मन्त्रों को तो थोडा सा समझने की कोशिश भी की हैं , तंत्र के बारे में भी सोचा,
पर यन्त्र क्या हैं कभी सोचा ? .
ये रेखाए , की ज्यामितीय आकृति क्या बताती हैं ?
किस ओर इशारा करती हैं? ,
किन किन देवता का प्रतिक हैं ये ? ,
क्यों भी विभिन्न आकृति केअंदर कुछबीज मंत्रलिखे हैं ? ...
ये सच हैं प्रारंभिक स्तर पर साधक के अन्दर इतनी उर्जा नहीं होती की वह अपने इष्ट को साक्षात् कर सामने मन्त्र जप कर अपना हेतु सिद्ध कर सके , इस हेतु गुरुओं ने यंत्र अनिर्मन किये जिससे साधक के द्वारा किया गया मंत्र जप यंत्र के माध्यम से परावर्तित हो कर उसके इस तक पहुँच सके . ओर जब ऐसा हो जाता हैं तब हमें इस यन्त्र को समझने की क्या जरुरत हैं .
पर जब हम सौभाग्यशाली होंगे तो उच्च साधनाओ में भी प्रवेश करेंगे तब वहां की भाषा में इनको ठीक से न समझा तो आगे बढ़ने में यही समस्या बन कर सामने आ जायेंगे . तो क्यों नहीं जो भी साधना जगत की वस्तु हम उपयोग करते हैं उसके बारे मैं पुर्णतः से जाने , और बिना जाने हम कैसे अपने सदगुरुदेव जी ओर साधना से स्नेह या प्रेम कर सकते हैं
कहा भी गया हैं बिना जाने होय न प्रीति.......
आपकहेंगे सामने रखने से मंत्र जप करने से साधना में सफलता मिल जाती हैं . और क्या , उसकी जरुरत ही नहीं समझी , तो फिर सफलता कैसे मिले ?.
हर वस्तु जो साधना में हैं, वह क्यों ? और उसका प्रयोजन क्या हैं ? बिना उसे समझे साधना करना मानो अँधेरे में तीर मारना हैं .
साधारणतः यन्त्र किसी भी देवता के स्वरुप की ज्यामितीय आक्रति ही हैं .पर बास्तव में एक किले सी आक्रति हैं जिसमे उनके सहयोगी देवता .देवी गण सभी रहते हैं ,आप कहेगे की आप ये जानते हैं
तो चलिए थोडा सा ओर गंभीरता से देखते हैं .
सामान्यतः ये यन्त्र तीन प्रकार के होते हैं .
1. अंक से निर्मित यन्त्र
2. बीज मन्त्रों से निर्मित यन्त्र
3. अंक ओर बीज दोनों मंत्रो से संयुक्त यन्त्र
(यंहां ये बताने की आवश्यता नहीं हैं की ये अंक १ से लेकर ९ तक होंगे, जिसमे हर अंक का अपना अर्थ व सत्ता हैं जैसे ९ पूर्णता या ब्रम्हांड का प्रतिक हैं )
बिभिन्न कर्मो में यन्त्र के अन्दर लेखन के समय किसी समय छोटे अंक से बड़े अंक को लिखते हैं कभी बड़े अंक से छोटे अंक को लिखते हैं जैसा की सदगुरुदेव द्वारा निर्देशित किया गया हो .
पर इस प्रकार से लिखने का क्या अर्थ हैं , अगर इन अंको को एक एक सरल रेखा से मिला कर देखा जाये तो आप समझे गे की क्यों इन्हें इस प्रकार से लिखा गया हैं, जब इन अंको को इनके क्रमानुसार सरल रेखा से मिलाया जाये ठीक उन्हें अपने स्थान पर रहे हुए तो जो आक्रति बनती हैं वही वास्तव में उस देवता के प्रतिक जो अंको के माध्यम से छुपाया गया या प्रदर्शित किया गया था.
तो क्या आपको मालूम हैं की मध्य में उपस्थित बिंदु को क्या कहते हैं ? , वह क्या निरूपण करता हैं? .
चलिए देखे एक एक भाग को ..
