वाम-तंत्र में रक्त बिंदु और श्वेत बिंदु को सम्मिलित कर कई अद्भुत शक्तियों को प्राप्त किया जा सकता है , पर ये भी सत्य है की ये साधनाएं अत्यंत ही गुप्त हैं और गुरु-गम्य ही रखी गयी हैं.
ऐसा क्यों भला?????????????? मैंने पूछा .............
क्यूंकि लोगो को वाम-तंत्र की सही परिभाषा ही नहीं पता है तो ऐसे में वे उन गोपनीय साधनाओ को कैसे जाने के अधिकारी हो सकते हैं ....... वाम मांर्ग का नाम आते ही ऐसे नाक सिकोड़ते हैं जैसे किसी घृणित वस्तु को देख या छू लिया हो . जबकि वाम मार्ग का मतलब ही है शक्ति प्राप्ति का मार्ग .
हाँ इस मार्ग में दासत्व का भाव निषेध है , ये मार्ग तंत्र शास्त्र में सिंह मार्ग भी कहलाता है . सम्मान, ऐश्वर्य , निर्जरा देह और अनंत शक्तियां सहज ही तो प्राप्त हो जाती हैं इस मार्ग का अनुसरण करने से .
मैंने कहा की क्या ये मार्ग सामान्य साधकों के लिए नहीं है ???????????
नहीं ......बिलकुल नहीं .... क्योंकि जिसका अपने चित्त पर नियंत्रण ही न हो ....जिसमे पौरुषता का आभाव हो वो कदापि इस मार्ग पर नहीं चल सकता .
सामान्य व्यक्ति बिंदु स्खलन को चरम सुख या आनंद प्राप्ति का कारण मानता है , पर सिंह मार्ग का साधक बिंदु-उत्थान को चरम सुख ही नहीं अपितु परमानन्द का कारक मानता है . इस मार्ग पर एक ही उक्ति का अनुसरण करना होता है की “ जो भी करो पूर्ण विवेक के साथ करो” आप खुद ही सोचो की सहवास तो हो रहा है पर स्खलन ध्येय ही नहीं है . बल्कि उस उर्जा योग के द्वारा अपने सप्त शरीर को पूर्ण चैतन्य बना लिया जाता है. क्या ये सामान्य साधक के लिए सहज है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
और आपको क्या लगता है की कीमिया क्या है?????? उन्होंने पूछा .
फिर स्वयं ही उत्तर देते हुए कहने लगे की सदगुरुदेव ने इस रहस्य को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ स्पष्ट करते हुए बताया था की “ कीमिया का अर्थ निम्न धातुओं को उच्च या मूल्यवान धातुओं में परिवर्तन मात्र नहीं है ना ही शरीर को निर्जरा या रोगमुक्त करना कीमिया कहलाता है ....... ये परिभाषाएं ही गलत हैं . नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में पूरी तरह परिवर्तित कर देना ही कीमिया कहलाता है”. क्योंकि जब नकारात्मक का पूर्णरूपेण परिवर्तन सकारात्मक में हो जाता है तो जो बचता है हमेशा वो बहुमूल्य ही होता है .
लोग बरसो बरस लगा देते हैं स्वर्ण का निर्माण करने में या ताम्बे, चांदी, सीसे, रंगे ,पारद को स्वर्ण में परिवर्तित कर देने में ..... पर क्या वे ये जानते हैं की इस क्रिया के मूल में कौन सा रहस्य कार्य करता है . नहीं वे ये नहीं जानते हैं , यदि वे जानते होते तो उनका नाम भी उन सिद्धों में सामिल होता जिन्होंने पारद या रस का अनुसन्धान या साधना कर परम पद को पा लिया है.
जिस रहस्य की कड़ियाँ मेरे सामने खुल रही थी उन्हें समेटते हुए मैंने अपनी जिज्ञासा उन महानुभाव के सामने रखी की ‘वो क्या रहस्य है जो धात्विक या आंतरिक कीमिया के मूल में है , जिससे सृजन की क्रिया संपन्न होती है’.
