Saturday, February 12, 2011

Paramhansa Swami Trijta Aghori ji


                                  (सदगुरुदेव  जी से जुड़े उनके   कुछ जाने - अनजाने प्रसंग )
पथपर  आगे बड़ते हुए सदगुरुदेव जी  ने पीछे मुड कर देखा तो  वे अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अभी भी वही पर खड़े  हुए एकटक   देख रहे थे,अभी कुछ देर पहले ही अपने जीवन की सर्वोपरि ,अलभ्य बस्तु रति राज गुटिका सदगुरुदेव जी को देते हुए बे कह रहे थे की नारायण आप ने मुझ जैसे  चट्टान ह्रदय को भी ममता सिखा ही दी , अब मेरा भी कोई भाई  हैं इस जगत में , .
सदगुरुदेव   जी के नेत्रों में भी  उन्हें याद करते हुए अश्रु छलक उठे की  सही अर्थो में वह मेरे अग्रज कि तरह उसने   मेरा पथ प्रदर्शक बना  इस तंत्र क्षेत्र में , लगातार २५ दिनों तक वे सदगुरुदेव जी को निद्रा स्तंभन  करके ,यक्षि णी  साधना , पूर्ण काया कल्प साधना ,ब्रम्हांड निर्माण तक साधना , यक्षिणी चेटकब्रम्हांड चेटक , रूप परिवर्तन चेटक जैसे उच्च  कोटि  के अनगिनत  दुर्लभ साधनाए , अद्रश्य  गमन  साधना ,प्रेत साधना  से लेकरवार्ताली स्तभ्न  साधना ,घोर शमशान साधना  से लेकर अघोर पथ की दुर्लभ आगे साधना भी उन्हें लगातार सिखा रहे हैं , और  आज अब सदगुरुदेव  की आगे  जाने की वेला आई तो उसी समय  एक बकरे  को एक हाँथ से उठा कर सैकड़ो फीट उछल दिया , फिर उसी अज  की गर्दन एक झटके से तोड़ कर उसका पूरा खून पी रहे हैं,
सदगुरुदेव व्यथित हो कर बोल उठे , इतनी निर्दयता  क्यों... क्या बिगाड़ा था उसने .
वे मुस्कुरा के बोले , बोल नारायण कहे तो इसे अभी जिन्दा कर दूं
कैसे ये संभव हैं ..
क्यों नहीं महाकाल रौद्र भैरव के लिए क्या असंभव  हैं ..
वे आसनस्थ  होकर मत्रजाप में लग गए , मात्र कुछ ही क्षणों में पूर्ण तयः  मृत  प्राय  बकरा जीवित हो कर चल पड़ा ,
ये कैसे  संभव हुआ
शुक्रो पासित मृत संजीवनी  विद्या से ,
तो मुझे अभी तक सिखाया  क्यों नहीं .
सारे  गुर बिल्ली से सिखने के बाद शेर ने बिल्ली पर ही हमला कर दिया , बिल्ली पेड़ पर चढ़ गयी , शेर ने कहा  की ये तो मुझे नहीं सिखाया था , बिल्ली ने कहा यही सीखा देती तो आज जान कैसे बच पाती इसलिए तो  ये  तुम्हे अभी तक नहीं बताया  था.
सदगुरुदेव  जी बोले मेरी  मौसी  मुझे भी अब तो सिखा दो .
(सदगुरुदेव मन ही मन उस करुणा और स्नेह से भींग गए समझ  गए कि  उन्हें कुछ दिन ओर अपने साथ रोकने के लिए  ये खेल रचा  गया था उनके द्वारा )
कौन हैं  ये     जिन्हें  सदगुरुदेव  इतना  चाहते रहे  हैं   ?