बिंदु - यह शिव का प्रतीक हैं , सारा ब्रह्माड शिव पर ही तो आधारित हैं ही ,इसी बिंदु से स्रष्टि प्रारंभ होती हैं और स्रष्टि का लय भी इसी में होता हैं . जब किसी भी यन्त्र का निर्माण मध्यस्थ बिंदु से प्रारंभ हो कर बह्गत जाता हैं तो इसे स्रष्टि क्रम व जब बाहर से बिंदु की ओर होता हैं तो उसे संहार क्रम से जानते हैं .बिना शिव के शक्ति भी कुछ नहीं कर सकती हैं ,क्योंकि की शक्ति को भी आधार तो चाहिए ही , शिव आधार हैं , ओर मध्यस्त बिंदु इसी का प्रतिक हैं , जब यथा ब्रम्हांड तथा पिंडे बोला जाता हैं तब ये यन्त्र हमारे सरीर मैंभी पूर्णता से होता हैं . और बिंदु यहाँ प्रतिक होता हैं हमारे सत्व अंश का अर्थात वीर्य तत्व का .
त्रिकोण : ये त्रिकोण आक्रति भी यदि आप देखेंगे तो दो प्रकार की होती हैं , यहाँ त्रिकोण से मेरा तात्पर्य तीन सरल किन्तु बराबर रेखाओं से बनी आकृति से हैं , ये दो प्रकार की होती हैं ,
प्रथम - में एक सरल रेखा के दोनों छोर से दो अलग अलग रेखाए उठ कर ऊपर की ओर मिल रही हो , ये उर्ध्वमुखी त्रिकोण कहलाता हैं ये साक्षात् शिव का प्रतिक हैं या यु कहूँ तंत्र की भाषा में पुरुष त्रिकोण हैं .
दिव्तीय- में एक सरल रेखा के दोनों छोर से दो अलग अलग रेखाए निकल कर नीचे की ओर मिल रही हो , ये निम्न मुखी त्रिकोण कहलाता हैं ये साक्षात् शक्ति का प्रतिक हैं या यु कहूँ तंत्र की भाषा में स्त्री शक्ति त्रिकोण हैं .
और जब ये दोनों त्रिकोण एक दुसरे को इस प्रकार से काट रहे हो की एक तारा नुमा आकृति बनती हैं उसे मैथुन चक्र कहते हैं , ओर ये स्रष्टि का निर्माण केद्र हैं , क्योंकि कहीं भी कुछ भी निर्माणित हो रहा होगा वह शिव शक्ति के आपसी संयोजन का परिणाम हो गा ही , हाँ ये जरुर हैं की हर बार ये शिव शक्ति बाहय गत नज़र आये ये जरुरी नहीं हैं क्योंकि हर पुरुष में एक स्त्री बा हर स्त्री में एक पुरुष होता ही हैं , तंत्र तो यहाँ एक नहीं ,बल्कि हर व्यक्तिव के अन्दर ७ सरीर की अवधारणा रखता हैं जिसमें एक के बाद एक सरीर स्त्री फिर पुरुष फिर स्त्री इसी क्रम से होता हैं , ओर पुरुष सरीर में यही क्रम विपरीत होगा..
वृत - ये परा शक्ति का प्रतिक हैं जो विश्व निर्माण में लगी हैं ओर निर्माण के केंद्र शिव रूपी बिंदु को अपनी चारो ओर से घेरते हुए इस तथ्य को इंगित कर रही हैं .
कमल दल - ये माँ पराम्बा की सरे संसार को उत्पत्ति का प्रतिक हैं , कमल अपने सौन्दर्य से विश्व को मोहित करता हैं , बिभिन्न देवता ओर शक्ति के अनुसार ये दल होते हैं किसी में चार , किसी में छह किसी में आठ ... जैसा निदेशित किया गया हो .
चतुष्कोण - ये चारों दिशाओ के प्रतिक हैं साथ ही साथ अनंत आकाश या शून्य का भी प्रतिक हैं .
भुपुर - ये मानो इस आवासीय किले की बाहय दिवार हैं .
अभी तो ये इस बिषय का परिचय ही हैं आगे के क्रम में जब यंत्रो का विस्तार से वर्णन किया जाये गा ओर श्री यन्त्र /श्री विद्या पर जो भी लेख आयेंगे तब इन यंत्राकृति पर और गंभीर विवेचन सामने रखा जायेगा .
****************************** Tantra Darshan : what is yantra?
Mantra, what are they?, we tried to understand/learnt something about them. Same things equal applicable to the Tantra, but we ever think/thought
what is the yantra? ,
have we ever thought about that ?.
various lines, geometrical shapes what they represents?,
what are the various devta and devi they representing?,
why in some places some beej mantra are written?.
