Friday, July 4, 2014

भय मुक्ति भैरव साधना


“भयमुक्ति भैरव प्रयोग” 




येन-येन हि रुपेण साधकः संस्मरेत सदा |
तस्य तन्मयतां याति चिंतामानिरिवेश्वर: ||

अर्थात ईश्वर चिंतामणि के सद्रश हैं, साधक उसके जिस जिस स्वरूप का चिंतन करता है उसी स्वरुप की प्राप्ति उसे होती है |
सदगुरुदेव ने कहा है कि पुरुष की शोभा उसकी प्रचंडता में होती है और उसके ह्रदय की कोमलता से उसके व्यक्तित्व का परिचय| जिसका साक्षात्, समन्वित रूप ही भैरव हैं, और भगवन भैरव शब्दमय हैं क्योंकि शिव शब्दमय हैं और भैरव उनका अंश.
जो कि एक ओर सब कुछ पल भर में विध्वंश करने वाला स्वरुप
तो दूसरी ओर साधक को सब कुछ प्रदान करने वाला .
भगवान शिव की ही भांति अति अल्प पूजन से ही प्रसन्न होने वाले हैं, अतः कोई भी साधक इनका पूजन, जप आदि किसी डर के कर सकता है .

ऐंसे ही एक छोटा किन्तु अत्यंत तीव्र प्रयोग जो अभय के साथ रक्षा भी प्रदान करता है......

भैरव  पूर्ण रूपां हि शंकरस्य परात्मनः ----
अतः हे महादेव, हे भैरव हमारी रक्षा करें

किसी भी मंगलवार को रात्रि में एक प्रहर के बाद किसी ताम्र पात्र में कुमकुम से रंगे चावलों की ढेरी बना लें और उस पर एक भैरव गुटिका, या स्वर्णाकर्षण गुटिका  या शिवलिंग स्थापित कर दें |

            अब प्रश्न ये है की ये कौन सी गुटीकाएं हैं ये भैरव मन्त्र से अभिमंत्रित स्वयम भैरव् के प्रतीक स्वरुप हैं चूँकि हम सभी प्रतीक स्वरूप की ही पूजा अर्चना या साधना करते हैं, अब प्रश्न ये कि, ये कहाँ से प्राप्त होगी तो मेरे ख्याल से अनेक लोगों के पास ये गुटिका हो सकती है क्योंकि अनेक लोगों मैंने ही ये उपलब्ध करवाया है, या फिर सभी के घर शिवलिंग तो होगा ही अतः शिवलिंग को ही स्थापित कर दें
तथा उनका कुमकुम अक्षत सिंदूर और लाल पुष्प से पूजन करें, तथा लोबान धुप तथा तिल के तेल का दीपक लगाएं, फिर रुद्राक्ष माला से ११ माला निम्न मन्त्र की करें ---- 

मन्त्र –

    || ॐ ह्रीं भैरव भयंकर हर मां रक्ष-रक्ष हूं फट स्वाहा ||

मन्त्र—

  ||HREEM  BHAIRV   BHAYANKAR  HAR  MAAM
 RAKSHA-RAKSHA  HUM  FATTA  SWAHA ||

प्रयोग संपन्न करें और रिजल्ट स्वयम देखें  |

एक बात का सदैव ध्यान रखें कि और अपने ईष्ट के प्रति श्रद्धा ही आपको किसी भी साधना में सफल करती मैं आजकल हमारे ग्रुप पर बहुत ज्यादा वैचारिक विषमता देख रही हूँ जो की नए साधकों को भ्रमित कर रही है, किसी को सलाह देना बुरा नहीं है किन्तु दिग्भ्रमित करना गलत है . अतः साधना करें बिना किसी के बातों में आये, जो स्वयम साधना करके देखते हैं उन्हें सत्यता का बोध होता ही होता है किन्तु सिर्फ बातें करने से कुछ भी हासिल नहीं होता------

     अतः किसी भी मंत्र को किये बगैर उसमें नुक्स निकालने से अच्छा है उसे कर के देखा जाये, प्रार्थना है कि पहले संपन्न करें फिर ----

और जी हाँ निखिल-अल्केमी पर मन्त्र दिए जाते हैं
साधना दी जाती है और इसी वजह से आप और हम जुड़े हैं, और यही इसकी विशेषता है....... हैं ना 
  
*** रजनी निखिल ***

    निखिल एल्केमी 

Wednesday, March 26, 2014

भैरव साधना के दो महत्वपूर्ण प्रयोग


 
             शतं जिव शरदो वर्तमानः, शतं हेमंतान्छ्तम वसंतान |

         शत  भिन्द्राग्नि  सविता ब्रहस्पति:,  शातायुधा हविषेमं | |


       हे प्रभु, मेरे गुरुवर ! सभी सतायु हों, हमारी संतान स्वस्थ हों बलिष्ठ हों, समस्त बंधू-बांधव दीर्घायु प्राप्त करें और दत्त चित्त होकर ईश्वर आराधना में संलग्न हों तथा राष्ट्र निर्माण में सहयोग करें |



जय सदगुरुदेव,

       भाइयो बहनों ! इस भोगमय जीवन में त्यागमय जीवन बनाने के लिए या साधनामय होने के लिए गुरु का सहारा तो लेना ही पड़ता है, क्योंकि मार्ग तो वाही बताएँगे ना, आप चलें या ना चलें, ये मेरी ड्यूटी नहीं है | मेरी ड्यूटी तो केवल इतनी है कि आप सबको अपने कार्य द्वारा, मेरी जो नॉलेज है, के द्वारा आपको साधना पाठ पर गतिशील करूँ | अब कैसे करना है ये आपकी जिम्मेदारी......

