शिवरात्रि
की अनुभूत साधना एवं पारद शिवलिंग पूजन
देवो गुणत्रयातीतश्चतुर्व्यहो महेश्वरो:,
सकल: सकालाधारशक्तेरूत्पत्तिकरणं
|
सोऽयमात्मा
त्रयस्यास्य प्रक्रते: पुरुषस्य च,
लीलाकृतेजगत्स्रष्टिरीश्वरत्वे व्यवस्तिथ: ||
चतुर्व्यूह के रूप में प्रकट देवाधिदेव महेश्वर तीनों गुणों से अतीत हैं वे
आधारभूत शक्ति के उत्पत्ति के कारण भी हैं, वे ही पुरुष और प्रक्रति दोनों की
आत्मा स्वरूप हैं लीला से खेल ही खेल में वे अनत ब्रह्मांडों की रचना करते देते
हैं, जगन्नियन्ता ईस्वर रूप में वे ही स्तिथ हैं ऐंसे गुणातीत महेश्वर को
नमन.......
जय सदगुरुदेव,
भाइयो बहनों स्रष्टि के प्रारम्भ
से केवल मात्र एक ही देव रूद्र ही विद्दमान हैं दूसरा और कोई नहीं वे ही इस जगत की
उत्पत्ति करते हैं और इसकी रक्षा भी और अंत में स्वयं इसका संहार भी कर देते हैं.
स्रष्टि, सभ्यता
और संस्कृति के विकास क्रम में ही शिव का महत्व स्थापित हुआ है | उपनिषदों के
चिंतन में ‘एकोरुद्र: न द्वितीयायस्तुथ: कह कर ब्रह्म जैसी अद्वेत सत्ता के रूप
ऋषियों ने उन्हें मान्यता दी है | वेदों में शिव का रूप विज्ञानमय है, पुराणों में
उपासना का रूप और साहित्यिक ग्रंथों में उन्हें ज्ञान का पर्याय के रूप में
स्थापित किया जाता है वेदों में वर्णित निराकार,निर्विकार, चिन्मय स्वरुप, शिव,
शम्भू, ईश, पशुपति, रूद्र, शूली, महेश्वर, ईश्वर, सर्व ईशान, शंकर, चंद्रशेखर,
महादेव, भूतेश, पिनाकी, खंड-परशु, गिरीश, मृडः, मृत्युन्जय, क्रतिवास, प्रमथाधिप,
धुर्जटि,कपर्दी, आदि.... अनेकानेक नाम वर्णित हैं.....
इस धरती पर
रूद्र के एकादश पार्थिव रूपों की पूजा की जाती है उपनिषद के ऋषियों के एकादश रूद्र
पूजा का जो रहस्य व्यक्त किया गया है वह प्राणी जगत में व्याप्त आत्मा या जीव के
रहस्य से सम्बंधित है .
चन्दनागुरुकर्पुर कुंकुमान्तर्गतोरसः
मूर्छितः शिवपूजा सा शिवसानिध्यसिद्धये ||
उपरोक्त पंक्तियाँ रस साधको के मध्य प्रचलित
पंक्तियाँ है जो की रस एवं दुर्लभ रस लिंग अर्थात पारद शिवलिंग की महत्ता को स्पष्ट
करता है. निश्चय ही रस एक अति दिव्य धातु है पदार्थ है जिसको हम तांत्रिक पद्धति
से साध ले तो हम ज़रा मृत्यु के बंधन से मुक्त हो सकते है, रस
सिद्ध श्री नागार्जुन ने तो यहाँ तक कहा है की इस दिव्य धातु के माध्यम से पुरे
विश्व की दरिद्रता एवं सभी प्रकार के कष्ट के साथ साथ मृत्यु को भी मिटाया जा सकता
है
उपरोक्त श्लोक का विश्लेषण कुछ इस प्रकार है
की रस चन्दन, कुमकुम इत्यादि पदार्थो से की
जाने वाली पूजा का फल पारद के स्पर्शमात्र से ही साधक को शिवलिंग का पूर्ण पूजन का
फल प्राप्त हो सकता है, मूर्छित
अर्थात अचंचल पारद अर्थात शिवलिंग की पूजा करने वाले सौभाग्यशाली साधक भगवान
सदाशिवसे एकाकार होने की उनके सानिध्य को प्राप्त करने की सिद्धि भी प्राप्त कर
सकता है.
