It is hard to find sadhak on this earth who is not
acquainted with this form of Bhagwati. Bhuvneshwari Mahavidya has a special
place among ten Mahavidyas. Various meaning of name of Bhagwati gives brief
indication about their power and capability but still there is no limit to joy
and happiness which grace of her can provide to sadhak. Opening the gates on
infinite possibilities, meaning of name Bhagwati Bhuvneshwari is ruler of
universe. The one who is ruler of universe herself, what it cannot provide to
sadhaks? If sadhak does sadhna of Bhagwati with complete trust and dedication
then certainly he attains favourableness in both materialistic and spiritual
field. Bhagwati blesses sadhak with progress in both the fields.
From ancient time, sadhna of goddess has been done to make life happy,
for attaining luxury and for spiritual upliftment. There are many hidden prayogs
and procedures related to this secretive form of Shakti relating to which no
description is found. But she has always been famous among sadhaks due to her
world-famous beej mantra “HREEM” and sadhna of her benevolent form. There are
various types of Tribeej Prayog related to Bhagwati which contains three beej
mantras. Various mantra related to it provides different results. One
particular mantra among various Tribeej Mantra of Bhagwati has been very less
prevalent but this mantra is capable of providing various types of benefits to
sadhak. This abstruse mantra is infinitely vast and describing it is nearly
impossible. It may seem very simple mantra but it is capable of getting rid of
any shortcoming arising in three powers of knowledge, desire and activity.
Sadhak can witness it by doing this prayog. On one hand, after doing this
prayog, sadhak’s inner aspects are transformed, negative thoughts of sadhak
gives way for his positive thoughts and there is development in self-confidence
of sadhak. Along with it, externally there is destruction of shortcomings of
sadhak’s life. Mainly, obstacles coming in path of attainment of luxury for
sadhak are resolved. Along with it, if sadhak is facing any problem related to
home, it is solved. Seen from this angle, this prayog is best since it can
provide benefit to sadhak in both his materialistic and spiritual aspects.
This prayog should be done in night of any Sunday
of Shukl Paksha.
Sadhak should take bath in night, wear red dress
and sit on red aasan facing north direction. Sadhak should keep one Baajot
(wooden mat) in front of him. Then sadhak should write “HREEM”
in any container with vermillion. Sadhak should keep one agate stone upon it.
Besides this, if it is possible then sadhak should establish Bhagwati
Bhuvneshwari’s yantra or picture. Sadhak should do Guru Poojan and poojan of
Lord Ganesha and after it sadhak should perform Bhuvneshwari poojan on that
stone itself. After
it, sadhak should chant Guru Mantra and do Nyas procedure.
KAR
NYAS
HRAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
HREEM
TARJANIBHYAAM NAMAH
HROOM
MADHYMABHYAAM NAMAH
HRAIM
ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
HRAUM
KANISHTKABHYAAM NAMAH
HRAH
KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH
ANG
NYAS
HRAAM
HRIDYAAY NAMAH
HREEM
SHIRSE SWAHA
HROOM
SHIKHAYAI VASHAT
HRAIM
KAVACHHAAY HUM
HRAUM
NAITRTRYAAY VAUSHAT
HRAH
ASTRAAY PHAT
After it, sadhak should chant 101 rounds of below
mantra in night. Since mantra contains only 3 beejs therefore it will not take
much time for chanting 101 rounds. Sadhak can use Moonga Rosary, Shakti rosary
or red agate rosary for this purpose.
Om hreem krom
After it, sadhak should offer mantra jap to goddess
and pray for her blessings. Sadhak should not immerse rosary. It can be used in
future for Bhuvneshwari sadhna. Establish agate stone in worship place. Wash
the container in which “HREEM” beej
was written.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ पृथ्वी लोक पर शायद ही ऐसा कोई साधक को जो भगवती के इस स्वरुप से परिचित न हो. दस महा शक्ति अर्थात महाविद्याओ में भुवनेश्वरी महाविद्या अत्यंत ही विशेष स्थान है. भगवती के नाम के विविध अर्थ ही उनकी शक्ति और सामर्थ्य के बारे में संकेत कर ही देते है लेकिन फिर भी उनकी कृपा द्रष्टि साधक के जीवन में कितना आनंद प्रदान कर सकती है इसकी कोई सीमा ही नहीं है. अनंत संभावनाओं के रस्ते खोल देती भगवती भुवनेश्वरी के नाम का अर्थ ही है ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री. जो ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री स्वयं है,वह अपने साधक को भला क्या प्रदान नहीं कर सकती है. अगर साधक पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ भगवती की साधना करता है तो निश्चय ही उसे अनुकूलता की प्राप्ति होती है भले ही वह अध्यात्मिक क्षेत्र हो या भौतिक क्षेत्र. भगवती साधक के दोनों ही क्षेत्र में उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करती है.
