जय सदगुरुदेव ,
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्तिथा
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः .......
भाइयो बहनों आप सभी को गुडी पड़वा एवं नववर्ष की शुभकामनायें........
हिंदी पंचांग के अनुसार चैत्र
के प्रथम दिवस से ही नया वर्ष माना गया है. वैसे हम सब के लिए ये दिवस अति
महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आदिशक्ति के सिद्धि दिवस मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करने
हेतु ही हैं . माँ की आराधना, उपासना,
साधना ही नव रात्रि को पूर्णता देता है इस सम्पूर्ण प्रकृति
उल्लासित और हर्षित दिखाई देती ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि सारी प्रकृति ही
प्रकृति माँ आदि शक्ति मूर्तरूप के स्वागत हेतु चैतन्य होकर भक्तिभाव और पूर्ण
श्रद्धा से, अपना पूर्ण श्रृंगार कर खड़ी है
इस समय का इंतजार हम तो क्या
देवता भी बड़ी बेसब्री से करते हैं. इन दिनों माँ आदि शक्ति का पूर्ण चैतन्य होकर
सम्पूर्ण प्रकृति पर विस्तार होता है.
भाइयो बहनों वैसे तो माँ अनेक
नामों से स्तुत्य है किन्तु उनके सोलह नाम विशेस हैं जो नाम के अनुरूप अर्थ और
विशेषता को उजागर करते हैं----- दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया,शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, शर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका,
वैष्णवी, गौरी, पार्वती,
और सनातनी.
अब मैं आप सब को इन नामों का
परिचय और अपनी बुद्धि और ज्ञान के आधार पर बता रही हूँ ....
दुर्गा—अर्थात ‘दुर्ग’ शब्द दैत्य, सांसारिक बंधन, कर्म, शोक ,महाविघ्न,दुःख, नरक ,जन्म यमदंड , महारोग और महाभय वाचक है और ‘आ’ शब्द हन्तात्मक . अतः इन सबका हनन करने वाली या नाश करने वाली ....
नारायणी- शक्ति यानि दुर्गा नारायणी जो यश,तेज, गुण,रूप आदि में नर के
समान व्यापनशील होने के कारन ही वे नारायणी हैं ....
ईशाना- सर्वसिद्धि का वाचक ईशान तथा दात्रवाचक आ से बना ईशाना यानि दुर्गा
ही सर्वसिद्धिदात्री हैं ....
पूर्वकाल में विष्णु ने माया का
सृजन किया जिससे सारा विश्व विमोहित हो गया अतः उस शक्ति की अधिष्ठात्री विष्णुमाया के नाम से विख्यात हैं
...
शिवा—शिव की प्रिया जो शिव में ही कल्याणप्रदा शिवदा हैं वही शिवा हैं क्योंकि
आ वाचक शब्द दात्री होने के साथ ही प्रिय को भी दर्शाता है .....
सती—प्रत्येक युग में जो सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री के रूप में शतवर्त्तमान है
वही सती है....
नित्या—नित्य भगवान् के समान ही वे भी नित्या हैं, शाश्वत हैं. प्राकृत और प्रलय के समय भी उनका अंत नहीं होता अपितु वे
स्वयं की माया के द्वारा ही ईश्वर में विलय हो जाती हैं ....
भगवती—भग ऐश्वर्य अदि से समृद्ध देवी भगवती हैं ...
शर्वाणी—जन्म, मृत्यु, जरा देने वाली होकर भी वे मोक्षप्रदायनी है यानी शर्वाणी हैं ...
सर्वमंगला—मंगल मोक्ष्वाचक है तथा आ दात्री वाचक होने के कारन
सभी के लिए मोक्षदा दुर्गा सर्व मंगला कहलाती हैं ...
अम्बिका—अम्ब मातृ, पूजा, वंदन आदि का सूचक है अतः माँ का एक नाम अम्बिका भी विख्यात है ..
वैष्णवी--- विष्णु की शक्ति, विष्णु द्वारा सृजित देवी हि वैष्णवी हैं.
गौरी--- यानि निर्मल, निर्लिप्त,परब्रह्म तथा पीत का वाचक गौर है तथा सभी के गुरु यानि जगत गुरु की,शिव की प्रिया हि गौरी हैं ....
