Tuesday, October 16, 2012

BHOOTINI SADHNA



Human imagination has got definite limitation beyond which he cannot even think and his logical mind always stops him to accept beyond his self-knowledge. But in today’s modern era , as a result of scientific research some facts have come into light which proves that human journey is not merely a journey from birth to death rather death is only a halt. Human beings after death attains some different yoni, various names and sub-names are given to it.
May be today’s science is still doing research on its existence but our ancient sages and saints had done a very elaborate exploration thousands of years back and put forward very amazing information in front of common public. Human after death undergoes a journey depending on his karmas and in this sequence he attains different types of yonis or gets rebirth. There are many differences within it but the yonis which are known among public are Bhoot, Pret, Pisaach, Rakshas or Brahma Rakshas. These all are Karma-dependent. This subject is very vast. Here we will discuss about the procedures related to them in Tantra. 

There are available many prayog in tantra corresponding to various Yonis in which through sadhna, Ittar Yonis are made to do various types of work. But these sadhnas may look easy, but they are not that much easy. Thus it is best for sadhak to do Laghu prayog related to these Ittar yonis.


Bhoot is a male noun, in the same manner Bhootini is a female noun. In reality it is misconception only that Bhootini are dreadful and ugly rather truth is that Bhootini look like any other normal worldly female, they are also beautiful and sweet. Actually their form is manifested in front of us depending upon the sadhna and mental image of Saadhy form. Manifestation of dreadful form in Tamsik sadhna is a separate thing but it is not necessary that such thing will happen in every sadhna.

Prayog presented here is one amazing prayog upon doing which sadhak can manifest Bhootini in his dream and see her and even converse with her. For sadhak this prayog is important in one way that through this prayog, person can get an answer to any of his question from Bhootini in dream. This prayog is not the prayog of Taamas Bhaav of Bhootini. Therefore, Bhootini will manifest in amiable form only.


It is best for sadhak to do this prayog on any Amavasya though this prayog can be done on any Wednesday.

Sadhak should do this prayog in night after 10:00 P.M. First of all, sadhak should take bath, wear red dress and sit on red aasan. After doing Guru Poojan and chanting Guru Mantra, sadhak should make this yantra on white paper. Sadhak should grind banana peel, make its solution and mix vermillion in it and use this as ink. Sadhak should use wood of Banyan tree as pencil for making this yantra. Once yantra is made, sadhak should keep this yantra in any container in front of him/her and light one oil lamp and start chanting mantra.

Sadhak should chant 11 rounds of the below mantra. For this, sadhak has to use Rudraksh rosary.

bhram bhram bhram bhuteshwari bhram bhram bhram phat
After completion of Mantra Jap, sadhak should burn this yantra with help of that lighted lamp. Ash of yantra thus formed has to be applied on forehead as Tilak (ceremonial mark) and above mantra has to be recited three times. After that sadhak should mentally recite his question three times and go to sleep. Sadhak gets darshan of Bhootini in his dreams and she provides answer to his question. After getting answer, sadhak gets up from sleep. At that time sadhak should write the answer otherwise there is every chance that he will forget it.Sadhak should not use that lamp and rosary in any other sadhna but they can used for doing this sadhna again. The container in which yantra was placed, it has to be washed and it can be used. If Yantra ash is still remaining then sadhak should immerse the ash and wood used for writing the yantra. Sadhak on next day can get rid of the mark by washing his face but it is necessary to keep the mark till morning.
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मनुष्य की कल्पना का एक निश्चित दायरा होता है जिसके आगे वह सोच भी नहीं सकता है और तर्क बुद्धि उनको स्व ज्ञान से आगे कुछ स्वीकार करने के लिए हमेशा रोक लगा देती है, लेकिन आज के आधुनिक युग में वैज्ञानिक परिक्षण में भी ऐसे कई तथ्य सामने आये है जिसके माध्यम से यह सिद्ध होता है की मनुष्य की गति सिर्फ जन्म से ले कर मृत्यु तक की यात्रा मात्र नहीं है वरन मृत्यु तो एक पड़ाव मात्र ही है. मनुष्य मृत्यु के समय शरीर त्याग के बाद कोई विविध योनी को धारण करता है विविध नाम और उपनाम दिए जाते है.

भले ही आज का विज्ञान उसके अस्तित्व पर अभी भी शोध कर रहा हो लेकिन हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने इस विषय पर सेकडो हज़ारो सालो पहले ही अत्यंत ही प्रगाढ़ अन्वेषण कर के अत्यधिक विस्मय युक्त जानकारी जनमानस को प्रदान की थी. मनुष्य के मृत्यु के बाद उसकी निश्चय ही कार्मिक गति होती है तथा इसी क्रम में विविध प्रकार की योनी उसे प्राप्त होती है या उसका पुनर्जन्म होता है. इसके भी कई कई भेद है, लेकिन जो प्रचलित है वह योनी है भुत, प्रेत, पिशाच, राक्षस या ब्रह्मराक्षस आदि है जो की कर्मजन्य होते है. यह विषय अत्यंत ही वृहद है. यहाँ पर हम चर्चा करेंगे तंत्र में इन से जुडी हुई प्रक्रिया की.