भाइयो-बहनों!  मैने एक चीज नोट की है कि जब भी मैंने कोई साधना या प्रयोग बिना किसी सामग्री के दी है तो उस पर लोगों का रुझान देखने को मिलता है किन्तु जैसे ही किसी सामग्री विशेस की साधना में आवश्यकता दिखी लोग कतराने लगते हैं .

    क्या आप सब जानते हैं कि बिना यंत्र और माला के साधना का फल और प्रतिफल में अंतर हो जाता है . और ये बात मै नहीं बल्कि गुरुदेव ने भी कही है . क्या हैं यंत्र ? अब इस पर चर्चा करने से कोई मतलब नहीं, क्योंकि सभी लोग अब जानते भी हैं और समझते भी हैं .


मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह साधना करेंगे किन्तु बस इतना चाहती हूँ कि सभी साधना सम्पन्न बने, हरेक प्रक्रिया को स्वयम सम्पन्न कर उसके परिणाम को उसकी उर्जा को महसूस करें ताकि आप कह सकें कि इसे मैंने किया है और इसे करने से यह होता है . आवश्यक नहीं कि आप एक बार में ही सफल हों जाये, किन्तु ये भी जरुरी नहीं कि आप हर बार असफल ही हों, बात सिर्फ इतनी सी है कि आपको क्रिया यानि साधना या प्रयोग तो करना ही पड़ेगा, जैसे बताया गया है वैसे ही .

हाँ तो हम मूल मुद्दे पर बात करते हैं, और वो ये है कि साधना ..... और भी भगवन भैरव की, जिनके नाम से ही भय का नाश हो जाता है..
और जो तंत्र का आधार है.....  और जिसे संपन्न करने पर अन्य साधनाये सरलता से सिद्ध हो जाती हैं, इनकी साधना से जीवन की समस्त विपत्तियां,बाधाएं, समस्याएं, रोग व्याधि आदि समाप्त होकर जीवन निर्द्वंद हो जाता है.....

‘देव्योपनिषद’- में भैरव साधना के बारे में कहा है कि जीवन के समस्त उपद्रवों को समाप्त करने के लिए, बाधाएं दूर करने के लिए, जीवन के सभी प्रकार के ऋण और कर्जों की समाप्ति हेतु, राज्य से आने वाली बाधाओं और अकारण भय से मुक्ति हेतु, को समाप्त करने हेतु, शरीरिक रोगों को दूर करने हेतु, प्रति दिन आने वाले कष्टों बाधाओं को दूर करने हेतु, इसके अलावा, अचानक होने वाली दुर्घटना, मुकदमें में जीत आदि के लिए भगवान् भैरव की साधना से बढ़कर कोई साधना है ही नहीं वैसे तो ब्लॉग के माध्यम से हमने इसके पहले भी अनेक प्रयोग दिए हैं, किन्तु इस बार फिर ब्लॉग के ही माध्यम से ही गुरुदेव प्रदत्त एक दुर्लभ विधान.......


सदगुरुदेव प्रदत्त---  भैरव साधना के दो महत्वपूर्ण प्रयोग;

 शत्रु बाधा निवारण प्रयोग
 काल भैरव रोगनाशक प्रयोग

 स्नेही भाइयो बहनों;
                 हम सब सदगुरुदेव से जुड़े हैं एक प्रकार से कहें तो सब उन्ही के आत्मांश हैं, गुरुदेव ने हमारे लिए अत्यधिक परिश्रम करके साधनाएं इकत्रित की ताकि हमें यहाँ-वहां भटकना न पड़े, हमारे जीवन में अनेक समस्याएं हैं जो निरंतर पूरे जीवन को उथल पुथल करती रहती है, और गुरुदेव ने इन्हें सुलझाने हेतु ही पत्रिका के माध्यम से हम तक पहुँचाया है, ये अलग बात है कि हमें उन्हें उपयोग करना नहीं आया कभी हम सामग्री और कभी विधि विधान के चक्करों में उलझ कर रह जाते हैं, जबकि हमारे सामने ही समस्या का समाधान होता है |
     भाइयो एक विशेस बात गुरुदेव कहा करते थे----- “मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम जब भी मुझे पुकारोगे मै तुम्हे तुम्हारे पीछे खड़ा हुआ मिलूँगा,” भाइयो मुझे अब वो बात समझ में आती है, क्योंकि मै जब भी परेशां होती हूँ तो गुरुदेव जी की कोई भी बुक उठा कर पढ़ लेतु हूँ, और यकीं मानिये मुझे उन्ही में कहीं न कहीं समाधान मिल ही जाता है, यही गुरुदेव के इन शब्दों की यथार्थता को सिद्ध करता है.
तो क्यों न हम उसी पथ पर चलें उन्ही क्रियाओं को करें जो हमें विरासत में मिला है----- है न 

