जय गुरुदेव /\
स्नेही स्वजन!
श्री विद्या का मूल स्वरूप क्या है?
ये प्रश्न मैने अति अबोधता और अनजाने में गुरुदेव से पूछ लिया |
अब डर भी लग रहा था कि गुरुदेव कही नाराज ना हों जायें |
किंतु इसके विपरीत उन्होने मुझे मुस्कुरते हुये देखा और कहा, कृति अब तेरा कमाख्या जाने और दिक्षा का समय हो गया है |
और तब उन्होने मुझे त्रिपुरा रहस्य समझाया,
ये घटना क्रम आज अचानक इसलिए याद आया क्योंकि एक पोस्ट मेरे सामने आयी, "एक अति विद्वान और मेरे ज्योतिष ग्रुप के सम्मानीय सदस्य भाइ श्री कृपाराम उपाध्याय जी" की इस पोस्ट ने मुझे आज दे करीब 22 वर्ष पूर्व के घटना याद दिलायी |
अब हम इस ग्यान चर्चा को क्रमशः करेंगे,क्योंकि ये एक अति विशिष्ट और उच्च साधना के तथ्य हैं इन्हें आप तक पहुंचाना शायद मेरी जिम्मेदारी है इसलिए ......
क्योंकि साधको के जीवन मे प्रत्येक घटना के पीछे कोइ कारण होता ही है...
श्री सूक्त योग रहस्य ¶
आत्मविद्या ही श्री विद्या है । श्री सूक्त के पीछे पूरा भारत और विदेश पागल हो रखा जो देखो वो इसका प्रयोग कर रहा है
लक्ष्मी और धन दोनी में फर्क है।
यह योग सिद्ध होते हुए भी कितने लोगो फल नहीं देता चाहे 1000 श्री सूक्त करले या लक्ष
बात मूल यही आती है श्री सूक्त विधान सम झजना न ब्रह्मण यह समझा पाता है नहीं कोई इसका कौल ज्ञान किसीको मिलता है यह एक उच्चतम विद्या है किन्तु आज इसके यंत्र का और मन्त्र का व्यापारी करण हो चूका है
श्री के मन्त्र करेंगे जरुर पर इसका सम्यक ज्ञान न होने के कारण यह विद्या इतनी फलीभूत नहीं बनती आज लोग बस धन और माया के पीछे भागने के लिए या उन्हें श्री के अभिषेक मन्त्र तंत्र यंत्र से कुछ धन मिल जाये इसके पीछे पद जाते है यह एक निम्न कक्षा की सोच है जिस अवस्था मेंयह योग रचा गया था वो पश्यन्ति और परा के बिच में लिखा हुआ है पर जिसने न यह समजा है नहीं योग्य गुरु की सिख मिलती है तबतक श्री सूक्त श्री यंत्र श्री मन्त्र मिथ्या है
दूसरी बात कोई भी महा विद्या या सिद्ध प्रयोग की पूरी समज न हो नहीं उनके विधान का रहस्य पता है तब तक वः फल नहीं देता
जैसे संस्कृत भारत की नहीं अपितु पुरे ब्रह्मांड का नियमन करने वाली लिपि है इससे उपर देवनागरी आती है जहा देवता मनुष्य को बोध देते है
जैसे वेद बने उपनिषद बने
श्री सार और श्री रहस्य भी कुछ ऐसा जब तक देवता या चित्त में आवृत वृतियो का निरोध होकर चित्त देवतुल्य और उर्ध्वगामी नहीं बनता तबतक यह विद्या बिना बुलेट की गन जैसे ही
जैसे बंदूक तो होगी पर निशाना और बुलेट नहीं तो क्या काम
ऐसे ही बिना सूक्त योग रहस्य समजे यह विधान फलीभूत नहीं होगी
लक्ष्मी और उसका प्रयोजन
हमने लक्ष्मी का मतलब कुछ और समजा है लक्ष्मी यानि धन वैभव दौलत नहीं होता लक्ष्मी वो लक्ष्य को प्राप्त कराने वाली शक्ति को लक्ष्मी कहते
हमारा शरीर लक्ष्मी है यह लक्ष्मी को भगवद कार्य और आत्मज्ञान हेतु मिला हुआ है कहते है की दुर्लभो मानुष देहो देवानामपि दुर्लभं
