च कर्म शांति कर्म, स्तम्भन, उच्चाटन,विद्वेषण, मारण हैं किन्तु पांच कर्म से ही जीवन सुगम और सरल आनंदमय हो सकता है तो छटे की आवश्यकता है ही नहीं, जब तक कि आपके जीवन पे संकट ना आ जाये |

महाशिव रात्रि में महादेव के पूजा के साथ इनमें वशीकरण और शांतिकर्म के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समय है और यही वहा है कि 5-6-7 फरवरी के सेमीनार को 13-14-और 15 फरवरी पे पोस्टफोन किया गया सदगुरुदेव की और माई की आज्ञानुसार इसे सेमीनार न करके तीन दिन की साधना वर्कशाप करने का सोचा है |

इसमें १३ ता. षट्कर्म का पूर्ण विवेचन, साधना सम्बन्धी सूक्ष्म तथ्य और जानकारी |
ता.14 पारदेश्वर महादेव का महाभिषेक चार प्रहर में सदगुरुदेव प्रदत्त तत्वमसि क्रिया के साथ, और साधना |
ता. 15 रस विज्ञान की प्रारंभिक जानकारी और अष्ट संस्कार से सम्बंधित जानकारी |
अब ये आप सब के सोचने का विषय है कि इससे आप कितना लाभ उठा पाते है अपना रजिस्ट्रेशन कृपया 6  फरवरी तक करवा लें क्योंकि ये अंतिम ता. निश्चित की गयी है |

आपकी अपनी

रजनी निखिल


निखिल प्रणाम 

***NPRU***