Siddh Sthan is that place where this level is 21 times
more than normal. This place is called Siddh Sthan and whole area is called
Siddh area. At such place person not merely through the means of thoughts but
also by the means of procedures starts diving inside himself. Desire to
discover one’s own self and spiritual development is not merely confined to
thoughts rather it gets transformed into practical form. In other words, in the
first type of places, person senses and feels about first Bhaav i.e. Pashu
Bhaav and is compelled to think about surpassing it.In second type of places
person starts getting stabilized in second Bhaav i.e. he starts getting
situated in Veer Bhaav through his activities. In such places person, by
relying on many types of Sadhan and Maarg, starts moving his life to higher
pedestal. Definitely consciousness implicit in nature helps him.
Are these places artificially made or are they naturally
found? How can one go to such places?
He answered my questions and said that such places may
exist naturally and very high-level yogis can create these types of places.
This construction is done by sadhak by transforming energy gathered by his
sadhna into consciousness and broadcasting in that particular area. In this
manner, when level of basic consciousness increases 21 times then that area
becomes Siddh area. It cannot be done by every person. Only a Siddh having a
very high spiritual level can do such type of construction. Besides this, there
are such places available naturally because in such special places, some
particular Shakti resides permanently and their Praan energy is present in this
area. Such places have connection with special Loks and sadhak and siddhs continuously
tries to maintain the level of consciousness and praan energy through various
procedures. Such places can exist in three dimensions and in fourth dimension
too. The third dimension places are manifested physically and one can enter
them. Though some places are present in rugged areas and forest in hidden form
so that they remain hidden from common man’s vision but there are such place
where person can go and feel consciousness and inner pulsation shows immediate
effect to involve in some procedure or other so as to attain knowledge. Such
places have incorporation of Siddh Shakti peeth, Tantra Peeth and various
monasteries etc. Besides it, there are such places in fourth dimension also
which can’t be seen by physical body or vision rather one has to take help of
divine eyes and inner bodies to see such siddh places. Such places are hilly areas of Jammu Kashmir, near
hilly areas of Manali and Dehradun, northern coastal areas of Punjab, forest
areas of Mount Abu in Rajasthan, Gir forest in Gujarat, surrounding areas of Varanasi
and Haridwar, Vakreshwar and Kaasba in Bengal. In Assam there are such areas
near Kamakhya, Mayong and Dibrugarh. In forest areas of North-eastern state,
hidden monastery of Kapaalik and many monasteries of Vajrayaan sadhaks are
present which can’t be seen by normal vision. Besides it, forest of Gorakhpur
and forest area from Amarkantak to Jabalpur is full of such areas. Besides it,
there are such hidden places in Jabalpur too. Mountain group on western coast
in south and especially Srisail areas are such places. To add to it, there are
many such places of intense Shaaktmaargi Maha sadhaks in Orissa. In addition to
India, there are such places also in surrounding areas especially Nepal and
Tibet.
After listening from Sadgurudev all this I got startled.
I have neverimagined that such places can exist in fourth dimension also.
Sadgurudev said there is nothing to be surprised. Such
places exist in earth from many centuries and many hundred and thousand years
old Yogis are doing sadhna in such places. Definitely there are some special
procedures upon doing which sadhak can enter them.
I remembered the thing told by that unknown Siddh Mahatma
regarding Mahasiddh Mantra prayog. I could not stop myself and I asked him
about Mahasiddh mantra prayog and what is its procedure?
Sadgurudev said with gentle smile that this prayog is
easy. After doing it, many curiosities of sadhak regarding this subject are
resolved.
Sadhak should do this prayog at the time of eclipse.
During eclipse time, Sadhak should face north, wear white dress and sit on
white aasan. Sadhak should chant 51 rounds of mantra “OM HREEM SHREEM MAHASIDDHAAY NAMAH”.This
chanting should be done by sfatik rosary. There are no other articles needed,
just mantra has to be chanted alone. If sadhak is doing sadhna in his room then
there should be no one in that room. After that, at any time one can recite
this mantra 51 times mentally and then mentally pronounce question regarding
this subject 3 times and go to sleep in night. In the night any guardian of
Siddh area gives its answer.
