त्वरिता शक्ति साधना
या श्री: स्वयम स्वकृतिनां
भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां
हृद्येशु बुद्धि: |
श्रृद्धा शतां कुलजन
प्रभवस्य लज्जा,
ता त्वां नतास्म परिपालय
देवि विश्वं ||
जो महा शक्ति पुण्यात्माओं के गृह में लक्ष्मी
स्वरुप में, पापियों के घर में दरिद्रता रूप में, सत्पुरुषों में श्रृद्धा रूप
में, शुद्ध:अंतःकरण वाले ह्रदय में बुद्धि रूप में तथा कुलीन मनुष्य में लज्जा रूप
में निवास करती है . हे देवि ! आप समस्त विश्व का कल्याण करें, पोषण करें |
माँ
आदि शक्ति के अनेक स्वरुप हैं, जिनके माध्यम से भक्तों का कल्याण करते हुए इस
चराचर जगत में सदैव विचरण करती रहती है, माँ आद्धा शक्ति मनुष्य ही नहीं अपितु शिव
की की भी शक्ति हैं शिव भी शक्ति के बगैर शव समान हैं, ये सर्व विदित हैं, जिनके
बिना ब्रह्मा श्रष्टि का निर्माण करने में असमर्थ हैं तो विष्णु पालन करने में |
उस आदि शक्ति का ध्यान न करने वाला या साधना न करने वाला व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ
दुर्भाग्य शाली ही माना जायेगा. जो जगत्जननी अपने विभिन्न रूपों में मानव का
कल्याण करती है जिनके एक एक स्वरुप की माया अति निराली है उस जो अति शीघ्र प्रसन्न
होने वाली है उसी जगदम्बा के पर्व वर्ष में चार बार नवरात्रि के रूप में आते हैं
जिनके माध्यम से अपनी उर्जा को संचार कर जगत का कल्याण करती है, क्योंकि इस वक्त
माँ की उर्जा, माँ की कृपा, चहुँ ओर पूर्ण शांति, पुष्टि, तुष्टि और क्रियात्मक
रूप में बरसती है|
उसी माँ भगवती का आशीर्वाद प्राप्त और वरदान
प्राप्त करना प्रत्येक साधक का न केवल कर्तव्य अपितु अधिकार भी है क्योंकि माँ के
स्नेह पर तो सभी बच्चों का समान अधिकार है | हैं न ------ :J
भाइयो बहनों !
ये पर्व शक्ति का का पर्व है ,
और शक्ति और सिद्धि का सम्बन्ध चोली-दामन का है शक्ति के बिना सिद्धि नहीं और
सिद्धि सिर्फ और साधना के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है | साधना और शक्ति सिद्धि एक महान प्रक्रिया है
अपने बल और बुद्धि को पहचान कर जीवन दिशा निर्धारित करने की | ये पर्व है – शक्ति
तत्व को जागृत कर सिद्धि प्राप्त कर दुखो को, अभावों को कष्टों को संकटों को दूर
कर सुखों को प्राप्त करने का |
परन्तु प्रश्न ये आता है कि सब साधना नहीं कर
सकते, कुछ का मानना है कि दीक्षा प्राप्त नहीं है कुछ मानना है कि विधि विधान नहीं
मालूम , कुछ का मानना है कि कभी की नहीं अतः सफलता मिलने के चांस कम है, किसी को
अप्सरा, किसी को यक्षिणी, किसी को भूत प्रेत अथवा अन्य कोई प्रत्यक्षीकरण साधना
करना चाहता है किन्तु सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है |
तो
भाइयों बहनों क्यों न सबसे पहले हम इन समस्यायों के निवारणार्थ ही कोई उपाय करें ?
