Jai Sadgurudev,
NIRGUNAA YAA SADA NITYAA VYAAPIKAAVYAKTAA
SHIVAA |
YOGGAMYAA KHILAA DHAARA TUREEYA YAA CH
SANSTITHA ||
TASYAASTU SAATIVIKEE SHAKTI RAAJSI TAAMSI
TATHA |
MAHALAKSHMIH
SARASWATI, MAHAKAALITI TAAH STREEYAH ||
“This sloka said in
Devi Bhagwat explains that Maa is always absolute, have vast presence, is
secret Shiva, is Yog Gamya and is basically in Turiya State. Bhagwati has three
forms of Satvik, Raajsik and Tamsik respectively which are present in from of
desire, knowledge and activity and are described in Pratham (first), Maadhyam
(middle) and Uttam Charitra form in Saptsati.”
700 slokas of Durga Saptsati contains hidden principles for progress and
development of human mind and society using which person can do successive
progress, not only in materialistic field but also in spiritual field too.
There is difference between reading Vidhaan of Saptsati and Prayog. Fruits
of reading it vary in accordance with direction, dress and aasan used but in Prayog;
sadhak takes a Sankalp as per his desire and fulfils it. Sadgurudev has told so
many Vidhaans using which we can attains success in many dimensions of life.
It has been said in Saptsati…..
DEVANAAM KAARYSIDDHYARTHBHAAVIRBHAVTI SAA
YADA |
UTPANNETI TADA LOKAM SAA NITYAPUBHIDHIYATE ||
Maa is manifested in various
forms for bestowing grace on her devotees. When she manifests herself for
accomplishing work of Devs, she is said to have originated since she is
immortal who cannot be destroyed. In accordance with works carried out, there
are many names of Maa Aadi Shakti--------may be they are none forms of Durga or
ten Mahavidyas or name of power of any other form…
Since hidden Navratri is
important time for sadhak, thus it is best for sadhak to do a sadhna of Maa
which is related to accomplishment of all the works….
Human life is subjected to his desire and
everyone wants to materialize their best desires of life. But this is not
possible if person’s fortune is not favourable to him. But there is nothing
which cannot be accomplished with grace of Maa. Her grace can provide wealth,
food, land and various pleasures and can destroy all types of fear. Here is one
prayog of Saptsati for all of you….
Sadhna Articles: - Vermillion, Rice
coloured with vermillion, 9 small pieces of Shwetark or white Aak, red flowers,
Saffron-mixed Kheer, Panch Mewa, Betel leave, Cardamom, Clove and lemon. One
yellow cloth will be needed on which yantra has to be made.
Aasan and dress will be yellow.
Direction will be north or east. Appropriate time for sadhna is after 10:30 P.M
in night.
Rosary— Moonga, Rakt Chandan (Red Sandal) or Shakti Rosary
Procedure-- Spread yellow cloth on Baajot and establish Guru picture and Yantra on
it. Do Guru Poojan and chant 4 rounds of Guru Mantra. Then establish one
supaari each for Lord Ganesha and Lord Bhairav and do its brief poojan. Then
make yantra with vermillion using pencil of pomegranate, jasmine or silver.
Then do poojan of yantra with vermillion-mixed rice, red flowers and offer Bhog
of Kesar-mixed Kheer. Offer betel, clove, cardamom, piece of Aak’s stick and
lemon.
On first day, while chanting below mantra, poojan has to be done by
offering the articles-
AING
SHAILPUTRI SHAKTIH………SAMARPYAAMI
In the blank space, write the name of articles offered by you.
For example- Aing Roopen Bhagwati Shailputri Charne
Akshat Samarpyaami
Aing
Roopen Bhagwati Shailputri Charne Pushpam Samarpyaami
In this manner, other articles
are to be offered. On the second day, use mantra of second number and do poojan
in same sequence. Remember that name of sadhna articles which you are offering
will be used in blank space. If two Tithis (Indian Date) of Navratri fall on
the same day then poojan and Jap of both the days need to be done on the same
day and articles will have to be offered twice. In other words, rice, flowers
etc. have to be offered two times. But first of all we need to do poojan of
first day and then do the poojan and chanting of second day.