पार्वती--- पर्वत पर आविर्भूत होने के कारण वे पार्वती हैं तो, पर्वभेद, तिथिभेद, कल्पभेद होने के कारन या पर्वन यानि महोत्सव की अधिष्ठात्री होने के कारण
भी वे पार्वती हैं...
इस प्रकार माँ के सोलह नाम सार्थक
तथा सटीक हैं जो देवी के महात्म को प्रतिपादित करते हैं .
माँ दुर्गा की पूजा का उल्लेख
तो कृष्ण द्वार की गयी पूजा से ही मिलता है जो कि कृष्ण ने गोलोक में, और वृन्दावन के महारास में की थी. इसके बाद
मधुकैटभ के भय से पीड़ित ब्रहमा ने, त्रिपुर से प्रेरित
त्रिपुरारी शिव ने और दुर्वासा के शाप से भ्रष्ट इंद्र ने दुर्गा पूजा संपन्न की
थी . और इसके पश्चात् ही ऋषियों, मुनियों, देवों, गणों, तथा मनुष्यों के
द्वारा माँ दुर्गा की पूजा की जाने लगी....
भाइयो बहनों माँ दुर्गा ही
समस्त अभीष्ट को पूरा करने वाली और समस्त दुखों का नाश करने वाली है ... यही कारण
है की नव रात्रि के दिनों में माँ के जिस रूप की भी आराधना करो प्रतिफल तो मिलता
ही है ......
जन सामान्य भक्ति को प्रमुखता
देते हैं किन्तु एक साधक भक्ति के साथ पूर्ण दृणता, और अपने अभुदय को पा लेने की जिद के साथ साधना संपन्न करता है , और वही तो है साधक, यही तो तंत्र है , यदि जिद नहीं तो तंत्र नहीं..... और बिना तंत्र के जीवन चल ही नहीं सकता....अतः
पूर्ण तांत्रिक विधि विधान से ही साधना में पूर्णता प्राप्त हो सकती है ..... है न
जीवन के विविध मनोरथ और उनसे
जुडी प्रथक प्रथक साधनाएं कहीं नौकरी प्राप्ति
की मनोकामना है,कहीं व्यापार को चरम शिखर पर ले जाने की चाह,कहीं प्रेम में
विश्वासघात हुआ है तो कही प्रेम के अधूरेपन को पूर्ण करने की प्रबल कामना,कही
मनोवांछित विवाह की अभिलाषा है तो कही पर आर्थिक उन्नति की कामना,कहीं रोगों से
मुक्ति चाहिए तो कही अकाल मृत्यु के भय का नाश,कही अष्टादश सिद्धि के रहस्यों के
प्राप्ति का कौतुहल मष्तिष्क में है तो कही भगवती की कृपा प्राप्ति का परम
लक्ष्य,कही सम्मोहन पर नियंत्रण चाहिए तो कही मनोवांछित साधना में सफलता,तब ऐसे
में प्रथक प्रथक साधना क्यूँ करना. मात्र इसी भगवती दुर्गा काली कल्प साधना जो की सभी रूपों का समन्वित स्वरुप है. को संकल्प लेकर और अपनी मनोकामना की पूर्ती की प्रार्थना कर साधना
करने पर साधक को अभीष्ट प्राप्त होता ही है.
तो हो जाओ तैयार इस नवरात्री में साधना हेतु.....
पूजा हेतु सामग्री---- माँ दुर्गा का सुन्दर चित्र , या विग्रह या यंत्र, बजोट, लाल कपडा बिछाने हेतु , दीपक तेल या घी का जो साधनाकाल में प्रज्वलित रहे , आप चाहें तो अखंडदीप भी लगा सकते हैं .. ये आपकी स्वेच्छा है .
माँ की पूजा या साधना में घट यानि कलश का विधान होता है अतः कलश स्थापन हेतु ... एक ताम्बे या कांसे या स्टील का लोटा , एक सुपारी एक सिक्का और चावल फूल लोटे में डालें और जल में थोडा गंगाजल मिला कर कलश आधा भरें फिर आम के पांच, सात या नौ पत्ते कलश में डालकर नारियल में लाल कपडा लपेटकर कलश पर स्थापित करें.... शेष गुरुदेव की किताब दैनिक साधना विधि से स्थापन कर लें.
