कहा गया है की पहला सुख निरोगी काया-अर्थात स्वस्थ्य शरीर
ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है और उसी से आप अन्य सुखों का उपभोग कर सकते हैं तथा
साधना में आसन की दृढ़ता को प्राप्त कर सकते हैंl
कायिक सुख,चित्त की
स्थिरता और एकाग्र भाव से साधनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जिस क्रिया का
प्रयोग किया जाता है,उसे आसन कहा जाता है l सामान्य बोलचाल की भाषा में सुविधापूर्वक एकाग्रता
पूर्वक स्थिर होकर बैठने की क्रिया आसन कहलाती है lजिस
प्रकार इस महत्वपूर्ण क्रिया का पतंजलि ऋषि द्वारा जिस योगदर्शन की व्याख्या व
प्राकट्य किया गया उसमे विवृत अष्टांग योग में
आसन को उन्होंने तृतीय स्थान दिया है परन्तु इसी आसन की महत्ता को सर्वाधिक
बल नाथ संप्रदाय की दिव्य सिद्धमंडलियों द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग मे मिला है ,जहाँ
पर गुरु गोरखनाथ आदि ने आसन को प्रथम स्थान पर रख कर साधना में सफलता के लिए
अनिवार्य माना है l अर्थात जिसका आसन ही नहीं सधा हो भला वो
साधना में सिद्धियों का वरण कैसे कर सकता है lमैंने बहुत
पहले श्वेतबिंदु-रक्तबिंदु लेख श्रृंखला में इस तथ्य का विवरण भी दिया था की यदि
व्यक्ति साधना काल में मन्त्र जप के मध्य हिलता डुलता है ,पैर बदलता है तो
सुषुम्ना की स्थिति परिवर्तित होने से ना सिर्फ उसके चक्रों के स्पंदन में अंतर
आता है अपितु मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर तीव्र वेगी नकारात्मक प्रभाव पड़ने से
साधक में काम भाव की तीव्रता भी आ जाती है और उसे स्वप्नदोष,प्रदर,प्रमेह जैसी
बिमारियों का भी प्रभाव झेलना पड़ता हैl
आसन का स्थिरीकरण
और शरीर की निरोगता साधना का मूल है ,इसके
बाद ही चित्त को एकाग्र करने की क्रिया की जा सकती है और साधना में सफलता
प्राप्त होती है ,जब साधक एकाग्र मन से लंबे समय तक जप करने में सक्षम हो जाता है
तो “जपः जपात् सिद्धिर्भवेत” की उक्ति सार्थक होती है अर्थात सिद्धि को आपके गले में
माला डालने के लिए आना ही पड़ता है l
परन्तु ये इतना
सहज भी नहीं है क्यूंकि जब तक साधक का शरीर रोग मुक्त ना होजाये तब तक वो आसन पर
दृढ़ता पूर्वक बैठ ही नहीं सकता,स्वस्थ्य शरीर से ही साधना की जा सकती है ,आसन
स्थिरीकरण किया जा सकता है और तदुपरांत ही साधना में सफलता प्राप्त कर तेजस्विता
पायी जा सकती है l सदगुरुदेव ने स्पष्ट करते हुए कहा था की “जब शरीर ही सभी दृष्टियों
से साधना में सफलता प्राप्त करने का आधार है ,तो स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए
विश्वामित्र प्रणीत दिव्य देह सिद्धि साधना अनिवार्य कर्म हो जाती है
,इस साधना को संपन्न करने के बाद आत्म सिद्धि का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, देहसिद्धि की सम्पूर्ण क्रिया ६ क्रियाओं का
समन्वित रूप होती है”-
मष्तिष्क नियंत्रण- साधना के लिए सदैव सकारात्मक भाव से युक्त मष्तिष्क ,जिसमे
असफलता का कदापि भाव व्याप्त न हो पाए l
आसन नियंत्रण- हम चाहे जितनी भी माला जप संपन्न कर ले,तब भी हमारे बैठने का भाव
और शरीर विकृत न हो l
चक्षु नियंत्रण- साधना काल व अन्य समय हमारे नेत्रो में कोई हल्का भाव ना आने पाए
और सदैव हमारी दृष्टि तेजस्विता युक्त होकर सिद्धि प्राप्ति के गूढ़ सूत्रों को देख
कर प्रयोग कर सके,आत्म सात कर सके l
श्वांस नियंत्रण- मन्त्र जप के मध्य श्वांस की लय व गति में परिवर्तन ना हो और
साधक मंत्र जप सुगमता से कर सकेl क्यूंकि प्रत्येक प्रकार के मंत्र की दीर्घता और
लघुता में भिन्न भिन्न प्रकार की श्वांस मात्र की आवश्यकता होती है l
अधोभाग नियंत्रण-साधना में बैठने की क्रिया कमर से लेकर पैरों के ऊपर निर्भर होती
है, उनमे दृढ़ता प्रदान करना l