2. HREENG
ROPPEN BHAGWATI BRAHMACHAARINI CHARNE......SAMARPYAAMI
3. KLEEM ROPPEN BHAGWATI
CHNADRAGHANTA CHARNE......SAMARPYAAMI
4. CHAA ROOPEN BHAGWATI
KOOSHMAANDA CHARNE......SAMARPYAAMI
5. MUM ROOPEN BHAGWATI
SKANDMAATA CHARNE......SAMARPYAAMI
6. DAA ROOPEN BHAGWATI
KAATYAAYANI CHARNE......SAMARPYAAMI
7. YAI ROOPEN BHAGWATI
KAALRAATRI CHARNE......SAMARPYAAMI
8. VI ROOPEN BHAGWATI
SIDDHIDAATRI CHARNE......SAMARPYAAMI
9. CHCHE ROOPEN BHAGWATI
MAHAGAURI CHARNE......SAMARPYAAMI
After it, chant 3 rosaries of Navaarn Mantra
Navaarn Mantra-
AING HREENG KLEENG
CHAAMUNDAAYAI VICHCHE
And then chant 3 rounds of below
mantra-
DURGE
SMRITAA HARSI BHEETIMSHESHJANTOH SWASTHAI SMRITAA MATIMATEEV SHUBHAAM DADAASI |
DAARIDRAY
DUKH BHAVHAARINI KAA TVDANYAA SARVOOPKAARKARNAAY SADARDR CHITTAA ||
This sadhna is of nine days. Above-said procedure needs to be done
daily. Yantra will be made only on first day but poojan needs to be done daily.
Naivedya of Kheer needs to take by sadhak himself daily after doing sadhna.
After completion of sadhna, on next day, sadhak should of poojan of small girl
as per his capacity and please her by offering Dakshina. During sadhna duration
itself, with the grace of Maa, circumstances are created for fulfilment of
desire.
------------------------------------------------------------------- जय सदगुरुदेव,
निर्गुणा या सदा नित्या व्यापिकाव्यकता शिवा |
योगगम्या खिला
धारा तुरीया या च संस्तिथा ||
तस्यास्तु
सात्विकी शक्ति राजसी तामसी तथा |
महालक्ष्मी: सरस्वती,महाकालीति ता: स्त्रीय: ||
“देवी भागवत में कहा गया ये श्लोक इस बात का बोध कराता है कि माँ जो
सदा नित्य निर्गुण व्यापक अव्याकृत शिवा हैं और योगगम्य हैं और मूलतः तुरीय हैं
उन्ही भगवती के सात्विक राजसिक और तामसिक तीन रूप हैं जो इक्छा ज्ञान और क्रिया
रूप में विद्यमान है जिसका सप्तशती में
प्रथम,माध्यम और उत्तम चरित्र के रूप में वर्णित किया गया.”
दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोकों में मानव बुद्धि और समाज की
उन्नति और विकास हेतु गूढ़तम सिद्धांत हैं. जिनका उपयोग करके व्यक्ति उत्तरोत्तर
उन्नति कर सकता है न केवल भौतिक अपितु आध्यात्मिक भी.
सप्तशती को पढने का विधान अलग है और प्रयोग अलग, क्योंकि
पाठ का फल हमे उस समय विशेस, दिशा, वस्त्र और आशन के अनुरूप प्राप्त हो जाता है,
किन्तु प्रयोग का मतलब अपनी इच्छा अनुसार संकल्प लेकर अपने मनोरथ को प्राप्त करना.
सदगुरुदेव द्वारा अनेक विधान बताये गए हैं जिनका प्रयोग कर हम जीवन के अनेक आयामों
में सफलता प्राप्त कर सकते हैं.
सप्तशती
में कहा गया है------
देवानां कार्यसिद्ध्यर्थभाविर्भवति सा यदा
|
उत्पन्नेती तदा लोकं सा
नित्यअपिभिधियते
माँ अपने भक्तों पर कृपा करने उन पर अनुग्रह करने हेतु अनेक
रूप धारण करती हैं. जब देवों के कार्य सिद्ध करने के लिए रूप धारण करती हैं तो
उनकी उतपत्ति मणि जाती है क्योकि वे तो सर्वदा नित्य हैं जिसका विनाश नहीं होता,
माँ आदि शक्ति के कार्यों के अनुरूप ही उनके नाम हैं---- फिर चाहे वे नाम दुर्गा
के नौ रूपों के हों या दश महाविद्या के या किसी और रूप के एक ही शक्ति के
नाम.......
चूंकि गुप्त नवरात्री एक महत्वपूर्ण समय होता
है एक साधक के लिए अतः माँ की ही कोई साधना की जाये जो सर्व कार्य सिद्धि से
सम्बंधित हो तो अति उत्तम.....J
मानव जीवन इच्छाओं
के अधीन है और हर कोई चाहता है की उसके जीवन की श्रेष्ट मनोकामनाओं को साकार रूप
मिल सके,किन्तु जब तक भाग्य अनुकूल नहीं होगा,ऐसा होना असंभव है.किन्तु माँ आद्य शक्ति
की कृपा से ऐसा क्या है जो संभव नहीं हो सकता है. धन,धान्य,धरा,विविध सुखों की
प्राप्ति और साथ ही समस्त प्रकार के भयों का नाश मात्र उन्ही कृपा से संभव हो पाते
हैं. अतः सप्तशती का ही एक प्रयोग आप सब के लिए ........