ये हैं ....
विश्व बंदनीय, अप्रितम , साक्षात   सदेह तंत्राव्तार , अदिव्तीय योगियो में  भी  श्रेष्ठ , पुराणिक युग कालीन सर्वथा अलभ्य    मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक , ऐसे अलौकिक  व्यक्तिव धारी   परमहंस स्वामी त्रिजटा अघोरी   जीके बारे में तो तंत्र जगत ही नहीं साधना  जगत का  हर व्यक्ति चाहे वह आज इस क्षेत्र में आया हो या हज़ार साल का  ही क्यों न हो उनके दर्शन की कामना तो मन में हमेशा से लिए हुए ही रहता हैं.  एक ऐसा व्यक्तिव जिन्होंने  अंत्यंत कठिन , अभावग्रस्त से निकल कर  वो उचाईयां  प्राप्त की हैं जिसके आगे पूरा विश्व भी नत मस्तक हैं ही . कहते हैं कि तंत्र क्षेत्र  में कठोर से कठोर  उच्च , और अगेय साधना फिर चाहे वह शमशान  हो या अघोर पथ कि इनका सामना पूरे विश्व  में कोई नहीं कर सकता .
उच्च ललाट पर सुशोभित  लाल सिंदूर  का तिलक ,कमर के नीचे तक झूलती लम्बी लम्बी  तप कि गरिमा  से युक्त  तीन जटाये के कारण ये साधक / साधना जगत में त्रि जटा  के नाम से विख्यात हैं .भगवान् काल भैरव के  अदिव्तीय साधक  ओर मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक  जो आज भी सदेह ,सिद्धाश्रम के  ९ सर्वोच्च  परम योगियों  के मध्य  में से एक आज भी उत्तरांचल  कि घनघोर दुर्गम  पर्वत श्रंखला भैरव पहाड़ी में स्थित महाकाल रौद्र भैरव के मदिर  के पास में गुप्त रूप से निवास रत हैं .
पूज्य सदगुरुदेव जी कहते थे कि केबल मात्र तंत्र के बल पर सिद्धाश्रम पहुँचने वाला ये  एक मात्र व्यक्तिव हैं . साधना जगत में उनकी उच्र्य बताना मानो  सूर्य को दीपक दिखाना हैं ,एक ही आसन पर २० से २५ दिनों तक स्थिर  एकाग्र रूप से बैठकर ये साधना पूरी करके ही उठते हैं . इनका  भौतिक कद लगभग सवा सात  फीट का हैं अत्यंत  बलिष्ठ ,सौष्ठव  युक्त शरीर के साथ घन के सामान घनघोर ,ह्रदय  को कम्पायमान  कर देने वाली  आवाज के स्वामी हैं .  कोई भी साधक ऐसा नहीं  रहा जो इनका साक्षात् महाकाल रूपी रूप देख कर सर्व प्रथम दर्शन  में स्थिर रह पाया हो . पर भौतिक शरीर कि महत्ता के सामान ही ह्रदय से उतने ही प्रेम मय ,प्रेम परिपूर्ण हैं . कुछ काल उपरान्त सदगुरुदेव जी के निखिलेश्वरानद  स्वरुप  को जानने के बाद  सदगुरुदेव जी की लीला से आश्चर्य चकित हो कर  से उन्होंने भी दीक्षा ली ओर उनसे  तंत्र क्षेत्र  कि अगम्य साधनाए  प्राप्त की .
एक बार अपने अग्रज गुरु भाइयों से सुनने में आया था  कि एक पूर्ण बड़ी  पुस्तक सदगुरुदेव जी ने इनके जीवन पर   लिख कर छपने को  देने जा रहे थे , तभी रात्रि काल मैं  प्रेस में ही सदेह से आकर इन्होने  वह किताब ही  टुकड़े टुकड़े कर दी ,सदगुरुदेव जी से कह उठे जब ये  नासमझ , लोग अपनी स्वार्थपरता  को शिष्य रूप  की आड़ मैं छुपा कर आपसे ही  छल करते रहते हैं और लेश मात्र भी शर्म सार नहीं हैं अपने कृत्यों  पर   और अपनी मक्कारी , चापलूसी को शिष्यता  का नाम देते रहते हैं तब ये  न जाने मेरे बारे में क्या क्या  अनर्गल प्रलाप कर लोगों  को मुर्ख बना कर अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे  इसलिए  ये किताब को ही में नष्ट कर दे रहा  हूँ. सदगुरुदेव जी ने कहा कि  . आखिर वे  अघोरी हैं अभी गुस्से में हैं  
तंत्र क्षेत्र के साधक  कोकैसा होना चाहिए जो निश्चय ता , साहस ,एक आसन निष्ठता और  अपने इष्ट  के सामान  तेज धारण करे हो ये तो इनके व्यक्तिव को देख करही सिखा जा सकता हैं.