I asked who is guardian of this Siddh area.
=======================================सिद्धस्थान वह स्थान है जिसमे यह स्तर सामान्य रूप से २१ गुना ज्यादा हो. ऐसे स्थान को सिद्ध स्थान तथा ऐसे पुरे क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है. ऐसे स्थानों पर व्यक्ति मात्र अपनी विचारों के माध्यम से ही नहीं अपनी क्रियाओ के माध्यम से भी अपने अंदर उतरने लग जाता है. स्व खोज तथा आत्मोन्नति की कामना मात्र विचारों तक सिमित ना रह कर क्रिया रूप में परावर्तित हो जाती है. एक प्रकार से देखा जाए तो प्रथम प्रकार के स्थानों में उसे प्रथम भाव अर्थ पशुभाव का आभास और बोध होने लगता है तथा उससे ऊपर आने के लिए सोचने के लिए विवश होने लगता है. दूसरे प्रकार के स्थान में व्यक्ति दूसरे भाव में स्थिर होने लगता है, अर्थात वह क्रियावान हो कर वीर भाव में स्थित होने लगता है. ऐसे स्थानों पर व्यक्ति कई प्रकार के साधन तथा मार्ग का आसरा ले कर अपने जीवन को उर्ध्वगामी बनाने की और गतिशील होता है. निश्चित रूप से प्रकृति में निहित चेतना उसकी सहायता करती है.
क्या ऐसे स्थानों का निर्माण होता है
या यह सहज प्राकृतिक होते है? ऐसे स्थान पर किस प्रकार से जाया जा सकता है?
मेरे प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने
बताया की ऐसे स्थान प्राकृतिक रूप से भी हो सकते है तथा अत्यंत उच्चकोटि के योगी
इस प्रकार के स्थानों की रचना भी कर सकते है. यह निर्माण साधक अपनी तपस्या या
साधना से संगृहीत की हुई तपः उर्जा को चेतना रूप में परावर्तित कर उसे क्षेत्र
विशेष में प्रसारित कर देता है. इस तरह जब मूल चेतना का स्तर २१ गुना ज्यादा बढ़
जाता है तब वह क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र या सिद्ध स्थान बन जाता है. यह हर कोई
व्यक्ति नहीं कर सकता, कोई कोई अत्यंत ही उच्च अध्यात्म स्तर प्राप्त सिद्ध ही इस
प्रकार की रचना कर सकता है. इसके अलावा, कई ऐसे स्थान प्राकृतिक रूप से भी होते
है. क्योकि ऐसे स्थान विशेष में कोई निश्चित शक्ति का स्थायी वास होता है तथा उनकी
प्राण उर्जा उस क्षेत्र में व्याप्त होती है. ऐसे स्थान का विशेष लोक लोकान्तरो से
सबंध होता है तथा वहाँ पर विविध प्रक्रियाओ के माध्यम से प्राण उर्जा तथा चेतना का
स्तर बनाये रखने के लिए सदैव प्रयत्न साधको तथा सिद्धो द्वारा होता रहता है. ऐसे
स्थान तृतीय आयाम में तथा चतुर्थ आयाम में भी हो सकते है. तृतीय आयाम के अंतर्गत
स्थान भौतिक रूप से द्रष्टिगोचर होते है तथा उनमे प्रवेश पाया जा सकता है, हालाकि
कई स्थान बीहडो में तथा जंगलो में गुप्त रूप से होते है की सामान्यजन की नज़रों से
बचे हुवे होते है. लेकिन इस प्रकार कई स्थान है जहां पर व्यक्ति जा कर उसकी
चैतन्यता का अनुभव कर सकता है तथा अंत:स्फुरणा तुरंत ही अपना असर दिखाती है कोई न
कोई एसी प्रक्रिया में संलग्न होने के लिए जिससे ज्ञान की प्राप्ति हो सके. ऐसे
स्थानों में सिद्ध शक्तिपीठ, तंत्र पीठ, तथा विविध मठो आदि का समावेश होता है.