साधना सामग्री :-
कुमकुम, कुमकुम से रँगे चावल,श्वेतार्क या सफ़ेद आक की लकड़ी के छोटे
छोटे नौ टुकड़े,लाल पुष्प,केशर मिश्रित खीर, पञ्च मेवा, पान, लौंग, इलाइची, और
नींबू. इसके साथ हीएक पीला वस्त्र जिसपे यंत्र बनाना है----
आसन और वस्त्र भी पीले होंगे. दिशा उत्तर या पूर्व,रात्रि में १०.३० के बाद का समय साधना के लिए उपयुक्त है.
माला— मूंगा, रक्त चन्दन
या शक्ति माला.
विधि-- सामने बाजोट
पर पीला वस्त्र बिछा कर गुरु चित्र व यन्त्र की स्थापना करे और गुरु पूजन एवं चार
माला गुरु मंत्र की संपन्न करे.फिर एक सुपारी गणेश और एक सुपारी भगवान भैरव के
प्रतीक रूप में रख कर उनका संक्षिप्त पूजन कर कुमकुम से अनार, चमेली या चांदी की शलाका
या कलम से यन्त्र अंकित करें, तथा जल हाथ में सर्व कार्य सिद्धि हेतु संकल्प लें
फिर यन्त्र का पूजन कुमकुम मिश्रित चावल, लाल पुष्प,केशर मिश्रित खीर का भोग लगा
कर करें और पान लौंग इलाइची,आक की लकड़ी का टुकडा और नींबू अर्पित करें.
प्रथम दिवस निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सामग्री अर्पित
करते हुए पूजन करना है –
ऐं
शैलपुत्री शक्ति: ........
समर्पयामि
खाली जगह पर आप जो भी सामग्री अर्पित कर रहे हैं उसका नाम
लेना है.
उदाहरण- ऐं रूपेण भगवती शैलपुत्री
चरणे अक्षत समर्पयामि
ऐं रूपेण भगवती शैलपुत्री चरणे पुष्पं
समर्पयामि
इसी प्रकार अन्य पदार्थ या उपचार समर्पित करना है.इस प्रकार दूसरे
दिन दुसरे नम्बर का मंत्र और आगे इसी क्रम से पूजन करना है,याद रखिये खाली जगह में
सामग्री जो आप अर्पित करना चाहते हैं,उसका नाम उच्चारण करना है.यदि नवरात्री में
कोई दो तिथि एक साथ पड़ती है तो दोनों दिनों का पूजन और जप उसी एक दिन करना होगा और
उपचार दोनों बार अर्पित करना होगा,मतलब अक्षत,पुष्प आदि सब दो दो बार अर्पित करना
होगा. किन्तु पहले एक पूजन संपन्न कर लेंगे,तभी दूसरी बार का पूजन और जप संपन्न
किया जायेगा.
२. ह्रीं रूपेण भगवती ब्रह्मचारिणी
चरणे ......समर्पयामि
३.क्लीं रूपेण भगवती चंद्रघंटा......समर्पयामि
४. चा रूपेण भगवती कूष्मांडा चरणे
......समर्पयामि
५. मुं रूपेण भगवती स्कंदमाता
चरणे ......समर्पयामि
६. डा रूपेण भगवती कात्यायनी चरणे
......समर्पयामि
७. यै रूपेण भगवती कालरात्रि चरणे......समर्पयामि
८.वि रूपेण भगवती सिद्धिदात्री चरणे......समर्पयामि
९. च्चे रूपेण भगवती महागौरी चरणे......समर्पयामि
तत्पश्चात नवार्ण मंत्र की ३ माला जप करें.
नवार्ण मंत्र –
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
(AING HREENG KLEENG CHAAMUNDAAYAI
VICHCHE)
और फिर निम्न मंत्र की ३ माला मंत्र जप संपन्न करें –
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोःस्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता॥
ये साधना नौ दिनों की
है प्रतिदिन उपरोक्त क्रम समपन्न करना है,यन्त्र का निर्माण पहले दिन ही होगा
लेकिन पूजन प्रतिदिन करना है.खीर का नैवेद्य नित्य साधना के बाद स्वयं हि ग्रहण
करना है.साधना पूरी होने के बाद अगले दिन सामर्थ्यानुसार किसी कुमारी का पूजन कर
दक्षिणा आदि देकर संतुष्ट करें. और सामग्री को किसी खेत आदि स्वच्छ स्थान पर विसर्जित
कर दें.साधना काल में ही आपके कामना को साकार करने वाली परिस्थितियों का निर्माण
माँ की अनुकम्पा से प्रारम्भ हो जाता है.
****RAJNI
NIKHIL****
****NPRU****
3 comments:
Jay Gurudev
Rajaniji,
1)Yantra me alag-alag jagah per navshaktiyon ke khane hai. To har din puja karte samay kisi vishistha khane ki/shakti ki puja karni hai ya sampurna yantra ki?
2)Puja me arpit ki gayi samagri/nirmalya dusre din vaisehi rahene dena hai ya otherwise?
Kripaya samadhan kare.
Prashant D.
yah yantr kahan se prapt hoga
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