जय सदगुरुदेव
निर्गुणं निर्मलं शान्तं, जंगमं स्थिरमेव च |
व्याप्तं येन जगत्सर्वं,
तस्मै श्री गुरवे नमः ||
जो निर्गुण हैं निर्मल और शांत हैं, जिनसे
समस्त जड़ चेतन जगत व्याप्त है उन श्री गुरुदेव को नमस्कार है |
जय सदगुरुदेव,
स्नेहिल स्वजन, आप सभी को ह्रदय से धन्यवाद, कि
आप ने मुझे अपने स्नेह और विश्वास के काबिल समझा |
मै संकल्पबद्ध हूँ जो मुझसे आप लोगों के
हितार्थ बन पड़ेगा करुँगी | इसी तरह का एक
ओर प्रयास -----
भाइयो
बहनों क्यों ऐसा होता कि जब हम मुश्किल में होते हैं या अचानक से हम पर कोई आबदा आ
जाती है कि कहीं कोई रास्ता सूझता नहीं है तभी हम साधना की ओर प्रवत्त होते हैं,
ऐंसा कभी कभी होता जब कोई एक व्यक्ति की रूचि साधना में प्रारम्भ से हि होती है,
किन्तु अधिकांशतः तो जब समस्या आती तभी साधना पथ दिखाई देता है ---- किन्तु क्या
साधना केवल दुखी व्यक्ति के लिए ही है----- क्या तभी हमें देवीय शक्ति की आवश्यकता
होनी चाहिए ?
भाइयो बहनों ! सच्चाई तो ये है कि साधना से मन
और शरीर कि शुद्धि होती और उस शुद्धि क्रिया के माध्यम से ही हम उस महाशक्ति का
आवाहन कर उसे अपने भीतर जागृत करते हैं|
प्रति दिन के सामान्य क्रिया कलाप के दौरान हम
कितनी बार झूठ बोलते है कुछ पाने हेतु अर्थात व्यापार व्ययसाय के दौरान भिन्न
उपायों का सहारा लेते है, अपने पर नियंत्रण न रखते हुए अनचाही दूषित प्रवृत्तियों
को बढ़ावा देते रहते हैं और कुछ ऐंसी आदते पाल लेते हैं कि जिनसे बाद में छुटकारा
नहीं मिल सकता |
जब हमारे भीतर कि शक्ति ही पूर्ण रूप से जागृत
न हो तो व्यक्ति कितना ही क्रिया कलाप क्यों न कर ले सफलता मिलना संभव नहीं है |
यह भी सच है कि दूसरो के भरोसे जीवन नहीं जिया जा सकता यदि आप स्वयम बलवान हैं
यानि समर्थ हैं तो सब आपका सम्मान करेंगे और ये शक्ति आपकी इच्छा शक्ति के जागरण
से ही संभव है | और ये शक्ति निश्चय रूप से शिव कि शक्ति हि हो सकती है...... हैं
न
भाइयो बहनों ! बसंत पंचमी की हार्दिक
शुभकामनाएं ---- J
ऐंसी ही एक अद्भुत किन्तु शीघ्र फलदायी प्रयोग
जिसे आप कल सुबह संपन्न करेंगे, क्योंकि ये मात्र आत्मशक्ति ही नहीं अपितु ज्ञान
चक्षु को खोलने वाला प्रयोग है साथ ही आपका एक यंत्र भी तैयार हो जायेगा हैं,
तैयारी क्या करना है........
प्रयुक्त सामग्री—
पीला
वस्त्र पीला आसन, पीले फूल, केशर, अखंडित भोजपत्र, चमेली या अनार या चांदी की
शलाका या कलम, नैवेद्ध , केशरिया मीठे चावल, या केशर की खीर,
प्रातः स्नान के पश्चात् अपने सामने बाजोट पर
माँ सरस्वती का सुन्दर चित्र या भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित करें |
घी का दीपक जलाएं एवं माँ का पंचोपचार पूजन करें
तथा एक कटोरी में केशर घोलें और उससे भोजपत्र पर उपरोक्त यंत्र का अंकन करें |
अब
न्यास करें –
कर न्यास --
एंग अन्गुष्ठाय नमः ,
एंग तर्जनीभ्यां स्वाहा,
एंग मध्यमाभ्याम वषट
एंग अनामिकाभ्यां हुम्
एंग कनिष्ठ्काभ्याम वौषट
एंग करतलकर पृष्ठाभ्याम फट
हृदियादी---
एंग हृदयाय नमः
एंग शिरसे स्वाहा
एंग शिखायै वषट,
एंग कवचाये हुम
एंग अस्त्राए फट |
अब उसी सलाका से अपनी स्वयं की जीभ पर केशर से
एंग बीज मन्त्र का अंकन करें |
फिर यंत्र का पूजन करें धुप दीप दिखाएँ एवं
स्फटिक माला से एंग (eng) बीज मन्त्र की १०० माला यानि
१०,००० जप संपन्न करें, भाइयो बहनों मन्त्र अति सूक्ष्म यानी छोटा है अतः वो लोग
कर सकते हैं जिन्होंने कभी साधना नहीं की और वो यानि जो साधक हैं वे तो करेंगे ही
हैं ना J
ये यंत्र अब किसी चांदी के ताबीज में भरकर गले
में धारण करें |
भाइयो बहनों ये दिखने में जितना साधारण है किन्तु
उतना ही शक्तिशाली भी है, ये बीज मन्त्र जहां उत्पति का कारक मन्त्र है वहीँ सरस्वती का बीज मन्त्र भी बीज- जिसे यदि जमीन
में रोपा जाए और सींचा जाए तो कालांतर में
एक विशाल वृक्ष बनता है, इसी तरह बीज मन्त्र की उपयोगिता है, यदि बीज की लगातार पुनरावृत्ति
यानी जप किया जाये तो एक विशिष्ठ उर्जा संचारित होकर फलित होती है | ऐंसे अनेक
उदाहरण है जहाँ साधकों ने सिर्फ बीज मन्त्र के जप से सिद्धियाँ हासिल की है |
ये यंत्र और ये प्रयोग जहाँ आपको वर्ष भर
उर्जान्वित रखेगा वही आत्मशक्ति के जागरण में सहयोग भी करेगा, और विद्यार्थियों को
शिक्षा में सहायक होगा और अन्य वर्ग को मानसिक शक्ति प्रदान करेगा |
इसे आप यदि किसी कारणवश प्रातः ६ से ७ के बीच
ना कर पांए तो ११ से १२ के बीच अवश्य सम्पन्न करें , किन्तु करें प्रातःकाल में ही
|
जब मन्त्र जप संपन्न हो जाये, तब उसी माला से
एक माला
एंग ह्रीं सरस्वत्यै नमः मन्त्र कि
करें| फिर घर प्रत्येक बालक और बड़ों की
जीभ पर भी इस बीज मन्त्र का अंकन अवश्य करें |
तो भाइयों बहनों इस साधना को संपन्न करें व
जागृत करें अपनी मेधा शक्ति |
रजनी निखिल
***NPRU***
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