एक साधक गुरु भाई  प्रणम्य हो कर जिज्ञासा रख रहे  हैं  उनसे कह रहे हैं  की क्या हैं आखिर इस गुरु मन्त्र में ,  ऐसा  क्या विशेष  हैं  जो आप इसे सर्वश्रेठ मंत्र कहते हैं ब्रह्माण्ड का ,ये तो हर गुरु की तरह सिर्फ गुरु मंत्र ही तो हैं ..
 महायोगी कह रहे हैं वत्स धन मांग लो आयु मांग लो सुदर स्त्रियाँ  मांग  लो पर ये न पूछो ,...

आप सेज्यादा ब्रह्माण्ड में इसके बारे में कौन  बता सकता हैं देना हैं तो ये दीजिये  या फिर  मना कर  दे.

 hain
वे कह रहे हैं  कभी सोचा हैं की सदगुरुदेव का नाम अखिल क्यों नहीं रखा गया , क्यों निखिल कहते हैं उन्हें ........."  वे बोलते जा रहे हैं  पूरी प्रकति मौन हो कर एक एक अमृत बूँद  पी रही हैं फिर जो उन्होंने प्रत्येक अक्षर  की व्याख्या करी  मानो ब्रह्माड     का   सारा ज्ञान हि नहि बल्कि स्वयं  ब्रम्हांड  ही उतर आया हो उस समय सुनने के लिए ,sabhi maun

सारा विश्व की ज्ञान धरोहर ही नहीं विश्व   के अन्दर क्या, परे क्या , सब हैं समाया हुए इस महा मंत्र में एक एक अक्षर की व्याख्या करने में  साक्षात् ब्रम्हा  भी असमर्थ हैं ...वे  भाव बिहोर होकर बोलते जा रहे हैं .... तुम तो अपना गुरु मन्त्र जानते ही हो  उसका  पहला अक्षर हैं ... 

प् का ये अर्थ हैं ....
 का ये अर्थ हैं.......
  का ये अर्थ हैं, ....
.......
......
क्या क्या नहीं समाया हैं सारी अखिल ही नहीं निखिल सम्पदा हैं सिद्धियाँ  हैं उच्चता हैं श्रेष्ठता  हैं  एक एक अक्षर में ...    और तुम लोग  हो की   यहाँ वहां भटकते  रहते  हो ....  

           किंचित क्रोध रोष में बोले .......अरे ये गली बाज़ार के भिखारी  जादूगरी दिखा कर अपना अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, तुम लोग समझते क्यों नहींये  धोखे बाज़  तुम्हे क्या दे देंगे,.... क्या दे सकते हैं ये...... ये गुरु रूप  की आड़ में बैठे  ठग तो खुद भिखारी हैं .आखिर कब समझोगे तुम उन्हें (सदगुरुदेव) ... पर तुम लोग समझ  भी कैसे सकते हो ..उन्होंने ही तो ये माया फेलाई  हैं  भला नारायण हो माया नहो कैसे  न  हो ये  .. कुछ  ही पहचान पाए  हैं उन्हें , शेष के आंखोंमें आसूं  ही रहेगे जब वे यहाँ से   सिद्धाश्रम       चल देंगे,,,.....और तब  तुम जब समझोगे ...... तब तक सिर्फ   आंसूं ही होंगे ..... तुम्हारे पास... वे नहीं ......