स्नेही भाइयो बहनों ! भैरव साधना के लिए उपयुक्त दिन हैं रविवार, मंगलवार, और शनिवार |

१ शत्रु बाधा निवारण साधना; |
प्रयुक्त सामग्री---- लाल आसन, लाल आसन, यदि आपके पास भैरव यंत्र है तो ठीक वर्ना चित्र भी ले सकते हैं या शिवलिंग भी, या स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र, और भैरव गुटिका | इसके आलावा सरसों के तेल का दीपक, गुग्गल, सरसों काली, काले तिल, सरसों का तेल थोडा सा, गुड भोग के लिए |
भाइयो, मै बार-बार कह रही हूँ सामग्री के जाल में मत फंसना, इनमें से जो भी आपके पास हो उसी का उपयोग कर साधना सम्पन्न करें.....
साधना वाले दिन रात्रि में १० बजे के लगभग स्नान कर आसन पर बैठें, और प्रारम्भिक पूजन कर गुरु मन्त्र की चार माला संपन्न करे उसके बाद संकल्प लें कि, मै (अपना नाम) अमुक (शत्रु का नाम) शत्रु बाधा हेतु काल भैरव प्रयोग संपन्न कर रहा हूँ/ कर रही हूँ |
अपने सामने एक लकड़ी के पट्टे पर काला कपडा बिछाएं, और उस पर  एक मिटटी की ढेरी बनायें, उस पानी से सींचकर उसे गीला कर लें और उसके ऊपर स्वर्णाकर्षण भैरव गुटिका स्थापित करें, यदि नहीं है तो शिवलिंग.....
अब उस ढेरी के चारों तरफ पांच गोल सुपारी काले तिल पर स्थापित करें , और उन सुपारी पर सिंदूर का तिलक करें तथा धुप दीप दिखाएँ, और गुड का भोग लगायें |
एक पात्र में काले तिल, काले सरसों, और थोडा सरसों का तेल मिलायें |
अब निम्न मन्त्र का जप करते हुए इस मिश्रण को थोडा-थोडा कर चढाते  जाएँ |
मन्त्र;
  “विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकं, महाभैरव नमः, सर्व दुष्ट विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धि कुरु | ॐ कल भैरव, बटुक भैरव, भूत भैरव, महा भैरव, महा-भैरव विनाशनं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत् |
   ॐ कल भैरव, शमशान भैरव, काल रूप कल भैरव! मेरी बैरी तेरो अहार रे, काढि करेजा चखन करो कट-कट, ॐ काल भैरव, बटुक भैरव, भूत भैरव महा-भैरव, महा भय विनाशं देवता:, सर्व सिद्धिर्भवेत् |”

उक्त मन्त्र को मात्र ५१ बार करना है ये क्रिया तीन दिन करना है, वैसे  तो गुरुदेव ने इसे एक ही दिन करवाया है किन्तु हमें पूर्ण लाभ हेतु तीन दिन अवश्य ही करना चाहिए | तीन दिन के बाद अब गुटिका या शिवलिंग को छोड़कर बाकी सारी सामग्री उसी काले कपडे में लपेटकर घर से कही दूर जमीं में दबा दें और उस पर एक भरी पत्थर रख दें तथा घर आकर स्नान कर लें |
आगे दो रविवार या जिस दिन भी आपने इसे किया है, वो दो वार तक गुटिका के सामने इस मन्त्र का जाप अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते रहें..... 
२- काल भैरव रोग नाशक प्रयोग;

इस प्रयोग को प्रातः काल किया जाता है, भाइयो बहनों इसमें काल भैरव महायंत्र का वर्णन है किन्तु भगवान् शिव के एक स्वरुप हैं काल भैरव . अतः शिवलिंग या भैरव गुटिका अपने सामने स्थापित करें, उस पर सिंदूर चढ़ाएं, अब एक चौमुखा दीपक जलाएं, दिशा दक्षिण हो, पूजा प्रारम्भ करें, गुरु मन्त्र की चार माला करें तथा संकल्प लेकर सामने रखे यंत्र या गुटिका या शिवलिंग का पूजन सिंदूर, पुष्प बेशन के लड्डू, लौंग से करें, तथा एक काला धागा और एक पुष्प माला लेकर यंत्र पर चढ़ा दें, तथा सामने एक ताम्बे के लोटे में शुद्ध जल भरकर रख दें और उस पर एक लाल कपडा बाँध दें |
अब एक पात्र में काले तिल और दस गोल सुपारी रख लें, तथा निम्न मन्त्र का जप करते हुए उन तिलों को दक्षिण दिशा की ओर थोडा-थोडा फेंकती रहें-----
मन्त्र-
     “ॐ काल भैरौ, बटुक भैरौ, भूत भैरौ ! महा भय विनाशं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत | शोक दुःख क्षयकरं निरंजनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्णत्वं महेशं | सर्व- काम-सिद्धिर्भवेत् | काल भैरव, भूषण वाहनं  काल हन्ता रूपं च, भैरवी गुनी | महात्मनः योगिनां महादेव स्वरूपं | सर्व सिद्धयेत् | ॐ काल भैरौ, बटुक भैरौ, भूत भैरौ | महा भैरौ महा भय विनाशनं देवता | सर्व सिद्धिर्भवेत् |”