सूक्ष्मता के साथ जब हम पदार्थों या आत्मिक शक्तियों का अवलोकन कर उनमे छुपी हुयी सकारात्मक ऊर्जा को पहचान कर उनके सदुपयोग की कला का विकास कर लेना ही कीमिया के गूढ़ रहस्य है. जब ऐसी योग्यता हम प्राप्त कर लेते हैं , तब हमें ये सहज ही ज्ञात हो जाता है की किस पदार्थ या तत्व का कब और कैसे कहाँ पर प्रयोग करना है. मैंने कहा ना की विवेक पूर्ण किया गया कार्य ही यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराता है . सिद्धि ऐसे ही व्यक्ति या साधक की अनुगामी होती है .
बगैर गुरु या शास्त्र का आश्रय लिए जो भी इस मार्ग पर बढ़ता है वो असफल ही होता है .....मार्गदर्शन में किया गया सतत अभ्यास सफलता देता ही है . मैं धातुवाद के लिए यहाँ कुछ बातें बताना चाहूँगा की ...
(एक लेख में उन रहस्यों का वर्णन अत्यधिक दुष्कर कार्य है , और उन सूत्रों को टुकड़ों में देना लेख के साथ अन्याय भी होगा .अतः अगली कड़ी में रक्त बिंदु, श्वेत बिंदु द्वारा धातु-परिवर्तन के जो सूत्र मुझे महानुभाव द्वारा बताये गए थे उनका स्पष्टीकरण आपके समक्ष मैं शीघ्र ही करूँगा ताकि .आप स्वयं ही देखें की सिद्धाश्रम परंपरा प्रदान कर सदगुरुदेव ने अनमोल कृपा वृष्टि हम सभी पर की है. कितनी उदारता से उन्होंने सभी कुछ तो हमारे समक्ष रख दिया , अब हम उनका लाभ न ले पाए तो दोषी कौन है??????????)
****ARIF****
ऐसा क्यों भला?????????????? मैंने पूछा .............
क्यूंकि लोगो को वाम-तंत्र की सही परिभाषा ही नहीं पता है तो ऐसे में वे उन गोपनीय साधनाओ को कैसे जाने के अधिकारी हो सकते हैं ....... वाम मांर्ग का नाम आते ही ऐसे नाक सिकोड़ते हैं जैसे किसी घृणित वस्तु को देख या छू लिया हो . जबकि वाम मार्ग का मतलब ही है शक्ति प्राप्ति का मार्ग .
हाँ इस मार्ग में दासत्व का भाव निषेध है , ये मार्ग तंत्र शास्त्र में सिंह मार्ग भी कहलाता है . सम्मान, ऐश्वर्य , निर्जरा देह और अनंत शक्तियां सहज ही तो प्राप्त हो जाती हैं इस मार्ग का अनुसरण करने से .
मैंने कहा की क्या ये मार्ग सामान्य साधकों के लिए नहीं है ???????????
नहीं ......बिलकुल नहीं .... क्योंकि जिसका अपने चित्त पर नियंत्रण ही न हो ....जिसमे पौरुषता का आभाव हो वो कदापि इस मार्ग पर नहीं चल सकता .
सामान्य व्यक्ति बिंदु स्खलन को चरम सुख या आनंद प्राप्ति का कारण मानता है , पर सिंह मार्ग का साधक बिंदु-उत्थान को चरम सुख ही नहीं अपितु परमानन्द का कारक मानता है . इस मार्ग पर एक ही उक्ति का अनुसरण करना होता है की “ जो भी करो पूर्ण विवेक के साथ करो” आप खुद ही सोचो की सहवास तो हो रहा है पर स्खलन ध्येय ही नहीं है . बल्कि उस उर्जा योग के द्वारा अपने सप्त शरीर को पूर्ण चैतन्य बना लिया जाता है. क्या ये सामान्य साधक के लिए सहज है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
और आपको क्या लगता है की कीमिया क्या है?????? उन्होंने पूछा .
