Sunday, February 15, 2015

महा शिवरात्री अनुष्ठान


महाशिवरात्रि अनुष्ठान

पाशुपतेय साधना 



   जो निर्गुण है, निराकार हैं, निर्मल और शांत हैं जो समस्त जड़ चेतन में विद्यमान है ऐंसे आदि गुरु महादेव को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं----- 
महाशिव रात्रि शिव का अति प्रिय दिवस है, और इस दिन यदि जो भी चाहे साधना के माध्यम से भोले नाथ से प्राप्त कर सकता है, हैं न | पर इसके लिए जिद होनी चाहिए, साधना की और पूर्णता प्राप्त करने की, तो ऐंसा क्या है जो आप प्राप्त नहीं कर सकते, और शिव तो हैं ही भोले | बस आपमें क्षमता होनी चाहिए लेने की, और उन्हें तो देना ही है....
स्नेही स्वजन !

           तो आप सब तैयार हैं न J
जीवन में जब रोग, शोक, और पाप बढ़ जाते है तो अनेक तरह की विपत्तियाँ उत्पन्न होती जाती हैं और इन विपत्तियों का निराकरण साधना के माध्यम से संभव है ये जानकर व्यक्ति इस और झुकता ही है | क्योंकि जीवन में उन्नति न होना एक प्रकार का दोष है इसी प्रकार पूर्वजन्मकृत दोष भी व्यक्ति को निर्बल बनाते हैं | तब ,  सदगुरुदेव के शब्दों में कि “जब तक श्रम रूपी भूमि पर  साधना की आहुति संपन्न नहीं की जाती तब तक जीवन में सफलता दूर हि रहती है, ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं में ही उलझा रहता है |”

 तो इस प्रकार की समस्याओं से निपटने हेतु ही गुरुदेव ने अनेक साधना रूपी शस्त्र प्रदान किये हैं ऐसा ही एक शस्त्र जो अर्जुन ने शिव से प्राप्त किया था----


               पाशुपतेय  प्रयोग   

 वैसे तो इस सधना को किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष कि प्रतिपदा से प्रारम्भ किया जा सकता है, किन्तु महाशिव रात्रि के इस दिवस से यदि प्रारम्भ किया जाये तो सफलता १०० % हो जाएगी .  प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को निम्न तथ्यों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए –

१.     पुरे पुरे साधना में दाड़ी , बाल न कटवाएं, और क्षौर कर्म न करें |
२.     जमीन पर सोयें  ही उपयोग करें | पूर्णतः ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और गायन, संगीत, वाद्य आदि से दूर रहें |
३.     अन्न स्वीकार न करें, केवल दूध या फल लें | मौन रहने का प्रयास करें यानी कम से कम बात चीत करें |
४.     साधना काल में किसी भी प्रकार का व्यसन आदि का प्रयोग न करें | यानी शुद्धता का एवं खान पान का विशेस ध्यान रखें
५.     साधनाकाल में मात्र काले वस्त्र हि धारण करें और वस्त्रों में भी एक काली धोती पहन लें, तथा एक काली धोती ओढ लें, इसके अलावा शरीर पर किसी प्रकार का कोई वस्त्र न हो |
६.     साधना कक्ष में साधक के अतिरिक्त कोई भी अन्य व्यक्ति उस कक्ष में प्रवेश न करे |
७.     साधना काल में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए, किसी भी प्रकार कि परिस्थितियों में विचलित न हों |
इस साधना में शिव शक्ति यानी शक्ति रुपी सिंह वाहिनी दुर्गा  और शिव दोनों की साधना एवं पूजा की जाती है, इसे रात्री को ही सम्पन्न की जाती है किन्तु महाशिव रात्रि के अवसर पर प्रातः ही इस साधना की तैयारी कर पूजा प्रारम्भ कर साधना का संकल्प ले लेना चाहिए | अपने सामने बाजोट पर काले रंग का वस्त्र बिछाकर माँ  दुर्गा की सुन्दर पिक्चर स्थापित कर लें साथ ही एक शिवलिंग, जो कि कोई भी  हो सकता है पारद शिवलिंग, स्फटिक शिवलिंग या  नर्मदेश्वर भी हो सकता है | रुद्राक्ष माला, (रुद्राक्ष माला छोटे दानों की हो), कच्चा दूध | और जो भी आप श्रद्धा से अर्पित करना चाहें | 

