इस विधान को http://nikhil-alchemy2.blogspot.in/2013/02/param-durlabh-soubhagya-vaastu-kritya.html गुरु जन्म दिवस पर किसी भी समय किया जा सकता है और इसके अतिरिक्त अपने
जन्मदिवस की जो तिथि हो उस तिथि को प्रातः इस कर्म को सम्पादित कर लेना चाहिए.यदि हम
गुरु जन्मदिवस पर कर लें तो कई दृष्टि से ये बहुत ही अद्भुत विधान साबित होगा,दिशा
पूर्व,वस्त्र व आसन श्वेत या रक्त होंगे –
पूजन सामग्री में आप कुमकुम
मिश्रित आधा किलो अक्षत की व्यवस्था कर लें और जो भी सामान्य पूजन सामग्री और
पुष्प आदि हों,उनकी भली भाँती व्यवस्था कर लें.
पुष्प से जल छिड़कते हुए
स्वस्तिवाचन करें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्ष गुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्ष गुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः
संकल्प-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्यब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे
वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य(अपने नगर-गांव का नाम)क्षेत्रे
बौद्धावतारे वीरविक्रमादित्यनृपते(वर्तमान संवत),तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे उत्तरायणे (वर्तमान)
ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान)मासे (वर्तमान)पक्षे (वर्तमान)तिथौ (वर्तमान)वासरे (गोत्र का नाम लें)गोत्रोत्पन्नोऽहं
अमुकनामा (अपना नाम लें)सकलपापक्षयपूर्वकं
सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया-श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं
मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री महामृत्युंजय साहित्य सौभाग्य वास्तु कृत्या पूजनं
च अहं करिष्ये।
(यदि इतना ना बोलते बने तब भी मात्र हिंदी में अपना संकल्प बोलकर जल
भूमि पर छोड़ दें)
निम्न मंत्र बोल कर लिखे गए अंग पर अपने दाहिने हाथ का स्पर्श करे
ह्रीं नं पादाभ्याम नमः ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम नमः - ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम नमः - ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः - ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः - ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः - ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः - ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः - ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः - ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः - ( ललाट पर )
ह्रीं यां मुध्र्ने नमः - ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः - ( पुरे शरीर पर )
नमस्कार मंत्र :
ह्रीं श्री गणेशाय नमः
ह्रीं इष्ट देवताभ्यो नमः -
ह्रीं कुल देवताभ्यो नमः -
ह्रीं ग्राम देवताभ्यो नमः -
ह्रीं स्थान देवताभ्यो नमः -
ह्रीं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः -
ह्रीं गुरुवे नमः -
ह्रीं मातृ पितृ चरणकमलभ्यो नमः
अब सामने बाजोट पर जिस पर श्वेत या रक्त वस्त्र बिछा हुआ हो,उस पर
ताम्बे की थाली स्थापित कर उस पर महायंत्र
को स्थापित कर अग्रक्रिया करें-
गणपति पूजन
हाथ में
पुष्प लेकर गणपति का आवाहन करें.
ॐ गं
गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ : |
और अब हाथ
में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान् गणपति के सामने छोड़ दें -
गजाननम्भूतगणादिसेवितं
कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं
शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
नवग्रह आवाहन -
अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः
सूर्यादिनवग्रहा
देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा
भवन्तु ।
जपाकुसुम संकाशं
काश्यपेयं महदद्युतिम् I
तमोरिंसर्वपापघ्नं
प्रणतोSस्मि
दिवाकरम् II
ॐ ह्सौ: श्रीं आं ग्रहाधिराजाय
आदित्याय स्वाहा
दधिशंखतुषाराभं
क्षीरोदार्णव संभवम् I
नमामि शशिनं सोमं
शंभोर्मुकुट भूषणम् II
ॐ श्रीं क्रीं ह्रां चं चन्द्राय
नमः
धरणीगर्भ संभूतं
विद्युत्कांति समप्रभम् I
