Jai Sadgurudev,
Auspicious moments of Holi, exceptional
sadhnas and above all, your dedication made Holi colourful. Isn’t….:)
I am feeling sweet smile of your
success, sadhna experiences, affection and blessings of Gurudev. Brothers and
sisters, Holi is special. Isn’t…
I pray to divine lotus feet of
Sadgurudev that colour of various type of sadhna is spread in your life…….:)
Now, along with colours, you would have
tasted different types of dishes on the festive occasion of Holi. And out of
which sweets would have been special. Isn’t :)
Sweets are most favourite of Anu Bhaiya and
Raghunath Ji…….:) and all of you know this fact very well……:)
My dear brothers and sisters, this was about
colourful talks of Holi. We have different types of customs prevalent in our
culture. One of the customs is that elders give some gift to younger ones along
with the blessings….Isn’t
So let us share this tradition among
us…. Since we are sons and daughters of Nikhil and we share our joy-sorrow, thoughts,
feelings and especially knowledge so why not share gifts…Do not get worried, I
am not demanding any gift from you…..:)
Let us do one thing
that I will give you all something as gift….Is it right now…..:)
Brothers and sister, we are truly fortunate
to have taken birth in the era of Sadgurudev and more than that, we are very
lucky to have his company and his blessings. Probably you will know that even
gods and goddesses are jealous of our luck since they are not that much
fortunate….
All
those who have not seen Gurudev and have not taken initiation from him in
physical form, please do not get disappointed. This procedure is especially for
them…
My dear ones, now Gurudev is always
with us all the time in the form of nature. What is needed is to feel it, know
it and imbibe it inside each and every particle of blood because this is what
dedication of disciple is all about. And where there is dedication, there can
be no distance. Only Guru and disciple remains, nothing else….
Sadgurudev knew that time will
come when society will be wandering about with anxiety; new generation will be
thirsty for knowledge. Then this knowledge will only come to
their rescue…..
Brothers, it is
fact that the amount of knowledge and scriptures which he has left for us is so
much that we need not to wander anywhere else….
I was talking about gift. And the
gift is this wonderful sadhna….
GURU PRAAN AND RAKT KAN
KAN STHAAPAN PRAYOG:-
As the name
suggests, it is procedure to establish Guru in our Breath and blood which is
very important. It is very necessary to know why it is important.
Brothers and sisters, food and
environment are polluted. This food is like a poison for body since it flows in
our body in form of blood.
Sadgurudev used to purify the
blood through Shaktipaat procedure and then only used to do initiation
procedure. Therefore, now we should do this with the help of sadhna.
The manner in which
purified and refined form of food is blood, in the same manner, blood over
course of time is refined into conscious, dynamic Bindu which is nothing but
form of procreator Aing Beej. Bindu too in near future, if it is full of
divinity is transformed into intensity-providing Retas and nectar of Ojas and
travel upwards It is base of our
divinity and progress. Therefore, if such blood is flowing in our nerves, we
can be free from anxiety in many respects and can do not only long duration but
divine sadhnas. Guru Element is base of our
life, our refined form. Then nothing like nightfall happens nor the
fear of discharge remains, whether it is physical discharge or mental error or
moral blunder.
Procdeure:-
On any Thursday or
Sunday, take bath in Mahendra Kaal (most auspicious time for sadhna), wear
yellow/white dress and sit on white/yellow aasan facing north/east direction.
Establish Guru Picture on Baajot. Perform Guru Poojan and Ganpati poojan in
accordance with daily poojan. Chant 4 rounds of Guru Mantra. Thereafter, chant 51 rounds of below mantra by
Guru Rosary.
OM PARAM
TATVAM OM
This procedure has
to be done for 3 days. In Fact, it is procedure to
completely establish supreme element in each and every particle of blood. As sadhak keeps on
doing this procedure with concentration, sadhak himself feels the change……The
biggest miracle of this sadhna is that sadhak experiences incredible bless all
the time and his dedication towards holy feet of Guru keeps on increasing day
by day. If
sadhak daily chants 11 rounds of this mantra for one year then sadhak attains Brahma
Varchasva Siddhi and attains the god-like strength and capability to give boon
and curse.
