अरुण कमल संस्था तद्रज: पुंज वर्णा ,
कर कमल घ्रतेष्टा भितियुग्माम्बुजा च |
मणि मुकुट विचित्रSSलंकृताSकल्प
जाती :,
सकलभुवनमाता संततं श्री श्रिये
वः ||
हलके गुलाबी रंग के कमल पर
विराजमान कमलपराग राशि के समान पीले
वर्ण वाली चारो हाथों में क्रमश
वर,अभय मुद्रा एवं दो हाथो में कमल पुष्प
धारण किये हुए मणिमय मुकुट से विचित्र शोभा
धारण करने वाली अलंकारों से युक्त समस्त
लोकों की जननी श्री महालक्ष्मी जी
हमें निरंतर “श्री” सम्पन्न करे.
तीन
वर्ष पहले की बात हैं अचानक दीपावली से
पहले पूना में एक भाई
के यहाँ पारद गणपति और पारद लक्ष्मी का स्थापन कराने के लिए जाना
हुआ ,अचानक जिस तरह से यह प्रोग्राम
बना वह भी आश्चर्ययुक्त ही रहा , जिस समय भाई स्थापन प्रक्रिया करवा
रहे थे उस समय अचानक एक शब्द पर मेरा
ध्यान गया, मैं आश्चर्य से भर
उठा की यह शब्द “सिद्धाश्रम देव लक्ष्मी”,यहाँ कैसे,और भाई जी पूर्णतया मंत्रोच्चार में तल्लीन,जब सारी स्थापन प्रक्रिया संपन्न हो गयी तो मैंने उन से पूंछा की यह जो
शब्द मैंने मंत्रोच्चार के मध्य सुना की
यह .....तो उन्होंने कहा की हाँ यह पहली
बार किसी भी गृहस्थ के यहाँ स्थापन की
अनुमति मिली हैं और यह प्रयोग और स्थापन प्रक्रिया अत्यंत
ही कठिन हैं लगभग दो घंटे की इस प्रक्रिया के मंत्र अपने आप में बेहद गूढता
लिए हुए हैं जहाँ , एक और लक्ष्मी ही नहीं बल्कि
सह्त्राक्षी लक्ष्मी और अन्य
सभी लक्ष्मी का स्थापन किया जाता हैं
वही दूसरी और एक एक मातृका का आवाहन और उनका विधिवत स्थापन भी अनिवार्य क्रम हैं और इस
सारे क्रम में कोई गलती न हो इस
कारण न केबल “निखिल आहूत मंत्र” बल्कि परम गुरुदेव के आहूत मंत्रो से युक्त विधान भी अनिवार्य प्रक्रिया
का एक अंग हैं और जहाँ यह सब
हो रहा हो वहां पर नवग्रहों का
स्थापन भी किया जायेगा
और यह कोई वैदिक प्रक्रिया से नहीं बल्कि पूर्णत तांत्रोक्त प्रक्रिया से
संभव होता हैं और इस प्रक्रिया का
उपयोग तो सिर्फ सिद्धाश्रम
में ही होता हैं, सदगुरुदेव जी ने इस पूरी प्रक्रिया को अपने उच्चस्थ सन्याशी शिष्यों को दिया हैं पर
किसी भी गृहस्थ के घर के लिए अभी भी अनुमति नहीं मिली यह तो इस परिवार के
पूर्व पुण्य हैं की इस तरह का उच्च
प्रयोग वह भी पहली बार इनके यहाँ करने की अनुमति मिली हैं.