लाल आसन, लाल धोती, महिलाएं साड़ी या
लाल सूट पहन सकती हैं , उत्तर या पूर्व दिशा
भाइयो बहनों वैसे तो सभी को दुर्गा पूजा के विधान पता है जिसके द्वारा प्रायः हम सभी अपने अपने घरों में भगवती का पूजन करते हैं और ये ज्यादा श्रम साध्य भी नहीं हैं,यन्त्र या चित्र का स्थापन कर भगवती के मनोहारी स्वरुप का ध्यान करें -
नमामि भक्त वत्सला दश वक्त्र गीताम्
का ११ बार उच्चारण करें और उन्हें आवाहित करे तत्पश्चात कर उन्हें अक्षत,हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अबीर गुलाल, चन्दन, गंगाजल, इत्र,धूप,दीप, फूल, पान, सुपारी, लौंग इलाइची, नारियल, कपूर, और खीर का नैवेद्य समर्पित करना है, और इस हेतु आप निम्न मंत्र के मध्य में दिए खाली स्थान में सामग्री का नाम लेते हुए पदार्थ अर्पित कर सकते हैं.
ॐ भगवती जगदम्बिकायै चरणकमले .........समर्पयामि
पदार्थ समर्पण के बाद निम्न
मन्त्रों से न्यास करें.
करन्यास
क्लीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
क्लीं तर्जनीभ्यां नमः
क्लीं मध्यमाभ्यां नमः
क्लीं अनामिकाभ्यां नमः
क्लीं कनिष्टकाभ्यां नमः
क्लीं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
क्लीं हृदयाय नमः
क्लीं शिरसे स्वाहा
क्लीं शिखायै वषट्
क्लीं कवचाय हूं
क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट्
क्लीं अस्त्राय फट्
फिर निम्न मंत्र का ९ माला जप शक्ति माला,हकीक
माला,रुद्राक्ष माला,कमलगट्टे की माला या मूंगा माला से करना है.
ॐ दुर्गायै क्लीं श्रियै क्रीं सिद्धिं देहि देहि फट्.
OM DURGAAYAI KLEEM SHRIYAI KREEM SIDDHIM DEHI DEHI PHAT.
जप के पश्चात मंत्र माँ भगवती के श्री चरणों में अर्पित कर उनसे मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना कर उठ जाए और उठते हुए १ आचमनी जल अपने आसन के नीचे डाल कर आसन को प्रणाम कर उठ जाएँ.ये क्रम पूरी नवरात्रि भर रखना है. हाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य ध्यान रखे की इस साधना में मंत्र जप के पूर्व और बाद में कुंजिका स्तोत्र का १-१ बार अवश्य पाठ कर लें.ताकि पूर्ण सफलता असंदिग्ध हो.
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र –
कुन्जिका
स्तोत्रं
शिव
उवाच
श्रुणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन
मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्॥1॥
न
कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न
सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण
दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति
गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥ 3॥
गोपनीयं
प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं
मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण
संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥
अथ
मंत्र
ॐ
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय
ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
॥
इति मंत्रः॥
नमस्ते
रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः
कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते
शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं
हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी
सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी
कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा
चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे
चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां
धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां
क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं
हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां
भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं
कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं
धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां
पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां
सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥
इदंतु
कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते
नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु
कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न
तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
।
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे
कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
अब रही बात
समय की तो ये चूँकि नवरात्री है तो आप ये न सोचें की सिर्फ रात्रि में ही करना है, इन दिनों को चौबीस घंटों को ही गिना जाता है अतः अपनी सुविधा
के अनुसार साधना करें....किन्तु साधना अवश्य करें...
प्रति दिन गुरु,गणेश और भैरव
पूजन करना अत्यंत अनिवार्य है . सुबह या शाम किसी भी एक समय नवार्ण मन्त्र और उपरोक्त मंत्र
की ११-११,२१-२१ या ५१-५१ आहुति किसी पात्र में आम की लकड़ी जला कर, घी और हवन सामग्री से अवश्य दें हो सके तो उसमें काले तिल राल गूगल आदि भी
मिला लें ....
अष्टमी को पूर्ण आहुति कर खीर
पुडी का भोग बना कर किसी कन्या का पूजन अवश्य करें और उसे उचित दक्षिणा भेंट देकर
प्रसन्नता से विदा करें.....
“निखिल प्रणाम”
****RAJNI NIKHIL****
****NPRU****
1 comment:
mala 9 hi krni hae ya jyada bhi kr sakte hae
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