उक्त मन्त्र की ५१ बार जप करें, तथा उन दसों सुपारी को दसों दिशाओं में फेंक दें, अब उस काले धागे को रोगी की दाहिने भुजा पर बांध दें, या गले में पहन दें | और तांबे के लोटे से जल लेकर कुछ जल पिला दें और थोडा सा ऊपर भी छिड़क दें, पुराने से पुराना रोग भी ठीक होता हुआ देखा गया है, चाहे कोई तांत्रिक बाधा से पीड़ित है या भूत प्रेत बाधा से या शारीरिक बाधा से, इस प्रयोग के बाद आराम मिलता ही है |
ये मन्त्र साबर मन्त्र हैं, अचूक हैं, और अनुभूत हैं अतः आप भी करिए और अनुभूत कीजिये तथा साथ ही अपने साधना सिद्धि के खजाने में एक मोती और भर लीजिये........ 



जय सदगुरुदेव..

रजनी निखिल..


****NPRU****



Wednesday, March 19, 2014

स्वर्णाकर्षण भैरव यन्त्र और गुटिका के कुछ प्रयोग:





                       नमो  शांत  रूपं  ब्रह्म रूद्र  महेशं |
                      निखिल रूप नित्यं शिवोऽहं शिवोऽहं ||

 हे स्वामी निखिलेश्वरानंदजी महाराज ! हे गुरुवर !! आप शांत स्वरुप हैं, ब्रहम, विष्णु और रूद्र के स्वरुप और साक्षात् चिंतन  हैं, आप का मोहक रूप नित्य मेरे ह्रदय में बसा रहे, मै आपको पूर्णतः शिव निखिल स्वरुप ही देखा करूँ और मानती रहूँ |
भाइयो बहनों,

         प्रत्येक शिष्य के ह्रदय में यही भाव आ जाये ऐंसी ही प्रार्थना के साथ अगली पोस्ट आप सब के लिए------

स्नेही स्वजनों ! अभी कुछ दिनों पूर्व हमने स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र और गुटिका के बारे में एक पोस्ट दी थी और उसी के प्रतिउत्तर में मुझे कई सारे मैसेज आये कि हमें इससे सम्बंधित प्रयोग भी दिए जाएँ, और आज मैंने मन बना ही लिया कि मुझे इससे सम्बंधित प्रयोग देना ही है जिससे की आप सब लाभ उठा सकें, हालाँकि------ मै जानती हूँ कि लोग कम ही है जो साधना या प्रयोग करना चाहते हैं, लेकिन जो चाहते हैं कम से कम उन्हें तो ये प्रयोग मिलना ही चाहिए न ..... 

भाइयो बहनों क्या आप जानते हैं की इन आठ दस वर्षों में ब्लॉग पर सैंकड़ों प्रयोग आये सैंकड़ों साधनाएं दी जा चुकी हैं, किन्तु उन्हें ही आज तक लोग नहीं कर पाए हाँ उसके आगे की चाह जरुर रखते हैं, सिर्फ कलेक्सन हेतु---- सॉरी, किन्तु यही सच है..... कोई बात नहीं हमें तो बस अब आगे ही बढ़ना है जिनको वाकई इन साधना और प्रयोग की आवश्यकता है उन्हें तो मिलना ही चाहिए .... तो स्वर्णाकर्षण यंत्र और भैरव गुटिका से सम्बंधित तीन महत्वपूर्ण प्रयोग, वैसे तो इस पर अनेक प्रयोग गुरुवर ने  समय-समय पर दिए हैं किन्तु ये तीन अति आवश्यक और समयानुकूल और परिस्तिथि के अनुकूल हैं.... ये प्रयोग जो एक तरफ लक्ष्मी प्राप्ति के साधन हैं, तो दूसरी तरफ तंत्र बाधा निवारण में सहायक हैं, तथा एक और गृहस्थ जीवन में सुख शांति लाने समर्थ हैं तो दूसरी और स्वास्थ्य लाभ के लिए भी अति महत्वपूर्ण..... अतः इन साधनाओं को एक बार जरुर आजमायें --- 

वैसे इन्हें प्रयोग करने के लिए विशेस तिथि है वैशाख माह की एकादशी, किन्तु समय और परिस्तिथि के अनुसार इन प्रयोगों को किसी भी माह की एकादशी, या तंत्र बाधा हेतु अमावश्या और कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न कर सकते हैं |