जो भी व्यक्ति पारद एवं रस तंत्र के क्षेत्र
में रूचि एवं जानकारी रखता है वे निश्चय ही पूर्ण चैतन्य विशुद्ध पारद शिवलिंग के
महत्त्व के बारे में समझ सकते है. इसी लिंग के लिए तो ग्रंथो में कहा है की पारद
से निर्मित शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही ज्योतिर्लिंग एवं कोटि कोटि लिंग के
दर्शन लाभ के जितना पुण्य प्राप्त होता है. यह विशेष लिंग अपने आप में अनंत गुण
भाव से युक्त धातु से निर्मित होता है इसी लिए उसमे किसी भी व्यक्ति को प्रदान
करने की क्षमता अनंत गुना होती है. और तंत्र के सभी मार्ग में चाहे वह लिंगायत हो, सिद्ध
हो, क्रम हो या कश्मीरी शैव मार्ग हो
या फिर अघोर जैसा श्रेष्ठतम साधना मार्ग हो, सभी
साधना मत्त में पारदशिवलिंग की एक विशेष महत्ता है तथा निश्चय ही कई प्रकार के
विशेष प्रयोग गुप्त रूप से सभी मत्त एवं मार्ग में होती आई है. इसी क्रम में सदगुरुदेव ने कई विशेष प्रयोगों
को साधको के मध्य रखा था जिसमे पारदशिवलिंग के माध्यम से पूर्व जीवन दर्शन, शून्य
आसन एवं वायुगमन आदि प्रयोग के बारे में समझाया एवं प्रायोगिक रूप से संपन्न भी
करवाए थे. निश्चय ही अगर पूर्ण चैतन्य विशुद्द पारद शिवलिंग अगर व्यक्ति के पास हो
तो साधक निश्चय ही कई प्रकार से अपने भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को उर्ध्वगामी कर
पूर्ण सुख एवं आनंद की प्राप्ति कर सकता है
रसलिंग के माध्यम से संपन्न होने वाले कई
विशेष एवं दुर्लभ प्रयोग को हमने समय समय पर आप सब के मध्य प्रस्तुत किया है इसी
क्रम में इस महा शिव रात्रि पर एक और प्रयोग.....
इस साधना में उपयोग होने वाली प्रमुख
सामग्री..... शिवलिंग,
श्री यंत्र, और पारद देवरंजनी गुटिका. साथ ही गंगाजल, चन्दन,बिल्वपत्र, अक्षत,
मौली, धतूरे का फल, भस्म, और सदगुरुदेव का चित्र . जो कि अति आवश्यक है | सफ़ेद
आसन, सफ़ेद धोती, यदि स्त्री है तो पीला आसन और साड़ी .
भाइयो बहनों अधिकांश भाइयो बहनों के पास ये तीनो विग्रह
होने चाहिए, क्योंकि इन सबका वर्णन कई दिनों से निखिल एल्केमी ग्रुप पर आता भी रहा
है और कई लोगों ने लिया भी है
ये पूजन प्रातः और रात्रि दोनों का है सिर्फ विधान अलग हैं
कृपया ध्यान से पढ़ें और संपन्न करें....