कुमारं शक्तिहस्तं तं
मंगलं प्रणाम्यहम् II
ऐं ह्सौ: श्रीं द्रां कं
ग्रहाधिपतये भौमाय स्वाहा
प्रियंगुकलिकाश्यामं
रुपेणाप्रतिमं बुधम् I
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं
तं बुधं प्रणमाम्यहम् II
ॐ ह्रां क्रीं टं ग्रहनाथाय बुधाय
स्वाहा
देवानांच ऋषीनांच गुरुं
कांचन सन्निभम् I
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं
तं नमामि बृहस्पतिम् II
ॐ ह्रीं श्रीं ख्रीं ऐं ग्लौं ग्रहाधिपतये बृहस्पतये ब्रींठ: ऐंठ:
श्रींठ: स्वाहा
हिमकुंद मृणालाभं
दैत्यानां परमं गुरुम् I
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं
भार्गवं प्रणमाम्यहम् II
ॐ ऐं जं गं ग्रहेश्वराय शुक्राय नमः
नीलांजन समाभासं
रविपुत्रं यमाग्रजम् I
छायामार्तंड संभूतं तं
नमामि शनैश्चरम् II
ॐ ह्रीं श्रीं ग्रहचक्रवर्तिने
शनैश्चराय क्लीं ऐंस: स्वाहा
अर्धकायं महावीर्यं
चंद्रादित्य विमर्दनम् I
सिंहिकागर्भसंभूतं तं
राहुं प्रणमाम्यहम् II
ॐ क्रीं क्रीं हूँ हूँ टं टंकधारिणे
राहवे रं ह्रीं श्रीं भैं स्वाहा
पलाशपुष्पसंकाशं
तारकाग्रह मस्तकम् I
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं
तं केतुं प्रणमाम्यहम् II
ॐ ह्रीं क्रूं क्रूररूपीणे केतवे ऐं
सौ: स्वाहा
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुःशशि भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च
शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः मुन्था सहिताय शान्तिकरा भवन्तु ॥
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए थोड़े थोड़े अक्षत के दाने
महायंत्र पर अर्पित करें-
षोडशमातृका आवाहन -
ॐ गौरी पद्या शचीमेधा सावित्री विजया जया |
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ||
हृटि पुष्टि तथा तुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता : |
गणेशेनाधिका ह्यैता वृद्धौ पूज्याश्च तिष्ठतः ||
ॐ भूर्भुवः स्व: षोडशमातृकाभ्यो
नमः ||
इहागच्छइह तिष्ठ ||
अब हाथ जोड़कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए यन्त्र पर कुमकुम
मिश्रित अक्षत डालें-
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोSस्ते ||
अनया पूजया गौर्मादि षोडश मातः प्रीयन्तां न मम |
कलश
पूजन-
हाथ में
पुष्प लेकर वरुण का आवाहन करें.
अस्मिन
कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥
और अब कलश
का पंचोपचार पूजन कर लें,तत्पश्चात घृत या तिल के तेल का दीपक
प्रज्वलित कर लें और सुगन्धित अगरबत्ती भी,और इसके बाद हाथ में जल लेकर विनियोग
करें.
ॐ अस्य
श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रुद्रा ऋषयः
ऋग्यजुर्सामानी छन्दांसी प्राणशक्तिर्देवता आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रों कीलकं
अस्मिन यंत्रे श्री सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र
प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः !
इसके बाद यंत्र को एक
हाथ में लेकर तथा दुसरे हाथ से कुश,या अग्रभाग टूटी हुयी दूर्वा लेकर यंत्र पर स्पर्श
करते जाएँ.
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं
लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य सौभाग्य वास्तु
कृत्या यन्त्र प्राणा इह प्राणाः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं
लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य सौभाग्य वास्तु
कृत्या यन्त्र जीव इह स्थितः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं
लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य सौभाग्य वास्तु
कृत्या यन्त्र सर्वेंद्रियाणी वांड-मनस्त्वकचक्षु: श्रोत्रजिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य इहैव सुखं चिरं तिष्ठन्तु
स्वाहा !
ॐ मनो
जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टम यज्ञं समिमं दधातु ! विश्वे देवास इह मादयन्ताम ॐ
प्रतिष्ठ !!
एष वै प्रतिष्ठा नाम
यज्ञो यत्र तेन यज्ञेन यजन्ते
! सर्वमेव प्रतिष्ठितं भवति !!
अस्मिन सौभाग्य वास्तु
कृत्या यंत्रस्य सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु !
