भगवती दुर्गा का रूप अपने आप मे साधको के मध्य हमेशा से ही अत्याधिक प्रचलित रहा है. बुराई पर अच्छाई की जित का प्रतीक है देवी. दुर्गा के कई रूपों की साधना तन्त्र ग्रंथो मे निहित है. देवी नित्य कल्याणमई है तथा अपने साधको पर अपनी अमी द्रष्टि सदैव रखती है. भगवती की साधना करना जीवन का एक अत्यधिक उच्च सोपान है. व्यक्ति अपने कर्म दोषों से जब तक मुक्त नहीं होता तब तक उन्नति की गति मंद रूप से ही चलती है चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र हो. भौतिक रूप मे चाहे हम कर्मफलो को प्राप्त कर दोषों का निवारण एक बार कर भी ले लेकिन मानसिक दोषों तथा मन मे जो उन दोषों का अंश रह गया है उसका शमन भी उतना ही ज़रुरी है जितना भौतिक दोषों का निवारण. कई बार व्यक्ति अपने अत्यधिक परिश्रमो के बाद भी सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता है. या फिर कोई न कोई बाधा व्यक्ति के सामने आ जाती है, या फिर परिवारजनो से अचानक ही अनबन होती रहती है. इन सब के पीछे कही न कही व्यक्ति के वे दोष शामिल होते है जो की पाप कर्मो के आचरण से उन पर हावी हो जाते है. चाहे वह इस जन्म से सबंधित हो या पूर्व जन्म के संदर्भ मे. कर्म की गति न्यारी है लेकिन साधना का भी अपने आप मे एक विशेष महत्व है, साधना के माध्यम से हम अपने दोषों की समाप्ति कर सकते है, निवृति कर सकते है. इस प्रकार की साधनाओ मे भगवती की साधनाए आधार रूप रही है. भगवती की साधना मात्रु स्वरुप मे ही ज्यादातर की जाती है. इस महत्वपूर्ण साधना को सम्प्पन करने पर साधक की भौतिक तथा आध्यात्मिक गति मंद से तीव्र हो जाती है, समस्त बाधाओ का निराकारण होता है तथा व्यक्ति अपने दोषों से मुक्त हो कर निर्मल चित युक्त बन जाता है. आगे के सभी कार्यों मे देवी साधक की सहायता करती है तथा साधक का सतत कल्याण होता रहता है.
इस साधना को करने के लिए साधक के पास शुद्ध पारद दुर्गा विग्रह हो तो ज्यादा अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं हो तो साधक को देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को अपने सामने स्थापित करना चाहिए. साधक इस साधना को रविवार से शुरू करे. रात्री काल मे ११ बजे के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए. साधक लाल वस्त्र पहन कर लाल आसान पर बैठ कर देवी का पूजन करे तथा उसके बाद निम्न मंत्र की मूंगामाला से २१ माला जाप करे. साधक चाहे तो ५१ माला भी जाप कर सकता है. दिशा उत्तर रहे.
ओम दुं सर्वदोष शमनाय सिंहवासिनि नमः
यह क्रम ११ दिनों तक रहे. संभव हो तो ११ वे दिन साधक को मंत्रजाप के बाद शुद्ध घी की १०८ आहुति यही मन्त्र से अग्नि मे प्रदान करे. साधना काल मे कमल की सुगंध आने लगती है तथा सौभाग्यशाली साधको को देवी बिम्बात्मक रूप से दर्शन भी देती है. साधना के दिनों मे ही उत्तरोत्तर साधक का चित निर्मलता की और अग्रसर होता रहता है जिसे साधक स्पष्ट रूप से अनुभव कर पाएगा.
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The form of goddess Durga has remained very famous among the sadhak. Devi is symbol of victory of truth over negativity. There are many sadhana mentioned in tantra scriptures of various Durga forms. Devi is always favorable and she always keeps on blessing her sadhaka. To perform rituals of bhagawati is one of the big boons of life. Progress of anyone remains slow till the time one does not get free from karmdosha rather it is material field or spiritual field. In material sense we might dissolve our dosha which with the karmaphal but mental dosha and the particles of the same which took the deep roots in the mind are too required to be dissolved same as in physical form dosha. Many time people could not get success with lots of hard work. Or else one or other trouble keeps on arriving, or conflicts occur with family members all of a sudden. After all these things, there remains an effect of the Dosha (karma defects) in one or another form belonging to this or previous births. Karma system is mysterious but sadhana too has its important place, with the medium of the sadhana one can get rid from the dosha and can finish the effect of the same. In such sadhana, sadhana relating Bhagawati has remained in base. Bhagawati sadhana is majority of the time done in mother form. After completion of this important sadhana the progress in material and physical life gets boost. Every trouble gets solutions and person become free from defects gained through karmadosha and becomes pure hearted. In all further works help of the goddess is received and sadhak stays blessed.
To complete this sadhana it is better if sadhak have pure paarad durga vigrah, but if it is not possible one may establish photo or idol of goddess durga in front of them. Sadhak should start this sadhana from Sunday after 11 PM night time. Sadhak should do the poojan of goddess wearing red cloths and sitting on red aasana and after that one should chant 21 rosary of the following mantra. if sadhak wishes one can even do 51 rosary of the mantra. Direction should be north.
Om Dum Sarvdosh Shamanaay Sinhavaasini Namah
This process should be continuing for 11 days. If possible one should offer 108 aahuti in the fire of pure ghee after mantr jaap gets completed on 11th day. In sadhana duration fragrance of the lotus starts spreading in the room and fortunate can even have glimpses of goddess. Sadhak can feel them self the increased purity of the heart day by day during sadhana period.
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3 comments:
JAY GURUDEV
मुजे माफ कर ना आरिफ भाई जो में दूसरे पोस्ट की कमेन्ट यहाँ लिख रहा ही पर वह लिकी थी पर जवाब आज तक नहीं आया इश लिए आहा लिख रहा हू
आप ने हमजाद के बारे में पोस्ट किया था में ऐ जन ना चाहता हू की मेरे पास एशी जगह नहीं हे जहा पे कोय आता जाता नहो साधना के वक्त नहीं आएगा कोय मग उष के बाद तो वह आना जाना रहेता हे तो की में ऐ साधना कर सकता हू सूर्य प्रकाश में
"all that i can say to you is......Mmmuuuaahh"
Hi Dear NPRU is this word in mantra सिंहवासिनि or सिंहवाहिनी
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