 अब साधना सामग्री—काले वस्त्र, काला आसन, दिशा पश्चिम | यदि किसी के पास पसुपतेय शिव यंत्र हो तो अति उत्तम या शिव यंत्र हो आप चाहें तो कहीं से प्राप्त कर लें, तो उत्तम होगा अन्यथा पारद शिवलिंग  के होते यंत्र की आवश्याकता नहीं होती |

      अबीर, कुमकुम, केसर मौली सुपारी अक्षत गुलाब के लाल पुष्प और घी क दीपक जो पूरे ११ दिन अखंड साधन काल में जलता रहेगा |
साधन अवधि व जप--- ११ दिन ११ माला प्रतिदिन |


विधान—
         यदि यंत्र हो तो शिव लिंग और शिवलिंग का दूध मिश्रित जल से “ॐ नमः शिवाय” का १०८ बार जप करते हुए, अभिषेक सम्पन्न करें तत्पश्चात माँ दुर्गा के चित्र के चारों ओर कुमकुम रंगे चावल से एक घेरा बना दें | उनका पूजन कुमकुम अक्षत केसर मौली सुपारी पुष्प धुप दीप से समपन्न करें |
उसके बाद मूल मन्त्र का अनुष्ठान प्रारम्भ करें

मन्त्र-

ॐ आं ह्रीं सौं ऐं क्लीं हूं
सौः ग्लौं क्रों एही एही भ्रमराम्बा हि सकलजगन्मोहनाय मोहने सकलाण्डजपिण्डजान् भ्रामाय भ्रामय राजा प्रजावशकरी संमोहय महामाये अष्टादशपीठरूपिणि अमलवरयूंस्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर कोटिसूर्यप्रभा-भासुरी चंद्र्जटी मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भस्मीकुरु भस्मीकुरु विश्वमोहिनी हुं कलीं हुं हुं फट् स्वाहा ||

“Om aam hreem shaum aim kleem hoom sauh glaum kraum ehi ehi bhramramba hi sakal jaganmohnaay-mohnaay saklaandajpindjaan bhramay-bhramay raja praja vashkari sammohay-sammohay mahamaaye ashtadash peeth roopini amalvar sfur sfur prasfur-prasfur kotisury prabha-bhasuri chandrajati mam raksha-raksha mam shatrun bhasmikoor-bhasmikuru vishva mohini hum kleem hum-hum fatta swaha”|

मन्त्र के पश्चात् जप समर्पण कर क्षमा प्रार्थना अवश्य करें |
भाइयो बहनों हो सकता है ये साधना आपको लम्बी, श्रमश्राध्य लग रही हो किन्तु ये प्रयोग नहीं अपितु साधना है, और साधना तो ऐंसी ही होती है . हैं ना
 किन्तु साधना के पूर्ण विधि विधान से सम्पन्न होते ही साधक को एक दिव्य अनुभूति का अनुभव होता है और किसी भी कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी एक बार इस मन्त्र का जाप करने पर उसे मार्ग मिल जाता है और शिव रूपी माँ भ्रम्रराम्बा प्रत्यक्ष उसे सहयोग प्रदान करती है |

    वस्तुतः यह शिवरक्षा प्रयोग है जो कि अद्भुत और तीक्ष्ण होते हुए शीघ्र फलदायी है | अतः संपन्न करें और स्वयम अनुभूत करें |