पंचभूतात्मक नियंत्रण- हमारे शरीर में व्याप्त पंचभूत तत्व यथा जल,अग्नि,वायु,आकाश और
पृथ्वी की मात्रा को साधना काल में घटा-बढ़ा कर शरीर को साधनात्मक वतावर की
अनुकूलता प्रदान की जा सकती है lतब ऐसे में हमारा शरीर बाह्य और आंतरिक रोगों और
पीडाओं से मुक्त होता हुआ साधना पथ पर अग्रसर होते जाता है,प्रकारांतर में वो
पूर्ण आरोग्य की प्राप्ति कर लेता है l
इस
प्रकार की क्रियाओं के बाद ही शरीर साधना के लिए तत्पर हो पाता है ,और बिना शरीर
को नियंत्रित किये या अनुकूल बनाये साधना में प्रवेश करने से कोई लाभ नहीं होता है
l
वस्तुतः रोगमुक्त निर्जरा
काया की प्राप्ति आज के युग में इतनी सहज नहीं है ,क्यूंकि आज का युग पूरी तरह से
प्रदूषित,शापित और भोग युक्त है ,तब ऐसे में दिव्यदेह सिद्धि साधना हमारा मार्ग सुगम कर
देती है l
सदगुरुदेव ने इस साधना का विवेचन करते हुए स्पष्ट किया था की साधक जगत को ये साधना ब्रम्हर्षि
विश्वामित्र जी की देन है, उपरोक्त ६ क्रियाओं का इस साधना में पूर्ण समावेश
है,वस्तुतः इस मंत्र में माया बीज,काली बीज और मृत्युंजय बीज को ऐसे पिरोया गया है
की मात्र इसका उच्चारण ही ब्रह्माण्ड से सतत प्राणऊर्जा का प्रवाह साधक में करने लगता
है और उसकी आंतरिक न्यूनताओं का शमन होकर उसकी देह कालातीत होने के मार्ग पर अग्रसर
होने लगती हैl
पारद की वेधन क्षमता
अनंत है और वो अविनाशी तत्व है ,अतः इस साधना की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण
सामग्री पारद शिवलिंग और पंचमुखी रुद्राक्ष है, इस साधना को किसी भी सोमवार या गुरूवार से प्रारंभ किया जा
सकता है,सूर्योदय से,श्वेत वस्त्र,उत्तर दिशा का प्रयोग इस साधना के लिए निर्धारित
हैl
प्रातः उठकर पूर्ण
पवित्र भाव से स्नान कर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे तथा उनसे साधना में पूर्ण
सफलता की प्रार्थना करे,तत्पश्चात साधना कक्ष में जाकर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये और
सामने बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर सदगुरुदेव का दिव्य चित्र, उनकी दाई तरफ भगवान
गणपति का विग्रह या प्रतीक रूप में सुपारी की स्थापना करे फिर गुरु चित्र के सामने
दो ढेरी चावलों की बनाये अपने बायीं तरफ की ढेरी पर गाय के घृत का दीपक प्रज्वलित
करे(याद रखियेगा की सदगुरुदेव के चित्र के सामने दो ढेरी बनानी है और गणपति विग्रह
के सामने इतनी जगह छोडनी है जहाँ एक इतना बड़ा ताम्बे का कटोरा रखा जा सके जिसमे
आधा लीटर पानी आ जाये) और दाई तरफ तेल का दीपक रखना है l इसके
बाद गणपति जी के सामने ताम्बे का पात्र रख कर उसमे रक्तचंदन से एक गोला बनाकर उसमे
“ह्रौं” लिख दे और उसके ऊपर पारद शिवलिंग तथा रुद्राक्ष स्थापित कर दे l इस
क्रिया के बाद आप गणपति पूजन,गुरु पूजन और शिवलिंग पूजन पंचोपचार विधि या
सामर्थ्यानुसार करे और गुरुमंत्र की ११ माला जप करे lतत्पश्चात
ॐ का ११ बार उच्चारण करे ताम्बे के पात्र में रखे स्वच्छ जल से (जिसमे
गंगा जल मिला लिया गया हो) १-१ चाय के छोटे चम्मच से शिवलिंग के ऊपर दिव्य देह सिद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए
जल अर्पित करे, ये क्रिया १४ दिनों तक नित्य १ घंटे करनी है lयाद
रहे उपांशु जप करना है ,जो जल आप नित्य अर्पित करेंगे उसे अगले दिन अपने स्नान के
जल में मिलकर स्नान कर लेना है l
दिव्य
देह सिद्धि मंत्र-
ॐ
ह्रौं ह्रीं क्रीं जूं सः देह सिद्धिम् सः जूं क्रीं ह्रीं ह्रौं ॐ ll
OM HROUM HREENG KREENG
JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l
१४ दिनों के बाद आप शिवलिंग को पूजनस्थल पर स्थापित कर दे और
रुद्राक्ष को यथाशक्ति दक्षिणा के साथ भगवती काली या दुर्गा मंदिर में अर्पित कर
दे तथा बाद के दिनों में मात्र २१ बार मंत्र का नित्य उच्चारण करते रहे,सदगुरुदेव