Yes this is true, that in the beginning sadhak are not having such a strength that his jap or sadhana mantra can directly reach to his isht, that’s why he take geometrical representation of that, so mantra jap originated from his body through yantra reflection reaches to the deity and the result can be gained.
Now you simply said that when mantra jap in front of a yantra gives us the result , than why we need to understand that , but we are in the field of sadhana, and if opportunity comes to go for higher level sadhana than theses are the basic things comes in front of us as an obstruction, and various tantric granth also using the language ,mentioning theses term so its better to learn and understand this science as well, after all it is also a great gift of our Sadgurudev ji to us.
Without understanding the basic of sadhana it is sometimes very difficult to achieve the success. Without knowing , how can we generate love towards sadhana and Sadgurudev develops?.
Each and every object why that is used in sadhana ?, without knowing and blindly doing sadhana is like hitting the bulls eye in darkness.
In general yantra are the geometrical shape represents the devta or devi. Actually this is the fort like shape in that all the associate devi devta and various gan also reside along with the main deity, now you can say that this you already knew.
Than we need to go little bit more deeper ,seriously in this subject.
In general there are three type of yantra available
1. Yantra made through numeric digit
2. Yantra made through beej mantra
3. Yantra made through both.
(it is not need to mention that , theses digit are 1 to 9 . and every number has some specific power and represents its various hidden meaning , like number 9 represent completeness and Brahma.)
In various type of work that has to be done by the yantra theses number write from 1 to 9 or sometime 9 to 1 , as par instruction of Sadgurudev.
But why are they used in the specific way, is there any hidden meaning? why not, if through a straight lines ,all these number written in the yantra connected each other without disturbing their place, you will find a geometrical shape, and this shape is the secret behind the numbers. Is the true representing of that davata.
Do you know that what is the dot or bindu in the centre of any yantra, stands for. What that represents ???
Lets move to see one by one each part…
Bindu- this is the representation of shiv, and whole universe depend upon shiv, through this bindu the whole universe originates and, on this bindu whole universe comes to its end./disappear. Whenever in any yantra creation is start from bindu to ourtword direction this way/kram is known as sashrthi kram (creation way) and when from outer to bindu than the way is known as sanhaar kram(distruction way/kram) .
shakti without shiv , can not do anything. After all shakti also need base, and shiv is the base. And the middle dot or bindu representing shiv, and “yatha bramhaand tatha pinde ”(what is seen outer, have the same mirror image inside of out body’s universe), so in this way bindu stands for our pure stav ansh/veerya of our body.
Triangle: If you carefully absorbs than, you will find two type of trangle generally found in yantra, here triangle means any geometrical shape made through three equal straight line touching each other.
First: if two straight line originates from both ends of a straight line and touches each other on the top of that straight line this shape made of this, is known as upward directional triangle or male/purush trikon/triangle, and a represents of shiv.
Second: if two straight line originates from both ends of a straight line and touches each other on the below of that straight line this shape made of this is known as downward directional triangle is known as female trikon /stri trikon, and a represents of shakti. and also known as shakti trikon.
When both the upper mentioned triangle crosses each other in such away that a star type shape generate , that shape or chakra is known as Maithun chakra.
And this is the originate Point of whole universe, where ever any creation process is happening of any type,in the root of that, shiv and shakti is there. But always they can be seen from outer way , not sure. since each man has a woman inside it and same way every woman has a man inside her. And interesting point Is that, not only one, but seven such a bodies have been inside a person alternately in each man or woman, like if first outer body is woman the next one will be man and very next to that will be of again woman like that .. this is the tantra understanding.
Circle: this represent para-shakti (mother divine)who is continuous engage in creation and circled shiva in the middle portion appear as a bindu or dot as a bindu from all the side showing this through circle.
Lotus patels: this shows the represents the creation of all the universe from her. Lotus flower through its beauty hypnotize whole world. as per various deity power and strength, some times they are 4 sometimes 6 or 8 or 10 number as the case may be.
Rectangle: this how all four direction and also the aaksha means space or zero .
Bhupur: this like a outer wall of the fort.
In coming articles or post in the same subject , the more specific information and details have been discussed here when the post will be on shree yantra /shree vidya based. This is introduction of this subject
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1 comment:
could you please explain the difference between maithunchakra & yonichakra.
Regards
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