मैने कहा की लक्ष्मी तो लक्ष्मी ही हैं तो इस प्रक्रिया के सिद्धाश्रम के जुड़े
होने और यहाँ होने
से क्या अंतर आएगा.भाई जी ने मुस्कुराते हुए क्यों नहीं ..बल्कि बहुत बड़ा अंतर हैं वह यह की यहाँ इस धरा पर लक्ष्मी चंचला स्वरुप में हैं वहां सिद्धाश्रम में वह सम्पूर्ण वैभव के साथ
सर्वदा सर्वदा के लिए पूर्णतया से स्थिर स्वरुप में अपने सम्पूर्ण जाग्रतता और चैतन्यता के साथ स्थापित हैं और क्यों न हो वहां सदगुरुदेव के
श्री चरणों में जिस किसी देव को
स्थान मिलता हैं वह भी अपने जीवन
को सहारता ही हैं .और वहां सिद्धाश्रम
में लक्ष्मी से जयादा “श्री “ तत्व की बात हैं क्योंकि
इस श्री तत्व ने
ही सारे ब्रम्हांड को न केबल धारण किये हुए हैं बल्कि सारा पालन भी यही तत्व करता हैं .भगवान् नारायण
श्री युक्त हो तो हैं.और
यह तो आपको मालूम ही हैं की जैसा की
दुर्गा सप्तसती आदि ग्रंथो में
आया हैं की नित्य लीला विहारिणी
भगवती जगदम्बा वास्तव में भगवती महालक्ष्मी ही हैं, उन्हीं ने अपने आप को त्रिभागों में विभक्त किया हैं अतःयह स्थापन प्रयोग अपने आप में
परम दुर्लभ हैं .मित्रो आप
समझ सकते हैं जिन भाई जी के यहाँ यह
प्रयोग हुआ था उन्होंने कुछ क्षण के बाद आकर बताया की जिन
क्षणों में भाई स्थापन कर रहे
थे उनकी बाहयगत चेतना उन
दिव्य मंत्रो के प्रभाव से खोती जा रही
थी,अगर कुछ देर यह प्रक्रिया होती तो वह
वहीँ पर चेतना शून्य ही हो जाते .
बाद
में भाई ने मुझे बताया की
यह
स्थापन संस्कार जब किसी का
संकल्प ले कर किया जाता हैं तब
उस व्यक्ति के सारे चक्र
और उनके सारे दल उपदल
इन तांत्रोक्त मंत्रो से इस तरह
झंकृत होते हैं की सामान्य व्यक्ति
उस तेज
को झेल ही नहीं सकता.
पर इससे
लाभ क्या होता हैं .
·
मित्रो ,परिवार
के वास्तु दोष दूर हो
गए यह तो सौभाग्य की बात हैं पर लक्ष्मी का स्थापन
वह भी अगर सिद्धाश्रम
युक्त हो तब बात
ही क्या हैं.
·
किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि उस परिवार के सारे सदस्यों के जीवन
में सुखद परिवर्तन की किरणे
खिलने लगती हैं.
·
परिवार में व्याप्त
तनाव और रोग स्वयं ही न्यून होने लगते हैं वहीँ
साधनात्मक भारतीय संस्कृत से युक्त वातावरण स्वयम ही बनने लगता हैं.
·
केबल एक सदस्य ही नहीं बल्कि परिवार के हर योग्य सदस्य के माध्यम से धन वर्षा
होने लगती हैं.
·
और यह धन
वर्षा के साथ चेतना और
विवेकयुक्तता रहती हैं अर्थात
धन का हमेशा सदुपयोग ही होगा.
·
लक्ष्मी सदैव
स्थित रूप में उसके
घर में होगी यहाँ पर चंचला स्वरुप की कोई बात ही नहीं हैं .
·
यह प्रयोग
सिद्धाश्रम से युक्त हैं अतः सिद्धाश्रम एक
योगियों के लिए भी आश्चर्य की बात होती हैं की ऐसा क्या हैं इस
व्यक्ति में जो सदगुरुदेव के आशीर्वाद
स्वरुप इसके यहाँ इस तरह के
प्रयोग संपन्न हुआ .
·
जीवन की भौतिक
शारीरिक न्युन्ताये स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति की जब न्युन्ताये समाप्त हो...
उसके पाप ताप समाप्त होने लगते हैं
तो उसे
ऐसा अहसास होता हैं की
उसके ऊपर से बहुत बड़ा
बोझ हल्का होने लगता हैं.
·
धन, धान्य,यश,मान,
प्रतिष्ठा, वाहन आदि सुख स्वयम ही
उसे प्राप्त होने लगते
हैं. .
·
भगवती महालक्ष्मी के इस सिद्धाश्रम स्वरुप का स्थापन जिनके यहाँ
होता हैं उनके घर में तीनो महाशक्तियों का पूर्ण आशीर्वाद बना रहता हैं.
मैंने
भाई से कहा की क्या इस साधना या प्रयोग का
कोई यन्त्र भी होता हैं
तो उन्होंने कहा की सदगुरुदेव
हमेशा कहते रहे हैं की यन्त्र, मंत्र और तंत्र यह सभी एक दुसरे पर
ही तो आधारित हैं ,पर भैया
इसके यन्त्र के लिए अनुमति नहीं मिली हैं और अभी
यह सिद्धाश्रम के महांयोगियों के मध्य ही
प्रचलित हैं बहुत ही कोई कृपा प्राप्त हो
उसको भी इस यन्त्र को प्राप्त करना एक प्रकार से
असंभव कार्य हैं .
