Monday, January 7, 2013

ITAR YONI RAHASYA AUR KARN PISHACHINI VARG SADHNA RAHASYA SEMANAAR - 7


 
There is one more mode/genre connected to Sadhna-related genre which has also been called Ayurveda. But
What is the relationship of Ayurveda with sadhna?
How one can completely accomplish any sadhna through it?
It cannot be even thought that link can be established between chanting mantra and sadhna on one hand and herb on the other?
One can get little bit help but can sadhna also …..?
Why not, when nature has made everyone complete in itself then how we can consider any aspect to be less or more important,
But what is their use in Itar Yoni sadhna or Karn Pishaachini Sadhna?
One sadhak make every possible attempt to attain success in sadhna because there are only two states in life, either to keep one medicine and declare our self as Vaidya (term used in Hindi for ancient doctors) or continuously move ahead. It is correct that knowledge has got one limit, modern day sadhak may be reluctant or feel shame to learn certain things in front of someone but how can be forget our actual condition? Have we become complete that we resort to shyness and shame? What we have learnt and experienced, we are telling to others but there are so many among disciples of Sadgurudev Ji who are continuously doing sadhna from hundreds of years then can we still stand egoistically in front of them ….we  have accomplished this…my name is this . Keep in mind that Sadgurudev closely watches everyone and he never accepts any ego even if it is ego of knowledge or accomplishments. Because if seen in real sense then the sadhnas which we boost of calling as Tantra Sadhna, they are not even a, b, c, d of Tantra world……if you are not able to digest this fact then please read “HIMALAYA KE YOGIYON KI GUPT SIDDHIYAN”, in which it has been given that Tantra path opens only after one has completed sadhnas of five peeths successfully. Thus, in this sense we all are……. Therefore, there should not be any shame/reluctance on our part to learn knowledge rather a new emotion would be portrayed in front of everyone that you are still young and you have intense desire to learn and you want to reach completeness….not this ….that you have started boosting of yourself by achieving only certain things…then who will learn about advanced things?
In the similar manner , there are so many procedures in Ayurveda that it alone can take you to supreme heights , even till Divya Ashrams…But how….?
For it, one should have attitude and feeling of complete dedication that I have to achieve completeness through it. We can talk on this more later. Here for this seminar, we should understand that how these herbs can be used to lower intensity of any particular sadhna or can make it suitable for doing it at home. Here we are not talking about any such herb for namesake which is not easily available rather we are talking about those herbs which are readily available. It is true that this one-day seminar has got its own time-limits or will have so. But we will try our best to reveal as much information and facts in this context as possible. I am completely aware of the fact that it takes your hard-earned money for arranging for travel and accommodation. It is your affection which makes this possible. It is your intense desire which materializes it.It is your connectivity with us which makes this possible. Otherwise, in today people have become so much busy that they even do not go their homes in festivals and what to say about this….
Because we are connected in one knot , knot of Sadgurudev’s knowledge and affection in which anyone can be/considered to be elder or younger for one moment…….but at last , we all are parts of soul of Sadgurudev….then…
While doing any sadhna, mental state of person especially his physical instability affects him a lot and this problem comes in front of person so many times in different forms then how can it be controlled by herbs? Otherwise his entire sadhna effort does not take even one second to go in vain. We discussed certain solutions in previous seminar and there are so many Ayurveda hidden secrets in Itar Yoni and Karn Pishaachini category sadhnas which can be learnt from any competent person, working on which person can attain success. But it takes time and politeness along with patience because it completely depends upon other person that he sees that particular thing in you.
Any capable sadhak takes assistance of all those things, knowledge, genre which can take him to his aim i.e. lotus feet of Sadgurudev Ji…which is supreme aim of all….where after complete surrender….one disciple is born from sadhak and who is greeted by each and every particle of nature that now here is free soul based on dignified emotional platform of one disciple…..

