Thursday, August 30, 2012

NIKHIL PANCH RATNA RAHASYA - 2



KarunaVar Abj DayaDeham Lay Beej PramaanamSrishtiKaram

Tvam Mantra Mayam Tvam Tantra MayamNikhileshwar Guruvar Paahi Prabho

 

 Definitely, this second sloka of Nikhil Panchratna is very abstruse. Describing the meaning of this sloka is not possible in ordinary manner. Rather its meaning is such that knowledge of universe can be attained by one beej. I bow to Guru Nikhileshwar, full of mantra and tantra representing water element capable of providing blessing of compassion and providing mercy.

Here, in first line of sloka used here, it has been said relating to boon of compassion and attainment of mercy. And abj means having origin in water or made up of water or element related to water or lotus. In other words, lotus relating to water element is capable of providing boon of compassion and providing mercy and it is said further that this beej creates, forms, gives birth but when uttered in rhythm or in state of pronunciation. Mantras are pronounced in three forms, Maanas, Upaanshu and Vaachik.Chanting in Vaachik manner is done with intensity of reading or speech and it is used in special Vidhaans related to Ugra (aggressive) Isht. In Upaanshu jaap person has to pronounce in a way that his voice is clearly audible to his ears. In most of tantrik sadhnas, pronunciation by this padhati is done. And in Maanas jaap, chanting is done mentally and it is used in Yog-Tantric sadhnas. Here pronouncing in rhythm means Upaanshu .Pelvis or genital portion of humans is responsible for creation. Composition of new human is done by human in this portion through life-giving fluid. This part is of Swadhisthan Chakra. Swadhisthan chakra controls water element and it is also referred to as Jalpadm.It is place for compassion and mercy feeling. Through its beej mantra, we attain these pure feelings.

 

Thus, the abstruse meaning of first line of this sloka is that we have to pronounce beej of chakra and lotus relating to water element capable of providing pure felling of compassion and mercy and capable of novel creation. This beej is beej of Swadhisthan chakra ‘Vam’.After this, it is told about mantra and tantra power of Sadgurudev i.e. voice related knowledge and procedure relating to knowledge has been told.

 

In trinity of powers i.e. Trishakti, Mahasaraswati represents Gyan Shakti (power of knowledge).Its Vaageshwari formis goddess related to pronunciation of mantra.Here meaning of Mantra Mayam is that here the mantra form of this goddess established inside Sadgurudev’s form is being described whose beej is“VAAM”

Any of mantric procedure shows its impact only due to sound. Roots of mantra lie in the sound. The definite vibrations generated from definite sound compel powers of Dev to do the works. Whereas, in case of tantric sadhna, with this sound activity one particular procedure sequence is added.

‘’VAAM” is beej representing mantra form. When activity is included in this beej, then this Kriya Shakti form becomes knowledge i.e. it will become Tantra. After all, what is the meaningof tantra? It is mantric procedure or procedure related to Dev Shakti. Therefore, here we have to combine Prakriya (procedure) sound with Vaageshwari beej which is “EE” sound. When Shakti is combined with VAAM beej or when Kriya Shakti is added, then it becomes “VEEM”.And this power is established in Tantra form of Sadgurudev, about which it has been said in sloka, Tantra Mayam.

In other words,

 

KarunaVar Abj DayaDehamLay Beej PramaanamSrishtiKaramvam

 

Tvam Mantra Mayam Tvam Tantra Mayamvaamveem

 

Nikhileshwar GuruvarPaahiPrabhonikhileshwaraaynamah

 

 

In this way whole mantra becomes

 

vam vaam veem nikhileshwaraay namah
 

The result related with this mantra chanting has been also told in sloka. Sadhak attains success in Mantra sadhna and Tantra sadhna. Along with success in sadhna, the prime feelings needed for the high-order sadhnas like compassion and mercy are developed through this procedure. Swadhisthan chakra of sadhak is activated and its related benefits are attained.
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करुणा वर अब्ज दया देहं लय बीज प्रमाणं सृष्टि करं

त्वं मन्त्र मयं त्वं तन्त्र मयं निखिलेश्वर गुरुवर पाहि प्रभो

 निश्चित रूप से निखिलपञ्च रत्न का यह दूसरा श्लोक अत्यधिक गुढ़ है, यह श्लोक का अर्थघट्न सामान्य रूप से संभव नहीं है. परन्तु इसका भावार्थ कुछ इस प्रकार से है की एक बीज से सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करा सके एसी करुणा का वरदान तथा दया देने वाले जल तत्व स्वरुप मंत्र तथा तंत्र से परिपूर्ण निखिलेश्वर गुरुवर को मेरा प्रणाम है.