सदगुरुदेव भगवान् , अब आप  ही बताये  की मैं कैसे  गुरु बचन को पूर्ण करूँ ,आपने जो अति प्राचीन  तंत्र ग्रन्थ आसुरी कल्प   खोजने  की आज्ञा  दी  थी  , मैं हार गया  अब आप ही  मार्ग बताये  ,सदगुरुदेव बोले  तुम त्रिजटा अघोरी जी के पास जाओ उनसे मिलो मैंने उन्हें संकेत दे दिया हैं ,( गुरु भाई ,सदगुरुदेव जी से पूछ रहे थे )
लगतार  कठिन  पहाड़ियों  को पार करते हुए मानसरोवर के पास में हिरण्याक्ष पहाड़ी की ऊपर पहुँच के देखता हूँ तो सामने  त्रिजटा अघोरी  जी  पर्वतासन पर विराजमान हैं ,जैसे हि मैने उनके चरण स्पर्श कर परिचय दिया ,उन्होंने ह्रदय से आशीर्वाद प्रदान  किया . सदगुरुदेव की कुशलता के बारेमें पूछा,.  पिछले  कई महीनो से समाज   में उनके विरुद्ध चलाये जा रहे  झूंठे प्रचार ,अपमान जनित बाते , ओर पत्र पत्रिकाओं  में अनर्गल प्रलाप  केबारेमें बताया , 
 मेरे द्वारा  बताने पर , मानो साक्षात् महाकाल  ही उनके रूप में  उतर आये हो.

अब में सिद्धाश्रम की भी परवाह नहीं करूँगा , इस पात कियों  को तो दंड देना हो होगा . ये दुष्ट ऐसे नहीं मानेगे , वे वहां आग में साक्षात्  तिल तिल कर  जल रहे हैं ओर में यहाँ बैठा  उन्हें देखता रहूँ , ये नहीं हो सकता , अब बहुत हो गया ." घनघोर  ध्वनि चारों और गुंजायमान  हो रही थी ." 
किसी तरह अपने को नियत्रित कर अश्रु प्रवाह रोकते हुए बोले " केबल और केबल उनमें ही ये सामर्थ्य  हैं जो इतना विष पिने के बाद भी  अपना तिल तिल खून  जला कर भी समाज को अमृत दे रहे हैं ,हम सभी उनकी आज्ञा से बंधे हुए उन्हें  विवशता से मुस्कराहट  लिए  हुए ,अपने शिष्यों  को तैयार करने की अनथक श्रम  के बीच ,  अग्नि शोलो के बीच जलता हुए देख रहे हैं " 
तुम लोगों के कितना सौभाग्य    हैं पर  तुम लोग  तो  उसे जान भी नहीं पा रहे हो..... .हम सभी उनकी प्रतीक्षा में हैं ,जिस दिन हमारे आराध्य  हमेशा के लिए हमारे साथ होंगे . 
तुम लोग उनके मन ह्रदय की वेदना कम से कम अगर वे नहीं कहते हैं तो  उनकी आँखों में देख कर ही समझ सको,  समझ सको की आखिर उन्हें किस चीज की आवश्यकता हैं तुम लोगों से .. सिर्फ तुम लोगों से स्नेह के   कारण  ही तो वे  वहां हैं....... पर तुम लोग  तो सिर्फ अपना ही स्वार्थ  ...........