की असीम कृपा से हम सभी के समक्ष ऐसी गोपनीय साधनाए बची रही है है,अतः साधनात्मक
उन्नति की प्राप्ति के लिए अपनी कमियों को दूर करे और स्वस्थ्य शरीर के द्वारा
साधना करे तथा आसन की स्थिरता को प्राप्त करे जिससे उच्च स्तरीय साधनाओं की सहज
प्राप्ति हो सकेl
“A Sound Mind Lives In a Sound Body” it means fit body is honored as
one of the most important assets of this entire world because without it we
won’t be able to enjoy other luxuries of our life and it is our body which
helps us to be solidify on our altar i.e. called aasn.
Aasan is what???
Actually it is a means which helps us to enjoy physical comfort, stability of
heart and mind so that we can attain our divine destination. Generally if you
are able to sit in a single posture without any waving in your and mind than it
is called aasan. Saint Patanjali defines and explains this procedure through
Yogdarshan and in that too he ranks this process at third position but this
process got more sophistication by the changed Shhdangyog divine sidh-mandalies
of Nath Sect because in it Guru Gorakhnath regarded this aasan process the
first step of success and ranks it at number one position. It means a person
who is unable to make his grip strong on his aasan that can never ever have
success in the field of sadhnaa. I have already explained this issue in the
series of Shvetbindu-Raktbindu that during meditation or sadhnaa if a person moves his body or changes his sitting posture during
mantra jaap than it is quite obvious that with his position his spinal will too
change its direction and that is wrong as when spinal changes its position then
with her it changes the position of our chakras too and not stop here with the
changed position of spinal Mooladhaar and Swadhishthaan chakras releases
negative energy and this negative energy causes erotic desires in saadhak and
he started suffering from the problems as Night fall, Prader, Prameh and all
that………..
Stability on aasan and
fit body these two things are basic requirements for success in sadhnaa because
without it, it is impossible to make your mind constant as when a saadhak can
seated for a long time without any moment on his aasan then the power of “Japaah Japaat Sidhibhervaet” comes into life and when this
position can attain then it is dead sure that he can get what he wants.
But let me remember
you that it is not as easy as it sounds because with ill body no-one can get
his/her aasan permanent stable but do not forget that if once you will attain
this position then nobody can dare to stand between you and your success.
Sadgurudev himself told that” it fit body is a
fundamental requirement for success in sadhnaa then to
have fit and fine body it is very
important to do Divya
Deh Sidhi Sadhnaa as this sadhnaa will open the
door for the further step i.e. called aatam sidhi.
Deh sidhi sadhnaa is a collective form of six different procedures and that
are-
Control over mind- during sadhnaa one should keep his mind charged with
positive energy…..and there should be no thought of failure.
Control over aasan- during sadhnaa one should not depend upon the counting of
rosary as keep on sitting until or unless you can.