Nikhil pranam

रजनी निखिल

   ***N P R U*** 

Wednesday, February 11, 2015

गृह दोष बाधा निवारण साधना

गृह दोष बाधा निवारण साधना



गुरु सत्यम गुरुर्शास्त्रं, गुरुर्वेदो  गुरुर्गति |
गुरुमेव महत् सर्व तस्मै श्री गुरुवे नमः ||

     गुरु ही सत्य है, गुरु ही शास्त्र है, गुरु ही वेद हैं और गुरु से ही गति प्राप्त हो सकती है, सही अर्थों में तो गुरु ही सब कुछ होता है, इसलिए सभी सर्वप्रथम गुरुदेव को नमन है |
जय सदगुरुदेव !

            स्नेही स्वजन, 

      मनुष्य का जीवन निरंतर कम ही होता जा रहा है, इसी में उसे अनेक या बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है और यदि इस लक्ष्य की प्राप्ति में निरंतर बाधाएं, अडचने, कठिनाइयाँ आती रहें तो वह पूर्ण रूप से परगति नहीं कर पाता और जीवन नीरस सा लगने लगता है |

      पूरी मेहनत और ईमानदारी और लगन से भी कार्य करने पर भी निरंतर   असफलता और कभी निराशा का सामना करना पड़े तो जीवन निरर्थक लगने लगता है, प्रत्येक कार्य बनते बनते बिगड़ जाना या घर में  रोग, आर्थिक संकट, कोर्ट कचहरी, या अपमान कर्ज आदि समस्याएं जब बढती ही जाए तो समझ लीजिये कि गृह दोष बाधा है, और यदि गृह बाधा है तो तांत्रिक बाधा बड़ी सहजता से संपन्न हो जाती है, क्योंकि ग्रहों का चक्र देखते हुए हि तंत्र क्रियाएं भी संपन्न की जाती हैं |

    हमरे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी देशों में प्राचीनकाल से हि ग्रहों की स्तिथि, गति और प्रभावों की गणना और अध्ययन होता चला आया है और सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मानव जीवन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता ही है |
कुछ ग्रहों का प्रभाव तो स्पष्ट देखा जा सकता है, जो प्रकृति पर दृष्टिगोचर है, उदाहरन स्वरुप चंद्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है और समुद्र में ज्वारभाटा आना इसका प्रत्यक्ष उदहारण है, और चूँकि मनुष्य के शरीर में अस्सी प्रतिशत  जल की मात्रा होती है अतः चन्द्रमा के प्रभाव से उसका उद्वेलन होना भी निश्चित ही है, मानसिक रोगियों पर पूर्णिमा के दिन ज्यादा प्रभाव अनुभव होना, और कई तरह की घटनाओं का घटना चन्द्रम के प्रभाव को स्पष्ट करता है | इसी तरह बाकी ग्रहों का भी प्रभाव मानव जीवन पर किसी न किसी तरह दृष्टिगोचर होता ही है |
      गृह अशुभ और शुभ प्रभाव देने में समर्थ हैं | जीवन में संकटों का आना या अचानक प्रगति का होना इन्ही ग्रहों के प्रभाव का होना है | इन ग्रहों के कुप्रभावों  से बचने के लिए शास्त्रानुसार दो प्रयोग दिये गए हैं, एक तो सम्बंधित गृह का मन्त्र जप या दूसरा सम्बंधित गृह का रत्न या धारण करने का विधान |
किन्तु एक विधान सदगुरुदेव जी ने बताया था साथ ही एक शिविर में हम लोगों को संपन्न भी करवाया था | भाइयो बहनों सदगुरुदेव की अनेक विशेषताओं में एक विशेषता ये थी कि वे एक ही साधना के कई पक्ष रख देते थे या अलग विधान भी बता देते थे अतः जो मेरा अनुभूत प्रयोग है वो ये है---