देवी की
साधना उपासना जीवन को सुखमय बनाने के लिए, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए तथा
अध्यात्मिक उन्नति के लिए आदिकाल होती आई है. इस रहस्यमय शक्ति स्वरुप से सबंधित
कई गुप्त प्रयोग एवं प्रक्रियाए है जिसके सबंध में विवरण प्राप्त नहीं होता है
लेकिन सहज रूप से इसके कल्याणमय स्वरुप की साधना उपासना तथा इनके विश्वविख्यात बीज
मन्त्र ‘ह्रीं’ के कारण साधको के मध्य यह प्रिय रही है. भगवती से सबंधित कई प्रकार
के त्रिबीज प्रयोग है, जिनमे तिन बीज मन्त्र होते है. इनसे सबंधित विविध मन्त्र
विविध फल प्रदान करते है. भगवती के विविध त्रिबीज मंत्रो में से एक मन्त्र कम
प्रचलन में रहा है लेकिन यह मन्त्र साधक को कई प्रकार के फल की प्राप्ति करा सकने
में समर्थ है. इस गुढ़ मन्त्र का विस्तार अनंत है, तथा इसकी व्याख्या करना असंभव
कार्य ही है. भले ही यह अति सामान्य सा मन्त्र दिखे लेकिन यह त्रि शक्ति अर्थात
ज्ञान, इच्छा एवं क्रिया में आ रही न्यूनता को तीव्र रूप से दूर करने में समर्थ है
जिसका अनुभव साधक प्रयोग के माध्यम से कर सकता है. एक तरफ यह प्रयोग करने पर साधक
के आंतरिक पक्ष में बदलाव आता है, साधक के नकारात्मक विचार हट कर सकारात्मक विचारों
की प्राप्ति होती है तथा आत्मविश्वास का विकास होता है. साथ ही साथ, बाह्य रूप से
साधक के जीवन की न्यूनताओ का क्षय होता है. मुख्य रूप से साधक को ऐश्वय प्राप्ति
में आने वाली बाधाओ का निराकरण होता है. साथ ही साथ साधक को घर-मकान से सबंधित कोई
समस्या हो तो उसका समाधान प्राप्त होता है. इस द्रष्टि से यह प्रयोग अति उत्तम है
क्यों की यह साधक के आतंरिक तथा बाह्य रूप में भौतिक दोनों ही पक्षों में लाभ
प्रदान करता है.
यह प्रयोग
साधक शुक्ल पक्ष के रविवार की रात्रि में सम्प्पन करे.
रात्रि
में स्नान आदि से निवृत हो साधक लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की
तरफ मुख कर बैठ जाये. अपने सामने साधक एक बाजोट रखे.किसी पात्र में
कुमकुम से ‘ह्रीं’ लिखे. उसके ऊपर साधक एक हकीक पत्थर रख दे. इसके अलावा, अगर संभव हो तो
बाजोट पर साधक को भगवती भुवनेश्वरी का यंत्र या चित्र भी रखना चाहिए.
साधक
गुरुपूजन, गणेशपूजन सम्प्पन करे तथा इसके बाद उस पत्थर पर ही भुवनेश्वरी पूजन
सम्प्पन करे. इसके बाद साधक गुरुमन्त्र का जाप कर न्यास
करे.
करन्यास
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यास
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्
इसके बाद
साधक निम्न मन्त्र की १०१ माला उसी रात्रि में जाप कर ले. मन्त्र में मात्र तीन
बीज है अतः १०१ माला जाप में ज्यादा समय नहीं लगता है. यह जाप मूंगामाला, शक्ति
माला या लाल हकीक माला से करे.
ॐ ह्रीं क्रों
(om hreem
krom)
इसके बाद
साधक देवी को जाप समर्पित करे तथा आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करे. साधक को माला का
विसर्जन नहीं करना है, यह माला आगे भी भुवनेश्वरी साधना के लिए उपयोग में लायी जा
सकती है. हकीक पत्थर को पूजा स्थान में स्थापित कर ले. ह्रीं बीज
को लिखे हुवे पात्र को धो ले.
****NPRU****
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