One of the
mast important bases for predicting the nature of life spent by person is his
personality. From our birth till our death, basis of all our activities is our
personality. Although word personality is small but its meaning is very vast
and it influences each and every aspect of our life. Emotional and behavioral
procedures inside us constitute our personality. Undoubtedly, person having
great personality can attain more and more success in life. On the other hand,
negative personality i.e. person having inferiority complex can’t taste that
much success in life.
If we pay
attention, we can say that our mental thoughts and reaction to our thoughts
decides the success or failure of all our works. Definitely, positive and
negative thoughts of our mind influence our body and work done by our body with
definite energy. More negative energy accumulates inside us, more negatively it
will affect our personality. During stress/ depression we are not able to carry
out work proficiently. Similarly, due to lack of self-confidence we can’t do
certain type of works.
Sadhna
process presented here is related to personality-development whereby with the
help of sadhna we can get rid of negative energy and fill positive energy
inside us. Moreover this sadhna is useful for all the sadhaks since it provides
both materialistic and spiritual benefits.
Inferiority
complex inside sadhak is eradicated. As a result, he gets new outlook towards
life and he is filled with enthusiasm to live life completely.
There is
increase in confidence of sadhak. As a result, he always keeps on getting
internal motivation to progress continuously.
Some sadhaks
feel shy. As a result, their personality does not come in front of public. This
sadhna provides riddance from this problem slowly and gradually.
In this
manner, it is completely beneficial procedure for all of us. Though it is one
day process but sadhak can do this process for as many days depending upon his
capability and condition.
Sadhak can
start this sadhna on any auspicious day. It can be done anytime in morning or
night.
Sadhak should
take bath, wear white dress and sit on white aasan facing east direction.
First of all,
sadhak should perform Guru Poojan and pray to Sadgurudev for success in sadhna.
Sadhak should
make above yantra on a Bhoj Patra or white paper with Tri-Gandh (Kesar,
Vermillion and Camphor). Sadhak can use any pencil. Pencil of pomegranate is
best.
Sadhak should
establish the yantra in front of him and offer rice, flowers etc. Sadhak should
light oil-lamp during Poojan.
Thereafter,
sadhak should perform Ganesh Poojan and do Nyas.
KAR
NYAS
AING
KLEEM SHREEM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
AING
KLEEM SHREEM TARJANIBHYAAM NAMAH
AING
KLEEM SHREEM MADHYMABHYAAM NAMAH
AING
KLEEM SHREEM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
AING
KLEEM SHREEM KANISHTKABHYAAM NAMAH
AING
KLEEM SHREEM KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH
HRIDYAADI
NYAS
AING
KLEEM SHREEM HRIDYAAY NAMAH
AING
KLEEM SHREEM SHIRSE SWAHA
AING
KLEEM SHREEM SHIKHAYAI VASHAT
AING
KLEEM SHREEM KAVACHHAAY HUM
AING
KLEEM SHREEM NAITRTRYAAY VAUSHAT
AING
KLEEM SHREEM ASTRAAY PHAT
After Nyas, sadhak should chant 21 rounds of the below mantra.
OM AING AINGKLEEM KLEEM SHREEM SHREEM NAMAH
Sadhak should use crystal rosary for chanting. If
sadhak does not have crystal rosary, he can use Rudraksh rosary or can chant
using fingers. In this manner, this one-day procedure is completed. Sadhak
should establish made yantra in worship-place. Rosary should not be immersed.
It can be used for chanting in future sadhnas.
---------------------------------------------------------कोई भी व्यक्ति के जीवन किस प्रकार से आगे बीतेगा उसका एक अति महत्वपूर्ण आधार उसका व्यक्तित्व है. हमारे जन्म से ले कर हमारी मृत्यु तक हमारे सारे क्रिया कलापों का एक बड़ा आधार हमारा ही व्यक्तित्व होता है, वस्तुतः व्यक्तित्व शब्द भले ही छोटा हो लेकिन इसका वृहद वृत्तांत हो सकता है जो की हर एक व्यक्ति के जीवन में महद रूप से सभी कार्यमें असरकरता है. हमारे अंदर की भावनात्मक एवं व्यवहारात्मक प्रक्रिया को ही हमारा व्यक्तित्व कहते है. निःसंदेह एक उच्चतम व्यक्तित्व का धनि व्यक्ति जीवन में ज्यादा से ज्यादा सफलता की प्राप्ति कर सकता है, वहीँ दूसरी तरफ नकारात्मक व्यक्तित्व अर्थात अपने मानस में हिन् भावनाओं को ले कर चलने वाले व्यक्तित्व पूर्ण व्यक्ति अपने जीवन में सफलता का उतना स्वाद नहीं ले पाते है.
