Tuesday, February 4, 2014

पंचांगुली साधना







          त्वं ब्रह्म रूपम विष्णुस्वरूपं आत्मस्वरूपं देह स्वरूपं

          त्वमेव वरेण्यम त्वमेव सदाऽहम गुरुदेव नित्यम...... 


गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.


          भाइयो बहनों आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ही साधना की सफलता हेतु भी शुभकामनाएं------ 


ये साधना सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त है, कई लोगों ने किया, और इसके आश्चर्यजनक परिणाम भी प्राप्त किया, और मेरा भी स्वयं का अनुभूत है, भाइयो बहनों इसमें एक शंका लोगों को रहती है और वो है की यंत्र, तो इसका सलुशन भी है किन्तु आज ‘शुक्ल पक्ष की पंचमी, नवरात्री की पंचमी’ अतः इसका लाभ तो उठाना ही चाहिए, क्योंकि इस साधना का आगाज आज किया तो निश्चित ही आगे आने वाले समय में एक बार में ही परिणाम भी प्रत्यक्ष होंगे. 


              आज की जाने वाली साधना में कोई सामग्री या विशेस विधान की आवश्यकता नहीं है मात्र पीले वस्त्र, पीला आसन उत्तर दिशा और आदि शक्ति का चित्र, और गुरु चित्र तो अनिवार्य है ही....... 


रात १० बजे स्नान करे और उत्तर दिशा की ओर मुह करके बैठ जाएँ, गुरु पूजन गणेश और भैरव पूजन करने के बाद संकल्प लें और पंचान्गुली ध्यान कर, निम्न मन्त्र का ५१ बार जप कर लें....


साधना विधान;                                  

   सर्व प्रथम, गुरु मन्त्र जो भी आपका हो या ‘ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः’ की चार माला करें |

   ‘ह्रीं’( HREEM) बीज का ७ बार जप करे | इससे मन्त्र प्राणमय हो जायेगा | 


 इसके बाद एंग(AING) बीज का सात बार जप करें----- 


ध्यान मन्त्र---

          पंचांगुली   महादेवी   श्री सीमंधर   शासने,

          अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्ति: श्री त्रिदशेषितु: |

मन्त्र:_


‘ॐ नमो पंचांगुली -पंचांगुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भुतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेखिनी मध्ये गुणीमध्ये गारूणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे  बुरो जो कोई करे करावे जड़े जडावे तत चिन्ते चिंतावे तस माथे श्री पंचांगुली देवी तणों वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा’ | 


‘OM NAMO  PANCHAANGULI –PANCHAAGULI PARSHARI PARSHARI MATA MAYNGAL VASHIKARNI LOHMAY DANDMARNI CHAUSHATHA  KAAM VIHDANI RANMADHYE RAULMADHYE SHATRUMADHYE DEEVANMADHYE BHUTMADHYE PRETMADHYE PISHACHMADHYE JHOTINGMADHYE DAKINIMADHYE SHANKHINIMADHYE YAKSHINIMADHYE  SHEKANIMADHYE GUNI MADHYE GARUNI MADHYE VINARIMADHYE DOSHMADHYE  DOSHAASHARAN MADHYE DUSHT MADHYE GHOR KASHT MUJH UPARE BURO JO KOI KARE KARAVE JADE JADAVE TAT CHINTE CHINTAVE TAS MATHE SHREE MATA SHREE PANCHAANGULI DEVI TANO VAJRA NIRDHAR PADE OM THAM-THAM THAM SWAHA’|


मन्त्र पूर्ण होने के बाद मन्त्र गुरुदेव को समर्पित करें पांच दिनों तक प्रतिदिन यही क्रम होगा पांच दिनों के बाद, माँ पंचान्गुली देवी का पूर्ण पूजन कर खीर का भोग लगा कर किसी कन्या को भोजन करा देना चाहिए और सफलता की कामना करना चाहिए |

मन्त्र आपके सामने है और अभी समय भी है जो इसे करना चाहें तो १०, बजे,११ बजे, ११: ३०बजे भी आप बैठ सकते हैं, किन्तु करके देखें जरुर, क्योंकि साधना का प्रतिफल तो करने पर ही देख पाएंगे न, अतः साधना करें जरुर. 


  भाइयो बहनों, जो भी यंत्र के साथ ही साधना करना चाहें तो भी परेशान न हों यंत्र भी आपको मिल जायेगा किन्तु इसके लिए फिर आपको अगले माह की पंचमी का इन्तजार करना पड़ेगा और इसके साथ ही तब यंत्र और चित्र की भी व्यवस्था कर लीजिए, किन्तु तब तक आप इस मन्त्र को प्रतिदिन करके न केवल याद कर लीजिए और अपने प्राणों में समाहित भी, क्योंकि जब मन्त्र की क्रमशः पुनरावृत्ति होती है तो मन्त्र और साधक दोनों ही एक होने की क्रिया प्रारम्भा हो जाती है और मन्त्र प्राणमय होने लगता है और तब सिद्धि की स्तिथि बनने लगती है, तो आप सब तैयार हो जाइये, साधना के महासागर से एक और मोती चुनने हेतु-----


आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......


नमो निखिलम् 

निखिल प्रणाम।।
जय सद्गुरुदेव।।
 
‘रजनी निखिल’   



****NPRU****
                                                       


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