“Nikhil Pranam”
=======================================================जय सदगुरुदेव,
होली की अति शुभ
घड़ियाँ, उसमें अति विशिष्ट साधनाएं, और
उस पर आप सबकी लगन, मिलकर बहुत ही रंग बिरंगी होली हो गयी ना.......
:) :)
भाइयों आप सबके मुख की मीठी मुस्कान मै यही पर महशूस कर रही हूं जो
सफलता की है, साधना में हुए अनुभवों की
है,गुरुदेव के स्नेह और आशीर्वाद के अहसास की है . भाइयों बहनों है ना ये विशिष्ट होली.....
ऐंसे ही अनेक प्रकार
की साधनाओं का रंग आप सबके जीवन मे बिखरता रहे, यही निवेदन है,गुरुदेव के श्री चरणों में........ :)
अब होली है तो, रंगों के साथ आप सभी ने अनेक प्रकार के व्यंजनों
का स्वाद भी लिया ही होगा, और उसमें भी मिठाइयां विशेस होंगी...
है ना :)
जो कि अनु भैया
जी और रघुनाथजी की अति पसंदीदा चीज है......
:) और ये तो आप सभी जानते
ही हैं....... :)
मेरे स्नेही भाइयों
बहनों चलो ये तो हुई होली की रंग बिरंगी
बात.... भाइयों हमारे यहाँ अनेक प्रकार की परम्पराएँ
हैं, उनमें एक ये भी की बड़े छोटों को आशीर्वाद के साथ कुछ
उपहार भी देते हैं....... है ना
तो चलो हम सब इस
परंपरा को हम आपस में ही बांटे..... चूँकि हम निखिलांश और हम सब सुख-दुःख, विचार भावनाएं विशेस कर ज्ञान, सभी कुछ बाँटते हैं तो फिर उपहार
क्यों नहीं.... अरे अरे घबराएँ नहीं मै आपकी कोई उपहार वाली
चीजें नहीं लुंगी.... :)
अच्छा ऐंसा करते हैं चलो
मै ही आप सबको एक उपहार स्वरुप कुछ देती
हूँ ...... अब ठीक है ना .....
:)
भाइयों बहनों ये सच में
हमारे जीवन का सौभाग्य है कि हमने सदगुरुदेव जी के युग मे जन्म लिया है और उससे भी
बड़े सौभाग्य कि बात ये है कि हमे उनका सानिध्य, उनका वरद हस्त प्राप्त हुआ, शायद आपको पता हो कि
हमारे इस सौभाग्य पर देवता भी ईर्ष्या करते हैं, क्योंकि ये
सौभाग्य उनको प्राप्त नहीं है ना.......
ना ना वो लोग बिलकुल
निराश न हों जिन्होंने गुरुदेव को देखा नहीं या उनसे प्रत्यक्ष दीक्षा नहीं ली है, ये प्रयोग तो विशेस उन्हीं के लिए है.....
मेरे
स्नेही जनों अब तो गुरुवर प्रकृतिमय होकर प्रत्येक क्षण आपके साथ हैं, बस आवश्यकता है, उन्हें
महसूस करने की, जानने की और उन्हें अपने रोम रोम मे, रक्त के प्रत्येक कण मे समाहित करने की, क्योंकि यही
तो शिष्य का समर्पण है, और जहाँ समर्पण है वहां दूरी कहां?
वहां तो बस गुरु और शिष्य ही होता है, और कुछ
नहीं...............
भाइयों
सदगुरुदेव जानते थे कि एक समय आएगा जब, आवश्यकता होगी समाज को, और भटकती हुई हैरान और
परेशान, ज्ञान की प्यास लिए नई पीढ़ी को. और तब यही ज्ञान कम आएगा......
भाइयों ये सच भी
है की उन्होंने इतना ज्ञान इतने ग्रन्थ हमारे लिए रख छोड़ा है कि हमें कहीं और
भटकने की जरुरत ही नहीं है.......
अरे मै तो उपहार की
बात कर रही थी तो ये छोटी सी उपहार स्वरूप साधना.........