इस प्रयोग को संपन्न करने के लिए साधक पीली धोती पहनकर, उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाएँ | सामने लाल वस्त्र बिछाकर उस पर आठ चावलों की ढेरी बनायें, और उनके सामने एक बड़ी चावल की ढेरी बनायें और उस पर यंत्र का स्थापन करें तथा उस यंत्र पर ही उस गुटिका को भी स्थापिय कर दें, अब उन आठ चावल की ढेरी पर आठ कमल बीज स्थापित करें, भाइयो बहनों कमल बीज मार्केट में पूजा की दुकान पर बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाता है----
अतः परेशांन होकर शांत भाव से सारी सामग्री एकत्रित कर लें तब साधना में बैठे, और शांत भाव से एकाग्रचित्त होकर लगभग दो घंटे निम्न मन्त्र का जप संपन्न करें, इसमें माला या गिनती का बंधन बिलकुल नहीं है अतः दो घंटे में जितना भी जाये..... 

मन्त्र—
      “ॐ ह्रीं धनधान्याधिपतये स्वर्णाकर्षण कुबेराय सम्रद्धिं देहि-दापय स्वाहा” |
     “Om hreem  dhandhaanyadhipataye  swarnakarshan kuberay  samraddhim  dehi  dapay  swaha” |

 मन्त्र जप से पूर्व हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि अमुक व्यापार या कार्य के लिए पूर्ण सफलता के लिए ये प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूँ या रही हूँ....... ये एक ही दिन का प्रयोग हैऔर जप के बाद उस सारी सामग्री को उसी कपडे में बाँध कर किसी कोने में या लॉकर में रख दें ऐसा करने पर मनोवांछित प्राप्त होता ही है....

२- तंत्र बाधा निवारण हेतु ---
साधक सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ जाएँ सामने पट्टे पर सफ़ेद वस्त्र बिछा दें तथा एक मिटटी का हांड़ी या छोटा कुल्हड़ लें और उसमें भैरव गुटिका रखकर उसे लगभग सौ ग्राम पीली सरसों या इसके आभाव में काली मिर्च लेकर गुटिका को ढँक दें और इस हांड़ी को अपने सामने जमीन पर रख दें तथा सामने उस सफ़ेद वस्त्र पर स्वर्णाकर्शंभैरव यंत्र स्थापित कर उस पर सिंदूर, (जो कि बजरंगबली को चढाते हैं) लगा दें तथा संकल्प लेकर निम्न मन्त्र का जप दो घंटे तक ही करें तथा जप के बाद उस हांड़ी को गुटिका के साथ ही घर से कहीं दूर जमीन में दबा दें--------
चूँकि ये तंत्र बाधा के लिए है अतः इसे घर से दूर ही दबाना है—

मन्त्र- 

    ॐ क्लीं क्रीं हुं मम इच्छित कार्य सिद्धि करि-करि हुं क्रीं क्लीं फट् |
  “Om kleem kreem hum mam ikshit kary siddhi kari-kari hum kreem kleem fatta” |

३- स्वस्थ्य लाभ हेतु---

इस प्रयोग में यंत्र और गुटिका के साथ काली हकिक माला की भी आवश्यकता होती है यदि काली हक़ीक न मिल सके तो रुद्राक्ष की भी ले सकते हैं सामने लाल वस्त्र बिछाकर कर यंत्र का स्थापन करें यंत्र का पूजन सिंदूर और अक्षत से करें तथा संकल्प लेकर एक ताम्बे के पात्र में गुटिका को यंत्र के सामने ही स्थापित करे इसमें सीधे यानि दायें हाथ से माला करते हुए उलटे हाथ से गुटिका पर जल चढाते हुए दो घंटे तक मन्त्र करना है----- फिर उस जल को रोगी को पिला दें, औए उस पर छिड़क भी दें.......
मन्त्र—
   “ॐ यं स्वर्णाकर्षण गुटिकायै मम कार्य सिद्धि करि-करि हुं फट्” |   
    “Om yam swarnakarshan gutikayai mam kary siddhi kari-kari hum fatta” |
                           
भाइयो बहनों, एक महत्वपूर्ण बात ये कि इन तीनो प्रयोग में  यंत्र तो एक होगा किन्तु गुटिका अलग-अलग ही प्रयोग होंगी.
चूँकि मेरे तो अनुभूत हैं ही आप भी आजमाइए-----

जय सदगुरुदेव 
रजनी निखिल
****NPRU****

Wednesday, February 26, 2014

SHIVRATRI PARDESHWAR SADHANA






शिवरात्रि की अनुभूत साधना एवं पारद शिवलिंग पूजन

       देवो   गुणत्रयातीतश्चतुर्व्यहो    महेश्वरो:,
       सकल:    सकालाधारशक्तेरूत्पत्तिकरणं |
       सोऽयमात्मा त्रयस्यास्य प्रक्रते: पुरुषस्य च,
       लीलाकृतेजगत्स्रष्टिरीश्वरत्वे  व्यवस्तिथ: ||