विधान- ये विधान नौ ग्रहों है इसे किसी भी अमावश्या से कर सकते हैं,अमावश्य के दिन यंत्रो का पूजन कर लें और फिर किसी भी रविवार से प्रारम्भ का सकते हैं  या शुक्ल पक्ष के रविवार से प्रारम्भ किया जा सकता है, इस साधना में प्रत्येक गृह के अनुसार मन्त्र जप करने हैं, और वैसे ही वस्त्र धारण करने हैं तथा दिशा, आसन भी तथानुसार होंगे इसलिए इसकी तैयारी भी दो चार दिन पहले ही कर लेना चाहिए |


उपयुक्त सामग्री-
एक नवग्रह यंत्र, नव रत्न माला/ या नवरत्न अंगूठी/ या नवरत्न लाकेट, साथ ही प्रत्येक जप के लिए तदनुसार माला, वैसे दो या तीन माला तो जरुरी हैं ही साथ ही वस्त्र और आसन भी अलग होते हैं अतः उतने रंग के कपड़े खरीद लेने चाहिए, जो आसन पर बिछाकर काम चल सकता है |
१-    सूर्य के लिए गुलाबी वस्त्र, आसन और स्फटिक माला | ११ माला
२-    चन्द्र के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और मोती माला | ११ माला
३-    मंगल के लिए लाल वस्त्र, आसन और मूंगा माला | ११ माला
४-    बुध के लिए हरा वस्त्र, आसन और हरे हक़ीक माला | ११ माला
५-    गुरु के लिए पीले वस्त्र, आसन और पीली हक़ीक या हल्दी माला | ११ माला
६-    शुक्र के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और स्फटिक माला , (पहले वाली माला और वस्त्र उपयोग कर सकते हैं) | ११ माला
७-    शनि हेतु काले वस्त्र, आसन और काली हक़ीक माला | १८ माला
८-    राहू के लिए ------------------------------------------------ | १९ माला
९-    केतु के लिए ----------------------------------------------- | १९ माला


जप कालीन समय --

सूर्य जप साधना प्रातः ६ से ७ के बीच प्रारम्भ करना है और दिशा पूर्व |
चन्द्र साधना हेतु रात में ९ से १० बजे के बीच, दिशा पूर्व
मंगल बुध गुरु और शुक्र की प्रातः ९ से ११ के बीच
मंगल के दक्षिण, बुध के लिए नैरित्य, गुरु के लिए उत्तर शुक्र के लिए पश्चिम दिशा निर्धारित है |

शनि राहू केतु भी ११ बजे के पूर्व साधना हो जनि चाहिए | शनि के लिए भी पश्चिम राहू केतु के लिए दक्षिण दिशा होगी |

ये साधना मूलतः अमावश्या से प्रारम्भ करनी है अमावश्या के दिन दो पाटे पर एक सफ़ेद वस्त्र और दुसरे पर पीला वस्त्र बिछाकर अपने सामने स्थापित करें, अब एक बड़ी स्टील, ताम्बे या कांसे की थाली लें अब नौ मिटटी के दिए जिसमे आठ दीयों में तेल जो कोई भी हो सकता है, तथा एक में घी का दीपक लगावें | थाली में कुमकुम से स्वास्तिक बनावें, और उस पर चावल की ढेरी बनाकर उस पर नवग्रह यंत्र  को पहले पंचामृत से धोकर फिर गंगा जल से धो कर स्थापित करें, ऐसे हि जो भी माला लाकेट या अंगूठी है उसे भी साफ कर यंत्र के ऊपर स्थापित करें | तथा चारो तरफ आठ दिए तेल के और अपने सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें तथा सफ़ेद वस्त्र वाले पट्टे पर थाली स्थापित करें |

      अब दुसरे पाटे पर चावल से स्वास्तिक बनावें और उस पर नवग्रहों की स्थापना करें | ये प्रतीक मात्र होंगे | सामने भूमि पर कलश स्थापन करें और उसका पूजन कर गुरु, गणेश पूजन सम्पन्न करें | तथा संकल्प लेकर नवग्रह का और यंत्र का पंचोपचार पूजन करें |