. पूजा विधि—शिव रात्रि की प्रातः ६ से सात बजे तक स्नान
आदि से निवृत्त होकर ईशान कोण की श्वेत (सफ़ेद) आसन पर बैठ कर लकड़ी के बजोट पर सफ़ेद
वस्त्र बिछाकर शिवलिंग स्थापित करें, अब प्रारंभिक पूजन संपन्न कर गुरुदेव को और
शिवलिंग को भस्म और धतूरे का फल अर्पण करें तथा गुरुदेव का आशुतोष स्वरूप का
चिन्तन करें---
आशुतोषम ज्ञानमयं
कैवल्यफल दायकं,
निरान्तकम निर्विकल्पं निर्विशेषम निरंजनम् ||
सर्वेषाम
हित्कारतारम देव देवं निरामयम,
अर्धचंद्रोज्जद् भालम पञ्चवक्त्रं
सुभुषितम ||
अब इसके बाद यदि गणपति विग्रह है तो उन्हें स्थापित कर उनका
पूजन करें या गोल सुपारी को मौली लपेट कर चावलों की ढेरी पर स्थापित कर भगवन गणपति
का ध्यान करें तथा सिंदूर चढ़ाकर धूम्र संकट मन्त्र करें—
मन्त्र-
“गां गीं गुं गें गौं गां गणपतये वर वरद सर्वजन में वशमानय बलिम ग्रहण स्वाहा |”
“gaam
geem gum gaum gaam ganpataye var varad sarvjan me vashamanay balim grahan
swaha.”
कार्तिकेय पूजन—अपने दाई और एक सुपारी स्थापित कर कार्तिकेय
का ध्यान कर निम्न मन्त्र से एक पुष्प अर्पित करें, तथा खीर का भोग लगायें.....
मन्त्र-- “ॐ गौं गौं कार्तिकेय नमः”
“Om gaum gaum kartikey namah”
भैरव पूजन—अब अपने बांई और चावलों की ढेरी पर एक गोल सुपारी
स्थापित का सिंदूर का टिका और गुड का भोग लगा कर
भैरव लोचन मन्त्र द्वारा भोग लगाये---
“बलिदानेन संतुष्टो बटुकः सर्व
सिद्ध्दा:
शांति करोतु में नित्यं भुत वेताल सेविते:”
“Balidanene santushto batukah sarv siddhihah
Shanti
karotu me nityam
bhut vetal sevitah”.
वीरभद्र पूजन—भगवन
शिव के प्रमुख गण वीरभद्र की स्थापना हेतु भैरव के साथ एक गोल सुपारी चावलों की
ढेरी पर स्थापित कर काले टिल व् पुष्प से निम्न मन्त्र द्वारा करें....
मन्त्र-
एह्येहि पुत्र रौद्रनाथ कपिल जटा भार भासुर त्रिनेत्र,
ज्वालामुखी सर्व विघ्नान नाशय-नाशय सर्वोपचार,
सहितं
बलिम ग्रहण-ग्रहण स्वाहा ||
Mantr
----
“Ehyehi putra raudranath kapil jata
bhar bhaasur trinetra
Jwalamukhi sarva vighnaan naashay-naashay
sarvopchar
Sahitam balim grahan-grahan swaha” .
क्षेत्रपाल पूजन—
अब जिस
लकड़ी के बाजोट पर विग्रह स्थापित किया है उससे अलग हट कर नीचे दाहिनी और एक सुपारी
लाल कपडे पर स्थापित कर लाल पुष्प से ही क्षेत्रपाल पूजन करें एक फल और धुप दीप
निम्न मन्त्र द्वारा करें----
मन्त्र—
“क्षां क्षीं क्षुं क्षें क्ष: हुं स्थान
क्षेत्रपाल धुप दीपं सहितं
बलिम ग्रहण-ग्रहण सर्वान कामान पूरय-पूरय
स्वाहा” ||
Mantra
“Kshaam ksheem kshum kshem kshamah
hum sthan kshetra dhupam deepam sahitam
, balim grahan-grahan sarvaan sarvaan
kaamaan prray-pooray swaha .”