Only for those dear ones…
To be continued…
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साधनात्मक विधाओ से जुडी हुयी, एक और विधा भी हैं जिसे आयुर्वेद भी कहा  गया हैं.पर
आयुर्वेद से साधना का क्या रिश्ता?
 उससे कोई कैसे साधना पूरी सिद्ध कर लेगा ?
यह तो सोचा भी नही जा सकता हैं.क्योंकि कहाँ बैठकर मंत्र जप और साधना  और कहाँ जड़ी बूटियों की बात... इनमे कैसे ..?
थोड़ी बहुत सहायता तो मिल सकती हैं पर क्या साधना भी ..?
क्यों नही, जब प्रकृति ने सभी को पूर्ण बनाया हैं तो उसके किसी भी पक्ष को हम कैसे कम या ज्यादा अंक सकते हैं,
पर इतर योनी साधना  या कर्ण पिशाचिनी साधना मे इनका  क्या उपयोग ?
एक साधक अपनी साधना मे सफलता पाने के लिए हर प्रयास करता ही हैं क्योंकि जीवन मे  दो ही अवस्था होती हैं या तो  एक सूंठ रख कर खुद  को वैद्य घोषित कर दें  या फिर लगातार आगे बढ़ते जाए,मानता हूँ की ज्ञान की एक सीमा पर किसी के सामने कुछ ओर सीखने मे आज के साधको को कुछ शंका या संकोच  हो सकता  हैं पर हम यह  कैसे  भूल जाते हैं  की हम हैं आखिर कहाँ ? क्या हम  सम्पूर्ण हो गए हैं जो की की  इतनी लाज  शरम  का अवलंबन लेने लगे.हमें  जो सीखा ,स्वनुभावित किया  वह हम दूसरे को बता रहे हैं पर सदगुरुदेव जी के शिष्य मे से कई कई  तो लगातार  साधना रत रहते हुये शताब्दियों की  की सीमा भी पार कर चुके हैं   तब क्या उनके सामने भी हम ऐसे ही अकड़े रहेंगे की... हम तो ये हैं ..या हमारा  तो  नाम हैं..या हमें या हमारे बारे मे ...ध्यान रहे  सदगुरुदेव सभी  पर ध्यान रखते हैं ही और वह किसी का भी घमंड स्वीकार भी नही करते हैं फिर  वह चाहे ज्ञान का ही क्यों न हो या सिद्धियों  का ही  क्यों न हो .क्योंकि अगर सही दृष्टी से देखा जाये  तो जिन साधनाओ को हम  तंत्र साधना कहते नही आघाते, वह तो वास्तव मे  a, b,c ,d भी नही हैं तंत्र जगत का..क्या यह बात आप स्वीकार नही कर पा  रहे हो तो  आप “हिमालय के योगियों की  गुप्त सिद्धियाँ” पढ़े ,उसमे दिया हैं की किस  तरह पाँचों पीठ की साधना  सफलता पूरी करने के बाद ही  तंत्र का रास्ता  खुलता   हैं इस  अर्थ मे  तो सभी ...अतः  ज्ञान के सीखने मे  कभी भी किसी भी प्रकार की लज्जा  नही बल्कि यह तो एक नया भाव सभी के सामने आएगा  की आप अभी भी युवा हैं और अभी भी आपमें सीखने की ललक हैं और आप अपने को पूर्णता  तक ले जाना चाहते हैं  ..न की... अभी इतने मात्र से ही आप अकड गए .तब आगे की बात कौन समझेगा ?.
ठीक इसी तरह आयुर्वेद मे भी इतनी प्रक्रियां  हैं  की यह अकेला  ही आपको सर्वोच्चता  तक ले जा  सकता हैं   जी हाँ  दिव्य आश्रमो तक भी ..पर कैसे ..?