क्योंकि जब तक सदगुरुदेव में
पूर्ण श्रद्धा न हो तो कैसे इस विधान
या इसके यन्त्र का दर्शन भी संभव होगा
क्योंकि सदगुरुदेव और सिद्धाश्रम भला अलग कहाँ .जहाँ सदगुरुदेव वही
तो सिद्धाश्रम हैं तो इतना उच्च
कोटि का विधान और यह परम दुर्लभ
यन्त्र संभव ही नहीं .बिना
परम योगियों की कृपा के यह
संभव नहीं हैं.और मुझे अभी सिर्फ यह विधान
करके स्थापन करने की अनुमति मिली हैं इसका यन्त्र
तो अभी भी गृहस्थों के सामने नहीं आया
हैं .वह अपन आप में एक पूर्णता हैं जीवन का
एक सौन्दर्य हैं सदगुरुदेव की परम
करूणा हैं क्योंकि सिद्धाश्रम में जिस प्रयोग
को सर्वोपरि प्रयोगों में से एक माना
जाता हो भला उसका यन्त्र का दर्शन
भी कैसे आसानी से संभव होगा ??
मित्रो , पूज्यपाद
सदगुरुदेव ने हम सभी एक सामने जो रास्ता साधना का प्रदर्शित किया हैं वह किसी भी
अर्थो में पलायनवादी या भाग्यवादी नहीं हैं वरन जीवन की समस्त कठिनाईयों को
अपने साधना बल से अपने
गुरु के बल से उखाड़ फेंक कर न केबल अपना बल्कि
अपने सदगुरुदेव के नाम
को गौरव युक्त करना हैं बल्कि उनकी आज्ञानुसार इस समाज
को एक श्रेष्ठ समाज में ही नहीं बल्कि सिद्धाश्रम को ही इस भौतिक धरा
पर साकार करना हैं.उन्होंने एक ऐसे
साधक की कल्पना की हैं जो जीवन के
समर में हर दृष्टी से परिपूर्ण
हो.जब साधक स्वयम परिपूर्ण होगा तभी तो वह कुछ समाज को दे पायेगा.
पर हम
बार बार शिष्य बनने की बात करते रहे
जबकि शिष्यता तो बहुत
दूर की चीज हैं अगर हम साधक भी बन
पाए तो यह जीवन का गौरव होगा .पर अभाव ग्रस्त साधक ? चिंता ग्रस्त
साधक? जीवन की कठिनाईयों से भागने
वाला साधक? क्या ऐसे
साधक की कल्पना की जाती हैं शायद नहीं ...... पर आज के इस अर्थ में मानो
यही वास्तविक कटु सत्य हैं .हम
बातें भले ही बड़ी बड़ी कर लें पर अन्दर हृदय में हम सभी जानते हैं की हम अभी
नहीं हैं, हम सभी किसी न किसी आशंका से
भयभीत हैं ही.
पर
क्यों जबकि सदगुरुदेव का वरद हस्त हमारे साथ हैं तब यह क्यों ? यह अवस्था तो किसी भी तरीके स्वीकार योग्य नहीं हैं.पर हमें किसी पर भी विस्वास नहीं हैं अगर हैं भी तो
पूरा विस्वास तो मात्र कहानियो की
चीज हो गया,जीवन में लग रही पल प्रतिपल की ठोकरें हमारा विस्वास
मानो हिलाते जाती हैं.
और यह
अवस्था हमने भले ही स्वीकार कर ली हो , अपन कर्मो का फल अपने जीवन के दोषों का
फल मान कर मन मसोस कर बैठ गए हो
पर यह हमारे वरिष्ठ सन्याशी भाई बहिनों को यह हम सब की न्यूनता स्वीकार नहीं क्योंकि सदगुरुदेव बारम्बार
कहते रहे हैं की अगर मैं इस ऐश्वर्य में
रहता हूँ तो मेरे
शिष्यों को भी उसी तरह ऐश्वर्य
में रहना चाहिए पर निर्लिप्तता के साथ.पर हम चाह कर भी तो वैसा
नहीं कर पाते.
हमारी
दिन प्रति दिन की विवशता को देख कर ही
हमारे वरिस्ठ भाई बहिनों ने आप सभी के
लिए एक से एक अद्भुत विधान सामने
रखे हैं पर कभी हमारी शरीरिक न्यूनता
तो कभी मानसिकता बल की कमी तो
कभी हमारी साधना के प्रति अरुचि फिर से
हमें वैसा का वैसा
रख देती हैं.हमारी न्यूनता हो सकती हैं पर एक बार सदगुरुदेव ने एक शिष्य
से कहा बता तेरी समस्या क्या हैं उन शिष्य ने कहा की सदगुरुदेव
एक समस्या होतो तो कहूँ ..तब सदगुरुदेव मुस्कुराते
हुए कह उठे की हमेशा
ध्यान रखना की अगर तेरी हज़ारों भी समस्याए हैं तो तेरा
गुरु उन सब को नष्ट करने में अनन्त
गुना शक्तिशाली हैं .