देखा जाए तो हमारे मानस के विचार एवं विचार पर होने वाली प्रतिक्रिया ही
हमारे सारे कार्यों की सफलता या असफलता का निर्धारण करती है क्यों की कहीं न कहीं
सकारात्मक एवं नकारात्मक विचारों का असर हमारे मस्तिस्क से हमारे शरीर एवं शरीर से
हमारे कार्यों के ऊपर एक निश्चित ऊर्जा का आघात तो करता ही है. हमारे अंदर जितनी
ही ज्यादा नकारात्मक उर्जा का संग्रह होगा उतना ही हमारे व्यक्तित्व के ऊपर उसका
नकारात्मक प्रभाव होगा. हम तनाव में रहें या अवसाद से घिरे रहें तो निश्चय ही
हमारे कार्य योग्य रूप से नहीं होते, वहीँ कई बार आत्मविश्वास की कमी के कारण भी
कई प्रकार के कार्य हम कर नहीं पाते है.
प्रस्तुत साधना प्रयोग व्यक्तित्व के विकास के सन्दर्भ में है जहां पर
साधना के माध्यम से नकारात्मक उर्जा को दूर कर हमारे अंदर स्पष्ट एवं पूर्ण उर्जा
को भरा जा सके. यह साधना यूँ तो सभी साधको के लिए उपयोगी ही है क्यों की इस साधना
से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते है जो की न सिर्फ भौतिक परन्तु अध्यात्मिक जीवन
के लिए भी आवश्यक है.
साधक के अंदर ही हिन् भावना का शमन होता है फल स्वरुप उसे जीवन सबंधित नयी
द्रष्टि की प्राप्ति होती है तथा जीवन को पूर्ण रूप से जीने की एक उमंग व्याप्त
होती है.
साधक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है फल स्वरुप उसे हमेशा प्रगतिमय रहने
के लिए आतंरिक प्रेरणा मिलती रहती है.
कई साधक भाई बहेनो को संकोच की समस्या होती है, इसी कारण उनका व्यक्तित्व
उभर कर सब के मध्य नहीं आ पता है इस साधना से साधक के अंदर के संकोच आदि से धीरे
धीरे मुक्ति मिलती है.
इस प्रकार यह प्रयोग सभी के लिए एक पूर्ण लाभदायक प्रयोग है. यूँ तो यह एक
दिवसीय प्रयोग है लेकिन साधक इसको अपने सामर्थ्य अनुसार एवं अपनी स्थिति के अनुसार
जितने दिन करना चाहे कर सकता है.
यह साधना साधक किसी भी शुभ दिन शुरू कर सकता है. साधक यह विधान दिन या
रात्रि के किसी भी समय में कर सकता है.
साधक को स्नान कर सफ़ेद वस्त्र को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठना चाहिए. साधक का मुख पूर्व दिशा की और हो.
सर्व प्रथम साधक गुरु पूजन सम्प्पन करे तथा सदगुरु से साधना में सफलता के
लिए आशीर्वाद प्राप्त करे.
साधक सर्व प्रथम एक भोजपत्र पे या सफ़ेद कागज़ पे त्रिगंध से (केसर, कुमकुम,
कपूर) उपरोक्त यंत्र का निर्माण करे. साधक किसी भी कलम का प्रयोग कर सकता है. अनार
की कलम श्रेष्ठ है.
इस यंत्र को साधक अपने सामने स्थापित करे तथा अक्षत, पुष्प आदि समर्पित
करे. पूजन में साधक को तेल का दीपक प्रज्वालित्त करना चाहिए.
इसके बाद साधक गणेश पूजन आदि सम्प्पन कर न्यास करे.
करन्यास
ऐं क्लीं श्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ऐं क्लीं श्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ऐं क्लीं श्रीं मध्यमाभ्यां नमः
ऐं क्लीं श्रीं अनामिकाभ्यां नमः
ऐं क्लीं श्रीं कनिष्टकाभ्यां नमः
ऐं क्लीं श्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
ऐं क्लीं श्रीं हृदयाय नमः
ऐं क्लीं श्रीं शिरसे स्वाहा
ऐं क्लीं श्रीं शिखायै वषट्
ऐं क्लीं श्रीं कवचाय हूं
ऐं क्लीं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्
ऐं क्लीं श्रीं अस्त्राय फट्
न्यास के बाद साधक निम्न मन्त्र का जाप करे. साधक को २१ माला मन्त्र का जाप
करना है.
ॐ ऐं ऐं
क्लीं क्लीं श्रीं श्रीं नमः
(OM AING AING KLEEM
KLEEM SHREEM SHREEM NAMAH)
साधक को यह जाप
स्फटिक माला से करना चाहिए. अगर साधक के पास स्फटिक माला उपलब्ध न हो तो साधक
रुद्राक्ष माला से या कर माला से यह मन्त्र जाप करे.
इस प्रकार यह एक
दिवसीय प्रयोग पूर्ण होता है. साधक ने जिस यंत्र का निर्माण किया है उसे पूजा
स्थान में स्थापित कर दे. माला का विसर्जन नहीं करना है, यह माला आगे भी साधनाओ
में मन्त्र जाप के लिए उपयोग की जा सकती है.
****NPRU****
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