विविध योनियो से सबंधित विविध प्रकार के प्रयोग तंत्र में प्राप्त होते है. जिसमे साधनाओ के माध्यम से विविध प्रकार के कार्य इन इतरयोनियो से करवाए जाते है. लेकिन यह साधनाए दिखने में जितनी सहज लगती है उतनी सहज होती नहीं है इस लिए साधक के लिए उत्तम यह भी रहता है की वह इन इतरयोनियों के सबंध में लघु प्रयोग को सम्प्पन करे.

जिस प्रकार भुत एक पुरुषवाचक संज्ञा है उसी प्रकार भुतिनी एक स्त्रीवाचक संज्ञा है. वस्तुतः यह भ्रम ही है की भुतिनियाँ डरावनी होती है तथा कुरुप होती है, वरन सत्य तो यह है की भुतिनि का स्वरुप भी उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से एक सामान्य लौकिक स्त्री का. उसमे भी सुंदरता तथा माधुर्य होता है. वस्तुतः यह साधना तथा साध्य के स्वरुप के चिंतन पर उनका रूप हमारे सामने प्रकट होता है, तामसिक साधना में भयंकर रूप प्रकट होना एक अलग बात है लेकिन सभी साधना में ऐसा ही हो यह ज़रुरी नहीं है.

प्रस्तुत एक दिवसीय प्रयोग एक अचरज पूर्ण प्रयोग है, जिसे सम्प्पन करने पर साधक को भुतिनी को स्वप्न के माध्यम से प्रत्यक्ष कर उसे देख सकता है तथा उसके साथ वार्तालाप भी कर सकता है. साधको के लिए यह प्रयोग एक प्रकार से इस लिए भी महत्वपूर्ण है की इसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वप्न में भुतिनी से कोई भी प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकता है. यह प्रयोग भुतिनी के तामस भाव के साधन का प्रयोग नहीं है, अतः व्यक्ति को भुतिनी सौम्य स्वरुप में ही द्रश्यमान होगी.

यह प्रयोग साधक किसी भी अमावस्या को करे तो उत्तम है, वैसे यह प्रयोग किसी भी बुधवार को किया जा सकता है.

साधक को यह प्रयोग रात्री काल में १० बजे के बाद करे. सर्व प्रथम साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्र पहेन कर लाल आसान पर बैठ जाए. गुरु पूजन तथा गुरु मंत्र का जाप करने के बाद दिए गए यन्त्र को सफ़ेद कागज़ पर बनाना चाहिए. इसके लिए साधक को केले के छिलके को पिस कर उसका घोल बना कर उसमे कुमकुम मिला कर उस स्याही का प्रयोग करना चाहिए. साधक वट वृक्ष के लकड़ी की कलम का प्रयोग करे. यन्त्र बन जाने पर साधक को उस यन्त्र को अपने सामने किसी पात्र में रख देना है तथा तेल का दीपक लगा कर मंत्र जाप शुरू करना चाहिए.

साधक को निम्न मंत्र की ११ माला मंत्र जाप करनी है इसके लिए साधक को रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए.

भ्रं भ्रं भ्रं भुतेश्वरी भ्रं भ्रं भ्रं फट्

(bhram bhram bhram bhuteshwari bhram bhram bhram phat)

मंत्र जाप पूर्ण होने पर जल रहे दीपक से उस यन्त्र को जला देना है. यन्त्र की जो भष्म बनेगी उस भष्म से ललाट पर तिलक करना है तथा तिन बार उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करना है. इसके बाद साधक अपने मन में जो भी प्रश्न है उसके मन ही मन ३ बार उच्चारण करे तथा सो जाए. साधक को रात्री काल में भुतिनी स्वप्न में दर्शन देती है तथा उसके प्रश्न का जवाब देती है. जवाब मिलने पर साधक की नींद खुल जाती है, उस समय प्राप्त जवाब को लिख लेना चाहिए अन्यथा भूल जाने की संभावना रहती है. साधक दीपक को तथा माला को किसी और साधना में प्रयोग न करे लेकिन इसी साधना को दुबारा करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है.  जिस पात्र में यन्त्र रखा गया है उसको धो लेना चाहिए. उसका उपयोग किया जा सकता है. अगर यन्त्र की राख बची हुई है तो उस राख को तथा जिस लकड़ी से यन्त्र का अंकन किया गया है उस लकड़ी को भी साधक प्रवाहित कर दे. साधक दूसरे दिन सुबह उठ कर उस तिलक को चेहरा धो कर हटा सकता है लेकिन तिलक को सुबह तक रखना ही ज़रुरी है.


****NPRU****

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