वैताल साधना के गूढ़ रहस्य बताते
हुए सदगुरुदेव अत्यंत
करूणा से भर उठे,और उन्होंने कहा की
एक भी मेरा शिष्य अगर भूखा भी सोता
हैं तो भला मुझे कैसे
नींद आ सकती हैं .
और
सदगुरुदेव ने हम सभी के सामने एक से एक दिव्यतम साधना विधि, दिव्यतम
यन्त्र उपहार में दिए , जिनकी कोई तुलना ही नहीं
फिर वह चाहे “अद्भुत स्वर्णावती लक्ष्मी साधना”
हो या “शत अष्टोत्तरी लक्ष्मी
महा यन्त्र” तो कभी “षोडशी कनक
धारा कनकधारा महा यन्त्र” हो इस
सिर्फ इस कार्य हेतु की ........उनके
शिष्यों का जीवन सर्व दृष्टी से
परिपूर्ण हो. और अनेको ऐसे विविध यंत्रो
से संयोग से निर्माणित यन्त्र
जिनका आज कहीं पर कोई पता
ही नहीं .और कहीं पर हैं भी तो मात्र
केबल आकृति ही.उनको सही अर्थो में प्राण प्रतिष्ठित कर देना ही
पर्याप्त नहीं हैं बल्कि अन्य सारी प्रक्रिया कही खो ही गयी हैं.
आज
साधक वर्ग साधना की बात तो एक तरफ
रख दें इन यंत्रो के दर्शन तक के लिए तरस
गया हैं .
बिना उचित यंत्रो के कैसे
संभव हो जीवन में साधनात्मक
उन्नति,कैसे संभव हो अपने साध्कत्व की रक्षा , कैसे संभव हो अपने
मान सम्मान और गौरव की रक्षा .
हमें
आपके सामने अभी हाल में “वास्तु कृत्या यन्त्र “ उपहार स्वरुप रखा, जिस पर निर्माण में सम्पूर्ण प्रक्रिया में ही व्यव
आ जाता हैं कि सामान्य क्या
उच्च स्तरीय व्यक्तित्व भी सोच में
पड़ जाए
और आप में से जिन्होंने भी इस यंत्र का स्थापन अपने घर पर किया
वह अभिभूत हो गए और यह तो जीवन भर की बात हैं अभी इस
यन्त्र का क्रमश: और भी अनुकूलता देखेंगे और अनुभव करते जायेंगे
अगर वह सारी प्रक्रिया उन्होंने
पुरे निर्देश अनुसार की हैं और वह श्रद्धा युक्त भी रहे हैं .
मानव
जीवन में उत्त्थान हैं तो पतन भी हैं,सुख हैं तो दुःख भी हैं , और
इसी के मध्य इन द्वेत भाव के मध्य ही जीवन
मानो घिसट घिसट कर समाप्त हो जाता
हैं और मन में यही इच्छा की काश
अगर ऐसा होता तो ..
पर
कभी सोचा हैं की ऐसा सिद्धाश्रम में क्यों नहीं हैं .
क्योंकि
सिद्धाश्रम ही पूर्णता का
दूसरा नाम हैं ,जीवन की सर्वोच्चतम
उचाई पाना और अपने जीवन को सदगुरुदेव
जी के श्री चरणों में पूर्णता से विलीन कर
सब कुछ पा जाना ही सिद्धाश्रम पाना हैं . जहाँ कोई न्यूनता नहीं, जहाँ कोई कमी
नहीं, जहाँ कोई विषाद नहीं,
जहाँ कोई कालिमा नहीं, जहाँ
जीवन की विसंगतियां नहीं, जहाँ मृत्यु
नहीं जहाँ किसी तरह का छल झूठ
कपट नहीं .उस भूमि को सिद्धाश्रम कहते हैं .