Control over eyes- during in or out duration of sadhnaa there must not be
cheap or baseless emotions should flow into your eyes…..one should keep his
eyes focused on the accessories of sadhnaa so that your inner soul can absorb
their qualities.
Controlled breathe- during mantra jaap there must be a deadly combination
between the inhaling and exhaling process as your respiration speed depends
upon the length and shortness of mantra as in different mantra different type
of respiration system used.
Control over body i.e. Adhobhaag Niyantran- how much time you
can sit in a single posture during sadhnaa it all depends upon your back and
legs so you should pay special attention on this portion.
Control over five
basic elements of body i.e. Panchbhootatmak Niyantran- if one comes to know
that how he can increase or decrease the quantity of five basic elements i.e.
water, fire, air, sky and earth, of his body then easily he can make his body
suitable for the environment of his surrounding then slowly- slowly his body
gets itself free from external and internal diseases and finally becomes pure.
After all these
procedures body becomes suitable for sadhnaas as without this purity there is
no use of doing any type of sadhnaa.
But the disturbing
fact is that in this present scenario when everything is polluted, mall
nourished to have perfect body is just like dream but with the help of Divya
Deh Sidhi sadhnaa we can have an ideal body. Once while speaking about this
sadhnaa Sadgurudev explained that in the field
of sadhnaa this procedure is invented by Bhramrishi Vishwamitra ji which
include all 6 procedure in it with collective energy
of Maya Beej, Kaali Beej and Mrityunjay
Beej which are systematically arranged in a single thread
and only by enchanting of it divine natural universal power starts entering in
sadhak’s body and when this happens all the pit
falls get vanishes from his soul and with pure heart, mind and body he gets
lost in his sadhnaas.
If we talk about the
quality of divines and purity then without any doubt the first name which comes
into our mind is Mercury (parad) so in this sadhnaa too the most important useable
things are Parad Shivling and Panchmukhi Rudrakshh. This sadhnaa can be started on any Monday or Thursday and
in other accessories sun rising time, white clothe and North direction is
already decided.
For this sadhnaa one
should gets up at early morning and take bath. After bathing he should offer
water as divine offering to the sun and gets his blessings for success. Then in
your sadhnaa room be seated on white altar and in front of you on wooden slab
spread white cloth and put picture of Sadgurudev on it. On the left side of
picture put supari in the form of Lord Ganesha. After that make two heaps of
rice in front of Sadgurudev’s photo and then lit a lamp (Deepak) of cow’s ghee
on the heap of your left side. Remember in front of Sadgurudev’s photo there
must be two heaps of rice similarly in front of supari ,which we has been taken
as Lord Ganesha , there must be as much place that a copper bowl with half liter water can be placed there and on right
side place oil lamp(Deepak). When all this done then in front of Ganpati ji put
copper bowl and in it make a circle with raktchandan and in that circle write “Hroum” and then placed Parad Shivling and Rudrakshh on it. After
this you need to do Ganpati Poojan, Guru Poojan and Shivling Poojan with
panchopchaar procedure or as per your capacity and then enchant 11 rosary of
Guru Mantra. Further while speaking OM (11 times) take water
from that copper bowl (in which Ganga jal is already mixed) with the help of
small tea spoon and offer that water on Shivling while speaking Divya Deh Sidhi Mantra. Carry on this procedure for 14
days and it will take just an hour. Remember you have to do Upanshu Jap and
that water which you offer to Shivling, use that water during your bath on next
day.
Divya Deh Sidhi Mantra-
OM
HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l
After 14 days place Shivling at your poojan place and rudraksh
at Kaali or Durga Temple with some alms. After this you need to enchant this mantra 21 times
daily. It is just because of our revered Sadgurudev that we still have these
types of secret sadhnaas so to achieve success in sadhnaas firstly get rid of
your short-comings as it is only with healthy body we can make our aasan
capacity as much solid and durable as we want.
****NPRU****
3 comments:
jai guru dev.
for the BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU
article is there english version of it.
After reading todays blog I knew about my one mistake I used to change asan after some time now I will not do this. Very practical knowledge.
jai gurudev bhaiyya,following line mein jo dino ki sankhya hai wo 14 hai ya kuchh aur...
"१ दिनों के बाद आप शिवलिंग को पूजन्स्थल पर स्थापित कर दे और रुद्राक्ष को यथाशक्ति "
second thing ismein ek rudraksh lagega na.....
jai gurudev
Post a Comment