फिर गंध , पुष्पादि से पंचोपचार ( स्नान , चन्दन , पुष्प , धूप- दीप , नैवेद्य एवं आरती ) पूजन करें और यंत्र के षोडश
संस्कारों की सिद्धि के लिए १६बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए अक्षत डालते
जाएँ
नमस्ते वास्तु पुरुषाय भूशय्या भिरत प्रभो | मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरु सर्वदा ||
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीद्यस्मान स्वावेशो अनमी वो भवान यत्वे महे
प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्प्दे स्वाहा |
ॐ वास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभि रश्वे भिरिदो अजरासस्ते
सख्ये स्याम पितेव पुत्रान्प्रतिन्नो जुषस्य शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्प्दे स्वाहा
|
फिर हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत
लेकर उस यन्त्र पर निम्न मंत्र बोल कर अर्पित कर दें-
अस्य यंत्रस्य षोडश
संस्काराः सम्पद्यन्ताम
निम्न मंत्र का ८ बार उच्चारण करते हुए यन्त्र पर कुमकुम मिश्रित
अक्षत अर्पित करें.चतुषष्टि योगिनी स्थापन-
ॐ आवाहयाम्बहं देवी योगिनी परमेश्वररीम् । योगाभ्यासेन सन्तुष्ट पराध्यान समन्बिताः ।। चतुषष्ठी: योगिनीभ्यो नमः
अब हाथ
जोड़कर हाथ में पुष्प लेकर सौभाग्यलक्ष्मी ध्यान करें और ध्यान मंत्र के उच्चारण के
बाद उस पुष्प को यन्त्र पर अर्पित कर दें -
ॐ या सा
पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी,
पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी
दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता
हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा
पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व सौभाग्य,सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद यन्त्र
में सौभाग्य लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत
लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करें-
“ॐ भूर्भुवः स्वः सौभाग्यलक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि
पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
आसन :
आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के
लिए फूल चढाएं
पाद्य :
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।
जल
चढाएं
यन्त्र के
सामने खीर का भोग अर्पित करें-
हाथ
में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें :-
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिंत पुष्टि
वर्द्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्म्मुक्षीय मामृताम् ।। (इस मंत्र का ११ बार उच्चारण करें)
फिर निम्न मन्त्रों का मात्र १
बार ही उच्चारण करना है और यन्त्र पर अक्षत डालते जाना है-
ॐ त्रयम्बकायै नमः
ॐ आद्ये
लक्ष्म्यै नम:
ॐ
विद्यालक्ष्म्यै नम:
ॐ सौभाग्य
लक्ष्म्यै नम:
ॐ अमृत
लक्ष्म्यै नम:
ॐ
लक्ष्म्यै नम:
ॐ सत्य
लक्ष्म्यै नम:
ॐ
भोगलक्ष्म्यै नम:
ॐ योग
लक्ष्म्यै नम:
ॐ
वसुन्धरायै नमः
ॐ उदाराङ्गायै नमः
ॐ हरिण्यै नमः
ॐ हेममालिन्यै नमः
ॐ धनधान्य कर्यै नमः
ॐ सिद्धये नमः
ॐ स्त्रैण सौम्यायै नमः
ॐ शुभप्रदायै नमः
ॐ नृपवेश्म गतानन्दायै नमः
ॐ वरलक्ष्म्यै नमः
ॐ वसुप्रदायै नमः
ॐ शुभायै नमः
ॐ हिरण्यप्राकारायै नमः
ॐ समुद्र तनयायै नमः
ॐ जयायै नमः
ॐ मङ्गलायै नमः
ॐ देव्यै नमः
ॐ विष्णु वक्षःस्थल स्थितायै नमः
ॐ विष्णुपत्न्यै नमः
ॐ प्रसन्नाक्ष्यै नमः
ॐ नारायण समाश्रितायै नमः
ॐ दारिद्र्य ध्वंसिन्यै नमः
ॐ सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः
ॐ नवदुर्गायै नमः
ॐ महाकाल्यै नमः
ॐ ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकायै नमः
ॐ त्रिकाल ज्ञान सम्पन्नायै नमः
ॐ भुवनेश्वर्यै नमः
ॐ उदाराङ्गायै नमः
ॐ हरिण्यै नमः
ॐ हेममालिन्यै नमः
ॐ धनधान्य कर्यै नमः
ॐ सिद्धये नमः
ॐ स्त्रैण सौम्यायै नमः
ॐ शुभप्रदायै नमः
ॐ नृपवेश्म गतानन्दायै नमः
ॐ वरलक्ष्म्यै नमः
ॐ वसुप्रदायै नमः
ॐ शुभायै नमः
ॐ हिरण्यप्राकारायै नमः
ॐ समुद्र तनयायै नमः
ॐ जयायै नमः
ॐ मङ्गलायै नमः
ॐ देव्यै नमः
ॐ विष्णु वक्षःस्थल स्थितायै नमः
ॐ विष्णुपत्न्यै नमः
ॐ प्रसन्नाक्ष्यै नमः
ॐ नारायण समाश्रितायै नमः
ॐ दारिद्र्य ध्वंसिन्यै नमः
ॐ सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः
ॐ नवदुर्गायै नमः
ॐ महाकाल्यै नमः
ॐ ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकायै नमः
ॐ त्रिकाल ज्ञान सम्पन्नायै नमः
ॐ भुवनेश्वर्यै नमः
ॐ
प्रजापतये नमः
ॐ हिरण्यरेतसे नमः
ॐ दुर्धर्षाय नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ गिरिशाय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ भुजङ्ग भूषणाय नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ गिरिधन्वने नमः
ॐ गिरिप्रियाय नमः
ॐ कृत्तिवाससे नमः
ॐ पुरारातये नमः
ॐ भगवते नमः
ॐ प्रमधाधिपाय नमः
ॐ मृत्युञ्जयाय नमः
ॐ सूक्ष्मतनवे नमः
ॐ जगद्व्यापिने नमः
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ व्योमकेशाय नमः
ॐ महासेन जनकाय नमः
ॐ चारुविक्रमाय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ भूतपतये नमः
ॐ स्थाणवे नमः
ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः
ॐ दिगम्बराय नमः
ॐ अष्टमूर्तये नमः
ॐ अनेकात्मने नमः
ॐ स्वात्त्विकाय नमः
ॐ शुद्धविग्रहाय नमः
ॐ शाश्वताय नमः