उसके लिय एक  मानस  और एक पूर्ण समर्पण की मुझे इससे ही पूर्णता पाना  हैं ही, वह भाव ना  ही चाहिए .चलिए इस  पर बात  तो होती  ही रहेगी यहाँ इस सेमीनार के  लिए,हम यह समझे की किस तरह से  इन जड़ी बूटी का प्रयोग कर किसी भी विशिष्ट साधना की उग्रता को कम किया  जा सकता हैं या उसे  घर पर करना के लिए  संभव किया  जा सकता हैं  और अनुकूलता पायी जा सकती हैं.यहाँ बात ऐसी जड़ी की नही हो रही है जिसका  सिर्फ आप नाम सुन ले  और फिर  राम भजो जी ..वाली बात हो जाए  बल्कि उनको उन जड़ी बूटियों को  आप आस अपने पास आसानी से पा सकें उनकी बात कर रहा हूँ .यह जरुर हैं कि इस एक दिव्यतम सेमीनार की अपनी  ही  एक समय सीमा  हैं या होगी.पर हमारी तरफ से पूरा  जा पूरा ध्यान होगा की जितना  ज्यादा से जायदा आपको इस संदर्भ मे मैं सूत्र और जानकारी दे सकूँ उतना मैं आपके सामने रखूंगा,मुझे इस बात का भान हैं की यहाँ तक आने  जाने  और अपने लिए रुकने की व्यवस्था करना मे कितना आपका स्व अर्जित धन लगता हैं और इसलिए साथ ही साथ आपका स्नेह हैं, जो यह संभव करवाता हैं, एक ललक हैं जो यह साकार करवाती हैं, एक अपनत्व की भावना हैं जो यह संभव बनवाती हैं .अन्यथा आज के व्यस्त समय मे लोग त्योहारों मे  अपने  घर  तक तो नही जाते  और फिर  यहाँ ....
क्योंकि कहीं न कहीं हम सब एक सूत्र मे  ही बंधे हुये हैं  वह है सदगुरुदेव जी  के ज्ञान रूपी  स्नेह का सूत्र हैं जिसमे कोई बड़ा  या छोटा हो एक पल के लिए हो  सकता हैं / माना जा सकता हैं ..... पर हैं तो सभी सदगुरुदेव के आत्मांश  ..तो ..
किसी भी साधना को करते समय व्यक्ति की मानसिक अवस्था खासकर शारीरिक उथल पुथल का  उस पर बहुत असर पड़ता हैं और यह ही अनेक बार अनेक रूप से व्यक्ति के सामने  आ जाती हैं तो कैसे  जड़ी बूटी के माध्यम से उसे  नियंत्रित किया जाए ?.अन्यथा उसका सारा साधनात्मक श्रम मानो समाप्त होते एक पल भी नही लगता हैं.हमें ऐसे कुछ उपाय पर विगत  सेमीनार  पर चर्चा की हैं और इतर योनियों  या कर्ण पिशाचिनी  वर्ग की साधनाओ ने अनेको ऐसे आयुर्वेद युक्त गुप्त रहस्य हैं जो की किसी योग्य व्यक्ति  से सीखे जा सकते हैं, जहाँ  श्रम करके व्यक्ति  सफलता तक  पहुच सकता हैं  पर इसके लिए समय और नम्रता के साथ धैर्य का भी तो होना जरुरी हैं  क्योंकि यह तो पूरी तरह से सामने वाले  पर निर्भर करता  हैं की वह  आपके अंदर कब वह बात देखें.
योग्य साधक हर उस चीज,ज्ञान ,विधा और सहयोगिता का सहारा लेता ही हैं जो उसे उसके लक्ष्य मतलब सदगुरुदेव जीके  दिव्य चरण कमलों  तक ले  ही जाए ...जो की सभी  का परम लक्ष्य हैं ...जहां पूरे समर्पण के  बाद ..एक साधक से  एक शिष्य का जन्म होता  हैं  और जिसका प्रकृति का एक एक कण ..अभिन्दन करता  हैं कि अब हैं यह  एक शिष्य की  गौरवमय भाव भूमि  पर  आधारित एक मुक्त आत्मा ....      

केबल उन्ही अपनों के लिए  
क्रमशः

****NPRU****

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