   चतुर्व्यूह के रूप में प्रकट देवाधिदेव महेश्वर तीनों गुणों से अतीत हैं वे आधारभूत शक्ति के उत्पत्ति के कारण भी हैं, वे ही पुरुष और प्रक्रति दोनों की आत्मा स्वरूप हैं लीला से खेल ही खेल में वे अनत ब्रह्मांडों की रचना करते देते हैं, जगन्नियन्ता ईस्वर रूप में वे ही स्तिथ हैं ऐंसे गुणातीत महेश्वर को नमन.......
जय सदगुरुदेव,
              भाइयो बहनों स्रष्टि के प्रारम्भ से केवल मात्र एक ही देव रूद्र ही विद्दमान हैं दूसरा और कोई नहीं वे ही इस जगत की उत्पत्ति करते हैं और इसकी रक्षा भी और अंत में स्वयं इसका संहार भी कर देते हैं.

    स्रष्टि, सभ्यता और संस्कृति के विकास क्रम में ही शिव का महत्व स्थापित हुआ है | उपनिषदों के चिंतन में ‘एकोरुद्र: न द्वितीयायस्तुथ: कह कर ब्रह्म जैसी अद्वेत सत्ता के रूप ऋषियों ने उन्हें मान्यता दी है | वेदों में शिव का रूप विज्ञानमय है, पुराणों में उपासना का रूप और साहित्यिक ग्रंथों में उन्हें ज्ञान का पर्याय के रूप में स्थापित किया जाता है वेदों में वर्णित निराकार,निर्विकार, चिन्मय स्वरुप, शिव, शम्भू, ईश, पशुपति, रूद्र, शूली, महेश्वर, ईश्वर, सर्व ईशान, शंकर, चंद्रशेखर, महादेव, भूतेश, पिनाकी, खंड-परशु, गिरीश, मृडः, मृत्युन्जय, क्रतिवास, प्रमथाधिप, धुर्जटि,कपर्दी, आदि.... अनेकानेक नाम वर्णित हैं.....

      इस धरती पर रूद्र के एकादश पार्थिव रूपों की पूजा की जाती है उपनिषद के ऋषियों के एकादश रूद्र पूजा का जो रहस्य व्यक्त किया गया है वह प्राणी जगत में व्याप्त आत्मा या जीव के रहस्य से सम्बंधित है .

चन्दनागुरुकर्पुर कुंकुमान्तर्गतोरसः
मूर्छितः शिवपूजा सा शिवसानिध्यसिद्धये ||

उपरोक्त पंक्तियाँ रस साधको के मध्य प्रचलित पंक्तियाँ है जो की रस एवं दुर्लभ रस लिंग अर्थात पारद शिवलिंग की महत्ता को स्पष्ट करता है. निश्चय ही रस एक अति दिव्य धातु है पदार्थ है जिसको हम तांत्रिक पद्धति से साध ले तो हम ज़रा मृत्यु के बंधन से मुक्त हो सकते है, रस सिद्ध श्री नागार्जुन ने तो यहाँ तक कहा है की इस दिव्य धातु के माध्यम से पुरे विश्व की दरिद्रता एवं सभी प्रकार के कष्ट के साथ साथ मृत्यु को भी मिटाया जा सकता है

उपरोक्त श्लोक का विश्लेषण कुछ इस प्रकार है की रस चन्दन, कुमकुम इत्यादि पदार्थो से की जाने वाली पूजा का फल पारद के स्पर्शमात्र से ही साधक को शिवलिंग का पूर्ण पूजन का फल प्राप्त हो सकता है, मूर्छित अर्थात अचंचल पारद अर्थात शिवलिंग की पूजा करने वाले सौभाग्यशाली साधक भगवान सदाशिवसे एकाकार होने की उनके सानिध्य को प्राप्त करने की सिद्धि भी प्राप्त कर सकता है.

