न भारतीयों नवत्सरोऽयं, तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात
यतो धरित्री निखिलैव माता, तत: कुटुम्बायितमेव विश्वं ||
यद्यपि ये नववर्ष भारतीय नहीं है , तथापि सबके लिए
कल्याणकारी हो क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है अतः
“माता भूमि: पुत्रोऽहं प्रथिव्या:”
अत एव प्रथ्वी के पुत्र होने कारण समग्र विश्व ही कुटुंब
स्वरुप है
पाश्चातनववर्षस्यहार्दिका: शुभाशया: समेषां कृते ||
HAPPY NEW YEAR J
स्नेही स्वजन,
जय सदगुरुदेव, आप सभी के विशेष आग्रह पर—
“हालाँकि ये मेरा सब्जेक्ट नहीं है किन्तु साधनाओं के मार्ग
पर जब कोई साधक चलता है तो सभी तरह की साधनाओं पर न केवल विचार करता है अपितु उन
पर प्रायोगिक रूप से कार्य भी करता है, मेरे साथ भी ऐंसा ही कुछ है हरेक क्षेत्र
को जानने की जिज्ञासा और समझने का स्वभाव रहा है और सद्गुरुदेव ने मुझे अति स्नेह
और पूर्ण व्यावहारिकता के साथ न केवल समझाया अपितु येनकेन प्रकारेण सिद्ध भी
करवाया जो मै चाहती थी वो भी और जो नहीं चाहती थी वो भी अतः” उसी क्रम में...............
इस नववर्ष के उपलक्ष्य में निखिल-एल्केमी ग्रुप के सौजन्य से
और मेरी और से छोटा सा उपहार---
स्वर्ण-प्रदाय
परि साधना-
ये साधना में मूल रूप से मुस्लिम साबर साधना के अन्तरगत आती
है अतः इसमें सावधानियां भी अति आवश्यक हैं सदगुरुदेव प्रदत्त इस साधना के सम्बन्ध
में कहा जाता है की अनेक गृहस्थ और सन्यासी शिष्यों को समपन्न कराया गया, प्रत्येक
बार पूर्ण रूपेण सफलता प्राप्त हुई है, इस साधना के सिद्ध होने पर परि- सौन्दर्य
से परिपूर्ण यौवन की आभा से युक्त आपके पास प्रेमिका रूप में साथ रहती है प्रेम और
आनंद्युक जीवन तो देती ही है साथ ही नित्य पांच तोला स्वर्ण और जीवन भर धन-धान्य सुख सामग्री आदि से परिपूर्ण
कर देती है \ यद्यपि ये साधना कठिन भी है किन्तु यदि पूर्ण विधि विधान और पूर्ण नियमों
का पालन करते हुए समपन्न की जाये तो सफलता निश्चित हो जाती है |
साधना
सामग्री:-- इसमें जिन साधना
सामग्री की आवश्यकता होती है उनमें ये मंडल यंत्र अति आवश्यक है, साथ ही लाल गुलाब
के पुष्प, चमेली का इत्र और चमेली का ही तेल, आठ गोमती चक्र, आठ सुपारी, आठ
इलाइची, आठ लौंग, आठ पतासे, और थोड़े से काले तिल सफ़ेद वस्त्र सफ़ेद आसन सफ़ेद हकिक
माला |
विधि—ये प्रयोग चालीस दिनों का है और इसमें प्रत्येक दिन एक
समय ही भोजन करना है जिसमें खीर को प्रधानता देनी है दूसरी मुख्य बात ये है कि इस
साधना को किसी एकांत कमरे में ही करना है जहाँ किसी का आना जाना न हो, और ४० दिनों
तक उस कमरे में आपके आलावा कोई भी वहां न जाए |
इस साधना को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से
व्रत रखें और शाम को केवल खीर खाएं फिर, स्नानादि से निवृत्त होकर रात को पूरे
कमरे में गुलाब की पंखुडियां बिखेर दें और अपने कान में भी इत्र फोहा लगायें और
सामने बाजोट पर सफेद कपडा बिछाकर उस पर यंत्र मंडल स्थापित करे और उसके चारों और
गुलाब की पंखुड़ियों से ही एक घेरा बनाएँ और यंत्र के चारों और क्रमशः पहले गोमती
चक्र, आठों सुपारी, इलाइची, लौंग, पतासे रखें और थोड़े से काले तिल सामने ढेरी
बनाकर रखें अब सफ़ेद आसन पर उत्तर दिशा की और मुंह कर बैठे और सफ़ेद हक़ीक माला से
नित्य १०१ माला निम्न मन्त्र का जप करें, जप समाप्ति के बाद वहीँ सो जाएँ |
प्रति दिन यही क्रम करना है इस तरह ४० दिनों का उपवास और
रात को भोजन में खीर का प्रयोग अति आवश्यक है यदि हो सके तो प्रतिदिन सिर्फ खीर का
ही प्रयोग करें तो अति उत्तम अन्यथा भोजन के साथ खीर ले सकते हैं |
किसी भी साधना की सफलता का मूल आधार उसके नियम बद्धता है
इसमें पूर्ण रूप से ब्रहमचर्य और बाकी नियम को भी तटस्थता से पालन करेंगे तो ही
सफलता का प्रतिशत बढेगा |
मन्त्र—
“अर्हीना
अरीना सरीना सफरीना अकविपा सदा सदुनी कामिनी पदभावी वश्यं कुरु कुरु नमः”
“ ARHEENA
AREENA SAREENA SAFREENA AKVIPA SADA SADUNI KAMINI PADBHAAVI
VASHYAM KURU-KURU NAMAH”
जीवन को पूर्ण आनंददायक और पूर्ण बनाने हेतु ये साधना अवश्य
संपन्न करें, क्योंकि ये परी प्रेमिका रूप में जीवन भर आपका साथ देती है और
धनधान्य सुख संपत्ति से पूर्ण कर देती है |
कोई भी साधना बिना गुरु आशीष के संपन्न हो ही नहीं सकती अतः
प्रत्येक साधक या व्यक्ति को अपने गुरु के आशीर्वाद और अनुमति से ही साधना के इस क्षेत्र
में गतिशील होना चाहिए | चूँकि ये प्रत्यक्षीकरण की साधना है अतः पूर्ण धैर्य और निडरता
अति आवश्यक है प्रत्येक नियम का दृणता से पालन एक अनिवार्य शर्त, जो स्वयं ही करनी
पड़ती है | आपकी श्रद्धा, आपके प्रयास, आपकी नियम संयमता आदि, आपको आपके लक्ष्य तक अवश्य
पहुंचाएगा |
शेष गुरुदेव कृपा-----
***NPRU***
RAJNI NIKHIL
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