गुरु प्राण व रक्त कण-कण
स्थापन प्रयोग:-
जैसा कि नाम से ही पता
चलता है गुरु को प्राणों में रक्त मे स्थापित करने की क्रिया, जो कि अति आवश्यक है..... और
क्यों आवश्यक है ये जानना भी जरुरी है ........
भाइयों बहनों
वर्तमान समय कि आवोहवा खान-पान सभी दूषित है जो शरीर मे विष के समान ही है .
क्योंकि यही हमारे शरीर मे रक्त के रूप प्रवाहित है.
सदगुरुदेव शक्तिपात क्रिया के द्वारा रक्त
शोधित करने के बाद ही दीक्षा क्रिया संपन्न करते थे, अतः अब इसे हमें साधना के माध्यम से संपन्न करना चाहिए,
जिस प्रकार भोजन का
शुद्ध परिष्कृत अमृतरूप रक्त है, उसी
प्रकार वर्ष काल खंड मे रक्त का अत्यधिक परिष्कृत चेतन्य गतिमान् और अमृतरूप और
सृजनकारी ऐं बीज रूप सत्वासत्व बिंदु मे परिवर्तित होता है जो निकट भविष्य मे
यदि दिव्यत्व भाव से युक्त हो तो
तेजश्विताप्रदायक रेतस और महा अमृतत्व रुपी ओजस मे परिवर्तित होकर उर्ध्व्गति पाता
है जो हमारे जीवन कि दिव्यता, उर्ध्वगामिता का आधार है. अतः यदि हम हमारी धमनियों मे प्रारंभ से ही ऐसा
रक्त प्रवाहित हो तो निश्चित ही आगे आने समय मे हम कई चीजों से निश्चिन्त होकर
दीर्घ ही नहीं अपितु कई दिव्य साधनाएं संपन्न कर सकते हैं,गुरुतत्व आधार है हमारे
जीवन का,हमारे परिष्कृत स्वरुप का,तब ना तो कोई स्वप्न दोष ही होता और ना ही कोई स्खलन का भय,फिर चाहे वो शारीरिक स्खलन हो,मानसिक
हो या चारित्रिक.
प्रयोग-विधि:-
किसी भी गुरुवार या रविवार को महेंद्रकाल में स्नान कर पीले या
सफ़ेद वस्त्र धारण कर पीले या सफ़ेद ही आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर
बैठ जाएँ,बाजोट पर गुरु चित्र स्थापित हो,दैनिक गुरु पूजन के अनुसार गुरु पूजन और गणपति पूजन कर गुरु मंत्र की ४
माला संपन्न करें.तत्पश्चात निम्न मंत्र की
५१ माला मंत्र जप गुरु माला से करें.
ॐ परम तत्वं ॐ
ये क्रिया ३ दिनों तक करना है.वस्तुतः ये परम
तत्व को पूर्ण रूपेण रक्त के कण कण मे स्थापन करने की क्रिया है.स्वभावतः क्रिया की पूर्णता और एकाग्रता के साथ साथ साधक को स्वयं
ही परिवर्तन का अनुभव होता ही है..... इस साधना का सबसे बड़ा चमत्कार यही कहा जा
सकता है की साधक को स्वयं ही एक अनिवर्चनीय आनंद की अनुभूति होती रहती है और उसका
समर्पण गुरु चरणों के प्रति दिन ब दिन बढते जाता है. यदि नित्य इसी मंत्र को साधक १ वर्ष तक नित्य ११ माला करता है तो उसे
ब्रह्म बर्चस्व सिद्धि की प्राप्ति और देवताओं के सामान बाल तथा शाप और वरदान देने
की क्षमता प्राप्त हो जाती है.
“निखिल प्रणाम”
****रजनी निखिल****
****NPRU****
2 comments:
Jai Gurudev,
Please bataye ki mahendra kaal kab hota hai. Har roz mahendra kaal ka time kya hai ?
Sandeep
Jai Gurudev,
Please bataye ki mahendra kaal kab hota hai. Har roz mahendra kaal ka time kya hai ?
Sandeep
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