फिर स्वयं ही उत्तर देते हुए कहने लगे की सदगुरुदेव ने इस रहस्य को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ स्पष्ट करते हुए बताया था की “ कीमिया का अर्थ निम्न धातुओं को उच्च या मूल्यवान धातुओं में परिवर्तन मात्र नहीं है ना ही शरीर को निर्जरा या रोगमुक्त करना कीमिया कहलाता है ....... ये परिभाषाएं ही गलत हैं . नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में पूरी तरह परिवर्तित कर देना ही कीमिया कहलाता है”. क्योंकि जब नकारात्मक का पूर्णरूपेण परिवर्तन सकारात्मक में हो जाता है तो जो बचता है हमेशा वो बहुमूल्य ही होता है .
लोग बरसो बरस लगा देते हैं स्वर्ण का निर्माण करने में या ताम्बे, चांदी, सीसे, रंगे ,पारद को स्वर्ण में परिवर्तित कर देने में ..... पर क्या वे ये जानते हैं की इस क्रिया के मूल में कौन सा रहस्य कार्य करता है . नहीं वे ये नहीं जानते हैं , यदि वे जानते होते तो उनका नाम भी उन सिद्धों में सामिल होता जिन्होंने पारद या रस का अनुसन्धान या साधना कर परम पद को पा लिया है.
जिस रहस्य की कड़ियाँ मेरे सामने खुल रही थी उन्हें समेटते हुए मैंने अपनी जिज्ञासा उन महानुभाव के सामने रखी की ‘वो क्या रहस्य है जो धात्विक या आंतरिक कीमिया के मूल में है , जिससे सृजन की क्रिया संपन्न होती है’.
सूक्ष्मता के साथ जब हम पदार्थों या आत्मिक शक्तियों का अवलोकन कर उनमे छुपी हुयी सकारात्मक ऊर्जा को पहचान कर उनके सदुपयोग की कला का विकास कर लेना ही कीमिया के गूढ़ रहस्य है. जब ऐसी योग्यता हम प्राप्त कर लेते हैं , तब हमें ये सहज ही ज्ञात हो जाता है की किस पदार्थ या तत्व का कब और कैसे कहाँ पर प्रयोग करना है. मैंने कहा ना की विवेक पूर्ण किया गया कार्य ही यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराता है . सिद्धि ऐसे ही व्यक्ति या साधक की अनुगामी होती है .
बगैर गुरु या शास्त्र का आश्रय लिए जो भी इस मार्ग पर बढ़ता है वो असफल ही होता है .....मार्गदर्शन में किया गया सतत अभ्यास सफलता देता ही है . मैं धातुवाद के लिए यहाँ कुछ बातें बताना चाहूँगा की ...
(एक लेख में उन रहस्यों का वर्णन अत्यधिक दुष्कर कार्य है , और उन सूत्रों को टुकड़ों में देना लेख के साथ अन्याय भी होगा .अतः अगली कड़ी में रक्त बिंदु, श्वेत बिंदु द्वारा धातु-परिवर्तन के जो सूत्र मुझे महानुभाव द्वारा बताये गए थे उनका स्पष्टीकरण आपके समक्ष मैं शीघ्र ही करूँगा ताकि .आप स्वयं ही देखें की सिद्धाश्रम परंपरा प्रदान कर सदगुरुदेव ने अनमोल कृपा वृष्टि हम सभी पर की है. कितनी उदारता से उन्होंने सभी कुछ तो हमारे समक्ष रख दिया , अब हम उनका लाभ न ले पाए तो दोषी कौन है??????????)
****ARIF****
2 comments:
plz sir hum es bare or janna hai or kuch bate hai jo hum ko puch ni hai ..
plz sir reply me.
anil
namaskar sir thanks for this lecthure
and i hope it is very usefull for all alchemist
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