इसके अलावा चतुर्थ आयाम में भी कई ऐसे स्थान है जिनको स्थूल देह से या द्रष्टि से
देखना संभव नहीं है लेकिन ऐसे सिद्ध स्थान को देखने के लिए दिव्यनेत्र तथा आतंरिक
शरीरों का भी सहारा लेना पड़ता है. ऐसे कई स्थान जम्मू कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्र, मनाली तथा दहेरादून के
पर्वतीय क्षेत्र के आस पास, पंजाब के उत्तरीय तटवर्ती क्षेत्र में, राजस्थान में
आबू के जंगलिय प्रदेश में, गुजरात के गिर जंगलो में, वाराणसी तथा हरिद्वार में आस
पास वाले इलाके में, बंगाल में वक्रेश्वर तथा कास्बा, आसाम में कामाख्या मयोंग
दिबरुगढ़ इत्यादि के आस पास ऐसे क्षेत्र है सभी पूर्वोत्तर राज्यों के जंगली
क्षेत्र के कापालिक गुप्त मठ तथा वज्रयानी साधको के मठ विद्यमान है जिसको सामन्य
द्रष्टि से देखना संभव नहीं है. इसके अलावा, गोरखपुर का जंगल तथा अमरकंटक से ले कर
जबलपुर तक का जंगली इलाका भी ऐसे कई स्थानों से भरा पड़ा है, इसके अलावा जबलपुर में
भी कई ऐसे गुप्त स्थान है ही. दक्षिण में पश्चिमी घाट का पहाड़ी समूह तथा विशेष रूप
से श्रीशैल क्षेत्र में भी ऐसे कई स्थान है. इसके अलावा, उडीसा में तीव्र शाक्तमार्गी
महासाधको के कई ऐसे स्थान है. भारतवर्ष के अलावा भी आस पास के क्षेत्र में विशेषतः
नेपाल तथा तिब्बत में ऐसे कई स्थान है.
सदगुरुदेव से यह सब सुन कर निश्चय ही
चोंकने की बारी थी मेरी. इतने विशेष स्थान के चतुर्थ आयाम में हो सकते है एसी मेने
कल्पना भी नहीं की थी.
सदगुरुदेव ने कहा इसमें आश्चर्य की
कोई बात नहीं है, ऐसे स्थान पृथ्वी पर कई सदियों से विद्यमान है तथा कई सेकडो वर्ष
तथा हजारो वर्ष की आयु प्राप्त योगी ऐसे स्थानों पर साधनारत है, निश्चित रूप से कई
एसी विशेष प्रक्रियाऐ है जिनको करने पर साधक इसमें प्रवेश पा सकता है
मुझे उस अज्ञात सिद्ध महात्मा की बात
याद आ गई उन्होंने महासिद्ध मंत्र प्रयोग के बारे में बताया था. मे अपने आप को अब
रोक नहीं सका, मेने पूछ की यह महासिद्ध मंत्र प्रयोग क्या है तथा इसकी प्रक्रिया
क्या है.
सदगुरुदेव ने स्मित के साथ कहा की यह
प्रयोग सहज है, इसको सम्प्पन करने के बाद इस विषय के सबंध में व्यक्ति की कई
जिज्ञासाए शांत होती है.
साधक को यह प्रयोग ग्रहण के समय करना
चाहिए. उत्तर दिशा की तरफ मुख कर ग्रहण समय में सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन
पर बैठ कर साधक को ‘ॐ ह्रीं श्रीं महासिद्धाय नमः’
इस मंत्र की ५१ माला करनी चाहिए. यह जाप स्फटिक माला से हो. इसमें और किसी भी वस्तु
की आवश्यक नहीं है बस एकांत में जाप करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में साधना कर
रहा है तो उस वक्त कमरे में और कोई नहीं हो. इसके बाद कभी भी इस मंत्र का मानसिक
रूप से ५१ बार जाप कर इस विषय में कोई भी प्रश्न हो तो उसे ३ बार मन ही मन उच्चारण
कर रात्री काल में सो जाने पर उसका उत्तर सिद्ध क्षेत्र के कोई भी संरक्षक स्वप्न
में दे देते है.
मेने पूछा की यह सिद्ध क्षेत्र के
संरक्षक क्या है?...
****NPRU****
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धन्यवाद
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