Sunday, December 11, 2011

Jwala shatru stambhan prayog



जीवन मे निरंतर पग पग पर समस्या तथा बाधाए आना स्वाभाविक है. आज के युग मे जब चारो तरफ अविश्वास और ढोंग का माहोल छाया हुआ है तब ज्यादातर व्यक्तियो का समस्या से ग्रस्त रहना स्वाभाविक है. और व्यक्ति कई प्रकार के षड्यंत्रो का भोग बनता है. यु एक हस्ते खेलते परिवार का जीवन अत्यधिक दुखी हो जाता है. कई बार व्यक्ति के परिचित ही उसके सबसे बड़े शत्रु बन जाते है और यही कोशिश मे रहते है की किसी न किसी रूप मे इस व्यक्ति का जीवन बर्बाद करना ही है. चाहे इसके लिए स्वयं का भी नुक्सान कितना भी हो जाए. आज के इस अंधे युग मे मानवता जैसे शब्दों को माना नहीं जाता है. और व्यक्ति इसे अपना भाग्य मान कर चुप हो जाता है. अपने सामने ही खुद की तथा परिवार की बर्बादी को देखता ही रहता है और आखिर मे अत्यधिक दारुण परिणाम सामने आते है जो की किसी के भी जीवन को हिलाकर रख देते है. एसी परिस्थिति मे गिडगिडाने के अलावा और कोई उपाय व्यक्ति के पास नहीं रह जाता है. लेकिन हमारे ग्रंथो मे जहा एक और नम्रता को महत्व दिया है तो दूसरी और व्यक्ति की कायरता को बहोत बड़ा बाधक भी माना है. एसी परिस्थितियो मे शत्रु को सबक सिखाना कोई मर्यादाविरुद्ध नहीं है. यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार व्यक्ति अपनी और परिवार की आत्मरक्षा के लिए हमलावर को हावी ना होने दे और उस पर खुद ही हावी हो जाए. हमारे तंत्र ग्रंथो मे इस प्रकार के कई महत्वपूर्ण प्रयोग है जिसे योग्य समय पर उपयोग करना हितकारी है. लेकिन मजाक मस्ती मे या फिर किसी को गलत इरादे से व्यर्थ ही परेशान करने के लिए इस प्रकार की साधनाओ का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए वरना इसका भयंकर विपरीत परिणाम भी आ सकता है. शत्रुओ के द्वारा निर्मित षड्यंत्रो का किसीभी प्रकार से कोई असर हम पर ना हो और भविष्य मे वह हमारे विरुद्ध परेशान या नुकसान के इरादे से कोई भी योजना ना बना पाए इस प्रकार से साधक का चिंतन हो तो वह यथायोग्य है. तन्त्र के कई रहस्यपूर्ण और गुप्त विधानों मे से एक विधान है “ ज्वाला शत्रु स्तम्भन ”. यह अत्यधिक महत्वपूर्ण विधान है जिसे पूर्ण सात्विक तरीके से सम्प्पन किया जाता है लेकिन इसका प्रभाव अत्यधिक तीक्ष्ण है. देवी ज्वाला अपने आप मे पूर्ण अग्नि रूप है, और शत्रुओ की गति मति स्तंभित कर के साधक का कल्याण करती है. साधक को इस प्रयोग के लिए कोई विशेष सामग्री की ज़रूरत नहीं है.
इस विधान को साधक किसी भी दिन से शुरू कर सकता है तथा इसे ८ दिन तक करना है, इन ८ दिनों मे साधक को शुद्ध सात्विक भोजन ही करना चाहिए, लहसुन तथा प्याज भी नहीं खाना चाहिए. यह जैन तंत्र साधना है इस लिए इन बातो का ध्यान रखा जाए. इस प्रयोग मे वस्त्र तथा आसान सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर रहे. साधक रात्री काल मे १० बजे के देवी ज्वाला को मन ही मन शत्रुओ से मुक्ति के लिए प्रार्थना करे. इसके बाद निम्न मंत्र की १००८ आहुतिय शुद्ध घी से अग्नि मे प्रदान करे.
औम झ्राम् ज्वालामालिनि शत्रु स्तम्भय उच्चाटय फट्
आहुति के बाद साधक फिर से देवी को प्रार्थना करे तथा भूमि पर सो जाए. इस प्रकार ८ दिन नियमित रूप से करने पर साधक के समस्त शत्रु स्तंभित हो जाते है और साधक को किसी भी प्रकार की कोई भी परेशानी नहीं होती. शत्रु के समस्त षडयंत्र उन पर ही भारी पड जाते है.
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It is natural to have obstacles and problems in steps of life. In today’s time when everywhere is mistrust and hypocrisy thus it is obvious to have troubling life for majority of the people. And a person gets trapped in many Conspiracies. This way, happy family turns in sorrowful family. Sometimes familiar people of the person turn in enemy all of a sudden and they remain in try to ruin the life of the person in some or other way, whatever it may result in for them too. In today’s era in such situation there remains no meaning in mind of humanism. And person maintains silence calling this fortune. He watches his self and family’s ruination and in last the heinous results appears which lay the life completely disturbed forever. In such situation there remain no options. But in our scriptures where there is big importance has allotted to sincerity, on other side timidity has been counted as big obstacle in one’s life. In such situation, to teach lessons to enemies in not against dignity.  It is something similar when one does stop some attacker on family for protection and one attack on the attacker. In our tantra scriptures there are several such important rituals which are better to be done at right time. But one should not apply it in just kidding or in a way to just trouble any one with no reason other else opposite results may also be faced. There remains no effect of any trap made by enemies and in future too there should be no such planning of enemies to hurt or damage us the same thinking should be there in sadhak’s mind. Among such secret and mysterious processes of tantra one is “jwala shatru stambhan”. This is very important process as it is done in Satvik method but its effect is very sharp. Goddess Jwala is in the form of fire herself, and by stopping enemy’s thinking and development it blesses sadhak. Sadhak need not special materials for this prayog.
This process could be start on any day and this should be done for 8 days, in these 8 days sadhak should take saatvik food, onion and garlic also be avoided. This is jain tantra sadhana so these things should strictly be followed. In this prayog cloths and aasan should remain white. Direction should be north. After 10 in the night sadhak should pray goddess jwala for the protection from enemies. After that one should do 1008 aahutis with pure ghee in fir with following mantra.
Om zhraam jwaalaamaalini shatru stambhay uchchatay phat
After aahuti (fire offerings) gets over one should sleep on the floor. This way if the process is done for 8 days every enemies of sadhak gets paralyzed in planning any harm and sadhak will not face any further problem. Every Conspiracy prepares by enemies to harm sadhak will reversed to them self.
   


                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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1 comment:

Rishiraj awasthi said...

Thanks for this sadhana. Bhaia ji devi jwalamalini ki poorna sadha kis prakar ki jati he.