और
मित्रो,आरिफ भाई जी की बार बार
अनुरोध पर हमारे अग्रज सन्यासी गुरु भाई
बहिनो ने इस महायन्त्र को पहली बार गृहस्थ
व्यक्तियों के लिए निर्माण करने की
अनुमति दे दी हैं .यह अपने आप में
परम सौभाग्य का प्रतीक हैं, इस महायंत्र का निर्माण बेहद व्ययशील हैं, एक तरह जहाँ एक एक मातृका स्थापन, तांत्रोक्त
रूप से नव ग्रह स्थापन, भगवती लक्ष्मी के सिद्धाश्रम स्वरुप का स्थापन, वह भी सम्पूर्ण
वरदायक स्वरुप में, वह भी सारे परिवार के
एक एक सदस्य के लिए, वह भी सभी के लिए भाग्य उन्नति और समस्त प्रकार की उन्नति के द्वार
खोलने में समर्थ, और इन सबके साथ सदगुरुदेव और परम
गुरुदेव के आहूत मंत्रो
से सिद्ध,प्राण सिंचितिकरण क्रिया ,प्राण प्रतिस्ठा विधान युक्त,यह यन्त्र अपने आप में
परम दुर्लभ हैं और निर्माण के
इन सारी प्रक्रिया के बाद,बिभिन्न प्रकार की जड़ी
बूटियों के माध्यम से यज्ञ हवन आदि प्रक्रिया
से सिद्धिता युक्त हो पाता हैं और व्यव की तो कोई सीमा नही हैं .पर अब यह यन्त्र हमारे
अग्रज भाई बहिनों के निर्देशन में
तैयार होने जा रहे हैं , और यह
यन्त्र जिसे
“सिद्धाश्रम देव लक्ष्मी महा यन्त्र”
कहा
जाता हैं इसको पाना ...तो जीवन का
सर्वोच्च सौभाग्य ही हैं .
यह यन्त्र आप सभी को निशुल्क हैं,आपको उपहार स्वरुप हैं .
पर यह यन्त्र सिर्फ उन्ही को दिया जायेगा
जिनकी इ मेल ३०मई के पहले
nikhilalchemy2@yahoo.com पर इस विषय के
साथ आएँगी .क्योंकि लगातार १४ दिन की कठिन श्रम साध्य
प्रक्रिया के बाद ही इसका
निर्माण हो पाता हैं .
यह हम सभी का
सौभाग्य हैं की यह अत्यंत दुर्लभ यन्त्र अब सुलभ होने जा रहा हैं,और इस यंत्र अक
वितरण जुलाई महीने में होगा जिससे गुरु पूर्णिमा रूपी महापर्व पर इस अद्विय्तीय
साधना का एक दिवसीय विधान किया जा सके .पर इसके लिए आपकी
इ मेल ३० मई के पहले पहले तक
आ जाना अनिवार्य होगा, उसके बाद अनुरोध करने पर भी यह यन्त्र
नहीं भेजा जायेगा क्योंकि इतन श्रम और व्यय वहन
कारण बार बार संभव नहीं हो सकता हैं,
हमारे
वरिस्थ सन्यासी भाई बहिनों की यह आशा हैं हम सभी से...........
की सदगुरुदेव के स्वप्न को पूर्णतयाः के साथ
साकार किया जाए और सभी भाई बहिन सर्व दृष्टी से सुखी संपन्न,
चिंता मुक्त होते हुए साधना
रत हो.पर
जब तक भगवती आदि शक्ति महालक्ष्मी की पूर्ण कृपा
न होगी यह संभव नहीं हैं इसको संभव
बनाने के लिए ही यह यन्त्र आप सभी के
सामने आ रहा हैं .
आगे आपको निर्णय लेना हैं की
लोकातिता द्वेतातिता समस्त भुत्वेष्टिता |
विद्वजन कीर्तिता च
प्रसन्न भव सुंदरी ||
हे भगवती
आप लोकों से परे हो, आप ही द्वेत
से परे और आप तुम ही समस्त भुत
गणों से घिरी हुयी रहती
हो, विद्वान् लोग सदा
तुम्हारा गुण कीर्तन करते
रहते हैं हे सुंदरी
तुम मुझ पर प्रसन्न हो .
महेशे त्वं हैमवती कमला केशवेपि च |
ब्रह्मं: प्रेयसी त्वं ही
प्रसन्ना भव सुंदरी ||
हे
भगवती आप ही शुलपानी महादेव की प्रियतमा हैमवती,तुम्ही केशव की
प्रियतमा कमला , और ब्रह्मा
की प्रेयसी ब्रम्हाणी हो
तुम हम पर प्रसन्न हो .
आप
सभी समय रहते इस महा
यन्त्र को पाकर अपने घर पर
स्थापित करके जीवन को सर्व
विध सुरक्षित और आनंदमय बनाए यही यहाँ
NPRU परिवार की
इच्छा हैं.
****NPRU****
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