‘ब्रह्ममुरारिस्त्रिपुरान्त्कारी भानु शशि भूमौ सुतबुधश्च गुरु शुक्र,
शनि राहू-केतवे मुन्था सहिताय सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ||’

इस मन्त्र का रुद्राक्ष माला से एक माला मन्त्र करें ---

स्नेही स्वजन ! J  है ना अद्भुत प्रयोग........ इस तरह पूजन सम्पन्न करने से आपका यंत्र और सारी  मालायें नवग्रह मन्त्र से चैतन्य हो जाएँगी और आप भी इस साधना हेतु तैयार हो जायेंगे--------

यदि पूर्ण विधि विधान और श्रद्धा पूर्वक इस साधना को कोई भी संपन्न कर लेता है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे समस्त बाधाओं से मुक्ति न मिले------
अब इसके बाद आप रविवार से इस साधन को प्रारम्भ कर सकते हैं अपनी सुविधा नुसार-----

कुछ महत्वपूर्ण सावधानी---- जो कि प्रत्येक साधना में बरतनी चाहिए , जैसे-
ब्रह्मचारी व्रत का दृढ़ता से पालन, भूमि शयन पूर्ण शुद्ध और शाकाहारी भोजन व्यवस्था, और गुरु और मन्त्र के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए साधना सम्पन्न करें और देखें चमत्कारी परिणाम--------

           नव ग्रह एवं उनसे सम्बन्धित मन्त्र

१.     सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं सः |
२.     चन्द्रमा : ॐ घौं सौं औं सः |
३.     मंगल : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः |
४.     बुध : ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः |
५.     गुरु : ॐ औं औं औं सः |
६.     शुक्र : ॐ ह्रौं ह्रीं सः |
७.     शनि : ॐ शौं शौं सः |
८.     रहू : ॐ छौं छां छौं सः |
९.     केतु : ॐ फौं फां फौं सः |

प्रत्येक दिन प्रत्येक गृह के मन्त्र जप के बाद निम्न स्त्रोत के पांच पाठ अति आवश्यक हैं |

विनियोग :

ॐ अस्य जगन्मंगल्कारक ग्रह कवचस्य श्री भैरव ऋषि: अनुष्टुप् छन्द : |
श्री सूर्यादि ग्रहाः देवता | सर्व कामार्थ संसिद्धिये पाठे विनियोगः |



पार्वत्युवाच :

श्री शान ! सर्व शास्त्रज्ञ देव्ताधीश्वर प्रभो |
अक्षयं कवचं दिव्यं ग्रहादि-दैवतं विभो ||
पुरा संसुचितम गुह्यां सुभ्त्ताक्षय-कारकम् |
कृपा मयि त्वास्ते चेत् कथय् श्री महेश्वर ||



शिव उवाच :

श्रृणु देवि प्रियतमे ! कवचं देव दुर्लभम् |
 यद्धृत्वा देवता : सर्वे अमरा: स्युर्वरानेन |
तव प्रीति वशाद् वच्मि न देयं यस्य कस्यंचित् |



ग्रह कवच स्तोत्र :

ॐ ह्रां ह्रीं सः मे शिरः पातु श्री सूर्य ग्रह पति : |
ॐ घौं सौं औं में मुखं पातु श्री चन्द्रो ग्रह राजकः |
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः करो पातु ग्रह सेनापतिः कुज: |
पायादंशं ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः पादौ ज्ञो नृपबालक: |
ॐ औं औं औं सः कटिं पातु पायादमरपूजित: |
ॐ ह्रौं ह्रीं सः दैत्य पूज्यो हृदयं परिरक्षतु |
ॐ शौं शौं सः पातु नाभिं मे ग्रह प्रेष्य: शनैश्चर: |
ॐ छौं छां छौं सः कंठ देशम श्री राहुर्देवमर्दकः |
ॐ फौं फां फौं सः शिखी पातु सर्वांगमभीतोऽवतु |
ग्रहाश्चैते भोग देहा नित्यास्तु स्फुटित ग्रहाः |
एतदशांश संभूताः पान्तु नित्यं तु दुर्जनात् |
अक्षयं कवचं पुण्यं सुर्यादी गृह दैवतं |
पठेद् वा पाठयेद् वापी धारयेद् यो जनः शुचिः |
सा सिद्धिं प्राप्नुयादिष्टां दुर्लभां त्रिदशस्तुयाम् |
तव स्नेह वशादुक्तं जगन्मंगल कारकम् गृह
यंत्रान्वितं कृत्वाभिष्टमक्षयमाप्नुयात् |

