आज जिस गुटिका के बारे में मैं आपको बताने वाला हूँ.उस गुटिका विवरण साधारणतयः किसी भी रसग्रंथों में या तो नहीं है या फिर उसमे थोडा परिवर्तन कर दिया गया है.इस के कारण भी हम सभी जानते हैं की विषय को गुप्त रखना समय और काल के अनुसार अनिवार्य था.खैर जब हमने इस विषय को जानने के लिए प्रयास रत हैं तो हमें प्रयास करके हमारी परम्परा और उसकी विलक्षणता को भी जरूर जानना चाहिए.
रस सिद्धों के मध्य जिन गुटिका के विषय में गोपनीयता रखी गयी है,उनमे एक महत्त्वपूर्ण नाम देवरंजिनी गुटिका का आता है,इस गुटिका के निर्माण जितना कठिन है उतना ही सरल है इसके प्रभाव की अपने जीवन में प्राप्ति.सौभाग्य ,आरोग्य,तीव्र उन्नति,मानसिक बल,कुंडलिनी जागरण ,कालज्ञान,समाधी लाभ ,धातु परिवर्तन,उच्च आत्माओं से संपर्क,कायाकल्प,दूर दर्शन,वसीकरण,और ऐसी कई अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है इसे प्राप्त करने वाला.क्युंकी इस गुटिका पर दिव्या मंत्रो के प्रवाह,दिव्या वनस्पतियों के संस्कार,स्वर्ण,और रत्नों के चरण देने के बाद इसे सुर्यताप्त से संपुटित कर रसेन्द्र को जब गगन के आवरण पहनाया जाता है तो विलक्षणता तो घटित होती ही है. प्रकार अंतर से पारद जब रसेन्द्र में परिवर्तित होकर जब अपने विराट रूप से एकाकार पता है तभी जाकर इस गुटिका के निर्माण होता है.
इस गुटिका के पूर्ण निर्माण में प्रतिदिन ८ घंटे के हिसाब से १४ दिन लगते हैं(रसेन्द्र बन्ने के बाद).विभिन्न रत्नों के चारण,स्वर्ण भस्म से बंधन , दिव्य वनस्पतियों के संस्कार के साथ होता है पूर्ण अघोर मन्त्रों से रसान्कुश देवी का आवाहन और स्थापन ...... तब जाकर ये गुटिका अद्भुत प्रभावयुक्त होती है और होता है इसका निर्माण भी .
मैंने इस गुटिका को एक रस सिद्ध के पास गुवाहाटी में देखा था वही पर उन्होंने इसके चमत्कारों को न सिर्फ दिखाया था बल्कि इसके निर्माण के वे रहस्य भी उन्होंने बताये थे जो की किसी ग्रन्थ में कम से कम मैंने तो आज तक नहीं पढ़े हैं.
यदि पूज्यपाद सदगुरुदेव की कृपा रही तो अवश्य ही इस विषय के वे गुप्त सूत्र जो अभी तक सिर्फ सिद्धों के मध्य ही रहे थे ,वे हम सभी साधकों के मध्य पुनः प्रयोग करने के लिए प्रचलित होंगे।
रस सिद्धों के मध्य जिन गुटिका के विषय में गोपनीयता रखी गयी है,उनमे एक महत्त्वपूर्ण नाम देवरंजिनी गुटिका का आता है,इस गुटिका के निर्माण जितना कठिन है उतना ही सरल है इसके प्रभाव की अपने जीवन में प्राप्ति.सौभाग्य ,आरोग्य,तीव्र उन्नति,मानसिक बल,कुंडलिनी जागरण ,कालज्ञान,समाधी लाभ ,धातु परिवर्तन,उच्च आत्माओं से संपर्क,कायाकल्प,दूर दर्शन,वसीकरण,और ऐसी कई अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है इसे प्राप्त करने वाला.क्युंकी इस गुटिका पर दिव्या मंत्रो के प्रवाह,दिव्या वनस्पतियों के संस्कार,स्वर्ण,और रत्नों के चरण देने के बाद इसे सुर्यताप्त से संपुटित कर रसेन्द्र को जब गगन के आवरण पहनाया जाता है तो विलक्षणता तो घटित होती ही है. प्रकार अंतर से पारद जब रसेन्द्र में परिवर्तित होकर जब अपने विराट रूप से एकाकार पता है तभी जाकर इस गुटिका के निर्माण होता है.
इस गुटिका के पूर्ण निर्माण में प्रतिदिन ८ घंटे के हिसाब से १४ दिन लगते हैं(रसेन्द्र बन्ने के बाद).विभिन्न रत्नों के चारण,स्वर्ण भस्म से बंधन , दिव्य वनस्पतियों के संस्कार के साथ होता है पूर्ण अघोर मन्त्रों से रसान्कुश देवी का आवाहन और स्थापन ...... तब जाकर ये गुटिका अद्भुत प्रभावयुक्त होती है और होता है इसका निर्माण भी .
मैंने इस गुटिका को एक रस सिद्ध के पास गुवाहाटी में देखा था वही पर उन्होंने इसके चमत्कारों को न सिर्फ दिखाया था बल्कि इसके निर्माण के वे रहस्य भी उन्होंने बताये थे जो की किसी ग्रन्थ में कम से कम मैंने तो आज तक नहीं पढ़े हैं.
यदि पूज्यपाद सदगुरुदेव की कृपा रही तो अवश्य ही इस विषय के वे गुप्त सूत्र जो अभी तक सिर्फ सिद्धों के मध्य ही रहे थे ,वे हम सभी साधकों के मध्य पुनः प्रयोग करने के लिए प्रचलित होंगे।
****ARIF****
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