ॐ खण्डपरशवे नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ पाशविमोचकाय नमः
ॐ मृडाय नमः
ॐ पशुपतये नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ हिरण्यरेतसे नमः
ॐ दुर्धर्षाय नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ गिरिशाय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ भुजङ्ग भूषणाय नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ गिरिधन्वने नमः
ॐ गिरिप्रियाय नमः
ॐ कृत्तिवाससे नमः
ॐ पुरारातये नमः
ॐ भगवते नमः
ॐ प्रमधाधिपाय नमः
ॐ मृत्युञ्जयाय नमः
ॐ सूक्ष्मतनवे नमः
ॐ जगद्व्यापिने नमः
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ व्योमकेशाय नमः
ॐ महासेन जनकाय नमः
ॐ चारुविक्रमाय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ भूतपतये नमः
ॐ स्थाणवे नमः
ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः
ॐ दिगम्बराय नमः
ॐ अष्टमूर्तये नमः
ॐ अनेकात्मने नमः
ॐ स्वात्त्विकाय नमः
ॐ शुद्धविग्रहाय नमः
ॐ शाश्वताय नमः
ॐ खण्डपरशवे नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ पाशविमोचकाय नमः
ॐ मृडाय नमः
ॐ पशुपतये नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ महादेवाय नमः
तत्पश्चात तुलसी और काले हकीक की माला छोड़कर अन्य
किसी भी माला से मूल मंत्र के पहले और बाद में (ह्रीं
HREEM) मंत्र की ३-३ माला करें और २१
माला निम्न मूल मंत्र की करें-
ॐ
नमो भगवती वास्तु देवतायै नमः ||
यदि हो
सके तो इसके पहले गुरु मंत्र की ४ या १ माला करें.
अब अपना
मंत्र सदगुरुदेव के श्रीचरणों में अर्पित कर दें और हाथ जोड़कर आद्य शक्ति से क्षमा
याचना करें.
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं
ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने
मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने
मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं
विधेरज्ञानेन
द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव
चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।
तदेतत्
क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो
जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
पृथिव्यां
पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः
परं तेषां
मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।
मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो
जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति
जगन्मातर्मातस्तव
चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं
देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं
स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो
जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति
परित्यक्तादेवा
विविध सेवाकुलतया
मया
पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि
इदानींचेन्मातः
तव यदि कृपा
नापि भविता
निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं
श्वपाको
जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको
रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः
तवापर्णे
कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को
जानीते जननि जपनीयं जपविधौ
चिताभस्म
लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी
कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः
कपाली
भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि
त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं
न
मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न
विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां
सुयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी
रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः
नाराधितासि
विधिना विविधोपचारैः
किं
रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः
श्यामे
त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे
धत्से
कृपामुचितमंब परं तवैव
आपत्सु
मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि
दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं
मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता
जननीं स्मरंति
जगदंब
विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण
करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं
नहि माता
समुपेक्षते
सुतं
मत्समः
पातकी नास्ति
पापघ्नी
त्वत्समा नहि
एवं
ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं
तथा कुरु
इसके बाद सदगुरुदेव की आरती संपन्न करें और
महायंत्र को पूजन स्थल में ही स्थापित कर दें और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण
करें.ये महत्वपूर्ण विधान व यन्त्र आपके जीवन को उन्नति से युक्त और बाधाओं से
विहीन करे,यही मैं माँ भगवती और सदगुरुदेव
के श्री चरणों में प्रार्थना करता हूँ.
****NPRU****
3 comments:
Dear Sir,
Can this sadhana be done during day time ? or essentially in the morning only ?
Please reply .
Dear Sir ,
Can this sadhana be done in the afternoon or essentially in the morning ?
Kindly reply ,
Thank you .
Dear Sir ,
can this Sadhana be done in the afternoon or essentially in the morning ?
Kindly reply ,
Thank you .
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