योगिनी
पूजन---
भाइयो बहनों महा शिवरात्रि तो योगनियों का उत्सव होता है अतः जो साधक
पूर्ण समर्पण भाव से योगिनी पूजन संपन्न करता है उसका शिवशक्ति पूजन तो उसी समय
संपन्न हो जाता है और साधना में सफलता के चांश बढ़ जाते हैं. अतः एक गौमती चक्र
चावलों की ढेरी पर स्थापित कर सिंदूर और लाल पुष्प से पूजन करें निम्न मन्त्र
द्वारा-----
मन्त्र—
“या काचिद योगिनी रौद्र सौम्या धरतरापरा,
खेचरी भूचरी व्योमचरी प्रतास्तु में
सदा” ||
Mantra-
“Yaa kaachid yogini raudra saumya dharataparaa,
Khechari bhuchari vyomchari pratastu me sadaa”.
कुबेर पूजन-
भाइयो बहनों
भोलेनाथ को कुबेरपति भी कहा गया है अतः शिव रात्रि में कुबेर पूजन का भी महत्व है
और कुबेर्पूजन का सिद्धिदायक मुहूर्त भी अतः शिवलिंग के दांयी तरफ पारद श्री यंत्र की स्थापना करे और चन्दन, लाल पुष्प और
सुगन्धित धुप दीप से श्रीयंत्र का पूजन करे और एक माला, जो कि रुद्राक्ष, या सफ़ेद
हकिक की हो सकती है, से एक माला निम्न मन्त्र
की करें....
मन्त्र—
“ॐ क्षौं
कुबेराय नमः”
Mantra
–
“Om kshaum kuberay namah .”
इसके बाद पुनः शिव पारवती का सक्षिप्त पूजन कर रुद्राक्ष की
माला से तीन माला मंत्र जप करें-----
मंत्र---
“ॐ शं शिवाय नं नमः”.
Manatra—
“ Om sham shivay nam namah.”
भाइयो बहनों ये तो
हुआ सुबह का पूजन और इसी क्रम को दुसरे दिन भी करना है.
अब रात्रि काल की साधना----
अब रात्रि में १० बजे पीले वस्त्र और पीले ही आसन पर साधना
करनी है भगवान् पारदेश्वर को जल से स्नान करवा कर चन्दन चावल और पुष्प से पूजन
करें और खीर का भोग लगायें.... तथा पुष्प और चावल से निम्न मन्त्रों द्वारा पूजन
करें---
ॐ भवाय नमः, ॐ जगत्पित्रे नमः,ॐ
रुद्राय नमः, ॐ कालान्तकाय नमः, ॐ नागेन्द्रहाराय नमः, ॐ कालकंठाय नमः, ॐ
त्रिलोचनाय नमः, ॐ पार्देश्वराय नमः |
अब किसी पात्र में पांच बिल्व पत्रपर कुमकुम और चावल रख कर
निम्न मन्त्र से बिल्वपत्र चढ़ाएं....
“त्रिदलं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रं च
त्रिधायुधं,
त्रिजन्म पाप संहारम बिल्वपत्रं शिवार्पणं” |
फिर किसी पात्र में गाय का कच्चा दूध और जल मिलाकर निम्न
मन्त्र से लगभग ३० मि. तक जल धारा प्रवाहित कर अभिषेक करें.....
मन्त्र—
“ॐ शं शम्भवाय पारदेश्वरय सशक्तिकाय नमः”
Namah—
“om sham shambhavaay
paardeshwaraay sashaktikaay
namah.”
भाइयो बहनों ये
अति महत्वपूर्ण साधना है इसे हलके में लेना गुरुदेव के प्रति अश्रद्धा होगी अतः
ध्यान रखें और पूर्ण भक्ति व् श्रद्धा भाव से पूजन संपन्न करेंगे तो निश्चय ही
भगवन पारदेश्वर की अमोघ शक्ति व उनके दिव्य स्वरुप का लाभ मिलेगा ही……
इस साधना के बाद पारद शिवलिंग का घर में स्थापन अति सौभाग्य
की बात है........
तो लग जाइए साधन और साधना की तैयारी में----- क्योंकि यही
सदगुरुदेव भी यही चाहते थे कि लोग साधना में रूचि लें और साधक बनें.....
ऐसी ही
शुभकामनाओं के साथ......
जय सदगुरुदेव
रजनी निखिल
***NPRU***
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