जो भी व्यक्ति पारद एवं रस तंत्र के क्षेत्र में रूचि एवं जानकारी रखता है वे निश्चय ही पूर्ण चैतन्य विशुद्ध पारद शिवलिंग के महत्त्व के बारे में समझ सकते है. इसी लिंग के लिए तो ग्रंथो में कहा है की पारद से निर्मित शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही ज्योतिर्लिंग एवं कोटि कोटि लिंग के दर्शन लाभ के जितना पुण्य प्राप्त होता है. यह विशेष लिंग अपने आप में अनंत गुण भाव से युक्त धातु से निर्मित होता है इसी लिए उसमे किसी भी व्यक्ति को प्रदान करने की क्षमता अनंत गुना होती है. और तंत्र के सभी मार्ग में चाहे वह लिंगायत हो, सिद्ध हो, क्रम हो या कश्मीरी शैव मार्ग हो या फिर अघोर जैसा श्रेष्ठतम साधना मार्ग हो, सभी साधना मत्त में पारदशिवलिंग की एक विशेष महत्ता है तथा निश्चय ही कई प्रकार के विशेष प्रयोग गुप्त रूप से सभी मत्त एवं मार्ग में होती आई है.  इसी क्रम में सदगुरुदेव ने कई विशेष प्रयोगों को साधको के मध्य रखा था जिसमे पारदशिवलिंग के माध्यम से पूर्व जीवन दर्शन, शून्य आसन एवं वायुगमन आदि प्रयोग के बारे में समझाया एवं प्रायोगिक रूप से संपन्न भी करवाए थे. निश्चय ही अगर पूर्ण चैतन्य विशुद्द पारद शिवलिंग अगर व्यक्ति के पास हो तो साधक निश्चय ही कई प्रकार से अपने भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को उर्ध्वगामी कर पूर्ण सुख एवं आनंद की प्राप्ति कर सकता है
रसलिंग के माध्यम से संपन्न होने वाले कई विशेष एवं दुर्लभ प्रयोग को हमने समय समय पर आप सब के मध्य प्रस्तुत किया है इसी क्रम में इस महा शिव रात्रि पर एक और प्रयोग.....
इस साधना में उपयोग होने वाली प्रमुख सामग्री.....          शिवलिंग, श्री यंत्र, और पारद देवरंजनी गुटिका. साथ ही गंगाजल, चन्दन,बिल्वपत्र, अक्षत, मौली, धतूरे का फल, भस्म, और सदगुरुदेव का चित्र . जो कि अति आवश्यक है | सफ़ेद आसन, सफ़ेद धोती, यदि स्त्री है तो पीला आसन और साड़ी .
भाइयो बहनों अधिकांश भाइयो बहनों के पास ये तीनो विग्रह होने चाहिए, क्योंकि इन सबका वर्णन कई दिनों से निखिल एल्केमी ग्रुप पर आता भी रहा है और कई लोगों ने लिया भी है
ये पूजन प्रातः और रात्रि दोनों का है सिर्फ विधान अलग हैं कृपया ध्यान से पढ़ें और संपन्न करें.... 

. पूजा विधि—शिव रात्रि की प्रातः ६ से सात बजे तक स्नान आदि से निवृत्त होकर ईशान कोण की श्वेत (सफ़ेद) आसन पर बैठ कर लकड़ी के बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग स्थापित करें, अब प्रारंभिक पूजन संपन्न कर गुरुदेव को और शिवलिंग को भस्म और धतूरे का फल अर्पण करें तथा गुरुदेव का आशुतोष स्वरूप का चिन्तन करें---

   आशुतोषम  ज्ञानमयं  कैवल्यफल   दायकं,
   निरान्तकम निर्विकल्पं निर्विशेषम निरंजनम् ||
   सर्वेषाम  हित्कारतारम  देव देवं  निरामयम,
   अर्धचंद्रोज्जद् भालम  पञ्चवक्त्रं  सुभुषितम ||

अब इसके बाद यदि गणपति विग्रह है तो उन्हें स्थापित कर उनका पूजन करें या गोल सुपारी को मौली लपेट कर चावलों की ढेरी पर स्थापित कर भगवन गणपति का ध्यान करें तथा सिंदूर चढ़ाकर धूम्र संकट मन्त्र करें—

मन्त्र- “गां गीं गुं गें गौं गां गणपतये वर वरद सर्वजन में वशमानय बलिम ग्रहण स्वाहा |”

“gaam geem gum gaum gaam ganpataye var varad sarvjan me vashamanay balim grahan swaha.”

कार्तिकेय पूजन—अपने दाई और एक सुपारी स्थापित कर कार्तिकेय का ध्यान कर निम्न मन्त्र से एक पुष्प अर्पित करें, तथा खीर का भोग लगायें.....

मन्त्र--   “ॐ गौं गौं कार्तिकेय नमः”

      “Om gaum gaum kartikey namah”

भैरव पूजन—अब अपने बांई और चावलों की ढेरी पर एक गोल सुपारी स्थापित का सिंदूर का टिका और गुड का भोग लगा कर
भैरव लोचन मन्त्र द्वारा भोग लगाये---

    “बलिदानेन संतुष्टो बटुकः सर्व सिद्ध्दा:
    शांति करोतु में नित्यं भुत वेताल सेविते:”

“Balidanene  santushto batukah sarv siddhihah
Shanti karotu  me  nityam  bhut  vetal  sevitah”.

वीरभद्र पूजन—भगवन शिव के प्रमुख गण वीरभद्र की स्थापना हेतु भैरव के साथ एक गोल सुपारी चावलों की ढेरी पर स्थापित कर काले टिल व् पुष्प से निम्न मन्त्र द्वारा करें....

 मन्त्र-    एह्येहि पुत्र रौद्रनाथ कपिल जटा भार भासुर त्रिनेत्र,
     ज्वालामुखी सर्व विघ्नान नाशय-नाशय   सर्वोपचार,
     सहितं   बलिम        ग्रहण-ग्रहण      स्वाहा ||

Mantr ----
          “Ehyehi putra raudranath kapil jata bhar bhaasur trinetra
          Jwalamukhi sarva vighnaan naashay-naashay sarvopchar
          Sahitam         balim                grahan-grahan              swaha” .