यह मनुष्य शरीर चाहे तो पशुओ की बहती भोग विलास कर सकता है
और चाहे तो इसके भीतर आत्मज्ञान का दिया जला कर दुनिया में अज्ञान का अँधेरा मिटा सकता है
दूसरी लक्ष्मी हमारे विचार और संस्कार है जैसे विचार और संस्कार वैसे ही लक्ष्य वैसे ही शक्ति
श्री सूक्तं में कहा हुआ है
अलक्ष्मी नाशयाम्यहम
हमे हमारी भीतर की अलक्ष्मी को मारना है है और सदगुणों की पूर्ण लक्ष्मी का प्रगट्य करना होता है
नर तू ऐसी करनी कर के नारायण बन जाये
श्री विद्या श्री कुल वैष्णवी विद्या इनका आधर नारायण है
और नारायण की पत्नी लक्ष्मी है
और ऐसे ही काली कुल के अधिपति शिव है
वैसे श्रीसूक्त योग पूरा समजे तो यह एक रूपांतरण क्रिया है जिसमे नर को नारायण स्वरुप बनाया जाता है
बात यहा पर आएगी एक सामान्य नर नारायण कक्षा को कैसे प्राप्त करे इसका विधान ही श्री सूक्त है
जो श्री सूक्त का पाठ करता है या यंत्र कुल चक्र की पूजा करता है किन्तु वो आचरण नहीं करता तब भी यह विधान उस के लिए निष्फल होगा
सूक्त के प्रयोजन में साधक अग्नि देव को आवाहन दे कर उसके अनुक्त शक्ति की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करता है
पर क्या साधक वो शक्ति को जानता भी है या नहीं परिचय है भी या नहीं या फिर वो पुस्तक पढ़ कर करता है
बात आती है लक्ष्मी से परिचय होना और उससे परिचय होते ही उनके स्वरुप के अनुकूल होना तब जाके देव की शक्ति तुम्हारे चित्वृत्ति पर आरूढ़ होगी
जैसे श्री कृष्ण को संदीपनी ने नारायण स्वरूप दिया
जैसे वशिष्ठ ने राम को नारायण बनाया
जैसे दत्त ने परशुराम को त्रिपुरा रहस्य समजा कर पूरा ब्रह्मांड भेदन और ब्रह्मास्त्र विद्या सिखाई
तब जाकर पूरी प्रकृति वशीभूत हो गयी यही श्री विद्या विधान है जब अनुरूप केंद्र बिंदु बन गए तो पूरा ब्रह्मांड तुम्हारे सोच पर चल सकता है
यह आत्मविद्या गहन है इसको सिखने हेतु पूर्ण गुरु का सानिध्य चाहिए जो नाद और बिन्द दोनों ही कला में निपुण हो तब यह विद्या को पूर्णत: समज पाना सम्भव है
यहा सच्चा गुरु यंत्र का प्रयोजन तुम्हारे भीतर की कुंडलिनी में कर देगा और षट्चक्र भेदन कर भीतर के बिंदु को ब्रह्मांड के तत्व से जोड़ देंगे और यही यंत्र का अभिषेक रोज़ यह तत्व से करना है अब श्री यंत्र और उसकी स्थिति समजने से पहले लक्ष्मी को जान ले
कौनसी लक्ष्मी स्थिर है और कौनसी चंचल
पहले यह सोचो की इस दुनिया में कौनसी चीज़ स्थिर है?
या फिर जन्म से पहले और मृत्यु। पश्चात कौनसा धन तुम्हारे पास रहेगा
उसके लिए कबीर ने खूब कहा है कबीर वो धन संचिये जो आगे को होय
जो मृत्यु के पश्चात काम आये वो धन संचित करो वरना बाकि का धन तो शरीर की मृत्यु होते ही समाप्त हो जायेगा अभी श्रीसूक्त को पूरा समजे तो इसमें यही धन की प्राप्ति हेतु साधक अग्नि से प्रज्वलित करता है ।गुरु कृपा केवलं।
निखिल प्रणाम
एन पी आर यू
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