सदगुरुदेव ने इसके उपाय हेतु, यानी सफलता प्राप्ति हेतु और वो भी तत्काल सफलता
प्राप्ति हेतु त्वरित फल देने वाली त्वरिता साधना बताई है जिसे कर साधक किसी भी
साधना में अति शीघ्र सफलता प्राप्त कर लेता है |
त्वरिता शक्ति साधना में देवि का ध्यान प्रिया रूप में हि किया जाना चाहिए
अर्थात इस साधना को भी अप्सरा-यक्षिणी की तरह ही प्रेमिका रूप में ही सिद्ध किया
जा सकता है दूसरी बात इसमें भी त्वरिता शक्ति के प्रत्यक्षीकरण की सम्भावना है अतः
पूर्ण पौरुषता और निडरता के साथ करना चाहिए, इसका मतलब ये नहीं है कि इसे
स्त्रियाँ नहीं कर सकती , जिस प्रकार पुरुष इस साधना को प्रेमिका रूप में सिद्ध
करे वहीँ स्त्रियाँ सखी रूप में | और सदगुरुदेव ने तो ये तक बताया है कि
अप्सरा-यक्षिणी या इस तरह की कोई भी साधना स्त्रियाँ अति शीघ्र और सरलता से कर
सकती हैं----- J
साधना के लिए लिए प्रमुख सामग्री---
चार मयूर पंख, एक ताम्बे का सर्प, केशर, गुलाब
या चमेली के पुष्प, इसी तरह गुलाब या चमेली का इत्र, पीला वस्त्र, बाजोट सुगंधित
अगरबत्ती जो पूरे साधना काल में जलती रहे स्फटिक माला | पीले वस्त्र पीला आसन,
उत्तर या पश्चिम दिशा साधना का समय रात्री १० से ११ के बीच साधना प्रारम्भ हो जनि
चाहिए |
जिनके
पास अप्सरा यक्षिणी यंत्र हो तो स्थापित अवश्य करें या कहीं से त्वरित यंत्र
प्राप्त हो जाए तो अति उत्तम , एक विशेस बात याद रखिये यंत्र के आभाव में साधना
नहीं हो सकती ऐंसा नहीं है, साधना हेतु दृढ़ संकल्प और श्रद्धा और आत्म विश्वास की आवश्यकता होती है जब तक आप
में इन चीजों का आभाव रहेगा तब सफलता अनिश्चित ही रहेगी, अतः इनका तीनों तत्वों को
अपने अन्दर जागृत करिए और काम पर चलिए, मतलब साधना करिए ..... J
वैसे तो इस साधना को शुक्रवार से प्रारम्भ कर
शुक्रवार को समाप्त करने का विधान है किन्तु, चैत्र नवरात्री के पूर्व की अमावस्या
यदि मिल जाये तो अति उत्तम, और एक दिन करना होगा, अन्यथा आठ दिन, या नवरात्री में
या किसी भी शुक्ल पक्ष की पंचमी से करें |
स्नान कर पीले वस्त्र धारण करे व पीले आसन पर
बैठ कर सामने बजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर यंत्र या ताम्बे का नाग स्थापित करें
कमरे में चारों दिशाओं में मोर पंख लगा दें, तथा संकल्प लेकर स्वयं को इत्र का
टीका लगायें व टिल के तेल का दीपक लगायें कमरे में साधना काल में सुगंधित धुप या
अगरबत्ती जलती रहे .|
नाग की
और यंत्र की केशर और सुगंधित पुष्प से पूजन करें तथा इत्र लगायें और उसी को अपने
शारीर पर भी लगा लेवें |
अब निम्न मन्त्र की ११ माला स्फटिक माला से
संपन्न करें—
|| ॐ ह्रीं हुं खेचछे क्षः
स्त्रीं हूं क्षे ह्रीं फट् ||
“OM HREEM
HUM KHECHCHHE KSHAH STREEM HOOM
KSHE HREEM FATT” |
यदि ये साधना अमावश्य को की जाती
है तो एक माह तक प्रति दिन एक माला एक माह तक अवश्य करनी चाहिए, और यदि बाद में तो
आठ दिन करने के बाद भी एक माह तक एक माला करनी चाहिये |
इस साधना के बाद दुसरे दिन से नवरात्री है ही
अतः फिर आप किसी और साधना का भी संकल्प लेकर साधना कर सकते है------
निखिल प्रणाम
रजनी निखिल
***NPRU***
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