       ***********************************************                                                               (some memorable moment with ref to sadgurudevji )
Sadgurudev ji turn his face  to see him, still with tearful eyes he was standing there watching Sadgurudev,but the need of time and responsibility stopped him .just a few minite before  he has given the most precious things in the world “Rati Raaj Gutika”, person belongs to sadhana knew already  about that , he himself  earned through untold hard work and obedience to his gurus , but with love he gave to Sadgurudev ji. .he is saying   that” Narayan , you teach what is mamta ( sneh /love )   to a stone hearted person like me.. now I can say I have a brother like  you ..”
Even sadggurudev  ji recalling that incident,  have tear in his eye  and said “ in true sense he became my elder in the tantric sadhan field andlead to  the path unknown to many…” nearly 25days of his first meeting with Sadgurudev ji, he through “Nidra Stambhann Prayog” stopped Sadgurudevji’s  sleep and continuously taught sadhana like .yakshini sadhana, purn kaya kalp sadhana, bramhaand  creation sadhana, yakshni chetak, bramhaand chetak ,rup parivartan chetak  like such a high and rare sadhana, Adrashy  gaman sadhana , from  prêt sadhana to vartali stambhann sadhana , from ghor shamshan sadhan to  durlabh aghor sadhana, he was teaching continuously, neither he take rest nor giving any rest to Sadgurudev ji, now a perfact combination formed.
And today when Sadgurudev ji has to go, the time come, he bring a he-goat and through that in air with one hand, and catch , break  it s neck in two part and start sucking blood coming out of that.     
Sadgurudev ji very painfully told that why such a cruelty ,what wrong he does to you ,so that you have taken that his life in such away..
He smiling spoke.”speak to me  Narayan   if you say than I will  again  bring back that in
How that is possible?
There is nothing is impossible for bhgvaan  Mahakaal Roudra Bhairav?
Than he sitting on the aasan and starts mantra jap within  few second that he goat again is in life taking breathing again .as if  nothing happened to him before.
How that was possible ?
Through” Sukropasit  Mrit-Sanjivani vidya.”
Why did not you teach me that yet?
After getting  training of all art  from cat ,once lion attacked  on the cat, the cat jumped over the tree. Very shamefully  lion asked to the cat why did not teach him  that art, cat replied- if I did that  so than i could not  be alive this moment.
Sadgurudev ji replied with smile- my mausi now teach me that too.
(Sadgurudev ji understood the feeling behind  the incident and the love and sneh,/ compassion of him , that he try to stop him anyway…)
Who is this persoanalty, whom even Sadgurudev ji loved so much..
He  is..
                   Respected from whole world , unique , human form of Tantra , and such a  unimaginable  personality having  , Paramhansa swami Trijata Aghori ji , everybody whether today he is treaded on this path or thousand years old one of, not only tantra world but in sadhana field also , all are having ever desire to see him, once in their life span whether that may be of a few second. one such a personality who  start from very difficult struggle full child hood to reach such a unparallel, unmatchable height that whole world bow down  to his sadhana level height and achievement.
Having large red colored sindur on his divine great  forehead, and jataye (matted hair) having full of divine energy, which are so long that they  are touching his legs  because of .theses tree jata  of him, he is  known as tri jata  ji, greatest sadhak of bhagvaan kaal bhairav and only one in the whole world who are  blessed with sanjivinai vidya (a puranik era’s  vidya through that life can be induce to any dead) and still in his mortal body , and one amongst in  nine supreme yogi  of siddhashram , still living in deep dense forest surrounding hills in uttranchal in India.
Sadgurudev used to tell himhe is  the first person, who only through his achievement in tantra’s  field so high that he could reach the holiest  place in the whole universe i.e. Siddhashram .to write about his greatness in sadhana field like showing a earthen lamp to fully bright lighted sun in day time. sitting 20 to 25 days straight on a aasan without any moment for to complete in any sadhana, is just a play for him. His physical height is as  about more than seven feet. very forceful , highly well built body and blessed with  voice sound like cloud  sound in rainy season. no sadhak ever  can stand on his feet ,on seeing him first  such  a personality like Bhagvaan Mahakaal  rup. But  he also having such large heart , full  value of human value and full of so much love that words can not describe  about his softness, such a great person he is.. after a time when he knew about Sadgurudev ji’s Nikhileshwaranand form, he amazed on sadgurudev ji’s lila and  also taken Diksha from sadgurudevji and  have got some very rear gems of sadhana of tantra..