  तो हो जाइये तैयार एक महत्वपूर्ण साधना हेतु------

निखिल प्रणाम

रजनी निखिल


***NPRU***

Friday, January 23, 2015

सरस्वती बीज मंत्र साधना






जय सदगुरुदेव

       निर्गुणं निर्मलं शान्तं,   जंगमं स्थिरमेव च |
       व्याप्तं येन जगत्सर्वं, तस्मै श्री गुरवे नमः ||

जो निर्गुण हैं निर्मल और शांत हैं, जिनसे समस्त जड़ चेतन जगत व्याप्त है उन श्री गुरुदेव को नमस्कार है |


जय सदगुरुदेव,

स्नेहिल स्वजन, आप सभी को ह्रदय से धन्यवाद, कि आप ने मुझे अपने स्नेह और विश्वास के काबिल समझा |
मै संकल्पबद्ध हूँ जो मुझसे आप लोगों के हितार्थ बन  पड़ेगा करुँगी | इसी तरह का एक ओर प्रयास -----

 भाइयो बहनों क्यों ऐसा होता कि जब हम मुश्किल में होते हैं या अचानक से हम पर कोई आबदा आ जाती है कि कहीं कोई रास्ता सूझता नहीं है तभी हम साधना की ओर प्रवत्त होते हैं, ऐंसा कभी कभी होता जब कोई एक व्यक्ति की रूचि साधना में प्रारम्भ से हि होती है, किन्तु अधिकांशतः तो जब समस्या आती तभी साधना पथ दिखाई देता है ---- किन्तु क्या साधना केवल दुखी व्यक्ति के लिए ही है----- क्या तभी हमें देवीय शक्ति की आवश्यकता होनी चाहिए ?
भाइयो बहनों ! सच्चाई तो ये है कि साधना से मन और शरीर कि शुद्धि होती और उस शुद्धि क्रिया के माध्यम से ही हम उस महाशक्ति का आवाहन कर उसे अपने भीतर जागृत करते हैं|

प्रति दिन के सामान्य क्रिया कलाप के दौरान हम कितनी बार झूठ बोलते है कुछ पाने हेतु अर्थात व्यापार व्ययसाय के दौरान भिन्न उपायों का सहारा लेते है, अपने पर नियंत्रण न रखते हुए अनचाही दूषित प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते रहते हैं और कुछ ऐंसी आदते पाल लेते हैं कि जिनसे बाद में छुटकारा नहीं मिल सकता  |

जब हमारे भीतर कि शक्ति ही पूर्ण रूप से जागृत न हो तो व्यक्ति कितना ही क्रिया कलाप क्यों न कर ले सफलता मिलना संभव नहीं है | यह भी सच है कि दूसरो के भरोसे जीवन नहीं जिया जा सकता यदि आप स्वयम बलवान हैं यानि समर्थ हैं तो सब आपका सम्मान करेंगे और ये शक्ति आपकी इच्छा शक्ति के जागरण से ही संभव है | और ये शक्ति निश्चय रूप से शिव कि शक्ति हि हो सकती है...... हैं न
भाइयो बहनों ! बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं ---- J

ऐंसी ही एक अद्भुत किन्तु शीघ्र फलदायी प्रयोग जिसे आप कल सुबह संपन्न करेंगे, क्योंकि ये मात्र आत्मशक्ति ही नहीं अपितु ज्ञान चक्षु को खोलने वाला प्रयोग है साथ ही आपका एक यंत्र भी तैयार हो जायेगा हैं, तैयारी क्या करना है........