क्षेत्रपाल पूजन—
         अब जिस लकड़ी के बाजोट पर विग्रह स्थापित किया है उससे अलग हट कर नीचे दाहिनी और एक सुपारी लाल कपडे पर स्थापित कर लाल पुष्प से ही क्षेत्रपाल पूजन करें एक फल और धुप दीप निम्न मन्त्र द्वारा करें----

मन्त्र—
      “क्षां क्षीं क्षुं क्षें क्ष: हुं स्थान क्षेत्रपाल धुप दीपं सहितं
      बलिम ग्रहण-ग्रहण सर्वान कामान पूरय-पूरय स्वाहा” ||

Mantra
             “Kshaam ksheem kshum kshem kshamah hum sthan   kshetra dhupam deepam sahitam ,  balim grahan-grahan sarvaan sarvaan kaamaan prray-pooray swaha .”

 योगिनी पूजन---
भाइयो बहनों महा शिवरात्रि तो योगनियों का उत्सव होता है अतः जो साधक पूर्ण समर्पण भाव से योगिनी पूजन संपन्न करता है उसका शिवशक्ति पूजन तो उसी समय संपन्न हो जाता है और साधना में सफलता के चांश बढ़ जाते हैं. अतः एक गौमती चक्र चावलों की ढेरी पर स्थापित कर सिंदूर और लाल पुष्प से पूजन करें निम्न मन्त्र द्वारा----- 

मन्त्र—
      “या काचिद योगिनी रौद्र सौम्या धरतरापरा,
      खेचरी भूचरी व्योमचरी  प्रतास्तु में  सदा” || 

Mantra-
             “Yaa kaachid  yogini raudra saumya dharataparaa,
               Khechari bhuchari vyomchari  pratastu me sadaa”.

कुबेर पूजन-

      भाइयो बहनों भोलेनाथ को कुबेरपति भी कहा गया है अतः शिव रात्रि में कुबेर पूजन का भी महत्व है और कुबेर्पूजन का सिद्धिदायक मुहूर्त भी अतः शिवलिंग के दांयी तरफ पारद  श्री यंत्र  की स्थापना करे और चन्दन, लाल पुष्प और सुगन्धित धुप दीप से श्रीयंत्र का पूजन करे और एक माला, जो कि रुद्राक्ष, या सफ़ेद हकिक की हो सकती है, से एक माला निम्न मन्त्र
की करें.... 
मन्त्र—
     “ॐ क्षौं  कुबेराय नमः”

Mantra –
               “Om kshaum kuberay namah .”

इसके बाद पुनः शिव पारवती का सक्षिप्त पूजन कर रुद्राक्ष की माला से तीन माला मंत्र जप करें-----

मंत्र---
     “ॐ शं शिवाय नं नमः”.

Manatra—
           “ Om sham shivay nam namah.”

 भाइयो बहनों ये तो हुआ सुबह का पूजन और इसी क्रम को दुसरे दिन भी करना है.

अब रात्रि काल की साधना----

अब रात्रि में १० बजे पीले वस्त्र और पीले ही आसन पर साधना करनी है भगवान् पारदेश्वर को जल से स्नान करवा कर चन्दन चावल और पुष्प से पूजन करें और खीर का भोग लगायें.... तथा पुष्प और चावल से निम्न मन्त्रों द्वारा पूजन करें---

 ॐ भवाय नमः, ॐ जगत्पित्रे नमः,ॐ रुद्राय नमः, ॐ कालान्तकाय नमः, ॐ नागेन्द्रहाराय नमः, ॐ कालकंठाय नमः, ॐ त्रिलोचनाय नमः, ॐ पार्देश्वराय नमः |

अब किसी पात्र में पांच बिल्व पत्रपर कुमकुम और चावल रख कर निम्न मन्त्र से बिल्वपत्र चढ़ाएं....

 “त्रिदलं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रं च त्रिधायुधं,
 त्रिजन्म पाप संहारम बिल्वपत्रं शिवार्पणं” |

फिर किसी पात्र में गाय का कच्चा दूध और जल मिलाकर निम्न मन्त्र से लगभग ३० मि. तक जल धारा प्रवाहित कर अभिषेक करें.....

मन्त्र—
      “ॐ शं शम्भवाय पारदेश्वरय सशक्तिकाय नमः”

Namah—
             “om sham shambhavaay paardeshwaraay sashaktikaay
namah.”

     भाइयो बहनों ये अति महत्वपूर्ण साधना है इसे हलके में लेना गुरुदेव के प्रति अश्रद्धा होगी अतः ध्यान रखें और पूर्ण भक्ति व् श्रद्धा भाव से पूजन संपन्न करेंगे तो निश्चय ही भगवन पारदेश्वर की अमोघ शक्ति व उनके दिव्य स्वरुप का लाभ मिलेगा ही…

इस साधना के बाद पारद शिवलिंग का घर में स्थापन अति सौभाग्य की बात है........

तो लग जाइए साधन और साधना की तैयारी में----- क्योंकि यही सदगुरुदेव भी यही चाहते थे कि लोग साधना में रूचि लें और साधक बनें.....
ऐसी ही शुभकामनाओं के साथ...... 

जय सदगुरुदेव

रजनी निखिल

***NPRU***