It has been listen from our elder guru brother that once Sadgurudev ji wrote a large size book about  him , and that has been  to press for printing, in the same night he physically came and tear down the book in pieces, and told to Sadgurudev ji “ thses ignorant people, through taking refuse of shishyata , hides their selfishness and   does continuously deception to you and not having a single percent of shame of their wrong-doing and gave them a name of shishyata ,than  they, I know not what will do useless/baseless  things about me and make fools other, to fulfill their selfishness. that  is why I destroyed that book.
Sadgurudev later replied he is aghori and he is  in anger,
How should be a sadhak of tantric, can be fully  learnt /understand by watching  him his unshakable will, fearlessness ,perfectly motion less sitting and having the same radiance of as of his isht deity.
One sadhak guru brother , after giving     proper respect ,asking him ..what is in, so special about in Guru mantra, that’s why you says that , is supreme most mantra of  the universe ,this is type of mantra alike any guru’s have. after all this is a guru mantra.!!!
He replied, my son ..ask me for immense wealth, beautiful woman , and long  life ,I can give but not ask about this secret ..
 Who other than You ,in the universe can describe about that, if want to give me ,please give that or simple say no to me.
He start saying..’have you ever thought/noticed why Sadgurudev ji ‘sname is Nikhil not akhil..since he….” He is absorbs in his though and words start flowing from his divinity. Nature stand still  to listen and start drinking  Amrit bond coming out . everywhere silence absorbs… than he starts to describe each and every words of guru mantra in details , like  knowledge of whole universe ‘s not but universe it self stand there to listen that divinity.
 “Not only all the divine knowledge /gyan but what is inside or out side of whole universe is inside  in that, everything’s is in that guru mantra. Even Bramha  ji is not able to describe that ..  you already know what is the gurumantra and take  its first letter is ..
“pa” stands for and carring the meaning  …,
 “ra” stand for and carring the meaning    ….,
“ma” stands for and  carring the meaning  …..,like that…
what not included in that , not only akhil but Nikhil wealth , highness, greatness uniqueness are included in that and you people living that  wondering hear and there aimlessly…”.
 He spoke with little anger …theses bagger sitting in the market  showing magical skill fulfilling their selfish ness, why did you not people  understand that, theses cheater/thug what they will give  to you…...  , When did you not  understand  about Sadgurudev….. but how can you people understand him (Sadgurudev)…… he spread his maya ,where narayan is, there his maya….. only a few can recognize his  original form …remaining have tears in their eyes when he will finally  move to siddhashram….and thaneven  if you understand him …. Only than  tears will be with you… he is not…
Sadgurudev Bhagvaan- “now tell me how can I obey guru agya to search old tantrak granth like Aasuri kalp, I am help less could not that anywhere, advice me where can I search that..sadgurudev ji replied that . now go and meet trijta  I have already  indicated  about you.  (one guru bhai asking to Sadgurudev)
“After crossing to continue high mountain I reach  mount hiranyaksh, on reaching its top where temple of mahakaal Raudra Bhairav is situated , found that trijata ji sitting on a big rock ,I touched his divine feet and provide mine aim and introduction that why I am here. ,he blessed me. And ask about Sadgurudev ji. L informed him about so many false allegation, propaganda and  false baseless remarks on him either in print media and in others way too. Happening  to him from last so many months.
After listing my word , it seems like mahakaal  appeared in his form.
“I do not bother about siddhshram , theses culprits has to be punished , theses can not be easily  come on the way , he is burning there ,in  that  fire  in part by part slowly slowly and what I am doing here ,just to see him helplessly , this is enough , I cannot wait any more. “His  voice  sounded very high all round.
Anyhow he  controlled himself and said “he and only he has the ability to withstand  in such a huge fire with smile and providing Amrit  to society , and we all are here watching him , nothing can be done from our side since this is his agya. watching him working day and night with such a pain and hard work with smile just to make their shishy be able enough, “
How fortunate you all are ,but not understanding/recognizing that… we all are waiting him ,the day when our isht will be with us.
 You people  atleast understand the   pain lies in his   heart , even if he  not tells you, you all have to understand  the pain  and feeling for you in his eyes. To understand that what  he wants from  you all …..
 only  for his love toward s you all , is cause for him to stay there.. but you all just looking only your selffiness………..

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