प्रयुक्त सामग्री—

 पीला वस्त्र पीला आसन, पीले फूल, केशर, अखंडित भोजपत्र, चमेली या अनार या चांदी की शलाका या कलम, नैवेद्ध , केशरिया मीठे चावल, या केशर की खीर,

प्रातः स्नान के पश्चात् अपने सामने बाजोट पर माँ सरस्वती का सुन्दर चित्र या भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित करें |

घी का दीपक जलाएं एवं माँ का पंचोपचार पूजन करें तथा एक कटोरी में केशर घोलें और उससे भोजपत्र पर उपरोक्त यंत्र का अंकन करें |


 अब न्यास करें –

कर न्यास --

एंग अन्गुष्ठाय नमः ,
एंग तर्जनीभ्यां स्वाहा,
एंग मध्यमाभ्याम वषट
एंग अनामिकाभ्यां हुम्
एंग कनिष्ठ्काभ्याम वौषट
एंग करतलकर पृष्ठाभ्याम फट


हृदियादी---

एंग हृदयाय नमः
एंग शिरसे स्वाहा
एंग शिखायै वषट,
एंग कवचाये हुम
एंग अस्त्राए फट | 

अब उसी सलाका से अपनी स्वयं की जीभ पर केशर से एंग बीज मन्त्र का अंकन करें |
फिर यंत्र का पूजन करें धुप दीप दिखाएँ एवं स्फटिक माला से एंग (eng)  बीज मन्त्र की १०० माला यानि १०,००० जप संपन्न करें, भाइयो बहनों मन्त्र अति सूक्ष्म यानी छोटा है अतः वो लोग कर सकते हैं जिन्होंने कभी साधना नहीं की और वो यानि जो साधक हैं वे तो करेंगे ही हैं ना J

ये यंत्र अब किसी चांदी के ताबीज में भरकर गले में धारण करें |
भाइयो बहनों ये दिखने में जितना साधारण है किन्तु उतना ही शक्तिशाली भी है, ये बीज मन्त्र जहां उत्पति का कारक  मन्त्र है  वहीँ सरस्वती का बीज मन्त्र भी बीज- जिसे यदि जमीन में  रोपा जाए और सींचा जाए तो कालांतर में एक विशाल वृक्ष बनता है, इसी तरह बीज मन्त्र की उपयोगिता है, यदि बीज की लगातार पुनरावृत्ति यानी जप किया जाये तो एक विशिष्ठ उर्जा संचारित होकर फलित होती है | ऐंसे अनेक उदाहरण है जहाँ साधकों ने सिर्फ बीज मन्त्र के जप से सिद्धियाँ हासिल की है |
ये यंत्र और ये प्रयोग जहाँ आपको वर्ष भर उर्जान्वित रखेगा वही आत्मशक्ति के जागरण में सहयोग भी करेगा, और विद्यार्थियों को शिक्षा में सहायक होगा और अन्य वर्ग को मानसिक शक्ति प्रदान करेगा |

इसे आप यदि किसी कारणवश प्रातः ६ से ७ के बीच ना कर पांए तो ११ से १२ के बीच अवश्य सम्पन्न करें , किन्तु करें प्रातःकाल में ही |
जब मन्त्र जप संपन्न हो जाये, तब उसी माला से एक माला
एंग ह्रीं सरस्वत्यै नमः मन्त्र कि करें| फिर  घर प्रत्येक बालक और बड़ों की जीभ पर भी इस बीज मन्त्र का अंकन अवश्य करें |

तो भाइयों बहनों इस साधना को संपन्न करें व जागृत करें अपनी मेधा शक्ति |

रजनी निखिल

***NPRU***