यहाँ पर प्रयुक्त श्लोक की प्रथम पंक्ति में करुणा के वरदान तथा दया प्राप्ति की के सन्दर्भ में कहा गया है. तथा अब्ज का अर्थ जल से निसृत, जल से निर्मित या जल से सबंधित तत्व या कमल है. अर्थात इसका अर्थ हुआ की जल तत्व सबंधित कमल करुणा का वरदान तथा दया देने वाला है. तथा आगे कहा गया है की यही बीज सृष्टि करता है, रचना करता है. जन्म देता है. लेकिन लय युक्त अर्थात की स्व सर यानी उच्चारित अवस्था में. मंत्रो का उच्चारण तिन रूप से होता है, मानस, उपान्सू तथा वाचिक. वाचिक जाप पठन या ध्वनि की तीव्रता के साथ होता है जिसे ज्यादातर उग्र इष्ट से सबंधित विशेष विधानों में प्रयोग किया जाता है, उपान्सू जाप में व्यक्ति को उतना ही उच्चारण करना है की अपने कानो में मंत्रो की ध्वनि साफ़ सुनाई दे ज्यादातर तांत्रिक साधनाओ में इस पद्धति से उच्चारण किया जाता है. तथा मानस जाप मानसिक रूप से जाप करना होता है जिसे योग तांत्रिक साधना में बहुतरा उपयोग में लाया जाता है. यहाँ पर लय के साथ उच्चारण का अर्थ है उपान्सू जाप. सृष्टि करने की समर्थ मनुष्य में पेडू स्थान या जननेद्रिय प्रदेश में स्थित है. मनुष्य अपने जिव द्रव्य के माध्यम से नूतन मनुष्य की संरचना इसी प्रदेश से करता है. यही स्थान स्वाधिष्ठान चक्र का है. स्वाधिष्ठान चक्र जल तत्व का नियंत्रण करने वाला चक्र है तथा इसे जलपद्म भी कहा गया है. यही स्थान करुणा तथा दया के भाव का स्थान भी है जिसके बीज मंत्र के द्वारा इन शुद्ध भावो की प्राप्ति होती है.

अर्थात इस श्लोक की प्रथम पंक्ति का गूढार्थ यह है की करुणा तथा दया जेसे शुद्ध भावो को प्रदान करने वाले नूतन संरचना की क्षमता युक्त जल तत्व के चक्र या पद्म का बीज उच्चारण करना है. यह बीज स्वाधिष्ठान पद्म का बीज है, ‘वं’. इसके बाद सदगुरुदेव के मंत्र शक्ति तथा तंत्र शक्ति अर्थात ध्वनि सबंधित ज्ञान तथा ज्ञान सबंधित प्रक्रिया के बारे में बताया गया है.

त्रिशक्ति में महासरस्वती देवी ज्ञान शक्ति का प्रतिक है, उनका ही स्वरुप वागेश्वरी मंत्रो से सबंधित उच्चारण की देवी है, यहाँ पर मंत्र मयं का अर्थ सदगुरुदेव के स्वरुप में स्थापित मंत्र स्वरुप की इसी देवी के बारे में बताया गया है जिसका बीज है ‘वां’.

किसी भी मांत्रिक प्रक्रिया मात्र ध्वनि के कारण अपना प्रभाव दिखाती है. मंत्रो के मूल में ध्वनि है, इसमें निश्चित ध्वनि से निकले हुई निश्चित तरंगे देव शक्तियों से कार्य को करवाती है. जब की तांत्रिक साधना में, इसी ध्वनि क्रिया के साथ साथ एक निश्चित प्रक्रिया क्रम को जोड़ दिया जाता है.

‘वां’मन्त्र स्वरुप बीज है. इसी बीज को क्रिया सम्मिलित करने पर वह क्रिया शक्ति स्वरुप ज्ञान बन जाएगा अर्थात तंत्र बन जायेगा. तंत्र का अर्थ क्या है; मंत्र प्रक्रिया या देव शक्ति से युक्त प्रक्रिया ही तो है. इसी लिए यहाँ पर वागीश्वरी बीज में ही प्रक्रिया स्वर को जोड़ देना है जो की ‘इ’ स्वर है. वां बीज में शक्ति समन्वित करने पर या क्रिया शक्ति को जोड़ देने पर वह ‘वीं’ बनता है. तथा यही शक्ति सदगुरुदेव में तंत्र रूप में स्थापित है, जिसके बारे में श्लोक में कहा गया है, तंत्र मयं.

अर्थात,

करुणा वर अब्ज दया देहं लय बीज प्रमाणं सृष्टि करं वं

त्वं मन्त्र मयं त्वं तन्त्र मयं वां  वीं

निखिलेश्वर गुरुवर पाहि प्रभो निखिलेश्वराय नमः

 

इस प्रकार यह पूर्ण मंत्र बनता है –

वं वां वीं निखिलेश्वराय नमः

(vam vaam veem nikhileshwaraay namah)

 

इस मंत्र के जाप से सबंधित फल के बारे में भी श्लोक में बताया जा चूका है. साधक को मंत्र साधना तथा तंत्र साधना में सफलता की प्राप्ति होती है. साधना सफलता के साथ साथ उच्चकोटि की साधना के लिए जो मुख्य भाव चाहिए वह दया तथा करुणा जेसे भावो का उदय भी इस प्रक्रिया के माध्यम से होता है. साधक के स्वाधिष्ठान चक्र का जागरण होता है तथा उससे सबंधित लाभों की प्राप्ति होती है.
 
****NPRU****

 

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